श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - (३) मार्च माह के हाइकु
१ '३.१६
गुस्सा लहर
घाट से टकराए
शांत हो जाए
-कैलाश कल्ला
प्यार के पंछी
तू- तू मैं-मैं करते
एक ही हुए
-तुकाराम खिल्लारे
कल थे चूजे
आज पंख क्या आए
उड़ ही गए
कैलाश कल्ला
संजो रखे हैं
इंच इंच सपने
आस मंजूषा
-विभा रानी श्रीवास्तव
२.३.१६
खोती जा रही
कागज़ व् स्याही
सोंधी महक
-प्रियंका वाजपेयी
सत्य का सूर्य
छुपा नहीं सकते
झूठ का (के) घन
-संतोष कुमार सिंह
(पिछले माह 'झूठ का घन' की जगह
'झूठ का सूर्य' प्रकाशित हो गया था
जो त्रुटि पूर्ण था|)
दादी के संग
लिपट रहे बच्चे
बेल पे फूल
-आर के भारद्वाज
तितली बोली
लौटी हूँ खेल कर
रंगों की होली
-संतोष कुमार सिंह
आत्म मिलन
बूंद हुई सागर
अस्तित्व खोयी (खोया?)
-कन्हैया
सांप सच्चाई
सीढी चापलूसी की
कैसा ये खेल
-जितेन्द्र वर्मा
३.१.१६
क्रोधित रवि
बरसाए धरा पे
धूप के कोड़े
-राजीव गोयल
झूमें कलियाँ
सुन भौंरा गुंजन
राग बसंत
-कैलाश कल्ला
कल थे चूजे
आज पंख लग गए
उड़ ही चले
-कैलाश कल्ला
४.३.१६
चाक मैके की
ससुराल के ढाँचे
ढल जाती स्त्री
-विभा श्रीवास्तव
सीखने वाली
बात है विनम्रता
ज्ञान है भारी
-प्रियंका वाजपेयी
सीता लंका में
हुई न विचलित
स्वयं सोना थी
-आर के भारद्वाज
करती बातें
चिरागों से रोशनी
घंटों रातों में
राजीव गोयल
सुबह हुई
रात भर जागी
रजनी सोयी
-राजीव गोयल
५.३.१६
सौन्दर्य दिखे
अंतर की छबि जो
सरल सजी
प्रियंका वाजपेयी
गृह हमारे नियम से विचरें
संयमी संत
-आर के भारद्वाज
बेंच दी रूह
आवाज़ भी उसकी
देह की खातिर
जितेन्द्र वर्मा
बहू विधवा
भटके गली गली
भिखारिन सी
-जितेन्द्र वर्मा
ज़ख्म नहीं हैं
मेरे ज़िंदा होने का
सबूत हैं ये
-आर के भारद्वाज
६.३.१६
सूर्य देवता
झांकते बादलं से
ताप रहित
-प्रियंका वाजपेयी
कभी न चुकें
इतिहास के पन्ने
सदा चौकन्ने
-अभिषेक जैन
ऐंठने पड़े
सुर मिलाने वास्ते
वीणा के तार
-कैलाश कल्ला
७.३.१६
भक्त कतार
दुग्ध-स्नान शिव का
नाली में दूध
-जितेन्द्र वर्मा
लगी कंकर
सतह पर उभरा
पानी का दर्द
-राजीव गोयल
८.३.१६
नमन नारी
सर्व गुण सम्पन्ना
ह्रदय-ग्राही
-कन्हैया
मैं नारी मैं माँ
मैं संगिनि मैं दीक्षा
अन्नपूर्णा मैं
-प्रियंका वाजपेयी
बिखेर गई
बोरा भर गुलाल
ढलती सांझ
-राजीव गोयल
जल के वक्ष
दल रहीं हैं दाल
जलकुम्भियाँ
-संतोष कुमार सिंह
स्वर्ण सी नार
चाहे हीरे का श्रंगार
कोमल ठोस
-कैलाश कल्ला
९.३.१६
पत्ते क्या उड़े
