श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - जनवरी माह
नूतन वर्ष
जीवन में ले आए
हर्ष ही हर्ष
बी पी प्रजापति
अभिनन्दन
नव वर्ष तुम्हारा
अतिथि देव
नरेन्द्र श्रीवास्तव
अभी जन्मा है
जैसा चाहो ढाल लो
साल बच्चा है
-राजीव गोयल
घर चौबारे
मेहनत के रंग
सजते द्वारे
-बलजीत सिंह
दिन पहाड़
थक के सोई रात
स्वप्न देखती
नरेंद्र श्रीवास्तव
लचक गई
हवा का रुख देख
बाल न बांका
-सुरंगमा यादव
भोर से आस
सांझ से शिकायत
यही ज़िंदगी
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
वक्त कमबख्त
बदले करबट
वक्त बेवक्त
-डॉ. रंजना
रस्सी सा ऐंठा
गुरूर में अकड़ा
आँखों से गिरा
-सुरंगमा यादव
दंगा सुर्खियाँ ..
मुंह में रह गया
चाय का घूँट
-विष्णु प्रिय पाठक
अनाथ बच्चा
मांगे की शर्ट छपा
"ओ मेरी मैय्या "
विष्णु प्रिय पाठक
जन्म मरण
जीव का व्याकरण
आवागमन
-निगम 'राज़'
सरे बाज़ार
अपहरित धूप
लोग मौन हैं
दिनेश चन्द्र पाण्डेय
सागर तट
बालक बना रहा
रेत का घर
-विष्णु प्रिय पाठक
विश्व हमारा
कुदरत का प्यारा
एक तोहफा
-वलजीत सिंह
घरों में उठीं
लालाच की लपटें
बहुएं जलीं
-राजीव गोयल
शीत शर्बरी
रतिपति चलाए
कुसुम बाण
*
शीत ऋतु में
नदी पे बन गए
बर्फ के पुल
-सूर्य करण सोनी
नव वर्ष में
बदलें परिधान
वृक्ष महान
*
भंवरे गाएं
पल्लवित पुष्पों पे
मधुर गान
-सूर्य करण सोनी
खंगाला वक्त
चाँद हीरे यादों के
आ गए हाथ
-राजीव गोयल
अंधेरी रात
कोहरे के व्यूह में
स्ट्रीट लाइट
-विष्णु प्रिय पाठक
बरछी भाले
आत्मरक्षा की चाह
मौत हवाले
-बलजीत सिंह
पतंग कटी
ऊंची उड़ान टूटी
धरा पे लुटी
-निगम 'राज़'
गोधूलि वेला
समेट रहा रवि
धूप के पर
-राजीव गोयल
छूना आकाश
संघर्ष है कठिन
उडी पतंग
*
नभ में देख
पतंगों की उड़ान
पक्षी हैरान
-सुरंगमा यादव
शीत त्योहार
अलाव के सम्मुख
ठण्ड कथाएँ
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
मैंने जो रचा
सपनों का घरौंदा
वक्त ने रौंधा
-सूर्य नारायण गुप्त
स्नेह का खेल
सरसों में लिपटी
मटर बेल
-विष्णु प्रिय पाठक
मन तो रहा
मनमीत में डूबा
दर्द ही सहा
-निगम 'राज़'
बीहड़ रास्ते
बेपरवाह नदी
मिलन धुन
-सुरंगमा यादव
बड़ा खज़ाना
बीते हुए वक्त के
वो छोटे लम्हे
-राजीव गोयल
शाम हो गई
ज़िंदगी का झमेला
लीजे समेट
-डॉ. रंजना वर्मा
सूखी नदिया
भूखे प्यासे बगुले
टूटी उम्मीदें
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
आया बसंत
आगत स्वागत को
सजा निसर्ग
दिनेश चन्द्र पाण्डेय
रंग उमंग
नवल कोपलों से
नव सृजन
-प्रीती दक्ष
पवन बही
भंवर चूम रहे
सुमन सुख
डा. रंजना वर्मा
बसंत ऋतु
दिन पतंग हुए
रात सरसों
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
बसंतोत्सव
मदन साध रहा
पुष्पों के बाण
-सुरंगमा यादव
बसंतोत्सव
ओढ़ पीली चूनर
झूमी सरसों
-राजीव गोयल
शाल पलाश
रसवंती कामिनी
महुआ गंध
-सुशील शर्मा
कोई न सगा
साथी बन सुख का
सब ने ठगा
-सूर्य नारायण 'सूर्य'
सबका हक़
हमारा गणतंत्र
सबकी हद
नरेन्द्र श्रीवास्तव
उनका भी हो
गणतंत्र दिवस
मोहताज जो
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
मैदान खाली
मोबाइल ले गया
बच्चों की गेंद
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
सांवरे बिन
नींद न आये चैन
न कटे रैन
-डा. रंजना वर्मा
राष्ट्रीय पर्व
फेसबुक पे दिखे
तिरंगा ध्वज
-विष्णु प्रिय पाठक
बहा ले गई
बचपन घरौंदा
वक्त लहर
राजीव गोयल
सूर्यास्त हुआ
घर घर चमके
अपने सूर्य
-सुरंगमा यादव
बादल ओट
हटा के चन्दा देखे
कितनी रात
सुरंगमा यादव
मौन ही सही
पुकारता तो रहा
अंतर-मन
-प्रियंका वाजपेयी
खिल न पाई
मन की पूर्णमासी
लगा ग्रहण
-प्रियंका वाजपेयी
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---------------समाप्त ----
नूतन वर्ष
जीवन में ले आए
हर्ष ही हर्ष
बी पी प्रजापति
अभिनन्दन
नव वर्ष तुम्हारा
अतिथि देव
नरेन्द्र श्रीवास्तव
अभी जन्मा है
जैसा चाहो ढाल लो
साल बच्चा है
-राजीव गोयल
घर चौबारे
मेहनत के रंग
सजते द्वारे
-बलजीत सिंह
दिन पहाड़
थक के सोई रात
स्वप्न देखती
नरेंद्र श्रीवास्तव
लचक गई
हवा का रुख देख
बाल न बांका
-सुरंगमा यादव
भोर से आस
सांझ से शिकायत
यही ज़िंदगी
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
वक्त कमबख्त
बदले करबट
वक्त बेवक्त
-डॉ. रंजना
रस्सी सा ऐंठा
गुरूर में अकड़ा
आँखों से गिरा
-सुरंगमा यादव
दंगा सुर्खियाँ ..
