बुधवार, 30 नवंबर 2016

श्रेष्ठ हिंदी हाइकु - नवंबर माह के हाइकु-

२  ११ १६ 
हद हो गई 
कानून के ऊपर 
उनका कद 
       -संतोष कुमार सिंह 
हुआ न यकीं           
गरीबी की तस्वीर 
लाखों में बिकी 
         -राजीव गोयल (हाइगा)
देह की पीड़ा
सही, सह न सके 
मन की पीड़ा 
         -प्रियंका वाजपेयी 
गहरी होतीं 
उम्र के साथ साथ 
बुज़ुर्ग आखें 
       -प्रियंका वाजपेयी 

३ ११ १६
अमीर बन
पर दिल में ज़िंदा
फ़कीर रख
      -राजीव गोयल
मन बांसुरी
जीवन है बजाती
राग करुण
       -वी पी पाठक
रुक जा वक्त
मिला है यार मेरा
बाद मुद्दत
       - राजीव गोयल

४ ११ १६
माटी की गंध
कलम की सुगंध
रचाते छंद
      -प्रदीप कुमार दाश
दिल की खुशी
माँगते फकीर से
दौलतमंद
       -राजीव गोयल
मन के रिश्ते
मन में ही बसते
हुए न सस्ते
        -डा रंजना वर्मा

५ ११ १६
ओढ़ के हिम
मना रहे पहाड़
शरदोत्सव
       -राजीव गोयल
नयन उगा
आंसू बन टपका
एक सपना
      -डा. रंजना वर्मा
धीरे धीरे से
गुज़रती जाती है
वाह ज़िंदगी
       -जितेन्द्र वर्मा

६ ११ १६
निकली भोर
सजाए माथे पर
सूर्य बिंदिया
      -राजीव गोयल (हाइगा)
बेला गोधूलि
सूरज लेने चला
जल समाधि
       राजीव गोयल (हाइगा)

७ ११ १६
चटकी कली
लूटने को आतुर
चले भंवरे
       -डा. रंजना वर्मा
छुपाए दर्द
जीता रहता हूँ मैं
दर्द ज़िंदगी
       -जितेन्द्र वर्मा
गिरफ्तार है
सुमन की जेल में
पराग चोर
      -वी पी पाठक
सर्द मौसम
सौउं मैं सुकून से
ओढ़ के धूप
      -राजीव गोयल
zoom your happiness
in the canvas of life.
happiness is life .
      - जितेन्द्र वर्मा

८ ११ १६
वृक्ष अकेला
फल अनगिनत
दे निरंतर
      -डा. रंजना वर्मा
मन भावन
कभी जो रोकडा था
जंजाल हुआ
       -दिनेश चन्द्र पाण्डे

९ ११ १६
जली पराली
प्रदूषित है हवा
घुटती साँसें
      डा. रंजना वर्मा
कल से आशा
कल का पछतावा
ज़िंदगी यही
       -राजीव गोयल
धागे दूब के
पिरो जाती सुबह
मोती ओस के
      -राजीव गोयल
उपेक्षा तूने
दी झोली भर मुझे
कैसी ये भीख
      आर के भारद्वाज
नामुमकिन
पाना निजातेदर्द
दर्द ज़िंदगी
       -जितेन्द्र वर्मा

१० ११ १६
सूरज पंख
फड़फड़ाए अब
लो भोर हुई
       -मंजूषा मन
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जुगलबंदी  -

मन चकरी
घुमाती रही प्रश्न
मैं स्वयं कौन ?
      -वी पी पाठक
सदा से रही
आत्म तत्व की खोज
नहीं मिलता
      -डा. रंजना वर्मा  
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११ ११ १६
घर में आई
चुगलियों की भेंट
ईर्ष्या की जीभ
      -अभिषेक जैन
माथे पे बल
चिंताओं की लकीरें
ओ! काला धन !
      -प्रियंका वाजपेयी
मिट्टी की नाव
कैसे पहुंचे पार
पानी सवार
       -वी पी पाठक
गिरि कोख से
झरता झर झर
वह निर्झर
      -प्रदीप कुमार दाश
लिखता रवि
किरण कलम से
भोर के गीत
       -राजीव गोयल

१२ ११ १६
ऊंचे दरख़्त
नभ तक ले जाते
हमारी बात
       -प्रियंका वाजपेयी
पहाडी नदी
जैसे बहती सदी
अनवरत
         -डा. रंजना वर्मा
बादल गरजे
लडे  एक दूजे से
बरसे नहीं
        -जितेन्द्र वर्मा
घुन करता
उसी अन्न में छेद
ज़िंदा जिस पे
        -राजीव गोयल
प्रदूषण से
हवा का दम घुटा
सांस ले या दे
         -आर के भारद्वाज

१३ ११ १६
काली रात है
सूरज सो गया है
चाँद डटा है
        -अमन चाँदपुरी
बहती नदी
देख सूरज जला
नदी झुलसी
       -अमन चाँदपुरी      
सूरजमुखी
उजाला पक्ष देखे
रहता सुखी
        -मुकेश शर्मा
वाह रे साधू
भोगी के धन पर
योगी का ठाठ
       -वी पी पाठक

१४ ११ १६
बैठी जाकर
मंदिर के अन्दर
काली दौलत
     - वी पी पाठक
बाल दिवस
कितना उपेक्षित
बाल जीवन
        -डा. रंजना वर्मा
याद पुरानी
टूटते अनुबंध
मेरी कहानी
       -निगम 'राज'
विद्द्युत तार
कतारबन्द खग
बिल्ली ताक में
      -तुकाराम खिल्लारे
पतझर में
बन तितली उड़ें
पीली पत्तियां
       -राजीव गोयल
दबे थे नोट
मोहनजोदड़ो से
निकले आज
        -कैलाश कल्ला
बच्चे हंसते
झर झर हंसते
हरसिंगार
      - वी पी पाठक

१५ ११ १६
सिन्धु न बढ़ा
नदी पीछे न मुड़ी
हो गए एक
        -कैलाश कल्ला
आंधी दौड़ी है
पत्ते बने तितली
भू बनी गुल
        -विभा श्रीवास्तव (हाइगा)
हुआ फरार
भगाकर रात को
आशिक चाँद
         -अभिषेक जैन
हांपता  रोड
सुबह टहलने
निकला तोंद
     -वी पी पाठक
बूंद से सिन्धु
बदले कई रूप
वस्तु तो एक
       -कैलाश कल्ला
मन सलाई
लेके यादों के धागे
बुने अतीत
      -राजीव गोयल

१६ ११ १६
ख़्वाब ने देखी
हकीक़त पहले
दंग हुआ मैं
      -जितेन्द्र वर्मा
करे खोखली
संदेह की दीमक
रिश्तों की नींव
       -राजीव गोयल
जुगुनू लिए
ढूँढ़ रही है चाँद
मावसी रात
         -राजीव गोयल
थका कार्मिक
बोतल का सहारा
सोता टुन्न
      -जितेन्द्र वर्मा
प्यारी गुड़िया
मेड इन इंडिया
विदेशी बोल
       -वी पी पाठक

जुगल बंदी --

मन मंजूषा
रखी सहेजकर
आंसू की बूंद
     डा. रंजना वर्मा

१७ .११.१६
रूमाल नहीं
दो मीठे बोल चाहें
भीगी पलकें
        -मंजूषा मन (हाइगा)
------------

जुगलबंदी --

सिन्धु चूमने
नीचे उतारा भानु
डूब ही गया
       -कैलाश कल्ला
जलते बदन
नहाने आया सूर्य
लगाया गोता
       -मुकेश शर्मा (हाइगा)
---------
बहती हवा
बहका ले जाती
मन को मेरे
      -अमन चांदपुरी
बैठी चिड़िया
देख हाथ पसारे
छोटी बिटिया
        -कैलाश कल्ला

१८ ११ १६
मेरा वतन
खुशियों का चमन
अभिनन्दन
     -डा. रंजना वर्मा
खोल ही दी
आफत की चाबी ने
बंद दिमाग
        -अभिषेक जैन
काली कमाई
गौरैया के पेट में
हाथी का बच्चा
        -वी पी पाठक
सर्द मौसम
सो रहा सूरज
ओढ़ के धुंद
      -राजीव गोयल

१९ ११ १६
अंजान स्वयं
केवल आडम्बर
धोखा खुद से
        -प्रियंका वाजपेयी
जगते बच्चे
सुबह हो गई क्या
कहते बच्चे
      -प्रियंका वाजपेयी
भोर ज़िंदगी
बदलती शाम में
डूबी रात में
       -जितेन्द्र वर्मा
छपे सतत
मन टकसाल में
इच्छा के सिक्के
     अभिषेक जैन
बेच ईमान
कमाए जो नोट
कागज हुए
       -राजीव गोयल

२० ११ १६
गंदगी में भी
है फूल महकता
उन्नत माथा
        -तुकाराम खिल्लारे
छुए पवन
सिहर उठता है
झील का तन
     -राजीव गोयल
पूनों]की रात
लहरें बन नाचे
सिन्धु अपार
      कैलाश कल्ला
बाहर बिल्ली
चूहेदानी में चूहा
दोनों बेचैन
       -राजीव गोयल

२१ ११ १६
प्याली में सुख
प्रेम की एक चुस्की
मिटेंगे दुःख
       -मंजूषा मन
मांगे थे पैसे
दे गई प्रवचन
पिता की जेब
       -अभिषेक जैन
हांक ले गया
पवन गड़रिया
मेघ रेवड़
      -राजीव गोयल  
   
२२ ११ १६
मन बागीचा
उगे यादों के फूल
टपके आंसू
       कलाश कल्ला
लगता रहा
पहरे पे पहरा
चोर आज़ाद
        -वी पी पाठक
मिलें बिछड़े
जैसे क़त्ल मुझको
किश्तों में करें
      -राजीव गोयल

23 11 16
जुगलबंदी

झील जल में
खेल रहा चन्द्रमा
लहरों संग
     -डा. रंजना वर्मा
स्तब्ध चन्द्रमा
झील में देखकर
जुड़वां भाई
      -राजीव गोयल
---------------
चुरा के भागी
बगिया से सुगंध
चोरनी हवा
       -राजीव गोयल
दोस्तों का जाल
पैगाम पे पैगाम
फिर अकेला
      -वी पी पाठक

२४ ११ १६
अबला नहीं
सरहद पे लड़ी
सबल खड़ी
       -वी पी पाठक
प्यार की बाढ
सहजते न बने
माँ का प्यार
        -जितेन्द्र वर्मा
भोर का तारा
अम्बर में टहले
मुंह अँधेरे
       राजीव गोयल
चाँद तनहा
झील की पगडंडी
चला अकेला
       - प्रदीप कुमार डास (हाइगा)

२५ ११ १६
कामनाएं हैं
हिरन के छौनों सी
भागती जाएं
       -डा. रंजना वर्मा
दिल्ली से आई
पोटली विकास की
हवा हवाई
       -वी पी पाठक
पल रहे हैं
जाने कितने गम
चुप्पी के नीचे
        -राजीव गोयल (हाइगा)
चाँद उतरा
नदिया में नहाने
लहरें खुश
      -जितेन्द्र वर्मा

२६ ११ १६
टूटती आस
बिखर जाते  ख़्वाब
उठती टीस
       राजीव गोयल
मूँगफलियाँ
झोला भर के लाए
बाबूजी आए
        -मंजूषा मन
नहा ओस में
हो गई तरोताजा
भोर की धूप
       +राजीव गोयल

२७ ११ १६
सर्द मौसम
कुछ धूप बचा लें
रात के लिए
       -राजीव गोयल
धान बालियाँ
महकती कुटिया
कृषक खुश
        -प्रदीप कुमार दाश
kindle the lamp
darkness all around
something burning?
         -Tukaram Khillare

28 11 16
मिथ्या उर्मियाँ
मरुजल छलका
मोह फंसाया
     -विभा श्रीवास्तव
किरणांगुली
विद्रोहणी फोड़ती
ओस गुब्बारे
     -विभा श्रीवास्तव
मटर खिली
नीलम की सी डली
खेत अंगूठी
       -डा. रंजना वर्मा

२९ ११ १६
बुलबुलों से
ये तुम्हारे वायदे
उभरें टूटें
        -राजीव गोयल
पन सउआ
बंद ऐसा हुआ
चिढाए मुआ
       राजीव निगम 'राज'
रस्सी को सांप
कहकर डराया
खूब सताया
       -मंजूषा मन

३० ११ १६
आई धरा पे
ओढ़ धूप का शौल
उजली भोर
       -राजीव गोयल
नाचती धूल
झरोंखों से झांकती
जब भी धूप
      -दिनेशचन्द्र पाण्डेय

