मई माह के हाइकु
०१.०५.१६
श्रम अर्जित
स्वेद से सनी हुई
उसकी रोटी
---
ताके महल
यही मेरा था कल
अर्जन स्थल
-महिमा वर्मा
मुस्कराहटें
बाँट कर देखिए
लुत्फे-ज़िंदगी
----
आज़माइशें
निभा कर देखिए
नूरे-बंदगी
-प्रियंका वाजपेयी
२.५.१६
बुन रही माँ
सरदी में गरमी
सलाइयों पे
---
एक शाख पे
रहते हैं प्यार से
फूल व शूल
-राजीव गोयल
पवित्रों को भी
अपवित्रों को भी है
तभी गंगा माँ
-प्रीति दक्ष
३.५.१६
ज्योति की संगी
लम्बी कभी वो छोटी
तम में गुम
(हाइकु पहेली)
-विभा श्रीवास्तव्
सांझ सवेरे
लोहित नभ धरा
उबाल मारे
-विभा श्रीवास्तव
पी रही रात
चाँद के सकोरे में
चांदनी जाम
-राजीव गोयल
स्मृति विशेष
प्यार की हलचल
ताज महल
-राजीव निगम 'राज़'
४.५.१६
ज़िंदगी दे दी
छोडी नहीं कसर
तो भी शिकवा
-प्रियंका वाजपेयी
दी है सुपारी
अँधेरे ने आंधी को
लू बुझाने की
-राजीव गोयल
अविकसित
नि:सहाय शरीर
कामुक हावी
- डा. अम्बुजा
चाँद को देख
उछलती लहरें
अमा को शांत
कैलाश कल्ला
५.५.१६
बना देते हैं
ये जादूगर पत्ते
धूप को छाँव
-संतोष कुमार सिंह
जो फूल हँसे
बनकर हार वे
प्रभु को चढ़े
-आर के भारद्वाज
कुतर देते
जात पांत के चूहे
दिलों के तार
-अभिषेक जैन
ओलों की गोली
बादलों ने चलाई
फसलें ढेर
-राजीव गोयल
८.५. १६
मात-दिवस
माँ अनमोल
साथी जीवन भर
माता के बोल
-ममता वर्मा
कर लो शोध
स्वर्ग से भी सुन्दर
है माँ की गोद
-संतोष कुमार सिंह
उजियारा था
दीपक बनकर
थी जलती माँ
-प्रियंका वाजपेयी
जा नहीं सका
खुदा हर घर में
तो माँ भेज दी
-राजीव गोयल
माँ का आशीष
मंगल का प्रतीक
ओम, स्वस्तिक
-अभिषेक जैन
अम्मा आकर
सपने में हमारे
हँसे दुलारे
-राजीव निगम 'राज़'
एक ख्याल-सा
माँ का अहसास
भूलता नहीं
-जितेन्द्र वर्मा
अंजुरी भर
प्रेम के बराबर
नहीं सागर
तुकाराम खिल्लोरे
९.५.१६
महाराणा प्रताप जयंती
अन्याय हटे
भले कष्ट में खाएं
घास की रोटी
-पीयूषा
रण किससे ?
