शुक्रवार, 24 मार्च 2017

मार्च २०१७ के श्रेष्ठ हाइकु

मार्च '१७ के श्रेष्ठ हाइकु

कलश यात्रा
मंदिर स्थापना की
बाज़ार नाचे
        -विभा श्रीवास्तव
नीड़ में बीते
चार दिन ज़िंदगी
बसे उजड़े
        -रमेश कुमार सोनी
गोधूल वेला
सागर तट पर
विहंग मेला
        -विष्णु प्रिय पाठक
चुरा लेती है
धूप मेरे हिस्से की
ऊंची हवेली
        -राजीव गोयल
उडाता रवि
बोरा-भर गुलाल
सांझ के द्वार
       -राजीव गोयल
फड़फड़ाती
पिजड़े में चिड़िया
बुर्क़े में नारी
        -विष्णु प्रिय पाठक
रंग में रंग
मेरे श्याम का रंग
चढे न दूजा
        -रमेश कुमार सोनी
सहता रहे
लहरों का आतंक
तपस्वी तट
        -राजीव गोयल
जुगलबंदी
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अबकी बार
पधारो म्हारे गाँव
होली खेलण
        -जितेन्द्र वर्मा
पधारो प्रिय
जब इस आँगन
दे जाना मन
        -रंजना वर्मा
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बेला गोधूली
सूरज लेने चला
जल समाधि
     -राजीव गोयल
समत्व रंग
लहराए उमंग
होली तरंग
       -पीयूषा
बेटी बहन
प्रेयसी पत्नी माँ
रूप अनन्य
     -प्रदीप कुमार दाश
सूरज बाल
मल गया गुलाल
उषा के गाल
        -डा, रंजना वर्मा
फागुन मास
पलाश ने दिशाएं
रंग दीं लाल
       -राजीव गोयल
होली क्या खेलूँ
बलम घर आए
रंगे-रंगाए
      -दिनेश चन्द्र पांडेय
निकली भोर
लगाए माथे पर
सूर्य बिंदिया
      -राजीव गोयल
प्रभात बेला
सोंधी गंध रोटी की
हवा में उड़ी
       -राजीव गोयल
जुगलबंदी
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विदाई वेला
कुंडी में फंस गया
पल्लू का छोर
      -सुनीता अग्रवाल
      (श्री जगदीश व्योम के सौजन्य से)
विदाई वेला
होंठ तो हंस रहे
आँखें हैं नम
         -राजीव गोयल
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प्यारी सी बोली
दिल से निकलती
शुभ हो होली
      -पीयूषा
गरीब झुग्गी
ठंडी अंगीठी पर
पकता जुर्म
      राजीव गोयल
तितली व्यस्त
बदल नहीं पाई
होली के वस्त्र
       -संतोष कुमार सिंह
प्रेम करते
ज़माने में ताउम्र
फूल झरते
      -निगम 'राज़'
उसने छुआ
ह्रदय की झील में                  
स्पंदन हुआ
       -राजीव गोयल
ताकती आँखें
शून्य में निहारतीं
कोई आएगा
       -रमेश कुमार सोनी
अक्षर सत्य
बनते बिगड़ते
शब्द जीवन
     -विष्णु प्रिय पाठक
बरसी धूप
तान लिए धरा ने
पेड़ो के छाते
      -राजीव गोयल
भरे घर में
अंत समय देखा
शून्य ही खड़ा
      -तुकाराम खिल्लारे
झड़ते पत्ते
सोये सुख की नींद
धरा की गोद
      -राजीव गोयल
सत्य हो तुम
रचा जग असत्य
छाला गया मैं
      -जितेन्द्र वर्मा
आए न मेघ
किसान ने खेत में
उगाए कर्ज़
    -राजीव गोयल
दौड़ता रहा
मरीचिका के पीछे
छाँव भी नहीं
       - तुकाराम खिल्लारे
पाखराविण
झाड़ उदास झाले
अर्धे वाळले
        (मराठी) तुकाराम खिल्लारे
सूखा है वृक्ष
उदास और खिन्न
पखेरू बिन
        -(हिन्दी अनुवाद)
प्रवेश द्वार
पत्थर के पुतले
झुक के खड़े
       -विष्णु प्रिय पाठक
पत्थर जाने
टूट जाने का दर्द
रेत ही रेत
      -रमेश कुमार सोनी
आकाश मौन
खामोश है धरती
तूफां को सुन
       -प्रियंका वाजपेयी
कर्ण मधुर
झरने के गीत
सृष्टि संगीत
        डा. रंजना वर्मा
पेड़ों से गिरीं
सूख कर पत्तियाँ
फूटी कोंपलें
        -राजीव गोयल
शब्द कविता
लय ओढ़े कामिनी
नाम कविता
          (कविता-दिवस पर)
          -प्रियंका वाजपेयी
वेद पुराण
अधूरी चाहतों के
ये प्रेम पत्र
     -राजीव गोयल
झरता पत्ता
चिताओं के समक्ष
स्तब्ध खडी मैं
      -विभा श्रीवास्तव
सफ़र पर
मिलते कई साथी
तुम सा कौन !
       -मंजूषा मन
सन्नाटा फैला
चुप का बोलबाला
हमारे बीच
         -जितेन्द्र वर्मा
सुलझा चलो
मन की जिद्दी गांठें
चुभें दिल में
        -प्रियंका वाजपेयी
बन के खाद
फिर पहुंचे पत्ते
पेड़ के पास
       -राजीव गोयल
नन्ही सी जान
फंसाए मायाजाल
दुखी गौरैया
         -प्रियंका वाजपेयी
भागती ट्रेन
पकड़ने को चाँद
छूटते पेड़
        -राजीव गोयल
सरोवर पे
बगुलों का समूह
मंच पे नेता
       -विष्णु प्रिय पाठक      
संवारें आज
सुन्दर बने कल
युक्ति अचूक
       -जितेन्द्र वर्मा
उठी वादियाँ
ओढ़ रेशमी धुंध
मुंह अँधेरे
        (हाइगा)--राजीव गोयल
सूखा तालाब
पीटे जाल पे माथा
रोता मछेरा
      -विष्णु प्रिय पाठक
सर्द मौसम
चिता की गर्म राख
सो रहा कुत्ता
       -राजीव गोयल
कुँए तालाब
साझा संस्कृति पाले
तेरे न मेरे
       रमेश कुमार सोनी
झक मारने
तालाब तट बैठे
लोग, बगुले
       -रमेश कुमार सोनी
जुगलबंदी
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नारी जीवन
परती परिकथा
केवल व्यथा
      -डा. रंजना वर्मा
नारी जीवन
रचना का संघर्ष
आशा न व्यथा
         - पीयूषा
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अदाह्य दीप
फैलाए चिंगारियां -
अमा जुगुनू
       -विभा श्रीवास्तव
सूखी पत्तियाँ
कराहतीं दर्द से
कदमों तले
      -राजीव गोयल
साँसों की माला
गिनती के मनके
जपें सोच के
     -प्रियंका वाजपेयी
बूढा दरख़्त
चबूतरे पे खडा
गिने पीढियां
      -प्रियंका वाजपेयी
जो बीत गई
वो बात छूट गई
ना खोज उसे
       -प्रियंका वाजपेयी

