श्रेष्ठ हिंदी हाइकु - नवंबर माह के हाइकु-
२ ११ १६
हद हो गई
कानून के ऊपर
उनका कद
-संतोष कुमार सिंह
हुआ न यकीं
गरीबी की तस्वीर
लाखों में बिकी
-राजीव गोयल (हाइगा)
देह की पीड़ा
सही, सह न सके
मन की पीड़ा
-प्रियंका वाजपेयी
गहरी होतीं
उम्र के साथ साथ
बुज़ुर्ग आखें
-प्रियंका वाजपेयी
३ ११ १६
अमीर बन
पर दिल में ज़िंदा
फ़कीर रख
-राजीव गोयल
मन बांसुरी
जीवन है बजाती
राग करुण
-वी पी पाठक
रुक जा वक्त
मिला है यार मेरा
बाद मुद्दत
- राजीव गोयल
४ ११ १६
माटी की गंध
कलम की सुगंध
रचाते छंद
-प्रदीप कुमार दाश
दिल की खुशी
माँगते फकीर से
दौलतमंद
-राजीव गोयल
मन के रिश्ते
मन में ही बसते
हुए न सस्ते
-डा रंजना वर्मा
५ ११ १६
ओढ़ के हिम
मना रहे पहाड़
शरदोत्सव
-राजीव गोयल
नयन उगा
आंसू बन टपका
एक सपना
-डा. रंजना वर्मा
धीरे धीरे से
गुज़रती जाती है
वाह ज़िंदगी
-जितेन्द्र वर्मा
६ ११ १६
निकली भोर
सजाए माथे पर
सूर्य बिंदिया
-राजीव गोयल (हाइगा)
बेला गोधूलि
सूरज लेने चला
जल समाधि
राजीव गोयल (हाइगा)
७ ११ १६
चटकी कली
लूटने को आतुर
चले भंवरे
-डा. रंजना वर्मा
छुपाए दर्द
जीता रहता हूँ मैं
दर्द ज़िंदगी
-जितेन्द्र वर्मा
गिरफ्तार है
सुमन की जेल में
पराग चोर
-वी पी पाठक
सर्द मौसम
सौउं मैं सुकून से
ओढ़ के धूप
-राजीव गोयल
zoom your happiness
in the canvas of life.
happiness is life .
- जितेन्द्र वर्मा
८ ११ १६
वृक्ष अकेला
फल अनगिनत
दे निरंतर
-डा. रंजना वर्मा
मन भावन
कभी जो रोकडा था
जंजाल हुआ
-दिनेश चन्द्र पाण्डे
९ ११ १६
जली पराली
प्रदूषित है हवा
घुटती साँसें
डा. रंजना वर्मा
कल से आशा
कल का पछतावा
ज़िंदगी यही
-राजीव गोयल
धागे दूब के
पिरो जाती सुबह
मोती ओस के
-राजीव गोयल
उपेक्षा तूने
दी झोली भर मुझे
कैसी ये भीख
आर के भारद्वाज
नामुमकिन
पाना निजातेदर्द
दर्द ज़िंदगी
-जितेन्द्र वर्मा
१० ११ १६
सूरज पंख
फड़फड़ाए अब
लो भोर हुई
-मंजूषा मन
---------------
जुगलबंदी -
मन चकरी
घुमाती रही प्रश्न
मैं स्वयं कौन ?
-वी पी पाठक
सदा से रही
आत्म तत्व की खोज
नहीं मिलता
-डा. रंजना वर्मा
-------------
११ ११ १६
घर में आई
चुगलियों की भेंट
ईर्ष्या की जीभ
-अभिषेक जैन
माथे पे बल
चिंताओं की लकीरें
ओ! काला धन !