पंछी भी उड़ गए
छाव न ठांव
-आर के भारद्वाज
घनचक्करी
होती गृह की धुरी
बांधे घड़ी स्त्री
-विभा श्रीवास्तव
रंग कलश
लिए सर पे खड़े
वन पलाश
-राजीव गोयत
10.3.16
अप्रयास से
अप्राप्त होता प्राप्त
रास संयोग
-कन्हैया
पंछी की छाया
पाँव तले क्या आई
उड़ ही गई
-तुकाराम खिल्लारे
नाचें घटाएं
आकाश नृत्यालय
घुमड़ नाद
-आर के भारद्वाज
हैं कराहते
बिछुड़ कर पत्ते
कुचले जाते
-राजीव गोयल
११.३.१६
उतर आए
नभ से कुछ तारे
जुगनू बने
उड़े जुगुनू
जा बैठे नभ पर
बन के तारे
-राजीव गोयल
१२. ३.१६
जीत ली जंग
फतह की दुनिया
हारा क्या? प्रेम
-प्रियंका वाजपेयी
अमा की रात
हिल्र रहे दो बल्ब
म्याऊँ का स्वर
कैलाश कल्ला
चिट्ठियाँ लाएं
समय के डाकिए
बासी यादों की
-प्रीति दक्ष
धूप ने खेली
इंद्रधनुषी होली
मेघों के संग
-राजीव गोयल
१३.३.१६
शुरू हो गई
दिनभर की चक्की
भोर के साथ
-प्रियंका वाजपेयी
पाया न नाप
बुद्धू थर्मामीटर
मन का नाप
-अभिषेक जैन
प्यासे हैं घट
बेबस पनघट
जल संकट
-अभिषेक जैन
उगलें झाग
आ तट पर लहरें
तोड़ती दम
-राजीव गोयल
१४.३.१६
दुष्ट इरादे
कभी न हों विजयी
कैसी भी जंग
-प्रियंका वाजपेयी
दिल में रखो
महफूस प्यार को
एक कोने में
जितेन्द्र वर्मा
रात आते ही
ख़्वाब लगे तैरने
आँखों में मेरी
अमन चाँदपुरी
१५ ३. १६
बना घोंसला
वक्त कतरनों से
पालता यादें
-राजीव गोयल
क्षण कौंध में
साये लिपटे खड़े
ड्योढ़ी पे वृक्ष
-विभा श्रीवास्तव
दशरथ वो
साधे दसों इन्द्रियाँ
जीवन रथ
-प्रियंका वाजपेयी
ये होली ख़ास
दरस का आभास
रचे उल्लास
-राजीव निगम 'राज़'
होली के रंग
उड़े बादलों संग
पिया मलंग
जितेन्द्र वर्मा
पलाश फूल
लगे हैं थरथराने
-होली आ गई !
-तुकाराम खिल्लारे
१६ ३. १६
सर्पीली राहें
रंग रोशन छटा
इन्द्रधनुषी
-विभा श्रीवास्तव
रहस्यमयी
आकाश का विस्तार
मौन की गूँज
-प्रियंका वाजपेयी
नींद - दो हाइकु -
नींद को मैंने
सजा दी टूटने की
दूर भगा दी
मैं नहीं सोया
नींद लड़ने लगी
जीत भी गई
आर के भारद्वाज
बांधे पायल
सुख और दुःख की
नाचे ज़िंदगी
-जितेन्द्र वर्मा
चढें उतरें
पहाडी ढलानों पे
पगडंडियाँ
-राजीव गोयल
१७. ३. १६
जो काबू खोया
नित नए तमाशे
अब चखिए
-प्रियंका वाजपेयी
राधा अनंग
रंगी कृष्ण के रंग
गोपियाँ दंग
--राजीव निगम 'राज़'
बड़े होकर
क्यों हो जाते हैं लोग
अक्सर छोटे ?
-राजीव गोयल
दूध रखा था
दुल्हन उदास थी
पिया नहीं था (दो-सुखन)
-आर के भारद्वाज
ट्रेन का डिब्बा
हर यात्री विद्वान
मुफ्त दे ज्ञान !