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--------------समाप्त ---

शनिवार, 18 मार्च 2017

डा. सुरेन्द्र वर्मा : हाइकु ग्रीष्म ऋतू


ऋतुचक्र  (२)ग्रीष्म
 डा. सुरेन्द्र वर्मा

बढ़ता गुस्सा
पुष्प भी लाल-पीले
गर्मी सी गर्मी

नल / चिड़िया
दोनों ही सूखे कंठ
प्यासे आकंठ

चिड़िया प्यासी
नल के मुंहपर
चोंच मारती

तपे आग में
अमलतास टेसू
उतरे खरे

बेला का फूल
डाली पे हरा-भरा
छूटे ही झरा

मीठे-कड़वे
जीवन अनुभव
पकी निबौली

रजनी गंधा
रात भर महकी
धन्य जीवन

लता बेला की
गोद में फूल लिए
आनंदमयी

पोखर सूखा
आब ही नहीं रही
तला चटका  

सूखी पत्तियाँ
आश्रय तलाशतीं
बुहारी गई

सो गई वो
कब तक जागती
पंखा झलते

छन के आए
चितकबरी धूप
पेड़ छननी

पानी के बिना
तन तरबतर
हलक सूखा

गर्म हवाएं
धरती पे निढाल
हांपता कुत्ता

गुलमोहर
गर्मी में लाल-पीले
अमलतास

भरे चिलम
सूर्य लगाए दम
उगले आग

गर्मी के दिन
तन पे अलाइयां
बो गई धूप

मारे गरमी
नींद न आई रात
तारों के साथ

पेड़ पत्तियाँ
छान रही हैं धूप
थोड़ी राहत

बदलते हैं
कर्बट पे कर्बट
अकुलाहट    

होने को भूरी
वृक्ष तले पसरी
गोरांगी धूप

सूखने न दें
नदी जो भिगोती है
हमारा मन

उठी लपटें
आग लगी वन में
पलाश फूला

कहाँ मिलेगा
घाट घाट है प्यासा
तोड़ प्यास का

लुटा के पानी
प्यास बुझाए  -घट
प्यासा का प्यासा

देखे ऊपर
दरकती धरती
नभ बेदर्दी

पुरवइया
राहत तपन से
तेरा पैगाम !

चैत में जेठ
तपती दोपहरी
सुचेतावनी

कोयल रट
चुप हो गई कुहू
उत्तर न आया

वृक्ष विशाखा
हुआ छाया विहीन
ठूँठ सा खड़ा

चिड़िया प्यासी
कुत्ता पी गया पानी
दर्द कहानी

उफ़! गरमी
संतरे तरबूज
वाह! गरमी !

सूर्य धरा पे
रसातल में पानी
दोनों अतृप्त
   
ताना मारते
खिलखिलाते फूल
गर्मी बेशर्म

सह न पाई
बरसाती नदियाँ
श्राप गरमी का

सूर्य का ताप
सह न पाई धरा
दरक गई

चिड़िया प्यासी
हुआ न गुस्सा शांत
पिपासा मन

आँखों में फांस
तालाब में दरारें
प्यास ही प्यास

पानी गायब
कुँए का तालाब का
सूनी आँख का

कमरे बंद
दोपहर खामोश
सर्वत्र मौन

अतृप्त मन
प्यासा ही लौट गया
गागर खाली

कोई बताए
कहाँ छिपा है जल ?
प्राण पिपासे

शिखर पर
सूरज के तेवर
धरा लाचार
 
कोई भी जल
बुझा नही पाया,ये
अबूझ प्यास

सर पे सूर्य
सिमटी, पैरों  पड़ी
बेचारी छाँव

प्रतीक्षा वर्षा
तपती दोपहर
विरह-अग्नि