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समाप्त


















सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु अक्टूबर , २०१६

०१  .१० .१६
समुद्र खेत
लहरों की फसलें
उपजे रेत
     -राजीव गोयल
जुगलबंदी
-----------
खर्च करूं मैं
चलाने को ज़िंदगी
साँसों के सिक्के
        राजीव गोयल
तन गुल्लक
गिनी साँसों के सिक्के
बजें बहुत
       -डा. रंजना वर्मा
--------------
मातु चरण
चारों धामों का पुण्य
मिला शरण
      -प्रदीप कुमार दाश
ज़िंदगी भर
रह गया तनहा
मन बावरा
      -प्रियंका वाजपेयी

०२. १०. १६
बहा ले गई
ख्वाहिशों की बारिश
दिल का चैन
     -अभिषेक जैन
जुगल-बंदी
-------------
माँ का आँचल
रखे सदा बेख़ौफ़
है अविचल
      -मुकेश
गर्मी में छाँव
सर्दियों में अलाव
माँ का आँचल
        -राजीव गोयल
--------------

३ १० १६
गिरी डायरी
हौले से झाँक उठी
एक पंखुरी
      -डा. रंजना वर्मा
खुली डायरी
बाहर कूद आईं
यादें पुरानी
      -राजीव गोयल
सरसराए
खेतों में ज्यूँ सरसों
बातें मन में
      -प्रियंका वाजपेयी
छली गई वो
कभी बनीं दामिनी
कभी निर्भया
       -प्रदीप कुमार दाश

४ १० १६
स्वाद बढाती
चुटकी नमक की
अति वर्जित
     -डा. रंजना वर्मा
दब के मरे
फूल से रिश्ते
जुबां के मलवे में
        -अभिषेक जैन
पडा घायल
शब्द तीर शैया पे
रिश्तों का भीम
      -राजीव गोयल

जुगलबंदी

सर्दी की रात
ठिठुरती कोने में
ढूँढे अलाव
     राजीव गोयल
 खूब ठिठुरी
अलाव ढूँढ़ती रात
कहीं न मिला
      -आर के भारद्वाज
------------
दादी से सुनी
कथा सुनाए बिट्टो
गुडिया सोए
      -जितेन्द्र वर्मा

५ १० १६
घर से मेरे
उड़ गई गौरैया
अंगना सूना
      राजीव गोयल
पाखराविण
झाड उदास झाले
अर्धे वाळले
       (मराठी )-तुकाराम खिल्लारे

६ १० १६
पंकिल जल
नित रहे नहाता
दाग न छूटे
      -रंजना वर्मा
जुगल बंदी

पूछे आइना
किसका मुखौटा है
मुख पे तेरे
      -राजीव गोयल
रहा ढूँढ़ता
सबसे बड़ा मूर्ख
दर्पण मिला
      -वी वी पाठक

७ १० १६
कहाँ से आई
झींगुर की झंकार
निशा ढूँढ़ती
       - वी पी पाठक
दिल न मिले
बीच में आया पैसा
रहे फासले
      -अभिषेक जैन
रहता ज़िंदा
बेंच अपनी साँसें
गुब्बारे वाला
       -राजीव गोयल (हाइगा)
खूब सेंक ली
अब ढलने को है
धूप उम्र की
     -राजीव गोयल (हाइगा)

८ १० १६
जुगलबंदी

कहीं गूँजता
ऊंचा उठ सुनिए
नाद ब्रह्म का
       -प्रियंका वाजपेयी
गूँजा करता
चहुँ ओर व्योम में
ओ३म  का नाद
     -जितेन्द्र वर्मा
   -------------
चुरा लिए हैं
तुमने मेरे लम्हे
मैं रीत गया
     -आर के भारद्वाज
ढला सूरज
पहाड़ों से उतरे
रात के साए
       - राजीव गोयल

९ १० १६
आहट  नहीं
छूजाती है खुशबू
तू यहीं कहीं
       -प्रियंका वाजपेयी
जुबां नहीं है
आँखों से बयाँ होती
दास्ताने इश्क
        -प्रियंका वाजपेयी
अमा के घर
रमा की पहुनाई
द्युति दमके
        -विभा श्रीवास्तव
टिकता कहाँ
कलई चढा झूठ
सच के ताप
      -विभा श्रीवास्तव
पीला गुलाब
रजनी गाल पर
मले चन्द्रमा
      -डा. रंजना वर्मा
ले आए अश्क
अतीत के हाट से
यादों के धनी
      -अभिषेक जैन
चाँद से कहा
बापू से जब मिलो
बताना मुझे
       -प्रदीप कुमार दाश
घंटा देखता
मंदिर में केवल
पैसा बजता
       -वी पी पाठक
सूरज ढला
करने को उजाला
दीपक जला
     -राजीव गोयल
सूरज उगा
कर सूर्य नमन \                        
दीपक बुझा
      -राजीव गोयल
बैठी खामोश
शाखाओं की गोद में
नन्हीं कोपलें
     -राजीव गोयल

१० .१० .१६
ले आया घर
ग़ुरूर कमाकर
साहब बेटा
       -अभिषेक जैन
पुतला जला
भीतर का रावण
मुस्करा रहा
       -प्रदीप कुमार दाश

११ १० १६
हार ही गया
लंकापति रावण
नारी तेज से
     -डा. रंजना वर्मा
दसों गुणों को
गुना करें मन में
तो दशहरा
      -प्रियंका वाजपेयी

१२ १० १६
गटक गई
बोतल शराब की
अम्मा की दवा
    -अभिषेक जैन
नई दीवाली
गरीबों के घर हो
रोशनी वाली
       -राजीव निगम राज
दादा के किस्से
नानी की कहानियां
स्वप्न सरीखे
      -डा. रंजना वर्मा
वो बासी फेंके
यह बासी पे जीता
भाग्य का खेल
      -राजीव गोयल

१३ १० १६
श्याम सघन
मेघों में डोल रही
चन्द्र किरण
     -डा. रंजना वर्मा
सोचे चकोर
कभी तो पिघलेगा
निर्मोही चाँद
     -राजीव गोयल
झूलती रही
समीर की बाहों में
रात की रानी
         -जितेन्द्र वर्मा
अकेला नहीं
तुम्हारी यादें संग
या खुद तुम
      - आर के भारद्वाज
      (जितेन्द्र वर्मा के एक अंग्रेज़ी हाइकु का अनुवाद )

१४ १० १६
मैं हिम खंड
तुम गर्म हवा सी
छू पिघला दो
        -डा. रंजना वर्मा  
        (जितेन्द्र वर्मा के एक अंग्रेज़ी हाइकु का अनुवाद)
मासूम नदी
वर्षा ने बना डाली
आतंकवादी
      राजीव गोयल

जुगलबंदी

कितनी बार
टहनी तोड़ डाली
फिर से आई
      -तुकाराम खिल्लारे
तोड़ेंगे सब
जुड़ना होगा खुद
यही दस्तूर
       -मुकेश वर्मा
-------------

१६ १० १६
कर्म की शाख
हिलाने से गिरते
फूल झोली में
        - प्रदीप कुमार दाश
किताबें नहीं
वक्त देगा तुझे
जीवन ज्ञान
      -राजीव गोयल
तेरी यादों का
विस्तार ही यह है
रोज़ तड़पूँ
       - आर के भारद्वाज

१७ १० १६
पड़ी दरार
उठ गई दीवार
रिश्तों के बीच
      -राजीव गोयल
डंसता रहा
स्मृतियों का नाग
मन के द्वार
       -डा. रंजना वर्मा
नोट खाए हैं
कुर्सी बीच पड़े हैं
अफसर हैं
        वी पी पाठक
रंग बिरंगी
मानस की क्यारियाँ
स्मृतियाँ फूलें
      -प्रियंका वाजपेयी
प्यार का मोती
निखरता ही जाए
बन के ताज
        -मुकेश

१८ १० १६
जुगल बंदी

रिश्तों में रहे
माधुर रस टिका
गन्ने की गाँठ
       विभा रानी श्रीवास्तव
मिठास भरा
मीठे रिश्तों के जैसा
गन्ने का रस
      - डा. रंजना वर्मा
ऐसा मीठा हो
रिश्तों का ताना बाना
रस छलके
        -आर के भारद्वाज
 -----------
स्वयं को देखें
निकट दृष्टि दोषी
नीति नियंता
       -वी पी पाठक
ठिठकी फिजा
पूछे खामोशियों से
तेरा ही पता
        -राजीव गोयल
संग सखी के
फुगड़ी खेलें हम
बेफ़िक्र मन
        -पीयूषा (हाइगा)
झूमें व गाएं
जीवन उत्सव है
आनंदित हों
      - मुकेश (हाइगा)
नाचते गाते
ज़िंदगी जो बिताते
धूम मचाते
       - राजीव निगम राज़ (हाइगा)
आज का चाँद
दिखाता है नखरे
आए देर से
       (करबाचौथ पर -) राजीव गोयल

२१ १० १६
तैर पानी में
उतारती है पार
नाव उदार
      -राजीव गोयल

२२  १० १६
निकल पड़ी
ले ख़्वाबों की गागर
राहें अंजान
       -राजीव गोयल (हाइगा)
पूनों की रात
महकती मालती
डोरे डालती
       -(गंध बिम्ब) राजीव गोयल
रात उदास
आएगा कोई नहीं
इस तमस
       -तुकाराम खिल्लारे

२३ १० १६
रूठ गया है
क्यूँ गाँव से त्योहार
पूंछो न यार
        - अमन चाँदपुरी
शरद काल
थरथराने लगे
मौन अधर
       - डा. रंजना वर्मा
तन्हा थे भाव
शब्दों से मुलाक़ात
मैत्री प्रस्ताव
        -अभिषेक जैन
दिए के नीचे
गुमसुम बैठा है
घुप्प अन्धेरा
        - जितेन्द्र वर्मा
तम मिटाने
जलता है दीपक
हवा क्यों खफा
        -राजीव गोयल

२४ १० १६
राह दिखाता
हथेली में सूरज
बन के दिया
       -प्रदीप कुमार दाश
कभी ख़्वाब हो
कभी हकीकत हो
ज़िंदगी तुम
     - प्रियंका वाजपेयी
कहीं गूँजतीं
अनाहद आवाजें
रहस्य नाद
       - प्रियंका वाजपेयी
लौट के आए
अच्छे वक्त के साथी
प्रवासी पंछी
        -दिनेश चन्द्र पांडे

२५ १० १६
दीपक राग
पिघलादे अन्धेरा
बहे प्रकाश
        -राजीव गोयल
लड़ रहे हैं
माँ रहे सलामत
देश के दीपक
       -वी पी पाठक
आहें निकली
हिचकियाँ साथ थीं
रात यों रोई
       -जितेन्द्र वर्मा

२६ १० १६
भीगी जो धूप
रंग इन्द्रधनुषी
बह निकले
       -राजीव गोयल

२७ १० १६
ढूँढ़ता रहा
उम्र भर चैन
तड़प मिली
       -जितेन्द्र वर्मा
नहीं निकला
देख दीप मालाएं
चाँद शर्मीला
     -वी पी पाठक

२८ १० १६
रक्त की बूँदें
बन जाती प्रदीप
गिर सीमा पे
     -डा. रंजना वर्मा
ज़िंदगी बाकी
गिरी नहीं है अभी
आख़िरी पत्ती
       -राजीव गोयल
लाएं दियाली
मिट्टी के दिए वाली
हो खुशहाली
      -राजीव निगम राज़

२९ १० १६
प्रतीक्षारत
नयन प्रदीपों में
उम्मीद की लौ
      डा. रंजना वर्मा
एक दीपक
मन का भी जलाया
किया उजेला
      -दिनेश चन्द्र पांडे
दीपक जला
बन प्रकाशपुंज
तम पिघला
      - राजीव गोयल
सहस्त्र नाव
अमा श्यामली
जुगुनू लादे
     -विभा श्रीवास्तव

३० १० १६
जीर्ण वृक्ष को
आए कोमल पत्ते
जीना फिर से
       -तुकाराम खिल्लारे
हर मन में
प्रेम का दिया जले
यों प्यार पले
      -जीतेन्द्र वर्मा
दीप जलाएं
तम को पी जाने का
हुनर सीखें
     -प्रदीप कुमार दाश
मोमबत्तियां
उजाले की चिंता में
भस्म हो गईं
       - आर के भारद्वाज
३१ १० १६
तम संहार
दीपक छोड़ रहा
प्रकाश बाण
       -राजीव गोयल
पकती भूख
ठंडी अंगीठी पर
गरीब झुग्गी
      -राजीव गोयल
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शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

डा. सुरेन्द्र वर्मा : हाइकु वर्षा ऋतु

डा. सुरेन्द्र वर्मा - हाइकु, वर्षा ऋतु

हम संतप्त
मेघ तुम रक्षक
बरस पड़ो

मातृत्व हेतु
तैयार है धरती
बूँदें तो पड़ें

वर्षा की गंध
सुप्त पडी धरती
महक उठी

मेघा बरसे
फिर से उम्मीद से
हुई धरती

धरा आकाश
हवा पानी रोशनी
रचते काव्य

कदम्ब तले
श्वेत किंजल गेंद
पावस सोंदर्य

वर्षा पवन
अट्टहास बादल
डर भी डरे

दिखा अंगूठा
अल्मस्त चल  दिए
मेघ सैलानी

ताल तलैया
बूंद बूंद रचना
नाले नदियाँ

बूंदों की झड़ी
लगी बरसात में
यादों की लड़ी

अमृत जल
सदा रहे बहता
बहाओ मत

हैं इस पार
बेमौसम मल्हार
आर्त पुकार

घन गरजे
चमकी तलवारें
बरस पड़े

वर्षा उदंड
भिगो कर ही माने
उड़ा दे छाता

प्रकृति बूटी
वर्षा के रंग देखे
वीर बहूटी

सारी प्रकृति
स्वर ताल में नाचे
साधे संगीत

वर्षा की झड़ी
रोने पे जो आ जाए
रोके न रुके

पेड़ों ने पाया
वर्षा का उपहार
वस्त्र नए

पानी पीकर
पहली बरसात
जिए पोखर

सूखे हैं पड़े
थोड़ा पानी प्यार दो
पुन: जी उठें

रोके है वर्षा
कहाँ जाओगे बाहर
रुक जाओ ना !