-अमन चाद्पुरी
१८.३.१६
अग्नि परीक्षा
माता पिता घर में
पुत्र विदेश
-कन्हैया
रंग में रंगी
बनी हूँ छाया तेरी
छूटे न कभी
रंग बहका
छूकर जो बिखरा
तन से तेरे
-महिमा वर्मा
ठूँठ शाखाएं
पतझड़ में रोईं
श्रृंगार बिना
-आर के भारद्वाज
पी रही रात
चन्दा की सुराही से
चांदनी जाम
-राजीव गोयल
१९ .३.१६
प्रीति सागर
सींचे सूखा अंतस
पुष्पित सत्व
-प्रियंका वाजपेयी
अतीत राख
सुलगते अब भी
याद अंगार
-राजीव गोयल
चढता गया
लोभ का तापमान
आया न नीचे
-अभिषेक जैन
टेसू की होली
चहकी फागुन में
होली है होली
-राजीव निगम राज
२०.३.१६
सूखे हैं कूप
तड़पता पथिक
हंसती धूप
-अभिषेक जैन
बांस में जान
हवा फूंक जाएं
बंसी बजाएँ
-राजीव गोयल
अश्रु भिगोते
मन के सूखे कोने
करें पवित्र
-प्रियंका वाजपेयी
होली के रंग
राधा कृष्ण के संग
रुक्मणि दंग
-जितेन्द्र वर्मा
हँसे कन्हैया
बिसातिन बनके
घाघरा चोली
-कन्हैया
२१.३.१६
मन मुटाव
झलकते तेवर
अदृश्य घाव
-अभिषेक जैन
उगाए आम
फिर क्यों मैंने पाए
पेड़ बबूल
-राजीव गोयल
होवें जितेन्द्र
रोकें भागता मन
खींचें कमान
-जितेन्द्र वर्मा
मन बौराए
साजन नहीं आए
फाग न भाए
-राजीव निगम 'राज़'
२२.३,१६
रंग बौछार
भीग धरा बनती
इंद्र का चाप
-विभा श्रीवास्तव
होंठ कमान
छोड़ें शब्दों के बाण
बिंधते प्राण
-राजीव गोयल
खरीदा मैंने
तजुर्बा ज़िंदगी का
खर्च के उम्र
-राजीव गोयल
मेरी औकात
ये तो न थी ऐ खुदा
क्या क्या दे दिया !
-जितेन्द्र वर्मा
२३.३.१६
गाल रंगाए
रोज़ होली मनाए
पार्लर जाए
-राजीव गोयल
जीवन नाव
कुतर के डुबोते
चूहे इच्छा के
-कैलाश कल्ला
२४.३.१६.
कान्हा के संग
खेलीं गोपियाँ होली
कान्हा की हो ली
-आर के भारद्वाज
कुछ सूक्ष्म है
गूढ़ बसा भीतर
बाह्य न खोज
-प्रियंका वाजपेयी
२५.३. १६
जाने क्यूँ मन
आवाज़ देता रहा
जाने वाले को
-प्रियंका वाजपेयी
आस बाक़ी है
तुमसे मिलने की
तिश्नगी बाक़ी
खफा मुझसे
ज़माने भर से क्या
नाराज़ी बाक़ी
-प्रीति दक्ष
ओलों की मार
बिछ गए खेतों में
गेहूँ और ज्वार
तनहा रात
चीख रहे सन्नाटे
तेरी है कमी
-राजीव गोयल
झिरीं से झांके
उजाले की किरण
कनखियों से
पेड़ का तना
पत्ते न फल फूल
तना ही रहा
आर के भारद्वाज
२६. ३. १६
गुंजन करे
सूर्य का ऊर्जादल
ओंकार शब्द