-प्रियंका वाजपेयी
मिट्टी की नाव
कैसे पहुंचे पार
पानी सवार
-वी पी पाठक
गिरि कोख से
झरता झर झर
वह निर्झर
-प्रदीप कुमार दाश
लिखता रवि
किरण कलम से
भोर के गीत
-राजीव गोयल
१२ ११ १६
ऊंचे दरख़्त
नभ तक ले जाते
हमारी बात
-प्रियंका वाजपेयी
पहाडी नदी
जैसे बहती सदी
अनवरत
-डा. रंजना वर्मा
बादल गरजे
लडे एक दूजे से
बरसे नहीं
-जितेन्द्र वर्मा
घुन करता
उसी अन्न में छेद
ज़िंदा जिस पे
-राजीव गोयल
प्रदूषण से
हवा का दम घुटा
सांस ले या दे
-आर के भारद्वाज
१३ ११ १६
काली रात है
सूरज सो गया है
चाँद डटा है
-अमन चाँदपुरी
बहती नदी
देख सूरज जला
नदी झुलसी
-अमन चाँदपुरी
सूरजमुखी
उजाला पक्ष देखे
रहता सुखी
-मुकेश शर्मा
वाह रे साधू
भोगी के धन पर
योगी का ठाठ
-वी पी पाठक
१४ ११ १६
बैठी जाकर
मंदिर के अन्दर
काली दौलत
- वी पी पाठक
बाल दिवस
कितना उपेक्षित
बाल जीवन
-डा. रंजना वर्मा
याद पुरानी
टूटते अनुबंध
मेरी कहानी
-निगम 'राज'
विद्द्युत तार
कतारबन्द खग
बिल्ली ताक में
-तुकाराम खिल्लारे
पतझर में
बन तितली उड़ें
पीली पत्तियां
-राजीव गोयल
दबे थे नोट
मोहनजोदड़ो से
निकले आज
-कैलाश कल्ला
बच्चे हंसते
झर झर हंसते
हरसिंगार
- वी पी पाठक
१५ ११ १६
सिन्धु न बढ़ा
नदी पीछे न मुड़ी
हो गए एक
-कैलाश कल्ला
आंधी दौड़ी है
पत्ते बने तितली
भू बनी गुल
-विभा श्रीवास्तव (हाइगा)
हुआ फरार
भगाकर रात को
आशिक चाँद
-अभिषेक जैन
हांपता रोड
सुबह टहलने
निकला तोंद
-वी पी पाठक
बूंद से सिन्धु
बदले कई रूप
वस्तु तो एक
-कैलाश कल्ला
मन सलाई
लेके यादों के धागे
बुने अतीत
-राजीव गोयल
१६ ११ १६
ख़्वाब ने देखी
हकीक़त पहले
दंग हुआ मैं
-जितेन्द्र वर्मा
करे खोखली
संदेह की दीमक
रिश्तों की नींव
-राजीव गोयल
जुगुनू लिए
ढूँढ़ रही है चाँद
मावसी रात
-राजीव गोयल
थका कार्मिक
बोतल का सहारा
सोता टुन्न
-जितेन्द्र वर्मा
प्यारी गुड़िया
मेड इन इंडिया
विदेशी बोल
-वी पी पाठक
जुगल बंदी --
मन मंजूषा
रखी सहेजकर
आंसू की बूंद
डा. रंजना वर्मा
१७ .११.१६
रूमाल नहीं
दो मीठे बोल चाहें
भीगी पलकें
-मंजूषा मन (हाइगा)
------------
जुगलबंदी --
सिन्धु चूमने
नीचे उतारा भानु
डूब ही गया
-कैलाश कल्ला
जलते बदन
नहाने आया सूर्य
लगाया गोता
-मुकेश शर्मा (हाइगा)
---------
बहती हवा
बहका ले जाती
मन को मेरे
-अमन चांदपुरी
बैठी चिड़िया
देख हाथ पसारे
छोटी बिटिया
-कैलाश कल्ला
१८ ११ १६
मेरा वतन