धरा की साड़ी
भीगी व भिगो गई
अन्दर तक

उमस भरी
वर्षा की दोपहरी
घबराहट

धरती गाए
काले मेघा पानी दे
गुड़धानी दे

गाता आकाश
स्वागत में वर्षा के
बादल राग

धरा आकाश
बादलों का विस्तृत
खेल मैदान

वर्षागमन
तप्त देह धरा की
कसमसाई

झूले श्रावाणी
सखियाँ बादरियाँ
पेंग लगातीं

बाद मौसम
शान से तना खड़ा
कुकुरमुत्ता

कुछ कड़वी
निबौली सी ज़िंदगी
कुछ मीठी सी

धूसर पौधे
वर्षा जल में धुले
नए हो गए

बहता पानी
ठौर नहीं ठहरे
गढ़े कहानी

मिट्टी की गंध
वर्षा से मुक्त हुई
फैली स्वच्छंद

हरी घास पे
बारिश बूँदें, आँखें
झिलमिलाईं

कुएं बावडी
इन्हें बचाओ भैया
ताल तलैया

कमल गान
पोखर के बाहर
व भीतर भी !

खिलखिलाती
सद्य-स्नाता प्रकृति
बाद बारिश

थम गई है
वर्षा, टपकती है
छत फिर भी

सुप्त धरा की
जाग उठी है गंध
स्वागत वर्षा

मेघ चिरैयाँ
फैलातीं  जब पंख
हंसता ताल

पहने कोट
लाल मखमल का
वीर बहूटी

बरखा झूमें
तूम तनन तूम
गाए तराने

बाद बारिश
पौधों की हरी ताज़ी
हंसी, बच्चों सी

बिखरे मेघ
आकृतियाँ गढ़ते
बुनते स्वप्न

मेघ बरसे
सितार पर झाला
सुने धरती

मेघ रीतते
इसीलिए भरते
वे फिर फिर

रचाते चित्र
कलाकार बादल
बुनते स्वप्न

रात वर्षा की
अंधेरी, घोंसलों में
ज्योति जुगनू

लहरें पानी
नावें व मछलियाँ
खुश है वर्षा

वर्षा का स्पर्श
धरती अंगड़ाई
हरी हो गई

वर्षा में भीगे
धुले उजाले पौधे
हँसे विहँसे        

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समाप्त

शुक्रवार, 30 सितंबर 2016


सितम्बर माह के श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु

१ ९ १६
नाचती गाती
झूमी वो मतवाली
गेहूँ की बाली
     -प्रदीप कुमार दाश
पी रही रात
चन्दा सकोरे से
चांदनी जाम
      -राजीव गोयल
२ ९ १६
छू नहीं सके
सफलता का कद
बौने इरादे
       - अभिषेक जैन
दुर्लभ हुए
रुद्राक्ष व् मानव
एक मुंह के
      -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
गस्से में पापा
आँचल में छुपाया
दादी अम्मा ने
       विष्णु प्रिय पाठक
३ ९ १६
रिश्तों में पडी
जब जब दरार
उठी दीवार
     -राजीव गोयल
मिट्टी के लोंधे
मूर्ति गढ़ता कहीं
एक कुम्हार
      -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
रुक सी गई
यमुना देख ताज
गवाह चाँद
      -कैलाश कल्ला
४ ९ १६
कन्धों पे हल
लिए बैल की डोर
खेत की ओर
        -वी पी पाठक
खा कर खुश
पहन कर खुश
वाह कनक
    (दो-सुखन)- आर के भारद्वाज
कहते रहे
कहाँ आ पाए आप
भेज दी यादें
      -जितेन्द्र वर्मा
५ ९ १६
ज्ञान अंजन
आंजा गुरुवर ने
जागृत चक्षु
      -महिमा वर्मा
भगाए दूर
अज्ञान का तमस
गुरु है सूर्य
     -अभिषेक जैन
विघ्न हरता
है ज्ञानी सिद्धिदाता
तू एक दन्त
      सुवना
६ ९ १६
गुम हो गई
फरेब के मेले में
होठों की हंसी
     -अभिषेक जैन
अस्थिर मन
ठहरता कल में
कल  है कहाँ ?
     -जितेंद्र वर्मा
दीमकों ने
मेरी कताब पड़ी
मैं शब्द  ढूँढूँ
      -आर के भारद्वाज
बच्चों का घर
दीवारों पर उभरे
मासूम ख़्वाब
      राजीव गोयल
७ ९ १६
परतें दर्द
रोज़ उतारता हूँ
जैसे केंचुली
       -जितेंद्र वर्मा
८ ९ १६
बांधे वक्त ने
ग़मों के सांकल से
खुशी के पैर
     अभिषेक जैन
उड़ ही गई
दादी साथ गौरैया
खटिया सूनी
      - वी पी पाठक
10  ९ १६
झरे झरने
गाते वे झर झर
गिरि गौरव
       प्रदीप कुमार दाश
आंधी में उड़े
बाग़ के सारे फल
माली के होश
    आर के भारद्वाज
११ ९ १६
ओढ़ के धूप
देते छाया का साया
संत हैं पेड़
-         आर के भारद्वाज
 बिछाए भोर
रवि के स्वागत में
लाल गलीचा
         राजीव गोयल
धरा ने धरा
मखमली रूप ये
हरा ही हरा
      प्रियंका वाजपेयी
१२ ९ १६
सोने में जडी
ये गेहूँ की बालियाँ
खेतों में खडीं
      -राजीव गोयल
13 9 16
पशु को मारा
पशुता को सहेज
कैसी ये ईद
       -प्रियंका वाजपेयी
१४ ९ १६
विशाल हिन्दी
समाहित कर ली
कई भाषाएँ  
      -महिमा वर्मा
जड़ों से जुडी
गौरवशाली पथ
हिन्दी है शान
      -महिमा वर्मा
हिन्द के वासी
हिन्दी में हस्ताक्षर
रास न आते  !
      -प्रदीप  कुमार दाश
१५  ९ १६
झरते  पत्ते
स्वागत कर चले
आगंतुक का
    -प्रदीप कुमार दाश
तमाम रात
करते रहे पेड़
हवा से बात
      -राजीव गोयल
१६ ९ १६
रहम करो
बरसाओ सरस
बूंदों के धारे
     -प्रियंका वाजपेयी
१७ ९ १६
पैरों से नहीं
हिम्मत से इंसान
जीते पहाड़
       -राजीव गोयल
ज़्यादा  पीड़ा है
आज कार्य न होगा
कल होने दो
       -(दो सुखन) आर के भारद्वाज
मावस रात
ओढ़ काली चादर
सो गया चाँद
          -प्रदीप कुमार दाश
१८ ९ १६
वस्त्र, सुई से -
'ये कैसा चाव, तू दे
घाव ही घाव '
     -आर के भारद्वाज
गंजे पहाड़
सह न सके ताप
टूटे बिखरे
       राजीव गोयल
१९ ९ १६
खोल नभ में
बादलों की खिड़की
झांकता चाँद
       राजिव गोयल (हाइगा)
कौन सुनाए
कहानी परियों की
नहीं है नानी
    वी पी पटक
२०  ९ १६
लड़कपन
उडी पतंग संग
दर्द की डोर
       वी पी पाठक
नन्ही चिड़िया                                                                                                                                                 भूली वो चहकना
मन उदास
      - प्र्दीप कुमार दाश
वर्षा की झड़ी
सजादे तारों पर
मोटी की लड़ी
      -राजीव गोयल (हाइगा)
हवा गुज़री
बांसों के ह्रदय में
बजी बांसुरी
       -राजीव गोयल
२१ ९ १९
अश्रु पर भी
बातों पर भी लगाते
पहरे लोग
      प्रियंका वाजपेयी
वर्षा में नहा
सतरंगी चुनरी
पहने धूप
      -राजीव गोयल
२२ ९ १६
सैर पे चली
गंध सेना लेकर
रात की रानी
     -वी पी पाठक
२३ ९ १६
हवा ने छुआ
उदास खड़ा पानी
झूमने लगा
       -राजीव गोयल
मेघ शावक
चढ़ हवा के काँधे
घूमे आकाश
       राजीव गोयल
२४ ९ १६
तड़ तड़ाक
पड़े बूंदों की मार
छाता चीत्कारे
     -वी पी पाठक
तरसी धरा
बादल घिरे रहे
बरसे नहीं
    -जितेन्द्र वर्मा
२५ ९ १६
बुझता नहीं
चिराग से चिराग
जलता गया
       -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
खेतों के पन्ने
किसान रचता है
जीवन छंद
      -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
गगन ओर
नीम तले झलुआ
देवे हिलोर
     डा. रंजना वर्मा
लेकर चली
पनघट पे नारी
बातों का घडा
       -अभिषेक जैन
२६ ९ १६
बहती नदी
समुन्दर से मिली
अस्तित्व खोया
     -डा. रंजना वर्मा                                                                                
हुक्के भी अब
तेरे मेरे हो गए
बदला गाँव
        -राजीव गोयल
मेघों के पीछे
सुनहरी लकीर
आशा का दीया
      -प्रियंका वाजपेयी
२७ ९ १६
मैदान खाली
मोबाइल ने छीनी
बच्चों की गेंद
     -दिनेश केन्द्र पाण्डेय
जला पलाश
शाख शाख लटके
लाल अंगार
     -राजीव गोयल
ताज महल
या, वक्त के गालों पे
लुढ़का आंसू
       -प्रियंका वाजपेयी
खेतों में उगी
कंक्रीट की फसलें
बदला गाँव
      -राजीव गोयल
बांटा न कर
कैंची सा बनकर
काटा न कर
       -डा. रंजना वर्मा
२८ ९ १६
the entire temple
covered by the tree
waves of heat
       -Tukaraam  Khillare
सूनी डालियाँ
सूखे पत्ते झड़ते
निशि वासर
       -डा. रंजना वर्मा
उगते रहे
नयन निलय में
स्वप्न अधूरे
      -डा. रंजना वर्मा
जुगलबंदी
---------
पीपल पेड़
धागे से विश्वास के
लिपटा हुआ
      -जितेन्द्र वर्मा
पीर मज़ार
बांधी धागे में पीर
हुआ निश्चिन्त
       -राजीव गोयल
-----------
आंसू की बूंद
समेटे बड़ी व्यथा
आँख न मूंद
      -मुकेश शर्मा
२९ ९ १६
यशोदा घर
उठ  रही सोहर
जनमा लाल
       -डा. रंजना वर्मा
------------
जुगल बंदी
-----------
मेरे अंगना
खेलते-खाते आता
भोर का तारा
        -वी पी पाठक
जागी सुबह
देख भोर का तारा
सो गई रात
      - राजीव गोयल
---------
शिखर पर
चढ़ के मंहगाई
सहम गई
      -वी पी पाठक
चढ़ शिखर
करा मंहगाई ने
इंसा को बौना
     -राजीव गोयल
----------
----------
पूछें पलाश
इतना प्रदूषण ?
गुस्से से लाल
      -मुकेश शर्मा
लिए सर पे                                            
अंगारे लाल लाल
खिला पलाश
     रालीव गोयल
-------------
------------
३० ९ १६
चाल न चल
ज़िंदगी ताश नहीं
प्रीति का खेल
       -आर के भारद्वाज
शान्ति है आज
सजावट भी न की
लड़ी नहीं थी
       -आर के भारद्वाज (दो सुखन)
-----------------------------------------
समाप्त 