सब अपने ही हैं
भलाई करें
-पीयूषा
१०.५.१६
पिता का खेत
माँ के लुटे गहने
शिक्षा डकैत
-अभिषेक जैन
अब भी दम
अन्धेरा करे ख़त्म
बूढा सूरज
-राजीव गोयल
१२.५.१६
सागर तत्व
लहरों में निहित
अतुल्य बल
प्रियंका वाजपेयी
मनुष्य तेरी
मूलभूत क्षमता
अनंत खोज
-प्रियंका वाजपेयी
पलाश झड़ा
धरती के पांवों में
रचा आलता
-राजीव गोयल
बढ़ती गई
हर पल ये उम्र
घटती गई
-राजीव गोयल
सोचता रहा
किया तो कुछ नहीं
अकर्मण्यता
-जितेन्द्र वर्मा
१३.५.१६
सींचती रही
यादों का उपवन
नैनों की गंगा
-संतोष कुमार सिंह
नभ से झांका
खोल मेघ कपाट
चाँद सलोना
-राजीव गोयल
भरे पड़े हैं
सेठ के गोदाम में
अहं के बोरे
-अभिषेक जैन
१४ ५. १६
ताप व् शीत
जीवन संतुलित
सूरज चाँद
(हाइगा)- विभा श्रीवास्तव
वक्त के साथ
ढल रहा है भानु
हंसता चाँद
-कैलाश कल्ला
१५.५.१६
झाडू से डर
घुस गई कोने में
निर्बल धूप
-अभिषेक जैन
आंधी से डर
छुपे अनाथ पत्ते
मेरे आँगन
-राजीव गोयल
moon walks
in the mids of clouds
appears disappears
-Jitendra Varma
16.5.16
सन्नाटा फैला
क्या मौत के डर से
ज़िंदगी बाक़ी
-पीयूषा
१७.५.१६
ज़िंदगी मेरी
हँसाए व् रुलाए
शरीर ऐसी
-राजीव निगम राज़
रिश्ता जलाता
धूम्रपान करता
शक का कीड़ा
-विभा श्रीवास्तव
बरसी नहीं
इस साल बदरी
कुंठित नदी
-राजीव गोयल
१८.५.१६
है सच्चा मित्र
सीप में बंद मोती
रखो सम्हाल
-पुष्प लता शर्मा
डर लगता
सांप का फन, और
विष रहित !
-जितेन्द्र वर्मा
फूलों को घेर
नाच रहीं पत्तियाँ
दूल्हे के मित्र
-कैलाश कल्ला
१९,५.१६
पैसे की भूख
चखने नहीं देती
रिश्तों का स्वाद
-राजीव गोयल
जीवन नाव
चलती उधर ही
सोच की पाल
-कैलाश कल्ला
२०.५.१६
छनती धूप
नदिया झिलमिल
बिखरे मोती
-प्रियंका वाज्पेशी
ले रही रात
भोर के उजाले में
आखिरी सांस
-राजीव गोयल
सिर पटक
साहिल पे लहरें
देती जान
-राजीव गोयल
२१.५.१६
उजालों भरी
रहती अमावस
संग बिटिया
-प्रियंका वाजपेयी
२२.५.१६
उबल रहा
लोहित नभ धरा
सांझ सवेरे
विभा श्रीवास्तव
शान से खिला
सूरज को चिढाता
अमलतास
-दिनेश चन्द्र पांडेय
रवि बंजारा
धर ताप टोकरी
फिरे घूमता
-महिमा वर्मा
पियारा गए
गरमी के ताप से
अमलतास
-राजीव निगम राज़
धर्म की हानि
भयभीत जगत
आओ माधव
-प्रियंका वाजपेयी
२३.५.१६
विषैले बोल
धन्वा से छूटा बाण
कभी न लौटे
प्रीत की डोरी
यहाँ बंधी, वहां भी
छूटती नहीं
-प्रियंका वाजपेयी
२४.५.१६
अन्धेरा घना
खूब दिए जलाओ
नहीं है मना
-आरके भारद्वाज
कभी था हुस्न
झुर्रियां हुईं तो क्या
उम्र का जश्न
-आर के भारद्वाज
२५ ५ १६
ज़मीन से उठा
झोंके आँखों में धूल
शैतान हवा
-अभिषेक जैन
हवा विमान
बैठ गए पल्लव
भरें उड़ान
अभिषेक जैन
बिखेर गए
धरा पे काली स्याही
रात के साए
-राजीव गोयल
२६.५.१
मकड़ जाल
ख्यालों की दीवार पे
बुने है कवि
-अभिषेक जैन
वक्त उदास
गर्मी प्रचंड हुई
प्यास भी प्यासी
-आर के भारद्वाज
(हाइकु-जुगलबंदी)
कैलाश कल्ला ---
ताज को देख
करते सब वाह
है दरगाह !