खुशियों का चमन
अभिनन्दन
-डा. रंजना वर्मा
खोल ही दी
आफत की चाबी ने
बंद दिमाग
-अभिषेक जैन
काली कमाई
गौरैया के पेट में
हाथी का बच्चा
-वी पी पाठक
सर्द मौसम
सो रहा सूरज
ओढ़ के धुंद
-राजीव गोयल
१९ ११ १६
अंजान स्वयं
केवल आडम्बर
धोखा खुद से
-प्रियंका वाजपेयी
जगते बच्चे
सुबह हो गई क्या
कहते बच्चे
-प्रियंका वाजपेयी
भोर ज़िंदगी
बदलती शाम में
डूबी रात में
-जितेन्द्र वर्मा
छपे सतत
मन टकसाल में
इच्छा के सिक्के
अभिषेक जैन
बेच ईमान
कमाए जो नोट
कागज हुए
-राजीव गोयल
२० ११ १६
गंदगी में भी
है फूल महकता
उन्नत माथा
-तुकाराम खिल्लारे
छुए पवन
सिहर उठता है
झील का तन
-राजीव गोयल
पूनों]की रात
लहरें बन नाचे
सिन्धु अपार
कैलाश कल्ला
बाहर बिल्ली
चूहेदानी में चूहा
दोनों बेचैन
-राजीव गोयल
२१ ११ १६
प्याली में सुख
प्रेम की एक चुस्की
मिटेंगे दुःख
-मंजूषा मन
मांगे थे पैसे
दे गई प्रवचन
पिता की जेब
-अभिषेक जैन
हांक ले गया
पवन गड़रिया
मेघ रेवड़
-राजीव गोयल
२२ ११ १६
मन बागीचा
उगे यादों के फूल
टपके आंसू
कलाश कल्ला
लगता रहा
पहरे पे पहरा
चोर आज़ाद
-वी पी पाठक
मिलें बिछड़े
जैसे क़त्ल मुझको
किश्तों में करें
-राजीव गोयल
23 11 16
जुगलबंदी
झील जल में
खेल रहा चन्द्रमा
लहरों संग
-डा. रंजना वर्मा
स्तब्ध चन्द्रमा
झील में देखकर
जुड़वां भाई
-राजीव गोयल
---------------
चुरा के भागी
बगिया से सुगंध
चोरनी हवा
-राजीव गोयल
दोस्तों का जाल
पैगाम पे पैगाम
फिर अकेला
-वी पी पाठक
२४ ११ १६
अबला नहीं
सरहद पे लड़ी
सबल खड़ी
-वी पी पाठक
प्यार की बाढ
सहजते न बने
माँ का प्यार
-जितेन्द्र वर्मा
भोर का तारा
अम्बर में टहले
मुंह अँधेरे
राजीव गोयल
चाँद तनहा
झील की पगडंडी
चला अकेला
- प्रदीप कुमार डास (हाइगा)
२५ ११ १६
कामनाएं हैं
हिरन के छौनों सी
भागती जाएं
-डा. रंजना वर्मा
दिल्ली से आई
पोटली विकास की
हवा हवाई
-वी पी पाठक
पल रहे हैं
जाने कितने गम
चुप्पी के नीचे
-राजीव गोयल (हाइगा)
चाँद उतरा
नदिया में नहाने
लहरें खुश
-जितेन्द्र वर्मा
२६ ११ १६
टूटती आस
बिखर जाते ख़्वाब
उठती टीस
राजीव गोयल
मूँगफलियाँ
झोला भर के लाए
बाबूजी आए
-मंजूषा मन
नहा ओस में
हो गई तरोताजा
भोर की धूप
+राजीव गोयल
२७ ११ १६
सर्द मौसम
कुछ धूप बचा लें
रात के लिए
-राजीव गोयल
धान बालियाँ
महकती कुटिया
कृषक खुश
-प्रदीप कुमार दाश
kindle the lamp
darkness all around
something burning?