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

श्रेष्ठ हिंदी हाइकु - अगस्त माह के हाइकु

१ ८ १६

बच्चों का घर
दीवारों पर उभरे
बच्चों के ख़्वाब
       -राजीव गोयल
दीप जो जला
जान बचाने तम
पैरों पे गिरा
       -राजीव गोयल
मेघों के बीच
ढूँढे महिला चाँद
सावन तीज
      -कैलाश कल्ला

२ ८ १६
फटे बादल
वाहन मनु हाल
तैरते तृण
    -विभा श्रीवास्तव
मेघ से केश
उड़ते व ढंकते
पूनों का चाँद
      -कैलाश कल्ला
दिखाए ज़ख्म
खून के आंसू रोई
मेरी कलम
      -राजीव गोयल

७ ८ १६ मित्रता दिवस
नकार दिया
देने झूठ में साथ
सच्चे मित्र ने
        -अभिषेक जैन
मित्र जो मिला
क्लिष्ट हुआ आसान
मिला जीवन
     -सुवना
    (परिवर्धित )

८ ८ १६
खो जाता हूँ मैं
एक भूल भुलैयां
शब्दों की भीड़
        -राजीव गोयल

९ ८ १६
पूछते रहे
दीवाने, दीवानों से
होश का पता
     -प्रियंका वाजपेयी
खोजते रहे
ठिकाने,उजालों के
डूबते मन
       -प्रियंका वाजपेयी
१० ८ १६
जुगलबंदी -
-----
तारों के साथ
चाँद सोया नभ पे
ओढ़ के रात
    -राजीव गोयल
-----
 नीली चादर
तारों जडी बिछाके
सोई है रात
       -जितेंद्र वर्मा
-------
ठंडी अंगीठी
भूख की आग पर
पकता जुर्म
      -राजीव गोयल
१२ ८ १६
वक्त का मारा
कहे सूना मकान
मैं भी घर था
       -राजीव् गोयल

१३ ८ १६
जुगल बंदी --

भीगी हथेली
पसीना तुम्हारा था
सूखता नहीं
     -जितेन्द्र वर्मा
कंधे पे तेरे
है अभी तक नमी
आंसू की तेरे
       -राजीव गोयल
-------
मेघों की मर्जी
रिमझिम बारिश
छान के भेजी
      -आर के भारद्वाज
तारे सितारे
अम्बर में बिखरे
ज्यों पापकॉर्न
     - राजीव गोयल

१४ ८ १६
वो कैसे आए
साफ़ नहीं हुजरा
तेरे दिल का
      -प्रियंका वाजपेयी

१५ ८ १६
झूले लटके
पेड़ों की डालों पर
डालों के बाले
        आर क भारद्वाज
दो सुखन -
पंछी न उड़े
लोग गर्मी से तंग
पंखों के बिना
      -आर के भारद्वाज

१६ ८ १६
लाई बहना
रेशम में लपेट
प्यार अपना
      -राजीव गोयल
सूनी न रहे
किसी की कलाई
राखी है भाई
     -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
लाई बहना
अक्षत वरदान
राखी गहना
       -विभा श्रीवास्तव

17 8 16

जुगल बंदी --

नहीं तैरतीं
कागज़ की नावें
दूर तलक      (संवर्धित)
        -सुवना
किनारा कभी
पाते नहीं ये ख़्वाब
कागजी नाव
        -राजीव गोयल
कागज़ नाव्
बिना लक्ष्य का काम
एक समान
       -सुवना
पंख लगाती
बच्चों की खुशियों को                                                                                                  
कागजी नाव
         -आर के भारद्वाज
---------
१८ ८ १६
   
हाँ मेरे भैया
सुख दुःख बाँटते
आशीष देते
      - सुवना
इन्द्रधनुष
मेघों ने बंधवाई
धरा से राखी
       -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
श्रावणी पूनों
नेह कथा बाँटते
रेशमी धागे
         -डा.शिवजी श्रीवास्तव

१९ ८ १६
वर्षा सावन
हरित स्मृति-वन
राखी  ने किए
        -दिनेश चन्द्र पांडे
२१ ८ १६
सालता भी है
वक्त दिल का दर्द
पालता भी है
      -राजीव निगम राज
खाली घोंसले
रह गईं हैं बस
यादें ही यादें
       -राजीव गोयल
नहीं संभव
गगन को छू लेना
बौने हैं सब
     -तुकाराम खिल्लारे

२२ ८ १६
लगाए छाते
बारिश से बचते
कुकुरमुत्ते
      -राजीव गोयल
२४ ८ १६
फुद फुदक
गौरैया ओ बहना
आ जा अंगना
     -वी पी पाठक
पेड़ों में झूले
मेढक गाए गीत
पीया न आए
     -वी पी पाठक
बीत ही जाती
कितनी ही अंधेरी
गहरी रात--

प्रीत की मिट्टी
गीली अबतक है
आँखों के साथ
    -प्रियंका वाजपेयी

२५ ८ १६
बेसुध नाची
वंशी का स्वर सुन
कान्हा की गोपी
     -आर के भारद्वाज
ब्रज पावन
जन्में नन्द किशोर
बजते ढोल
       वी पी पाठक

२६ ८ १६
सांकल चुप
दरवाज़ा बंद है
है इंतज़ार
      -जितेन्द्र वर्मा
२७ ८ १६
उड़ता पंछी
आकाश विवर में
चित्त भू पर
     -तुकाराम खिल्लारे
किनारा कभी
पाए नहीं ये ख़्वाब
कागजी नाव
     राजीव गोयल
सेल्फी में कैद
अपनों की मुस्कान
मेरे कन्धों पे
      -विभा श्रीवास्तव

29 8 16
मन चातक
चुन चुन कर पी
तत्व सलिल
      -प्रियंका वाजपेयी
कांटे ने कहा
पाँव चुभे कांटे से
आ मैं निकालूं
      -आर के भारद्वाज
उपवन में
महकते फूल
इत्र की वर्षा
     -आर के भारद्वाज
पूर्व दिशा
सजी लाल जोड़े में
सूरज संग
       -राजीव  गोयल

३० ८ १६
वैभवशाली
अब हैं अवशेष
रंग महल
     -प्रियंका वाजपेयी
भोग न पाए
दामन पड़े सुख
अतृप्त जन
     -प्रियंका वाजपेयी
जीवन हाला
बनाके मधुशाला
बस पी डाला
          -राजीव निगम राज
भर रखा है
आँख की सीपियों में
मैंने समुद्र
       राजीव गोयल
कतरा तो नहीं
आँखों में जो समाया
समंदर था
       -प्रियंका वाजपेयी
थमा न तूफां
बह गए थे आंसू
याद जो आई
       -जितेन्द्र वर्मा
बूंद उछली
बहुत ऊंची उठी.
पुन:, नदी में
        -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
डालियाँ रूठीं
सूखी पत्ती रो पडी
विदा की घड़ी
        -प्रदीप कुमार डास 'दीपक'
प्यासी ही रहे
समुद्र में सीप
स्वाती की चाह
     -राजीव गोयल
--------------------------------------------
------------------------------------समाप्त









रविवार, 7 अगस्त 2016

श्रेष्ठ  हिन्दी हाइकु  -जुलाई १६

२ ७. १६
बंद किवाड़
शिव ने मंदिर में                                                                                                                                             खोले त्रिनेत्र
       -जितेन्द्र वर्मा
३.७.१६
उठ भागता
सुबह से मयूर
मन नाचता
     राजीव निगम राज़
४.७.१६
सूर्य ज्यों ढला
चौपड सजा बैठे
चाँद सितारे
      दिनेश चन्द्र पांडे
५.७.१६
पूरव  दिशा
मिले धरा आकाश
जन्मा सूरज
      -राजीव गोयल
६.७.१६
तुम हो गति
तुम नव-जीवन
हे चित्रभानु
       -डा. अम्बुजा मलखेडकर
फूलों ने रचा
हवा को सुगंध से
नशे में उडी
        -आर के भारद्वाज
दो सुखन

पौधे न  लगे
पत्र भी नहीं लिखे
कलम न थी

छाता टूटा था
संगीत भी रूठा था
तान न थी
     -आर के भारद्वाज
परिदा उड़ा
मुंह बाए घोंसला \                                      
ठगा सा खडा
        -राजीव निगम
७.७.१६
धान के जैसे
रोपी गईं बेटियाँ
नए खेत में
     -दिनेश चन्द्र पांडे
आई है ईद
वृद्धाश्रम  मे मैया
ढूँढे हामिद
      -अभिषेक जैन
 पीड़ा में मोर
जीवन संकट में
सौन्दर्य बला !
       -प्रियंका वाजपेयी
सोंधी महक
घटाएं रिमझिम
धरा हर्षित
        -प्रीति दक्ष
८.७.१६.
गिनती रहीं
दंभ की उंगलियाँ
औरों के ऐब
      -अभिषेक जैन
बारिश हुई                                  
सतरंगी फसल
नभ पे उगी
       -राजीव गोयल

१० .७.१६
धरा पे मेघ
हुए  नतमस्तक
भीगा आँचल
     -प्रियंका वाजपेयी
११.७.१६
मिले जो आप
दिल में खिल गए
कई गुलाब
     -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
१२. ७. १६
उसी ने मारा
पी के जिस हवा को
जिया था दीया
      -राजीव गोयल
१३.७ .१६
कल डूबा था
भूल गया सूरज
फिर उगा है
      -जितेन्द्र वर्मा
हुई बीमार
वर्षा में डूब कर
कच्ची दीवार
     -अभिषेक जैन

१५ ७ १६
बूंद के भाग
सीप में जाके गिरी
मानक बनी
     -राजीव गोयल
१६ ७ १६
उग हर्षाते
मशरूम से स्वप्न
ऋतु  सौगात
    -विभा श्रीवास्तव
टाँके हैं मोती
वृक्ष की पत्तियों पे
सावन दर्जी
     -राजीव गोयल
१७ ७ १६
जानता कौन
स्वाति  का नसीब
धूल या सीप
        -राजीव गोयल
छोड़ पिंजरा
स्त्री गगन में उड़े
तोड़े रूढ़ियाँ
     -विभा श्रीवास्तव
१९.७.१६
अंत नहीं है
सीमाओं के भी परे
नवल पंथ
        -प्रियंका श्रीवास्तव
धरा संवरी
मेघों की काली साड़ी
बूंदों के बूटे
     -विभा श्रीवास्तव
झटके केश
बदली ने जब भी
गिरी फुहार
       -राजीव गोयल

गुरु-पूर्णिमा -

करो स्वीकार
कोटि कोटि प्रणाम
तुम आचार्य
     -'सुवना'
गुरु कुम्हार
कच्ची मिट्टी को देता
रूप आकार
       -राजीव गोयल
२०.७.१६
सृष्टि नाशक
बारूद गंध फैली
श्याम घन से
       -विभा श्रीवास्तव
भू मनुहार
प्रवाह तो निर्वाह
घटा छकाए
      -विभा श्रीवास्तव

२१ ७ १६
मैं लेम्पपोस्ट
उजाला बिखेरता
नतमस्तक    
       -जितेन्द्र वर्मा
गाँव दौड़ते
शहरों की तरफ
खाली चौपालें
       - जितेन्द्र वर्मा
चाँद चकोर
खोए एक-दूजे में
करें किलोल
      (हाइगा ) -राजीव गोयल

२२ ७ १६
बुनती रही
ज़िंदगी  झीनी यादें
जुलाहे जैसी
     -प्रियंका वाजपेयी

२३ ७ १६
हाथ से छूटा
समय का गुब्बारा
फिर ना लौटा
     अभिषेक जैन

२४ ७ १६
मन उदास
दुश्मन से लगे हैं
सगे संबंधी
     -तुकाराम खिल्लारे
टूटा जो दिल
खामोशी से चटका
आवाज़ नहीं
      प्रियंका वाजपेयी
ये हेरा-फेरी
मेघ घुमड़ें यहाँ
बरसें वहां
       - आर के भारद्वाज