प्रियंका वाजपेयी ---
कब्र ही सही
प्यार की दास्तान को
संजोये ताज !
२७.५.१६
(हाइकु जुबलबंदी)
जितेन्द्र वर्मा ---
भारी हो मन
बोझिल हो जीवन
निकले आंसू
प्रियंका वाजपेयी ----
कह न सके
कसक पले अंत:
ढुलके आंसू
(हाइकु जुगलबंदी)
राजीव गोयल ---
पिघला दिन
ग़मों की गरमी से
बहते आंसू
आर के भारद्वाज ---
तुम्हारी कथा
लिए मन में व्यथा
आंसू ने सुनी
तन तम्बूरा
साँसों की सरगम
बजाए आत्मा
-प्रीती दक्ष
२८.५.१६
फींके हैं साज़
पहली किलकारी
झूमता मन
-कैलाश कल्ला
फिसल गए
उम्र की सीढियों से
साँसों के पैर
-अभिषेक जैन
थका पथिक
ठंडी छाँव सोया
वृक्ष हर्षाया
-आर के भारद्वाज
फंसी मछली
तालाब भरे आह
मछेरा वाह
-संतोष कुमार सिंह
स्त्री का नर्तन
देख व्यस्त जीवन
जी भर आए
-राजीव निगम राज़
२९.५.१६
दिए खदेड़
रंगदार धूप को
जांबाज़ पेड़
अभिषेक जैन
(हाइकु जुगलबंदी)
राजीव गोयल ----
घोल चाय में
सुबह का पेपर
पीता हूँ रोज़
रालीव निगम राज़ ---
खबरें पीना
चाय की चुस्की संग
जीवन रंग
३०.५.१६
सांवली हवा
झुलसी जूही बेला
जेठ महीना
-विभा श्रीवास्तव
दीमक बसे
किताबों के घर में
शब्द बेघर
-राजीव गोयल
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०१.०५.१६
श्रम अर्जित
स्वेद से सनी हुई
उसकी रोटी
---
ताके महल
यही मेरा था कल
अर्जन स्थल
-महिमा वर्मा
मुस्कराहटें
बाँट कर देखिए
लुत्फे-ज़िंदगी
----
आज़माइशें
निभा कर देखिए
नूरे-बंदगी
-प्रियंका वाजपेयी
२.५.१६
बुन रही माँ
सरदी में गरमी
सलाइयों पे
---
एक शाख पे
रहते हैं प्यार से
फूल व शूल
-राजीव गोयल
पवित्रों को भी
अपवित्रों को भी है
तभी गंगा माँ
-प्रीति दक्ष
३.५.१६
ज्योति की संगी
लम्बी कभी वो छोटी
तम में गुम
(हाइकु पहेली)
-विभा श्रीवास्तव्
सांझ सवेरे
लोहित नभ धरा
उबाल मारे
-विभा श्रीवास्तव
पी रही रात
चाँद के सकोरे में
चांदनी जाम
-राजीव गोयल
स्मृति विशेष
प्यार की हलचल
ताज महल
-राजीव निगम 'राज़'
४.५.१६
ज़िंदगी दे दी
छोडी नहीं कसर
तो भी शिकवा
-प्रियंका वाजपेयी
दी है सुपारी
अँधेरे ने आंधी को
लू बुझाने की
-राजीव गोयल
अविकसित
नि:सहाय शरीर
कामुक हावी
- डा. अम्बुजा
चाँद को देख
उछलती लहरें
अमा को शांत
कैलाश कल्ला
५.५.१६
बना देते हैं
ये जादूगर पत्ते
धूप को छाँव
-संतोष कुमार सिंह
जो फूल हँसे
बनकर हार वे
प्रभु को चढ़े
-आर के भारद्वाज
कुतर देते
जात पांत के चूहे
दिलों के तार
-अभिषेक जैन
ओलों की गोली
बादलों ने चलाई
फसलें ढेर
-राजीव गोयल
८.५. १६
मात-दिवस
माँ अनमोल
साथी जीवन भर
माता के बोल
-ममता वर्मा
कर लो शोध
स्वर्ग से भी सुन्दर
है माँ की गोद
-संतोष कुमार सिंह
उजियारा था
दीपक बनकर
थी जलती माँ
-प्रियंका वाजपेयी
जा नहीं सका
खुदा हर घर में
तो माँ भेज दी
-राजीव गोयल
माँ का आशीष
मंगल का प्रतीक
ओम, स्वस्तिक
-अभिषेक जैन
अम्मा आकर
सपने में हमारे
हँसे दुलारे
-राजीव निगम 'राज़'
एक ख्याल-सा
माँ का अहसास
भूलता नहीं
-जितेन्द्र वर्मा
अंजुरी भर
प्रेम के बराबर
नहीं सागर
तुकाराम खिल्लोरे
९.५.१६
महाराणा प्रताप जयंती
अन्याय हटे
भले कष्ट में खाएं
घास की रोटी
-पीयूषा
रण किससे ?