-Tukaram Khillare
28 11 16
मिथ्या उर्मियाँ
मरुजल छलका
मोह फंसाया
-विभा श्रीवास्तव
किरणांगुली
विद्रोहणी फोड़ती
ओस गुब्बारे
-विभा श्रीवास्तव
मटर खिली
नीलम की सी डली
खेत अंगूठी
-डा. रंजना वर्मा
२९ ११ १६
बुलबुलों से
ये तुम्हारे वायदे
उभरें टूटें
-राजीव गोयल
पन सउआ
बंद ऐसा हुआ
चिढाए मुआ
राजीव निगम 'राज'
रस्सी को सांप
कहकर डराया
खूब सताया
-मंजूषा मन
३० ११ १६
आई धरा पे
ओढ़ धूप का शौल
उजली भोर
-राजीव गोयल
नाचती धूल
झरोंखों से झांकती
जब भी धूप
-दिनेशचन्द्र पाण्डेय
------------------------
समाप्त
अमीर बन
पर दिल में ज़िंदा
फ़कीर रख
-राजीव गोयल
मन बांसुरी
जीवन है बजाती
राग करुण
-वी पी पाठक
रुक जा वक्त
मिला है यार मेरा
बाद मुद्दत
- राजीव गोयल
४ ११ १६
माटी की गंध
कलम की सुगंध
रचाते छंद
-प्रदीप कुमार दाश
दिल की खुशी
माँगते फकीर से
दौलतमंद
-राजीव गोयल
मन के रिश्ते
मन में ही बसते
हुए न सस्ते
-डा रंजना वर्मा
५ ११ १६
ओढ़ के हिम
मना रहे पहाड़
शरदोत्सव
-राजीव गोयल
नयन उगा
आंसू बन टपका
एक सपना
-डा. रंजना वर्मा
धीरे धीरे से
गुज़रती जाती है
वाह ज़िंदगी
-जितेन्द्र वर्मा
६ ११ १६
निकली भोर
सजाए माथे पर
सूर्य बिंदिया
-राजीव गोयल (हाइगा)
बेला गोधूलि
सूरज लेने चला
जल समाधि
राजीव गोयल (हाइगा)
७ ११ १६
चटकी कली
लूटने को आतुर
चले भंवरे
-डा. रंजना वर्मा
छुपाए दर्द
जीता रहता हूँ मैं
दर्द ज़िंदगी
-जितेन्द्र वर्मा
गिरफ्तार है
सुमन की जेल में
पराग चोर
-वी पी पाठक
सर्द मौसम
सौउं मैं सुकून से
ओढ़ के धूप
-राजीव गोयल
zoom your happiness
in the canvas of life.
happiness is life .
- जितेन्द्र वर्मा
८ ११ १६
वृक्ष अकेला
फल अनगिनत
दे निरंतर
-डा. रंजना वर्मा
मन भावन
कभी जो रोकडा था
जंजाल हुआ
-दिनेश चन्द्र पाण्डे
९ ११ १६
जली पराली
प्रदूषित है हवा
घुटती साँसें
डा. रंजना वर्मा
कल से आशा
कल का पछतावा
ज़िंदगी यही
-राजीव गोयल
धागे दूब के
पिरो जाती सुबह
मोती ओस के
-राजीव गोयल
उपेक्षा तूने
दी झोली भर मुझे
कैसी ये भीख
आर के भारद्वाज
नामुमकिन
पाना निजातेदर्द
दर्द ज़िंदगी
-जितेन्द्र वर्मा
१० ११ १६
सूरज पंख
फड़फड़ाए अब
लो भोर हुई
-मंजूषा मन
---------------
जुगलबंदी -
मन चकरी
घुमाती रही प्रश्न
मैं स्वयं कौन ?
-वी पी पाठक
सदा से रही
आत्म तत्व की खोज
नहीं मिलता
-डा. रंजना वर्मा
-------------
११ ११ १६
घर में आई
चुगलियों की भेंट
ईर्ष्या की जीभ
-अभिषेक जैन
माथे पे बल
चिंताओं की लकीरें
ओ! काला धन !