ऐक्रोस्टिक
हाइकु विशेष

१, यातना
याद जो आई                            
तकलीफ दे गई
नाहक मुझे
     - राजीव निगम
यादों के कांटे
तमाम रात चुभे
नागफनी से
      -राजीव गोयल
याचक द्वार
तकलीफ में सीता
ना करे कैसे
      -राजीव गोयल  
२, हाइकु
हारी अबला
इंसानी दरिंदों ने
कुचले खाब
       -राजीव गोयल
              

शनिवार, 2 जुलाई 2016

श्रेष्ठ हिंदी हाइकु - जून

१ .६.१६
रद्दी में बिकी
मोती सी हर्फों वाली
मासूम कॉपी
        -प्रियंका वाजपेयी
मन न शांत
कहाँ मिले एकांत
मैं आतंकित
        -'सुवना'
रूखे पहाड़
पांवों में प्यासी नदी
लिपटी  रही
       -दिनेश चंद पांडे
साँसों की तार
दिखाए करतब
ज़िंदगी नटी
     -राजीव गोयल
जद्दोजहद
दो जून ज़रूरत
दीन के जंग
       -विभा श्रीवास्तव

४.६.१६
खुशी के वास्ते
विचारें न शगुन-
अपशगुन
       -राजीव निगम राज़

५.६.१६
काट डालेगा
दरख्तों के संग तू
साँसों की डोर
         -राजीव गोयल
दो सुखन  ---
छत न डली
टूट गई पायल
कड़ी नहीं थी
       - आर के भारद्वाज
दर्द ज्यादा था
नर्स आज ही आई
कल नहीं थी
       -आर के भारद्वाज
६..६.१६
कैसे संभाला
निज अस्तित्व तूने
छोडी क्या छाप
     -प्रियंका वाजपेयी
सीमा नहीं है
आत्मा की उन्नति की
कीजे विस्तार
      -प्रियंका वाजपेयी

७.६.१६
कागजी नाव
बरसात का पानी
बच्चे मल्लाह
    अंकुर उगा
पा धरती का प्यार
दरख़्त बना
      -राजीव गोयल

८.६.१६
तुम्हारी स्मृति
है बन गई मेरी
अदभुत  शक्ति  
        -डा. मुडखेरकर
दिलों में डर
भेदियों ने बनाए
बस्ती में घर
        -संतोष कुमार सिंह

९.६.१६
वट वृक्ष है
बाहें पसारे खडा
पितृ स्वरूप
    जुड़ा रहता
वृद्ध,युवक जटाल
जैसे कुटुम्ब
     -प्रियंका वाजपेयी

१०.६.१६
फूल जो दिया
विदा लेते समय
गंध हरसूँ
     -तुकाराम खिल्लारे

हाइकु जुगलबंदी ---

       जितेन्द्र वर्मा --
मैं मना लूंगा
रूठने से पहले
रूठ के देखो

        आर के भारद्वाज --
वह रूठी है
आज तू मना  ही ले
बाजी पलट

१२.६.१६
लोहे से यारी
लकड़ी की गद्दारी
बनी कुल्हाड़ी
जन्मी जिस शाख से
वो शाख काट डाली
        (ताका रचना)
    - राजीव गोयल
स्वयं की दृष्टि
देखें वही तो दिखे
रस्सी या सांप
       -कैलाश कल्ला
झुर्री में दबी
पर फींकी न पड़ी
माँ की मुस्कान
       -राजीव गोयल

१३.६.१६
जुगलबंदी -
      प्रियंका वाजपेयी -
हाथों में रुके
भीगी, नम हो जब
रेत  ज़िंदगी

      राजीव गोयल -
रिश्तों की रेत
पाके प्यार की नमी
चिपकी रहे
       
खर्च के उम्र
कमा लिया तजुर्बा
नहीं है गम
        -राजीव निगम राज़

१५. ६.१६
जत्न से पढो
ज़िंदगी शब्द नहीं
शब्द-कोश  है
     -आर के भारद्वाज
गीता कुरान
प्रेस में संग छपीं
कभी न लड़ीं
      -आर के भारद्वाज
रोज़ बदलें
हो गए आजकल
लिबास रिश्ते
       -राजीव गोयल

१८.६.१६
ढूँढ़ती फिरूं
आकाश का विस्तार
ओर न छोर
         -प्रियंका वाजपेयी
यादों की शाखें
लचकाए हवाएं
झरें स्मृतियाँ
       -प्रियंका वाजपेयी
छोटे कदम
बड़ी उम्मीद लिए
फासला कम
        -जितेन्द्र वर्मा
नवजाताक्षि
(बच्चे की आँखें)
खोलना व् मूँदना
मेघ में तारे
       -विभा श्रीवास्तव

१९ .६,१६
पितृ दिवस -

पिता का साया
तपते सहरों में
वट की छाया
       -प्रियंका वाजपेयी
घर से दूर
बढ़ा रहे हिम्मत
पिता के ख़त
       -अभिषेक जैन
बालक पंख
पिता देते आकाश
उड़ान भर
      -प्रीति दक्ष
पिता के जूते
पहने जो सुपुत्र
बड़ा हो गया
     -जितेन्द्र वर्मा

२०.६.१६
हाथ उठाए
बेटा जब माँ पर
दूध लजाए
      -राजीव गोयल

२१.६.१६
खुशी की बाढ़
बरसाती पानी में
कागजी नाव
      -राजीव गोयल
बचपन में
हमारे भी चले थे
पोत जल में
      -दिनेश चन्द्र पांडे

२४ . ६ १६
संभाल रखा
सुख दुख का धन
खजांची मन
     -अभिषेक जैन
रहस्य रही
जीवन की परिधि
क्या उस पार
        -प्रियंका वाजपेयी

२६ ६. १६
दौड़ लगाता
धावक नन्हा क्षेत्र
रक्तिम लिली
      -विभाश्रीवास्तव
सूरज डूबा
देह पर ओढ़ ली
रात की शाल
       -तुकाराम बिल्लारे
खूँटी टंगे हैं
मेरे प्यारे उसूल
भूला ओढ़ना
         -जितेन्द्र वर्मा

२९.६.१६    
खिली सांवली
रिमझिम मौसम
तृप्त नयन
       पीयूषा
बूंदों ने रचे
धरा के पृष्ठ पर
हर्ष के गीत
     -अभिषेक जैन
खो गया कुछ
शायद वो वजूद
जो कभी मैं था
      -जितेन्द्र वर्मा

३०.६.१६
ह्रदय के द्वार
स्मृतियों की कोठरी
आशा के दीप
        -प्रियंका वाजपेयी
गीत होठों पे
संगीत आसपास
आपका साथ
        -तुकाराम खिल्लारे
उजाड़ दुर्ग
मकडी के जालों ने
सम्भाला राज
         -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
भीगी चिड़िया
स्थगित है उड़ान
कांपती रही
        -प्रीति दक्ष

मंगलवार, 31 मई 2016

मई माह के हाइकु

०१.०५.१६
श्रम अर्जित
स्वेद से सनी हुई
उसकी रोटी
---
ताके महल
यही मेरा था कल
अर्जन स्थल
        -महिमा वर्मा
मुस्कराहटें
बाँट कर देखिए
लुत्फे-ज़िंदगी
----
आज़माइशें
निभा कर देखिए
नूरे-बंदगी
       -प्रियंका वाजपेयी

२.५.१६
बुन रही माँ
सरदी में गरमी
सलाइयों पे
    ---
एक शाख पे
रहते हैं प्यार से
फूल व शूल
       -राजीव गोयल
पवित्रों को भी
अपवित्रों को भी है
तभी गंगा माँ
       -प्रीति दक्ष

३.५.१६
ज्योति की संगी
लम्बी कभी वो छोटी
तम में गुम
       (हाइकु पहेली)
      -विभा श्रीवास्तव्
सांझ सवेरे
लोहित नभ धरा
उबाल  मारे
      -विभा श्रीवास्तव
पी रही रात
चाँद के सकोरे में
चांदनी जाम
       -राजीव गोयल
स्मृति विशेष
प्यार की हलचल
ताज महल
       -राजीव निगम 'राज़'

४.५.१६
ज़िंदगी दे दी
छोडी नहीं कसर
तो भी शिकवा
       -प्रियंका वाजपेयी
दी है सुपारी
अँधेरे ने आंधी को
लू बुझाने की
       -राजीव गोयल
अविकसित
नि:सहाय शरीर
कामुक हावी
       - डा. अम्बुजा
चाँद को देख
उछलती लहरें
अमा को शांत
       कैलाश कल्ला

५.५.१६
बना देते हैं
ये जादूगर पत्ते
धूप को छाँव
       -संतोष कुमार सिंह
जो फूल हँसे
बनकर हार वे
प्रभु को चढ़े
        -आर के भारद्वाज
कुतर देते
जात पांत के चूहे
दिलों के तार
       -अभिषेक जैन
ओलों की गोली
बादलों ने चलाई
फसलें ढेर
        -राजीव गोयल

८.५. १६
मात-दिवस

माँ अनमोल
साथी जीवन भर
माता के बोल
       -ममता वर्मा
कर लो शोध
स्वर्ग से भी सुन्दर
है माँ की गोद
       -संतोष कुमार सिंह
उजियारा था
दीपक बनकर
थी जलती  माँ
       -प्रियंका वाजपेयी
जा नहीं सका
खुदा हर घर में
तो माँ भेज दी
       -राजीव गोयल
माँ का आशीष
मंगल का प्रतीक
ओम, स्वस्तिक
        -अभिषेक जैन
अम्मा आकर
सपने में हमारे
हँसे दुलारे
        -राजीव निगम 'राज़'
एक ख्याल-सा
माँ का अहसास
भूलता नहीं
       -जितेन्द्र वर्मा
अंजुरी भर
प्रेम के बराबर
नहीं सागर
        तुकाराम खिल्लोरे

९.५.१६
महाराणा प्रताप जयंती

अन्याय हटे
भले कष्ट में खाएं
घास की रोटी
        -पीयूषा
रण किससे ?
सब अपने ही हैं
भलाई करें
      -पीयूषा

१०.५.१६
पिता का खेत
माँ के लुटे गहने
शिक्षा डकैत
        -अभिषेक जैन
अब भी दम
अन्धेरा करे ख़त्म
बूढा सूरज
        -राजीव गोयल

१२.५.१६
सागर तत्व
लहरों में निहित
अतुल्य बल
       प्रियंका वाजपेयी
मनुष्य तेरी
मूलभूत क्षमता
अनंत खोज
        -प्रियंका वाजपेयी
पलाश झड़ा
धरती के पांवों में
रचा आलता
       -राजीव गोयल
बढ़ती गई
हर पल ये उम्र
घटती गई
      -राजीव गोयल
सोचता रहा
किया तो कुछ नहीं
अकर्मण्यता
       -जितेन्द्र वर्मा

१३.५.१६
सींचती रही
यादों का उपवन
नैनों की गंगा
         -संतोष कुमार सिंह
नभ से झांका
खोल मेघ कपाट
चाँद सलोना
       -राजीव गोयल
भरे पड़े हैं
सेठ के गोदाम में
अहं के बोरे
        -अभिषेक जैन

१४ ५. १६
ताप व् शीत
जीवन संतुलित
सूरज चाँद
      (हाइगा)- विभा श्रीवास्तव
वक्त के साथ
ढल रहा है भानु
हंसता चाँद
       -कैलाश कल्ला

१५.५.१६
झाडू से डर
घुस गई कोने में
निर्बल धूप
        -अभिषेक जैन
आंधी से डर
छुपे अनाथ पत्ते
मेरे आँगन
       -राजीव गोयल
moon walks
in the mids of clouds
appears disappears
          -Jitendra Varma

16.5.16
सन्नाटा फैला
क्या मौत के डर से
ज़िंदगी बाक़ी
         -पीयूषा

१७.५.१६
ज़िंदगी मेरी
हँसाए व् रुलाए
शरीर ऐसी
       -राजीव निगम राज़
रिश्ता जलाता
धूम्रपान करता
शक का कीड़ा
         -विभा श्रीवास्तव
बरसी नहीं
इस साल बदरी
कुंठित नदी
         -राजीव गोयल

१८.५.१६
है सच्चा मित्र
सीप में बंद मोती
रखो सम्हाल
       -पुष्प लता शर्मा
डर लगता
सांप का फन, और
विष रहित !
       -जितेन्द्र वर्मा
फूलों को घेर
नाच रहीं पत्तियाँ
दूल्हे के मित्र
        -कैलाश कल्ला

१९,५.१६
पैसे की भूख
चखने नहीं देती
रिश्तों का स्वाद
        -राजीव गोयल
जीवन नाव
चलती उधर ही
सोच की पाल
       -कैलाश कल्ला