-प्रियंका वाजपेयी
दीवारें उठें
घरों में या मनों में
बढ़ें दूरियाँ
-राजीव गोयल
यादों के फूल
झर गए आँखों से
मिट्टी भी नम
-तुकाराम खिल्लारे
सीप चाहती
स्वाति की एक बूंद
सागर नहीं
-राजीव गोयल
२७.३.१६
भानु को देख
हिम में आए स्वेद
नदी में बहे
कैलाश कल्ला
२८.३.१६
गले लगेंगे
परमात्मा की दुआ
दिल दरिया
-कन्हैया
ऋतु सुन्दर
बाजुओं के हार सी
हसीं मंज़र
-राजीव निगम 'राज़'
ना रूठी ही हो
न मनाए मनती
पहेली तुम
-आर के भारद्वाज
करते खेत
मेघों से अरदास
बुझा दो प्यास
-राजीव गोयल
२९.३. १६
बढे जितनी
घट जाती उतनी
वाह, ज़िंदगी
खुला पिजरा
हुआ आज़ाद पंछी
खोया नभ में
-राजीव गोयल
चाहा बहुत
छू ही लूँ एक बार
तू आकृति सी
मन में बसी
तेरी सूरत ऐसी
कलाकृति सी
-आर के भारद्वाज
३०.३.१६
कितनी प्यारी
तेरे प्रेम की रीत
तेरी ही जीत
-आर के भारद्वाज
काल्पनिक हैं
फिर भी टूट जाते
बुने सपने
-कैलाश कल्ला
निगल गई
जलता हुआ गोला
रात डायन
-राजीव गोयल
पूर्व दिशा
लिए गोद में खडी
बालक रवि
-राजीव गोयल
चुटकी भर
गुलाल मस्तक पे
होली - आशीष
-विभा रश्मि
३१ .३.१६
लौटी स्वदेश
सांझ बस में बैठ
सैलानी धूप
-अभिषेक जैन
मन मन के
बोझ बने मन के
बोल उनके
गुज़रे पल
मचायें हलचल
मन विकल
-महिमा वर्मा
गया भी नहीं
पहचाना भी नहीं
जाना नहीं था
(दो सुखन हाइकु)
-आर के भाद्वाज
आम्र मंजरी
मधु सिक्त टहनी
होठ रसीले
-कन्हैया
बाती ने छोड़े
उजाले के नश्तर
अन्धेरा ढेर
-राजीव गोयल
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१ '३.१६
गुस्सा लहर
घाट से टकराए
शांत हो जाए
-कैलाश कल्ला
प्यार के पंछी
तू- तू मैं-मैं करते
एक ही हुए
-तुकाराम खिल्लारे
कल थे चूजे
आज पंख क्या आए
उड़ ही गए
कैलाश कल्ला
संजो रखे हैं
इंच इंच सपने
आस मंजूषा
-विभा रानी श्रीवास्तव
२.३.१६
खोती जा रही
कागज़ व् स्याही
सोंधी महक
-प्रियंका वाजपेयी
सत्य का सूर्य
छुपा नहीं सकते
झूठ का (के) घन
-संतोष कुमार सिंह
(पिछले माह 'झूठ का घन' की जगह
'झूठ का सूर्य' प्रकाशित हो गया था
जो त्रुटि पूर्ण था|)
दादी के संग
लिपट रहे बच्चे
बेल पे फूल
-आर के भारद्वाज
तितली बोली
लौटी हूँ खेल कर
रंगों की होली
-संतोष कुमार सिंह
आत्म मिलन
बूंद हुई सागर
अस्तित्व खोयी (खोया?)