सब अपने ही हैं
भलाई करें
-पीयूषा
१०.५.१६
पिता का खेत
माँ के लुटे गहने
शिक्षा डकैत
-अभिषेक जैन
अब भी दम
अन्धेरा करे ख़त्म
बूढा सूरज
-राजीव गोयल
१२.५.१६
सागर तत्व
लहरों में निहित
अतुल्य बल
प्रियंका वाजपेयी
मनुष्य तेरी
मूलभूत क्षमता
अनंत खोज
-प्रियंका वाजपेयी
पलाश झड़ा
धरती के पांवों में
रचा आलता
-राजीव गोयल
बढ़ती गई
हर पल ये उम्र
घटती गई
-राजीव गोयल
सोचता रहा
किया तो कुछ नहीं
अकर्मण्यता
-जितेन्द्र वर्मा
१३.५.१६
सींचती रही
यादों का उपवन
नैनों की गंगा
-संतोष कुमार सिंह
नभ से झांका
खोल मेघ कपाट
चाँद सलोना
-राजीव गोयल
भरे पड़े हैं
सेठ के गोदाम में
अहं के बोरे
-अभिषेक जैन
१४ ५. १६
ताप व् शीत
जीवन संतुलित
सूरज चाँद
(हाइगा)- विभा श्रीवास्तव
वक्त के साथ
ढल रहा है भानु
हंसता चाँद
-कैलाश कल्ला
१५.५.१६
झाडू से डर
घुस गई कोने में
निर्बल धूप
-अभिषेक जैन
आंधी से डर
छुपे अनाथ पत्ते
मेरे आँगन
-राजीव गोयल
moon walks
in the mids of clouds
appears disappears
-Jitendra Varma
16.5.16
सन्नाटा फैला
क्या मौत के डर से
ज़िंदगी बाक़ी
-पीयूषा
१७.५.१६
ज़िंदगी मेरी
हँसाए व् रुलाए
शरीर ऐसी
-राजीव निगम राज़
रिश्ता जलाता
धूम्रपान करता
शक का कीड़ा
-विभा श्रीवास्तव
बरसी नहीं
इस साल बदरी
कुंठित नदी
-राजीव गोयल
१८.५.१६
है सच्चा मित्र
सीप में बंद मोती
रखो सम्हाल
-पुष्प लता शर्मा
डर लगता
सांप का फन, और
विष रहित !