२०.५.१६
छनती धूप
नदिया झिलमिल
बिखरे मोती
       -प्रियंका वाज्पेशी
ले रही रात
भोर के उजाले में
आखिरी सांस
        -राजीव गोयल
सिर पटक
साहिल पे लहरें
देती जान
         -राजीव गोयल

२१.५.१६
उजालों भरी
रहती अमावस
संग बिटिया
       -प्रियंका वाजपेयी

२२.५.१६
उबल रहा
लोहित नभ धरा
सांझ सवेरे
    विभा श्रीवास्तव
शान से खिला
सूरज को चिढाता
अमलतास
        -दिनेश चन्द्र पांडेय
रवि बंजारा
धर ताप टोकरी
फिरे घूमता
        -महिमा वर्मा
पियारा गए
गरमी के ताप से
अमलतास
        -राजीव निगम राज़
धर्म की हानि
भयभीत जगत
आओ माधव
        -प्रियंका वाजपेयी

२३.५.१६
विषैले बोल
धन्वा से छूटा बाण
कभी न लौटे
     
प्रीत की डोरी
यहाँ बंधी, वहां भी
छूटती नहीं
        -प्रियंका वाजपेयी

२४.५.१६
अन्धेरा घना
खूब दिए जलाओ
नहीं है मना
        -आरके भारद्वाज
कभी था हुस्न
झुर्रियां हुईं तो क्या
उम्र का जश्न
      -आर के भारद्वाज

२५ ५ १६
ज़मीन से उठा
झोंके आँखों में धूल
शैतान हवा
      -अभिषेक जैन
हवा विमान
बैठ गए पल्लव
भरें उड़ान
       अभिषेक जैन
बिखेर गए
धरा पे काली स्याही
रात के साए
        -राजीव गोयल

२६.५.१
मकड़ जाल
ख्यालों की दीवार पे
बुने है कवि
         -अभिषेक जैन
वक्त उदास
गर्मी प्रचंड हुई
प्यास भी प्यासी
           -आर के भारद्वाज

(हाइकु-जुगलबंदी)
     कैलाश कल्ला ---
ताज को देख
करते सब वाह
है दरगाह !
     प्रियंका वाजपेयी ---
कब्र ही सही
प्यार की दास्तान को
संजोये ताज !

२७.५.१६
(हाइकु जुबलबंदी)
      जितेन्द्र वर्मा ---
भारी हो मन
बोझिल हो जीवन
निकले आंसू
      प्रियंका वाजपेयी ----
कह न  सके
कसक पले अंत:
ढुलके आंसू

(हाइकु जुगलबंदी)
       राजीव गोयल ---
पिघला दिन
ग़मों की गरमी से
बहते आंसू
        आर के भारद्वाज ---
तुम्हारी कथा
लिए मन में व्यथा
आंसू ने सुनी

तन तम्बूरा
साँसों की सरगम
बजाए आत्मा
       -प्रीती दक्ष

२८.५.१६
फींके हैं साज़
पहली किलकारी
झूमता मन
       -कैलाश कल्ला
फिसल गए
उम्र की सीढियों से
साँसों के पैर
      -अभिषेक जैन
थका पथिक
ठंडी छाँव सोया
वृक्ष हर्षाया
        -आर के भारद्वाज
फंसी मछली
तालाब भरे आह
मछेरा वाह
        -संतोष कुमार सिंह
स्त्री का नर्तन
देख व्यस्त जीवन
जी भर आए
        -राजीव निगम राज़

२९.५.१६
दिए  खदेड़
रंगदार धूप को
जांबाज़ पेड़
    अभिषेक जैन

(हाइकु जुगलबंदी)
      राजीव गोयल ----
घोल चाय में
सुबह का पेपर
पीता हूँ रोज़
       रालीव निगम राज़ ---
खबरें पीना
चाय की चुस्की संग
जीवन रंग

३०.५.१६
सांवली हवा
झुलसी जूही बेला
जेठ महीना
       -विभा श्रीवास्तव
दीमक बसे
किताबों के घर में
शब्द बेघर
        -राजीव गोयल
leading me
your foot print
even today
         Rajiv Goyal








शनिवार, 30 अप्रैल 2016

(4) अप्रैल माह के हाइकु

हँसा के हँस
मूर्ख बन के रह
मज़े में बस
       -राजीव निगम राज
पत्थर दिल
संकीर्ण हुई सोच
बढ़ा विज्ञान
        -कैलाश कल्ला
जल में ज़िंदा
बाहर मरे  मीन
पर्दानशीन
       -आरके भारद्वाज

२.४.१६
चढ़ न सका
सफलता की सीढी
लंगडा धैर्य
    -अभिषेक जैन
मापें सुकून
बीते द्वंद्व  से नहीं
मन तृप्ति से
       -प्रियंका वाजपेयी
पारदर्शी हों
शीशे सा साफ़ दिखें
कहे आईना
       -आर के भारद्वाज
बोलता फूल
प्रभु मैं हूँ आपकी
चरण-धूल
        आर के भारद्वाज

३.४.१६

गिरी बरखा
बजा जलतरंग
मेरे आँगन
       -राजीव गोयल
बुने जो गीत
दर्द की सलाई से
गाता ही रहा
       -जितेन्द्र वर्मा
जीवन यात्रा
थक कर मनुज
सोए कब्र में
       -अमन चाँदपुरी

४.४.१६
आँखों में तेरे
लुका छिपी खेलती
मानस मीणा
        -प्रियंका वाजपेयी
खो गई आत्मा
रह गया शरीर
बिके बाज़ार
      -जितेन्द्र वर्मा
खींची दीवारें
बंटता गया घर
बची दीवारें
     -कैलाश कल्ला
गंगाजल सी
बेटी मोक्ष-दायिनी
शक्ति स्वरूपा
       -प्रीति दक्ष
काली रात है
सूरज सो गया है
चाँद डटा है
      -अमन चांदपुरी

५.४.१६
पूनो का चाँद
उतरती नभ से
चांदनी रात
       -राजीव गोयल
दर्द है बना
मलहम दर्द का
दर्द है दवा
      -जितेन्द्र वर्मा

६.४.१६
दिया तो जला
अन्धकार न मिटा
मन था बुझा
        -प्रियंका वाजपेयी
हरा न पाईं
सांसारिक इच्छाएं
सन्यासी मन
       -राजीव गोयल
देह का अंत
ख़त्म हुए अध्याय
पुस्तक बंद
       -अभिषेक जैन
फटी बिवाई
लगाओ वर्षा लेप
धरा के पैर
       -राजीव गोयल

७.४.१६
जी ले ज़िंदगी
नहीं मिले दोबारा
खुशी ज़िंदगी
        -जितेन्द्र वर्मा
पलटा नहीं
पुकारती रही माँ
कैसा चिराग ?
       -प्रियंका वाजपेयी
चाँद कलश
छलकती चांदनी
नहाती रात
      -राजीव गोयल
पूनों को देख
लहरों में खो गया
प्रेमी समुद्र
      -कैलाश कल्ला

८.४.१६
भुगते सज़ा
दूसरों के पापों की
मासूम धरा
      -राजीव गोयल

९.४.१६
दिखती साफ़
बुज़ुर्ग चेहरों पे
वक्त की छाप
        (हाइगा)-राजीव गोयल
कई नाटक
एक साथ देखिए
मंच ज़िंदगी
       -जितेन्द्र वर्मा
लू के हंटर
रवि ने बरसाए
तड़पी धरा
       -राजीव गोयल
नयनों में आस
अन्तरंग में पीर
बूढा शरीर
         -अभिषेक जैन
जाल में फंस
लूटा छटपटाए
जिना कब्ज़े स्त्री
          -विभा श्रीवास्तव
स्याही के संग
भीग गए मधुर
प्रेम के रंग
         -डा, अम्बुजा मलखेडकर

१०.४.१६
छोड़ घोंसला
किधर गया पंछी
पूंछती पत्ती
       -राजीव गोयल
in the name of God
roaming godman
delivering sermons of lust
        -Jitendra Varma

11.4.16
क्यों न पाया
सब पा के सुकून
कुछ तो खोया
        -प्रियंका वाजपेयी
काम गलत
पत्र नहीं पहुंचा
पता नहीं था
        --
मन दुखी है
साईकिल न चली
चैन नहीं है
       -दो-सुखन
       -आर के भारद्वाज

१२'४.१६
कटते पेड़
बनी बहुमंजिले
पंछी बेघर
      कैलाश कल्ला
काटता हूँ मैं
हाइकु की फसल
उगा के शब्द
       -राजीव गोयल

१३.४.१६
उच्च संस्कार
किसने पाया आज
जो हो उद्धार
     -अम्बुजा 'सुवना''
भीषण गर्मी
पेड़ सहते रहे
देने को छाँव  
       -जितेंद्र वर्मा
भोर होते ही
हथगोला उठाए
सूर्य घूमता
      -आर के भारद्वाज
पानी न खिंचा
पतंग भी न उडी
डोर नहीं थी
        (दो सुखन) आरके भारद्वाज
सूर्य शीश पे
छाया भी मांगे छाया
उफ़ ये घाम !
      -प्रियंका वाजपेयी
लिखे सूरज
किरण कलम से
भोर के गान
      -राजीव गोयल

१४.४.२०१६
टंगे ज्यूं तारे
महमहाता बेला
गुंथे त्यूं वेणी
      -विभा श्रीवास्तव
निर्जन वन
भटकते जुगुनू
शापित यक्ष
       -प्रीति दक्ष

१५ ४. १६
बना है वृक्ष
छाँव की धर्मशाला
रुका पथिक
     -अभिषेक जैन `````````````
झील दिखाए
चमकते चाँद  को
पानी हिलाए
      -राजीव निगम 'राज़'
स्मार्ट शहर
बहु स्मार्ट  मकान
घर हैं कहाँ ?
      -जितेन्द्र वर्मा

१६.४.१६
बुनता रहा
साँसों का ताना बाना
झीना अस्तित्व
        -प्रियंका वाजपेयी
इंसा डंसता
इकदूजे को अब
सांप हंसता
         -राजीव निगम 'राज़'
रो भी न सका
देख पंछी का दर्द
ये सूखा नल
      (हाईका) -राजीव गोयल
स्वयं ही प्यासा
तुम्हें कैसे पिलाऊँ
मैं घनरस
       -डा. अम्बुजा  'सुवना'
चुल्बुलों को
बैठाकर पढ़ाती
हमारी शिक्षा
      -पीयूषा

१७.४.१६
सरसों फूली
नशे में धुत झूली
पेर दी गई
       -आर के भारद्वाज
सोना न चाहूँ
सब कुछ ले लो
बस सोने दो
      कैलाश कल्ला
प्यासा बहुत
तालों कुओं का जल
पी गया सूर्य
       -संतोष कुमार सिंह
काम मशीनी
क्यों करता आदमी
होता बेमानी
        -पीयूषा
भीतर आओ
अलख जगाकर
झांको खुद में
       -प्रियंका वाजपेयी

 १८.४.१६
आया चुगने
सूरज राजहंस
ओस के मोती
        -राजीव गोयल
फर्श पे लेटे
वे सुन रहे गीता
गौ-धूली वेला
      -कैलाश कल्ला
चिड़िया प्यासी
मुंडेर पर जल
मांगे तुमसे
      (हाइगा)-प्रीति दक्ष
बिना तपे ही
बारिश व् बहारें
मिलती नहीं
       -पीयूषा

१९.४.१६
दर्द का दर्द
जब देखा न गया
लगाया गले
     -राजीव गोयल
पिघल जाती
समय की धूप से
दुखों की बर्फ
      -संतोष कुमार सिंह
तपे  धूप में
यह दरख्त घने
छातों से तने
       -राजीव गोयल
अलगाव से
बदरंग जीवन
तुम अंजान
      -अम्बूजा "सुवना"
त्रास मिटाए
रेत से स्व झुलसे
मीठा लालमी
       -विभा श्रीवास्तव
समुद्र तपे
बरसात के लिए
आंसू टपकें
       -पीयूषा

२०.४.१६
ढूँढ़ते ठाँव
झुरमुटी डगर
छिलते पाँव
    -विभा श्रीवास्तव
धूप में तेज़ी
पेड़ पसारे हाथ
करने छाँव
      -कैलाश कल्ला
बुद्ध शरण
समंदर सुख का
प्रश्न त्याग का
      -तुकाराम खिल्लारे
कंक्रीट वन
बिजली के तार ही
पंछी के घर
      -राजीव गोयल (हाइगा)
listen carefully
your soul whispers
body doesn't
       -jitendra varma