मुंह में रह गया
चाय का घूँट
-विष्णु प्रिय पाठक
अनाथ बच्चा
मांगे की शर्ट छपा
"ओ मेरी मैय्या "
विष्णु प्रिय पाठक
जन्म मरण
जीव का व्याकरण
आवागमन
-निगम 'राज़'
सरे बाज़ार
अपहरित धूप
लोग मौन हैं
दिनेश चन्द्र पाण्डेय
सागर तट
बालक बना रहा
रेत का घर
-विष्णु प्रिय पाठक
विश्व हमारा
कुदरत का प्यारा
एक तोहफा
-वलजीत सिंह
घरों में उठीं
लालाच की लपटें
बहुएं जलीं
-राजीव गोयल
शीत शर्बरी
रतिपति चलाए
कुसुम बाण
*
शीत ऋतु में
नदी पे बन गए
बर्फ के पुल
-सूर्य करण सोनी
नव वर्ष में
बदलें परिधान
वृक्ष महान
*
भंवरे गाएं
पल्लवित पुष्पों पे
मधुर गान
-सूर्य करण सोनी
खंगाला वक्त
चाँद हीरे यादों के
आ गए हाथ
-राजीव गोयल
अंधेरी रात
कोहरे के व्यूह में
स्ट्रीट लाइट
-विष्णु प्रिय पाठक
बरछी भाले
आत्मरक्षा की चाह
मौत हवाले
-बलजीत सिंह
पतंग कटी
ऊंची उड़ान टूटी
धरा पे लुटी
-निगम 'राज़'
गोधूलि वेला
समेट रहा रवि
धूप के पर
-राजीव गोयल
छूना आकाश
संघर्ष है कठिन
उडी पतंग
*
नभ में देख
पतंगों की उड़ान
पक्षी हैरान
-सुरंगमा यादव
शीत त्योहार
अलाव के सम्मुख
ठण्ड कथाएँ
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
मैंने जो रचा
सपनों का घरौंदा
वक्त ने रौंधा
-सूर्य नारायण गुप्त
स्नेह का खेल
सरसों में लिपटी
मटर बेल
-विष्णु प्रिय पाठक
मन तो रहा
मनमीत में डूबा
दर्द ही सहा
-निगम 'राज़'
बीहड़ रास्ते
बेपरवाह नदी
मिलन धुन
-सुरंगमा यादव
बड़ा खज़ाना
बीते हुए वक्त के
वो छोटे लम्हे
-राजीव गोयल
शाम हो गई
ज़िंदगी का झमेला
लीजे समेट
-डॉ. रंजना वर्मा
सूखी नदिया
भूखे प्यासे बगुले
टूटी उम्मीदें
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
आया बसंत
आगत स्वागत को
सजा निसर्ग
दिनेश चन्द्र पाण्डेय
रंग उमंग
नवल कोपलों से
नव सृजन
-प्रीती दक्ष
पवन बही
भंवर चूम रहे
सुमन सुख
डा. रंजना वर्मा
बसंत ऋतु
दिन पतंग हुए
रात सरसों
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
बसंतोत्सव
मदन साध रहा
पुष्पों के बाण
-सुरंगमा यादव
बसंतोत्सव
ओढ़ पीली चूनर
झूमी सरसों
-राजीव गोयल
शाल पलाश
रसवंती कामिनी
महुआ गंध
-सुशील शर्मा
कोई न सगा
साथी बन सुख का
सब ने ठगा
-सूर्य नारायण 'सूर्य'
सबका हक़
हमारा गणतंत्र
सबकी हद
नरेन्द्र श्रीवास्तव
उनका भी हो
गणतंत्र दिवस
मोहताज जो
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
मैदान खाली
मोबाइल ले गया
बच्चों की गेंद
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
सांवरे बिन
नींद न आये चैन
न कटे रैन
-डा. रंजना वर्मा
राष्ट्रीय पर्व
फेसबुक पे दिखे
तिरंगा ध्वज
-विष्णु प्रिय पाठक
बहा ले गई
बचपन घरौंदा
वक्त लहर
राजीव गोयल
सूर्यास्त हुआ
घर घर चमके
अपने सूर्य
-सुरंगमा यादव
बादल ओट
हटा के चन्दा देखे
कितनी रात
सुरंगमा यादव
मौन ही सही
पुकारता तो रहा
अंतर-मन
-प्रियंका वाजपेयी
खिल न पाई
मन की पूर्णमासी
लगा ग्रहण
-प्रियंका वाजपेयी
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---------------समाप्त ----