-प्रियंका वाजपेयी
मिट्टी की नाव
कैसे पहुंचे पार
पानी सवार
-वी पी पाठक
गिरि कोख से
झरता झर झर
वह निर्झर
-प्रदीप कुमार दाश
लिखता रवि
किरण कलम से
भोर के गीत
-राजीव गोयल
१२ ११ १६
ऊंचे दरख़्त
नभ तक ले जाते
हमारी बात
-प्रियंका वाजपेयी
पहाडी नदी
जैसे बहती सदी
अनवरत
-डा. रंजना वर्मा
बादल गरजे
लडे एक दूजे से
बरसे नहीं
-जितेन्द्र वर्मा
घुन करता
उसी अन्न में छेद
ज़िंदा जिस पे
-राजीव गोयल
प्रदूषण से
हवा का दम घुटा
सांस ले या दे
-आर के भारद्वाज
१३ ११ १६
काली रात है
सूरज सो गया है
चाँद डटा है
-अमन चाँदपुरी
बहती नदी
देख सूरज जला
नदी झुलसी
-अमन चाँदपुरी
सूरजमुखी
उजाला पक्ष देखे
रहता सुखी
-मुकेश शर्मा
वाह रे साधू
भोगी के धन पर
योगी का ठाठ
-वी पी पाठक
१४ ११ १६
बैठी जाकर
मंदिर के अन्दर
काली दौलत
- वी पी पाठक
बाल दिवस
कितना उपेक्षित
बाल जीवन
-डा. रंजना वर्मा
याद पुरानी
टूटते अनुबंध
मेरी कहानी
-निगम 'राज'
विद्द्युत तार
कतारबन्द खग
बिल्ली ताक में
-तुकाराम खिल्लारे
पतझर में
बन तितली उड़ें
पीली पत्तियां
-राजीव गोयल
दबे थे नोट
मोहनजोदड़ो से
निकले आज
-कैलाश कल्ला
बच्चे हंसते
झर झर हंसते
हरसिंगार
- वी पी पाठक
१५ ११ १६
सिन्धु न बढ़ा
नदी पीछे न मुड़ी
हो गए एक
-कैलाश कल्ला
आंधी दौड़ी है
पत्ते बने तितली
भू बनी गुल
-विभा श्रीवास्तव (हाइगा)
हुआ फरार
भगाकर रात को
आशिक चाँद
-अभिषेक जैन
हांपता रोड
सुबह टहलने
निकला तोंद
-वी पी पाठक
बूंद से सिन्धु
बदले कई रूप
वस्तु तो एक
-कैलाश कल्ला
मन सलाई
लेके यादों के धागे
बुने अतीत
-राजीव गोयल
१६ ११ १६
ख़्वाब ने देखी
हकीक़त पहले
दंग हुआ मैं
-जितेन्द्र वर्मा
करे खोखली
संदेह की दीमक
रिश्तों की नींव
-राजीव गोयल
जुगुनू लिए
ढूँढ़ रही है चाँद
मावसी रात
-राजीव गोयल
थका कार्मिक
बोतल का सहारा
सोता टुन्न
-जितेन्द्र वर्मा
प्यारी गुड़िया
मेड इन इंडिया
विदेशी बोल
-वी पी पाठक
जुगल बंदी --
मन मंजूषा
रखी सहेजकर
आंसू की बूंद
डा. रंजना वर्मा
१७ .११.१६
रूमाल नहीं
दो मीठे बोल चाहें
भीगी पलकें
-मंजूषा मन (हाइगा)
------------
जुगलबंदी --
सिन्धु चूमने
नीचे उतारा भानु
डूब ही गया
-कैलाश कल्ला
जलते बदन
नहाने आया सूर्य
लगाया गोता
-मुकेश शर्मा (हाइगा)
---------
बहती हवा
बहका ले जाती
मन को मेरे
-अमन चांदपुरी
बैठी चिड़िया
देख हाथ पसारे
छोटी बिटिया
-कैलाश कल्ला
१८ ११ १६
मेरा वतन
खुशियों का चमन
अभिनन्दन
-डा. रंजना वर्मा
खोल ही दी
आफत की चाबी ने
बंद दिमाग
-अभिषेक जैन
काली कमाई
गौरैया के पेट में
हाथी का बच्चा
-वी पी पाठक
सर्द मौसम
सो रहा सूरज
ओढ़ के धुंद
-राजीव गोयल
१९ ११ १६
अंजान स्वयं
केवल आडम्बर
धोखा खुद से
-प्रियंका वाजपेयी