२१.४ १६
मन अंगना
वक्त की खूँटी पर
टंगी हैं यादें
      -राजीव गोयल
स्वार्थ रचित
हर दृष्टि बाधित
सृष्टि कुंठित
       -राजीव "राज़"
कोने में बस्ता
खिलौने आसपास
ग्रीष्मावकाश
      -अभिषेक जैन

२२. ४. १६
हे बलशाली
कमज़ोर को देना
तुम पौरुष
      -अम्बूजा
कूदी लहर
गिरी मुंह के बल
मिला न चाँद
       -राजीव गोयल

२३.४.१६
सड़कें चौड़ी
दिल हुए तंग
ईश्वर दंग
     -संतोष कुमार सिंह
कोई तो रोता
मेरी बर्बादी पर
मेरा होकर
      -राजीव निगम 'राज'
बाजे पायल
रोता हुआ नैपत्थ्य
हाय ज़िंदगी
      -जितेन्द्र वर्मा
माँल में जूते
सड़क पर किताबें
संस्कृति बिकी
      - आर के भारद्वाज
हाँक ले गया
पवन चरवाह
मेघ रेवड़
      -राजीव गोयल
मिट्टी जमाने
नेता पानी छिड़के
जन तो प्यासा
      कैलाश कल्ला

२४.४.१६
भू पे दरारें
पके चूहे की गंध
फिजा में फैली
   
भू पे दरारें
बिवाई सहलाते
स्व हाथ काँपे

भू पे दरारें
बयाँ न कर पाऊँ
तन तपन
      -विभा श्रीवास्तव

पढो किताब
मर रहे हैं शब्द
लेने दो सांस
      - राजीव गोयल
कई सवाल
उत्तर बस  एक
मानव धर्म
     -जितेन्द्र वर्मा

२५. ४. १६
कभी सुनिए
झकझोरे अंत: को
मौन की गूँज
     -प्रियंका वाजपेयी
धार्मिक स्थल
या पिकनिक स्पाट
भेद मुश्किल
      कैलाश  कल्ला
माँ आँखें लाल
स्नेही कान पकडे
धमाल लाल
       -विभा श्रीवास्तव
अजन्मे भ्रूण
सूखे ने मार दिए
धरा गर्भ में
      -राजीव गोयल

२६.४.१६
रहे हैं झेल
सश्रम कारावास
खेतों में बैल
       -अभिषेक जैन
शादी अधूरी
भोज भी अधूरा ही
भात नहीं था
     -आर की भारद्वाज (दो सुखन)
मृत्यु के बाद
साया, न रहे पास
बहा दे राख
      कैलाश कल्ला

२७.४.१६
तुलसी पौधा
कद-काठी में छोटा
ऊंचा ओहदा
      -अभिषेक जैन
हुई बावरी
सागर की बाहों में
सिमटी गंगा
       -प्रीती दक्ष
दूजी दुनिया
अनजाना पथ है
धुंध के पार
       -प्रियंका वाजपेयी

२८.४.१६
नहीं हो सके
बिना मनुष्य देह
देव भी मुक्त
       -प्रियंका वाजपेयी
प्रभात वेला
सूरज चरवाहा
काम पे चला
       -हाइगा, राजीव गोयल
गो-धूलि  काल
साया से बौना  इंसा
वक्त की बात
       -कैलाश कल्ला

२९.४.१६
तपता सूर्य
सोखता पृथ्वी जल
मनु विकल
      -राजीव निगम 'राज़'
बिछड़ गया
कोई बहुत ख़ास
मन उदास
       -अमन चाँदपुरी
चूनर ओढ़े
दुल्हन का चेहरा
साए में धूप
      -अमन चाँदपुरी
शब्द अर्पण
मन हुआ दर्पण
नया सृजन
       -अमन चांदपुरी
जीने की आस
जबतक है श्वास
मिटे न प्यास
        -कैलाश कल्ला

३०.४.१६
कहीं दूर से
आती है आहट
उम्मीद लिए
      -प्रियंका वाजपेयी
उठा के लाई
ढेर सारे विवाद
खर्चीली जुबां
      -अभिषेक जैन

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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

ऋतु चक्र  (१)वसंत और पतझड़
डा. सुरेन्द्र वर्मा

फूलों से ढंके
कुछ हुए निर्वस्त्र
वृक्ष वासंती

जगाए दर्द
करे कनबतियां
हवा फागुनी

वासंती हंसी
दिन कमल और                                                                                                                                           रात वेला सी

टूटे बंधन
टूटी नहीं प्रतीक्षा
माह फागुन

तुम्हारा आना
दो पल रुक जाना
दो दो वसंत

ढोल मंजीरे
कोयल बुलबुल
स्वागत फाग

हंसती रही
माधवी दिन-रात
माधो वसंत

फगुनहट
दखिनैया बयार
अकुलाहट

फूले पलाश
कोयल बोले बैन          
चैत उत्पाती

अंग प्रत्यंग
मची झुरझुरी सी
कोयल बोली

खेत गेंदे का
उठाता है लहरें
पीली सुगंध

पहने साड़ी
सरसों खेत खडी
ऋतु वासंती

आम्र-मंजरी                            
आमोदित  वसंत
प्रतीक्षारत

रंगबिरंगा
बिछा हुआ कालीन
हरित धरती

अकथनीय
अक्षर हलंत सी
कथा वसंत
  
झड़  रहे हैं
पत्र पतझड़ में
टिक सकोगे ?

जीर्ण पत्र था
हलके से झोंके में
टूटा  बेबस

वृक्ष पे बचा
एक ही पत्र शेष
एकांत भोग

वसंतोत्सव
लहराते दुपट्टे
पीली सरसों

डीठ कामना
क्षण भर बहकी
तितली उडी

पीयरे खेत
ज़र्द पड़ गया सूर्य
आभा वसंत

झरते पत्र
करता अगवानी
फूल केक्टस

पतझर है
आहट वसंत की
क्यों उदास हो ?

पर्व मिलन
प्रिया लगाए आस
फागुन मास

चुप थी घाटी
जाग गई सहसा
चिड़िया बोली

सूखी पत्तियाँ
आश्रय तलाशतीं
बुहारी गईं

अपशगुनी
बैठा है सूखी डाल
काक अकेला

गिरते पत्र
निरुपाय सा वृक्ष
खड़ा देखता

जीर्ण पत्र को                                                            
बन जाने दो खाद
मूल्यवान वो  

डालियों पर
झांकते पत्ते नए
टूटते  सूखे

फूल से तोते
बाहों पर झूलते
शाख सेंमल

उड़ी लपटें
आग लगी जंगल
पलाश फूला

हर्षा अशोक
करती जो नर्तकी
पद प्रहार

ऋतु राजन
स्वागत है आपका
आएं पधारें

अनंग राज
नए पात पुष्पों से
राज तिलक

वसंत वात
रंग स्पर्श मधुर
आनंद राग

उम्र दराज़
एक एक पत्ते को
झड़ते देखा

 फूला पलाश
अम्बवा बौरा गया
फैली सुवास

सकल वन
फूल रही सरसों
सघन वन

अकेला पत्र
अटका है डाल पे
राह देखता

जलाते नहीं
दहकते पलाश
रंग भरते

फूली सरसों
रंग गई नारंगी
गेंदा बौराया

फूलों की सेज
पक्षियों का संगीत
रीझा वसंत

आया वसंत
चाँद हंसा,सूरज
मुसकराया

गूँजा आँगन
बड़े दिनों के बाद
बोली गौरैया  

सोया था सूर्य
उठा इठलाता सा
प्रात वसंत

तुम क्या आए
मिटे मैल मन के
गायब शिकवे

झड़ते देखा
एक एक पत्ते को
तो फूल खिले

डाली पलाश
रक्ताभ हुई, आया
वसंत राज

रुठी थी कली
वासंती सुगंध से
भरी तो खिली

वसंत आया
कोई न जान पाया
देखा सबने

चोरी से छुआ
आया वो दबे पाँव
पाजी वसंत

कोयल बोली
मौन हो गईं मानो
सभी दिशाएं

मुनि संतों का
मौन हुआ वाचाल
कोयल बोली

कोयल बोली
कनुप्रिया की भरी
रीती सी झोली

सन्नाटा कुछ                                    
और हुआ गहरा
कोयल बोली

साजन मेरा
कहाँ ढूँढूँ गुलाब
गेंदा ही सही

मारो ना, करे
करेजवा  पे चोट
रसिक गेंदा

चटक पीला
गेंदा फूल साजन
महके मन

न कोई नाज़
न ही कोई नखरा
गेंदा सबका

गेंदा सा गेंदा
लदा पडा खेत में
पी रंग पीला

गेदे की माल
गेंदा बंदनवार
सर्व-स्वीकार

रंग ही रंग
मेरे चारों तरफ
होली के रंग

तन भिगोते
सराबोर करते
मन के रंग

उसके रंग
न छूटे न छुटाए
चटक रंग

गोरी के गाल
गोरा हुआ गुलाल
डोरा आँखों का

अमृत जल
सदा रहे बहता
बहाओ मत

दिन होली का
बंधी तन-मन की
गाँठ खोल दो

त्याग अहं को
होली के दिन चार
खेलो, हँस लो

सूखने न दें
नदी जो भिगोती है
हमारा मन

कुछ तरल
सरिता की भाँति है
मन भीतर

मूर्ख बुलाता
मुझे मार, आ बैल
एक अप्रैल

तर्क वक्रता
तर्क करती रिश्ते
भली मूर्खता

मैं चौंक गया
खटका दरवाज़ा
वासंती हवा

खड़ी सामने
होली तेरे द्वार पे
सामने तो आ

एक चुम्बन
बसंत के गालों पे
गुल-मुहर

झूमने लगीं
गेहूँ की बालियाँ
हवा निहाल

पकी फसल
बालियों से झांकते
रोशन दाने

झूम के आया
आँगन में बसंत
राहग गुलाल

झांझ मंजीरे
होली का हुड़दंग
मन मलंग

तीन सखियाँ
जूही चम्पा चमेली
तनहा गुलाब

घुली जो श्वास
कान्हा की मुरली में
फूटा संगीत

राधा रानी ने
मारी जो पिचकारी
रूठे कन्हाई

रंग बरसे
ज्यों पलाश दहके
दिन फागुन

गीतों में बसा
बस, प्यार ही प्यार
मीठी बयार

तन मन से
आरोह अवरोह
स्वास फागुनी

प्रसन्न मन
तोड़े रति-बंधन सब
कान्हा की वंशी

फूलों के द्वारे
मंडराते भंवरे सब
कली शरमाई

होली में झूमें
महुआ कचनार
बौरी बयार

धरे न धीर
कूक कोयलिया की
जगाती पीर

रंगों रे रंग
केसरिया सुगंध
कहाँ हो कन्त

महका बौर
चू पड़ा महुआ
रंग गुलाल

नूतन हेतु
टहनी से उतरे
बुज़ुर्ग पात

कोई न रोया
आंसुओं से टपके
निराश पत्ते

पवन संग
झर झर नाचते
गिरते पत्ते












 

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - (३) मार्च माह के हाइकु

१ '३.१६
गुस्सा लहर
घाट  से टकराए
शांत हो जाए
      -कैलाश कल्ला
प्यार के पंछी
तू- तू मैं-मैं करते
एक ही हुए
     -तुकाराम खिल्लारे
कल थे चूजे
आज पंख क्या आए
उड़ ही गए
     कैलाश कल्ला
संजो रखे  हैं
इंच इंच सपने
आस मंजूषा
     -विभा रानी श्रीवास्तव

२.३.१६
खोती  जा रही
कागज़ व् स्याही
सोंधी महक
      -प्रियंका वाजपेयी
सत्य का सूर्य
छुपा नहीं सकते
झूठ का (के) घन
     -संतोष कुमार सिंह
(पिछले माह 'झूठ का घन' की जगह
'झूठ का सूर्य' प्रकाशित हो गया था
जो त्रुटि पूर्ण था|)

दादी के संग
लिपट रहे बच्चे
बेल पे फूल
     -आर के भारद्वाज
तितली बोली
लौटी हूँ खेल कर
रंगों की होली
     -संतोष कुमार सिंह
आत्म मिलन
बूंद हुई सागर
अस्तित्व खोयी (खोया?)
      -कन्हैया
सांप सच्चाई
सीढी चापलूसी   की
कैसा ये खेल
      -जितेन्द्र वर्मा

३.१.१६
क्रोधित रवि
बरसाए धरा पे
धूप के कोड़े
      -राजीव गोयल
झूमें कलियाँ
सुन भौंरा गुंजन
राग बसंत
     -कैलाश कल्ला
कल थे चूजे
आज पंख लग गए
उड़ ही चले
     -कैलाश कल्ला