-जितेन्द्र वर्मा
फूलों को घेर
नाच रहीं पत्तियाँ
दूल्हे के मित्र
-कैलाश कल्ला
१९,५.१६
पैसे की भूख
चखने नहीं देती
रिश्तों का स्वाद
-राजीव गोयल
जीवन नाव
चलती उधर ही
सोच की पाल
-कैलाश कल्ला
२०.५.१६
छनती धूप
नदिया झिलमिल
बिखरे मोती
-प्रियंका वाज्पेशी
ले रही रात
भोर के उजाले में
आखिरी सांस
-राजीव गोयल
सिर पटक
साहिल पे लहरें
देती जान
-राजीव गोयल
२१.५.१६
उजालों भरी
रहती अमावस
संग बिटिया
-प्रियंका वाजपेयी
२२.५.१६
उबल रहा
लोहित नभ धरा
सांझ सवेरे
विभा श्रीवास्तव
शान से खिला
सूरज को चिढाता
अमलतास
-दिनेश चन्द्र पांडेय
रवि बंजारा
धर ताप टोकरी
फिरे घूमता
-महिमा वर्मा
पियारा गए
गरमी के ताप से
अमलतास
-राजीव निगम राज़
धर्म की हानि
भयभीत जगत
आओ माधव
-प्रियंका वाजपेयी
२३.५.१६
विषैले बोल
धन्वा से छूटा बाण
कभी न लौटे
प्रीत की डोरी
यहाँ बंधी, वहां भी
छूटती नहीं
-प्रियंका वाजपेयी
२४.५.१६
अन्धेरा घना
खूब दिए जलाओ
नहीं है मना
-आरके भारद्वाज
कभी था हुस्न
झुर्रियां हुईं तो क्या
उम्र का जश्न
-आर के भारद्वाज
२५ ५ १६
ज़मीन से उठा
झोंके आँखों में धूल
शैतान हवा
-अभिषेक जैन
हवा विमान
बैठ गए पल्लव
भरें उड़ान
अभिषेक जैन
बिखेर गए
धरा पे काली स्याही
रात के साए
-राजीव गोयल
२६.५.१
मकड़ जाल
ख्यालों की दीवार पे
बुने है कवि
-अभिषेक जैन
वक्त उदास
गर्मी प्रचंड हुई
प्यास भी प्यासी
-आर के भारद्वाज
(हाइकु-जुगलबंदी)
कैलाश कल्ला ---
ताज को देख
करते सब वाह
है दरगाह !
प्रियंका वाजपेयी ---
कब्र ही सही
प्यार की दास्तान को
संजोये ताज !
२७.५.१६
(हाइकु जुबलबंदी)
जितेन्द्र वर्मा ---
भारी हो मन
बोझिल हो जीवन
निकले आंसू
प्रियंका वाजपेयी ----
कह न सके
कसक पले अंत:
ढुलके आंसू
(हाइकु जुगलबंदी)
राजीव गोयल ---
पिघला दिन
ग़मों की गरमी से
बहते आंसू
आर के भारद्वाज ---
तुम्हारी कथा
लिए मन में व्यथा
आंसू ने सुनी
तन तम्बूरा
साँसों की सरगम
बजाए आत्मा
-प्रीती दक्ष
२८.५.१६
फींके हैं साज़
पहली किलकारी
झूमता मन
-कैलाश कल्ला
फिसल गए
उम्र की सीढियों से
साँसों के पैर
-अभिषेक जैन
थका पथिक
ठंडी छाँव सोया
वृक्ष हर्षाया
-आर के भारद्वाज
फंसी मछली
तालाब भरे आह
मछेरा वाह
-संतोष कुमार सिंह
स्त्री का नर्तन
देख व्यस्त जीवन
जी भर आए
-राजीव निगम राज़
२९.५.१६
दिए खदेड़
रंगदार धूप को
जांबाज़ पेड़
अभिषेक जैन
(हाइकु जुगलबंदी)
राजीव गोयल ----
घोल चाय में
सुबह का पेपर
पीता हूँ रोज़
रालीव निगम राज़ ---
खबरें पीना
चाय की चुस्की संग
जीवन रंग
३०.५.१६
सांवली हवा
झुलसी जूही बेला
जेठ महीना
-विभा श्रीवास्तव
दीमक बसे
किताबों के घर में
शब्द बेघर
-राजीव गोयल
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Rajiv Goyal