जगते बच्चे
सुबह हो गई क्या
कहते बच्चे
-प्रियंका वाजपेयी
भोर ज़िंदगी
बदलती शाम में
डूबी रात में
-जितेन्द्र वर्मा
छपे सतत
मन टकसाल में
इच्छा के सिक्के
अभिषेक जैन
बेच ईमान
कमाए जो नोट
कागज हुए
-राजीव गोयल
२० ११ १६
गंदगी में भी
है फूल महकता
उन्नत माथा
-तुकाराम खिल्लारे
छुए पवन
सिहर उठता है
झील का तन
-राजीव गोयल
पूनों]की रात
लहरें बन नाचे
सिन्धु अपार
कैलाश कल्ला
बाहर बिल्ली
चूहेदानी में चूहा
दोनों बेचैन
-राजीव गोयल
२१ ११ १६
प्याली में सुख
प्रेम की एक चुस्की
मिटेंगे दुःख
-मंजूषा मन
मांगे थे पैसे
दे गई प्रवचन
पिता की जेब
-अभिषेक जैन
हांक ले गया
पवन गड़रिया
मेघ रेवड़
-राजीव गोयल
२२ ११ १६
मन बागीचा
उगे यादों के फूल
टपके आंसू
कलाश कल्ला
लगता रहा
पहरे पे पहरा
चोर आज़ाद
-वी पी पाठक
मिलें बिछड़े
जैसे क़त्ल मुझको
किश्तों में करें
-राजीव गोयल
23 11 16
जुगलबंदी
झील जल में
खेल रहा चन्द्रमा
लहरों संग
-डा. रंजना वर्मा
स्तब्ध चन्द्रमा
झील में देखकर
जुड़वां भाई
-राजीव गोयल
---------------
चुरा के भागी
बगिया से सुगंध
चोरनी हवा
-राजीव गोयल
दोस्तों का जाल
पैगाम पे पैगाम
फिर अकेला
-वी पी पाठक
२४ ११ १६
अबला नहीं
सरहद पे लड़ी
सबल खड़ी
-वी पी पाठक
प्यार की बाढ
सहजते न बने
माँ का प्यार
-जितेन्द्र वर्मा
भोर का तारा
अम्बर में टहले
मुंह अँधेरे
राजीव गोयल
चाँद तनहा
झील की पगडंडी
चला अकेला
- प्रदीप कुमार डास (हाइगा)
२५ ११ १६
कामनाएं हैं
हिरन के छौनों सी
भागती जाएं
-डा. रंजना वर्मा
दिल्ली से आई
पोटली विकास की
हवा हवाई
-वी पी पाठक
पल रहे हैं
जाने कितने गम
चुप्पी के नीचे
-राजीव गोयल (हाइगा)
चाँद उतरा
नदिया में नहाने
लहरें खुश
-जितेन्द्र वर्मा
२६ ११ १६
टूटती आस
बिखर जाते ख़्वाब
उठती टीस
राजीव गोयल
मूँगफलियाँ
झोला भर के लाए
बाबूजी आए
-मंजूषा मन
नहा ओस में
हो गई तरोताजा
भोर की धूप
+राजीव गोयल
२७ ११ १६
सर्द मौसम
कुछ धूप बचा लें
रात के लिए
-राजीव गोयल
धान बालियाँ
महकती कुटिया
कृषक खुश
-प्रदीप कुमार दाश
kindle the lamp
darkness all around
something burning?
-Tukaram Khillare
28 11 16
मिथ्या उर्मियाँ
मरुजल छलका
मोह फंसाया
-विभा श्रीवास्तव
किरणांगुली
विद्रोहणी फोड़ती
ओस गुब्बारे
-विभा श्रीवास्तव
मटर खिली
नीलम की सी डली
खेत अंगूठी
-डा. रंजना वर्मा
२९ ११ १६
बुलबुलों से
ये तुम्हारे वायदे
उभरें टूटें
-राजीव गोयल
पन सउआ
बंद ऐसा हुआ
चिढाए मुआ
राजीव निगम 'राज'
रस्सी को सांप
कहकर डराया
खूब सताया
-मंजूषा मन
३० ११ १६
आई धरा पे
ओढ़ धूप का शौल
उजली भोर
-राजीव गोयल
नाचती धूल
झरोंखों से झांकती
जब भी धूप
-दिनेशचन्द्र पाण्डेय
------------------------
समाप्त