४.३.१६
चाक मैके की
ससुराल के ढाँचे
ढल जाती स्त्री
      -विभा श्रीवास्तव
सीखने वाली
बात है विनम्रता
ज्ञान है भारी
      -प्रियंका वाजपेयी
सीता लंका में
हुई न विचलित
स्वयं सोना थी
     -आर के भारद्वाज
करती बातें
चिरागों से रोशनी
घंटों रातों में
     राजीव गोयल
सुबह हुई
रात भर जागी
रजनी सोयी
      -राजीव गोयल

५.३.१६
सौन्दर्य दिखे
अंतर की छबि जो
सरल सजी
       प्रियंका वाजपेयी
गृह हमारे                                                                                                                                                     नियम से विचरें
संयमी संत
      -आर के भारद्वाज
बेंच दी रूह
आवाज़ भी उसकी
देह की खातिर
       जितेन्द्र वर्मा
बहू विधवा
भटके गली गली
भिखारिन सी
     -जितेन्द्र वर्मा
ज़ख्म नहीं हैं
मेरे ज़िंदा  होने का
सबूत हैं ये
      -आर के भारद्वाज

६.३.१६
सूर्य देवता
झांकते बादलं से
ताप रहित
      -प्रियंका वाजपेयी
कभी न चुकें
इतिहास के पन्ने
सदा चौकन्ने
      -अभिषेक जैन
ऐंठने पड़े
सुर मिलाने वास्ते
वीणा के तार
     -कैलाश कल्ला

७.३.१६
भक्त कतार
दुग्ध-स्नान शिव का
नाली में दूध
       -जितेन्द्र वर्मा
लगी कंकर
सतह पर उभरा
पानी का दर्द
      -राजीव गोयल

८.३.१६
नमन नारी
सर्व गुण सम्पन्ना
ह्रदय-ग्राही
      -कन्हैया
मैं नारी मैं माँ
मैं संगिनि मैं दीक्षा
अन्नपूर्णा मैं
      -प्रियंका वाजपेयी
बिखेर गई
बोरा भर गुलाल
ढलती सांझ
       -राजीव गोयल
जल के वक्ष
दल रहीं हैं दाल
जलकुम्भियाँ
       -संतोष कुमार सिंह
स्वर्ण सी नार
चाहे हीरे का श्रंगार
कोमल ठोस
      -कैलाश कल्ला

९.३.१६
पत्ते क्या उड़े
पंछी भी उड़ गए
छाव न ठांव
      -आर के भारद्वाज
घनचक्करी
होती गृह की धुरी
बांधे घड़ी स्त्री
      -विभा श्रीवास्तव
रंग कलश
लिए सर पे खड़े
वन पलाश
      -राजीव गोयत

10.3.16
अप्रयास से
अप्राप्त होता प्राप्त
रास संयोग
      -कन्हैया
पंछी की छाया
पाँव तले क्या आई
उड़ ही गई
     -तुकाराम खिल्लारे
नाचें घटाएं
आकाश नृत्यालय
घुमड़ नाद
      -आर के भारद्वाज
 हैं कराहते
बिछुड़ कर पत्ते
कुचले जाते
      -राजीव गोयल

११.३.१६
उतर आए
नभ से कुछ तारे
जुगनू बने

उड़े जुगुनू
जा बैठे नभ पर
बन के तारे
      -राजीव गोयल

१२. ३.१६
जीत ली जंग
फतह की दुनिया
हारा क्या? प्रेम
     -प्रियंका वाजपेयी
अमा की रात                                  
हिल्र रहे दो बल्ब
म्याऊँ का स्वर
     कैलाश कल्ला
चिट्ठियाँ लाएं
समय के डाकिए
बासी यादों की
       -प्रीति दक्ष
धूप ने खेली
इंद्रधनुषी  होली
मेघों के संग
     -राजीव गोयल

१३.३.१६
शुरू हो गई
दिनभर की चक्की
भोर के साथ
        -प्रियंका वाजपेयी
पाया न नाप
बुद्धू थर्मामीटर
मन का  नाप
      -अभिषेक जैन
प्यासे हैं घट
बेबस पनघट
जल संकट
     -अभिषेक जैन
उगलें झाग
आ तट  पर लहरें
तोड़ती दम
     -राजीव गोयल

१४.३.१६
दुष्ट इरादे
कभी न हों विजयी
कैसी भी जंग
      -प्रियंका वाजपेयी
दिल में रखो
महफूस प्यार को
एक कोने में
       जितेन्द्र वर्मा
रात आते ही
ख़्वाब लगे तैरने
आँखों में मेरी
        अमन चाँदपुरी

१५ ३. १६
बना घोंसला
वक्त कतरनों से
पालता यादें
        -राजीव गोयल
क्षण कौंध में
साये लिपटे खड़े
ड्योढ़ी  पे वृक्ष
     -विभा श्रीवास्तव
दशरथ वो
साधे दसों इन्द्रियाँ
जीवन रथ
     -प्रियंका वाजपेयी
ये होली ख़ास
दरस का आभास
रचे उल्लास
     -राजीव निगम 'राज़'
होली के रंग
उड़े बादलों संग
पिया मलंग
      जितेन्द्र वर्मा
पलाश फूल
लगे हैं थरथराने
-होली आ गई !
     -तुकाराम खिल्लारे

 १६ ३. १६
सर्पीली राहें
रंग रोशन छटा
इन्द्रधनुषी
     -विभा श्रीवास्तव
रहस्यमयी
आकाश का विस्तार
मौन की गूँज
      -प्रियंका वाजपेयी
     
नींद - दो हाइकु -

नींद को मैंने
सजा  दी टूटने की
दूर भगा दी

मैं नहीं सोया
नींद लड़ने लगी
जीत भी गई
     आर के भारद्वाज
बांधे पायल
सुख और दुःख की
नाचे ज़िंदगी
     -जितेन्द्र वर्मा
चढें उतरें
पहाडी ढलानों पे
पगडंडियाँ
      -राजीव गोयल

१७. ३. १६
जो काबू खोया
नित नए तमाशे
अब चखिए
      -प्रियंका वाजपेयी
राधा अनंग
रंगी कृष्ण के रंग
गोपियाँ दंग
     --राजीव निगम 'राज़'
बड़े होकर
क्यों हो जाते हैं लोग
अक्सर छोटे ?
      -राजीव गोयल
दूध रखा था
दुल्हन उदास थी
पिया नहीं था    (दो-सुखन)
        -आर के भारद्वाज
ट्रेन का डिब्बा
हर यात्री विद्वान
मुफ्त दे ज्ञान !
       -अमन चाद्पुरी

 १८.३.१६
अग्नि परीक्षा
माता पिता घर में
पुत्र विदेश
     -कन्हैया
रंग में रंगी
बनी हूँ छाया तेरी
छूटे न कभी
     
रंग बहका
छूकर जो बिखरा
तन से तेरे
       -महिमा वर्मा
ठूँठ शाखाएं
पतझड़ में रोईं
श्रृंगार बिना
       -आर के भारद्वाज
पी रही रात
चन्दा की सुराही से
चांदनी जाम
       -राजीव गोयल

१९ .३.१६
प्रीति सागर
सींचे सूखा अंतस
पुष्पित सत्व
       -प्रियंका वाजपेयी
अतीत राख
सुलगते अब भी
याद अंगार
     -राजीव गोयल
चढता गया
लोभ का तापमान
आया न नीचे
       -अभिषेक जैन
टेसू की होली
चहकी फागुन में
होली है होली
      -राजीव निगम राज

२०.३.१६
सूखे हैं कूप
तड़पता पथिक
हंसती धूप
     -अभिषेक जैन
बांस में जान
हवा फूंक जाएं
बंसी बजाएँ
     -राजीव गोयल
अश्रु भिगोते
मन के सूखे कोने
करें पवित्र
      -प्रियंका वाजपेयी
होली के रंग
राधा कृष्ण के संग
रुक्मणि दंग
       -जितेन्द्र वर्मा
हँसे कन्हैया
बिसातिन बनके
घाघरा चोली
      -कन्हैया

२१.३.१६
मन मुटाव
झलकते तेवर
अदृश्य घाव
      -अभिषेक जैन
उगाए आम
फिर क्यों मैंने पाए
पेड़ बबूल
      -राजीव गोयल
होवें जितेन्द्र
रोकें भागता मन
खींचें कमान
       -जितेन्द्र वर्मा
मन बौराए
साजन नहीं आए
फाग न भाए
      -राजीव निगम 'राज़'  

२२.३,१६
रंग बौछार
भीग धरा बनती
इंद्र का चाप
     -विभा श्रीवास्तव
होंठ कमान
छोड़ें शब्दों के बाण
बिंधते प्राण
      -राजीव गोयल
खरीदा मैंने
तजुर्बा ज़िंदगी का
खर्च के उम्र
       -राजीव गोयल
मेरी औकात
ये तो न थी ऐ खुदा
क्या क्या दे दिया !
      -जितेन्द्र वर्मा

२३.३.१६
गाल रंगाए
रोज़ होली मनाए
पार्लर जाए
       -राजीव गोयल
जीवन नाव
कुतर के डुबोते
चूहे इच्छा के
       -कैलाश कल्ला

२४.३.१६.
कान्हा के संग
खेलीं गोपियाँ होली
कान्हा की हो ली
      -आर के भारद्वाज
कुछ सूक्ष्म है
गूढ़ बसा भीतर
बाह्य न खोज
      -प्रियंका वाजपेयी

२५.३. १६
जाने क्यूँ मन
आवाज़ देता रहा
जाने वाले को
       -प्रियंका वाजपेयी
आस बाक़ी है
तुमसे मिलने की
तिश्नगी बाक़ी

खफा मुझसे
ज़माने भर से क्या
नाराज़ी  बाक़ी
       -प्रीति दक्ष
ओलों की मार
बिछ गए खेतों में
गेहूँ और ज्वार

तनहा रात
चीख रहे सन्नाटे
तेरी है कमी
       -राजीव गोयल
झिरीं से झांके
उजाले की किरण
कनखियों से

पेड़ का तना
पत्ते न फल फूल
तना ही रहा
      आर के भारद्वाज

२६. ३. १६
गुंजन करे
सूर्य का ऊर्जादल
ओंकार शब्द
        -प्रियंका वाजपेयी
दीवारें उठें
घरों में या मनों में
बढ़ें दूरियाँ
      -राजीव गोयल
यादों के फूल
झर गए आँखों से
मिट्टी भी नम
        -तुकाराम खिल्लारे
सीप चाहती
स्वाति की एक बूंद
सागर नहीं
      -राजीव गोयल

२७.३.१६
भानु को देख
हिम में आए स्वेद
नदी में बहे
     कैलाश कल्ला

२८.३.१६
गले लगेंगे
परमात्मा की दुआ
दिल दरिया
       -कन्हैया
ऋतु सुन्दर
बाजुओं के हार सी
हसीं मंज़र
      -राजीव निगम 'राज़'
ना रूठी ही हो
न मनाए मनती
पहेली तुम
      -आर के भारद्वाज
करते खेत
मेघों से अरदास
बुझा दो प्यास
       -राजीव गोयल

२९.३. १६
बढे जितनी
घट जाती उतनी
वाह, ज़िंदगी

खुला पिजरा
हुआ आज़ाद पंछी
खोया नभ में
       -राजीव गोयल
चाहा बहुत
छू ही लूँ एक बार
तू  आकृति सी

मन में बसी
तेरी सूरत ऐसी
कलाकृति सी
      -आर के भारद्वाज

३०.३.१६
कितनी प्यारी
तेरे प्रेम की रीत
तेरी ही जीत
       -आर के भारद्वाज
काल्पनिक हैं
फिर भी टूट जाते
बुने सपने
      -कैलाश कल्ला
निगल गई
जलता हुआ गोला
रात डायन
      -राजीव गोयल
पूर्व दिशा
लिए गोद में खडी
बालक रवि
      -राजीव गोयल
चुटकी भर
गुलाल मस्तक पे
होली - आशीष
      -विभा रश्मि

३१ .३.१६
लौटी स्वदेश
सांझ बस में बैठ
सैलानी धूप
      -अभिषेक जैन
मन मन के
बोझ बने मन के
बोल उनके

गुज़रे पल
मचायें  हलचल
मन विकल
       -महिमा  वर्मा
गया भी नहीं
पहचाना भी नहीं
जाना नहीं था
      (दो सुखन हाइकु)
      -आर के भाद्वाज
आम्र मंजरी
मधु सिक्त टहनी
होठ रसीले
       -कन्हैया
बाती ने छोड़े
उजाले के नश्तर
अन्धेरा ढेर
      -राजीव गोयल

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