-कन्हैया
सांप सच्चाई
सीढी चापलूसी की
कैसा ये खेल
-जितेन्द्र वर्मा
३.१.१६
क्रोधित रवि
बरसाए धरा पे
धूप के कोड़े
-राजीव गोयल
झूमें कलियाँ
सुन भौंरा गुंजन
राग बसंत
-कैलाश कल्ला
कल थे चूजे
आज पंख लग गए
उड़ ही चले
-कैलाश कल्ला
४.३.१६
चाक मैके की
ससुराल के ढाँचे
ढल जाती स्त्री
-विभा श्रीवास्तव
सीखने वाली
बात है विनम्रता
ज्ञान है भारी
-प्रियंका वाजपेयी
सीता लंका में
हुई न विचलित
स्वयं सोना थी
-आर के भारद्वाज
करती बातें
चिरागों से रोशनी
घंटों रातों में
राजीव गोयल
सुबह हुई
रात भर जागी
रजनी सोयी
-राजीव गोयल
५.३.१६
सौन्दर्य दिखे
अंतर की छबि जो
सरल सजी
प्रियंका वाजपेयी
गृह हमारे नियम से विचरें
संयमी संत
-आर के भारद्वाज
बेंच दी रूह
आवाज़ भी उसकी
देह की खातिर
जितेन्द्र वर्मा
बहू विधवा
भटके गली गली
भिखारिन सी
-जितेन्द्र वर्मा
ज़ख्म नहीं हैं
मेरे ज़िंदा होने का
सबूत हैं ये
-आर के भारद्वाज
६.३.१६
सूर्य देवता
झांकते बादलं से
ताप रहित
-प्रियंका वाजपेयी
कभी न चुकें
इतिहास के पन्ने
सदा चौकन्ने
-अभिषेक जैन
ऐंठने पड़े
सुर मिलाने वास्ते
वीणा के तार
-कैलाश कल्ला
७.३.१६
भक्त कतार
दुग्ध-स्नान शिव का
नाली में दूध
-जितेन्द्र वर्मा
लगी कंकर
सतह पर उभरा
पानी का दर्द
-राजीव गोयल
८.३.१६
नमन नारी
सर्व गुण सम्पन्ना
ह्रदय-ग्राही
-कन्हैया
मैं नारी मैं माँ
मैं संगिनि मैं दीक्षा
अन्नपूर्णा मैं
-प्रियंका वाजपेयी
बिखेर गई
बोरा भर गुलाल
ढलती सांझ
-राजीव गोयल
जल के वक्ष
दल रहीं हैं दाल
जलकुम्भियाँ
-संतोष कुमार सिंह
स्वर्ण सी नार
चाहे हीरे का श्रंगार
कोमल ठोस
-कैलाश कल्ला
९.३.१६
पत्ते क्या उड़े
पंछी भी उड़ गए
छाव न ठांव
-आर के भारद्वाज
घनचक्करी
होती गृह की धुरी
बांधे घड़ी स्त्री
-विभा श्रीवास्तव
रंग कलश
लिए सर पे खड़े
वन पलाश
-राजीव गोयत
10.3.16
अप्रयास से
अप्राप्त होता प्राप्त
रास संयोग
-कन्हैया
पंछी की छाया
पाँव तले क्या आई
उड़ ही गई
-तुकाराम खिल्लारे
नाचें घटाएं
आकाश नृत्यालय
घुमड़ नाद
-आर के भारद्वाज
हैं कराहते
बिछुड़ कर पत्ते
कुचले जाते
-राजीव गोयल
११.३.१६
उतर आए
नभ से कुछ तारे
जुगनू बने
उड़े जुगुनू
जा बैठे नभ पर
बन के तारे
-राजीव गोयल
१२. ३.१६
जीत ली जंग
फतह की दुनिया
हारा क्या? प्रेम
-प्रियंका वाजपेयी
अमा की रात
हिल्र रहे दो बल्ब
म्याऊँ का स्वर
कैलाश कल्ला
चिट्ठियाँ लाएं
समय के डाकिए
बासी यादों की
-प्रीति दक्ष
धूप ने खेली
इंद्रधनुषी होली
मेघों के संग
-राजीव गोयल
१३.३.१६
शुरू हो गई
दिनभर की चक्की
भोर के साथ
-प्रियंका वाजपेयी
पाया न नाप
बुद्धू थर्मामीटर
मन का नाप
-अभिषेक जैन
प्यासे हैं घट
बेबस पनघट
जल संकट
-अभिषेक जैन
उगलें झाग
आ तट पर लहरें
तोड़ती दम
-राजीव गोयल
१४.३.१६
दुष्ट इरादे
कभी न हों विजयी
कैसी भी जंग
-प्रियंका वाजपेयी
दिल में रखो
महफूस प्यार को
एक कोने में
जितेन्द्र वर्मा
रात आते ही
ख़्वाब लगे तैरने
आँखों में मेरी
अमन चाँदपुरी
१५ ३. १६
बना घोंसला
वक्त कतरनों से
पालता यादें
-राजीव गोयल
क्षण कौंध में
साये लिपटे खड़े
ड्योढ़ी पे वृक्ष
-विभा श्रीवास्तव
दशरथ वो
साधे दसों इन्द्रियाँ
जीवन रथ
-प्रियंका वाजपेयी
ये होली ख़ास
दरस का आभास
रचे उल्लास
-राजीव निगम 'राज़'
होली के रंग
उड़े बादलों संग
पिया मलंग
जितेन्द्र वर्मा
पलाश फूल
लगे हैं थरथराने
-होली आ गई !
-तुकाराम खिल्लारे
१६ ३. १६
सर्पीली राहें
रंग रोशन छटा
इन्द्रधनुषी
-विभा श्रीवास्तव
रहस्यमयी
आकाश का विस्तार
मौन की गूँज
-प्रियंका वाजपेयी
नींद - दो हाइकु -
नींद को मैंने
सजा दी टूटने की
दूर भगा दी
मैं नहीं सोया
नींद लड़ने लगी
जीत भी गई
आर के भारद्वाज
बांधे पायल
सुख और दुःख की
नाचे ज़िंदगी
-जितेन्द्र वर्मा
चढें उतरें
पहाडी ढलानों पे
पगडंडियाँ
-राजीव गोयल
१७. ३. १६
जो काबू खोया
नित नए तमाशे
अब चखिए
-प्रियंका वाजपेयी
राधा अनंग
रंगी कृष्ण के रंग
गोपियाँ दंग
--राजीव निगम 'राज़'
बड़े होकर
क्यों हो जाते हैं लोग
अक्सर छोटे ?
-राजीव गोयल
दूध रखा था
दुल्हन उदास थी
पिया नहीं था (दो-सुखन)
-आर के भारद्वाज
ट्रेन का डिब्बा
हर यात्री विद्वान
मुफ्त दे ज्ञान !
-अमन चाद्पुरी
१८.३.१६
अग्नि परीक्षा
माता पिता घर में
पुत्र विदेश
-कन्हैया
रंग में रंगी
बनी हूँ छाया तेरी
छूटे न कभी
रंग बहका
छूकर जो बिखरा
तन से तेरे
-महिमा वर्मा
ठूँठ शाखाएं
पतझड़ में रोईं
श्रृंगार बिना
-आर के भारद्वाज
पी रही रात
चन्दा की सुराही से
चांदनी जाम
-राजीव गोयल
१९ .३.१६
प्रीति सागर
सींचे सूखा अंतस
पुष्पित सत्व
-प्रियंका वाजपेयी
अतीत राख
सुलगते अब भी
याद अंगार
-राजीव गोयल
चढता गया
लोभ का तापमान
आया न नीचे
-अभिषेक जैन
टेसू की होली
चहकी फागुन में
होली है होली
-राजीव निगम राज
२०.३.१६
सूखे हैं कूप
तड़पता पथिक
हंसती धूप
-अभिषेक जैन
बांस में जान
हवा फूंक जाएं
बंसी बजाएँ
-राजीव गोयल
अश्रु भिगोते
मन के सूखे कोने
करें पवित्र
-प्रियंका वाजपेयी
होली के रंग
राधा कृष्ण के संग
रुक्मणि दंग
-जितेन्द्र वर्मा
हँसे कन्हैया
बिसातिन बनके
घाघरा चोली
-कन्हैया
२१.३.१६
मन मुटाव
झलकते तेवर
अदृश्य घाव
-अभिषेक जैन
उगाए आम
फिर क्यों मैंने पाए
पेड़ बबूल
-राजीव गोयल
होवें जितेन्द्र
रोकें भागता मन
खींचें कमान
-जितेन्द्र वर्मा
मन बौराए
साजन नहीं आए
फाग न भाए
-राजीव निगम 'राज़'
२२.३,१६
रंग बौछार
भीग धरा बनती
इंद्र का चाप
-विभा श्रीवास्तव
होंठ कमान
छोड़ें शब्दों के बाण
बिंधते प्राण
-राजीव गोयल
खरीदा मैंने
तजुर्बा ज़िंदगी का
खर्च के उम्र
-राजीव गोयल
मेरी औकात
ये तो न थी ऐ खुदा
क्या क्या दे दिया !
-जितेन्द्र वर्मा
२३.३.१६
गाल रंगाए
रोज़ होली मनाए
पार्लर जाए
-राजीव गोयल
जीवन नाव
कुतर के डुबोते
चूहे इच्छा के
-कैलाश कल्ला
२४.३.१६.
कान्हा के संग
खेलीं गोपियाँ होली
कान्हा की हो ली
-आर के भारद्वाज
कुछ सूक्ष्म है
गूढ़ बसा भीतर
बाह्य न खोज
-प्रियंका वाजपेयी
२५.३. १६
जाने क्यूँ मन
आवाज़ देता रहा
जाने वाले को
-प्रियंका वाजपेयी
आस बाक़ी है
तुमसे मिलने की
तिश्नगी बाक़ी
खफा मुझसे
ज़माने भर से क्या
नाराज़ी बाक़ी
-प्रीति दक्ष
ओलों की मार
बिछ गए खेतों में
गेहूँ और ज्वार
तनहा रात
चीख रहे सन्नाटे
तेरी है कमी
-राजीव गोयल
झिरीं से झांके
उजाले की किरण
कनखियों से
पेड़ का तना
पत्ते न फल फूल
तना ही रहा
आर के भारद्वाज
२६. ३. १६
गुंजन करे
सूर्य का ऊर्जादल
ओंकार शब्द
-प्रियंका वाजपेयी
दीवारें उठें
घरों में या मनों में
बढ़ें दूरियाँ
-राजीव गोयल
यादों के फूल
झर गए आँखों से
मिट्टी भी नम
-तुकाराम खिल्लारे
सीप चाहती
स्वाति की एक बूंद
सागर नहीं
-राजीव गोयल
२७.३.१६
भानु को देख
हिम में आए स्वेद
नदी में बहे
कैलाश कल्ला
२८.३.१६
गले लगेंगे
परमात्मा की दुआ
दिल दरिया
-कन्हैया
ऋतु सुन्दर
बाजुओं के हार सी
हसीं मंज़र
-राजीव निगम 'राज़'
ना रूठी ही हो
न मनाए मनती
पहेली तुम
-आर के भारद्वाज
करते खेत
मेघों से अरदास
बुझा दो प्यास
-राजीव गोयल
२९.३. १६
बढे जितनी
घट जाती उतनी
वाह, ज़िंदगी
खुला पिजरा
हुआ आज़ाद पंछी
खोया नभ में
-राजीव गोयल
चाहा बहुत
छू ही लूँ एक बार
तू आकृति सी
मन में बसी
तेरी सूरत ऐसी
कलाकृति सी
-आर के भारद्वाज
३०.३.१६
कितनी प्यारी
तेरे प्रेम की रीत
तेरी ही जीत
-आर के भारद्वाज
काल्पनिक हैं
फिर भी टूट जाते
बुने सपने
-कैलाश कल्ला
निगल गई
जलता हुआ गोला
रात डायन
-राजीव गोयल
पूर्व दिशा
लिए गोद में खडी
बालक रवि
-राजीव गोयल
चुटकी भर
गुलाल मस्तक पे
होली - आशीष
-विभा रश्मि
३१ .३.१६
लौटी स्वदेश
सांझ बस में बैठ
सैलानी धूप
-अभिषेक जैन
मन मन के
बोझ बने मन के
बोल उनके
गुज़रे पल
मचायें हलचल
मन विकल
-महिमा वर्मा
गया भी नहीं
पहचाना भी नहीं
जाना नहीं था
(दो सुखन हाइकु)
-आर के भाद्वाज
आम्र मंजरी
मधु सिक्त टहनी
होठ रसीले
-कन्हैया
बाती ने छोड़े
उजाले के नश्तर
अन्धेरा ढेर
-राजीव गोयल
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हम आभारी हैं
जवाब देंहटाएंसभी हाइकु बहुत भाए । बधाई रचनाकारों को ।आ सुरेन्द्र वर्मा जी का आभार ।
जवाब देंहटाएंसभी हाइकु बहुत भाए । बधाई रचनाकारों को ।आ सुरेन्द्र वर्मा जी का आभार ।
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