शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - अक्टूबर माह

खो गई मस्ती 
वक्त ने दे दी मुझे 
दर्द की बस्ती 
       -सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य' 
थामी उसने 
सत्य अहिंसा लाठी 
नाम था गांधी 
      -राजीव गोयल 
पुतला जला 
दशानन अनेक 
अभी हैं ज़िंदा 
       सुरंगमा यादव
कितनी बार
समस्या सुलझाती
चाय की मेज़
       -डा. रंजना वर्मा
लूट ले गया
दरख्तों का वैभव
ये पतझड़
       -राजीव गोयल
पिरोती रही
तन्हाई की डोर में
आंसू के मोती
       राजीव गोयल
नित सुकर्मी
नवीन स्वप्न देखे
प्रयोगधर्मी
      निगम 'राज़'
मृत्यु खिलाड़ी
लपकने को खड़ी
जीवन गेंद
       सुरंगमा यादव
बाबा उदास
चंचल नदी दौड़ी
सिन्धु के  पास
      -पुष्पा सिन्धी
तितली देख
पकड़ने को बढे
हाथ अनेक
        सुरंगमा यादव
झड़ा पलाश
सजी पेड़ों के नीचे
फूलों की सेज
       -राजीव गोयल
अच्छा है धंदा
किराए पे दें कंधा
यही विकास
      -निगम 'राज़'
दादी की याद
बरामदे में धूप
सुखद लगे
       शिव डोयले
प्रभु की माया
राम हो गए बौने
रावण छाया
       -निगम 'राज़'
लुटेरी आँखें
दिल का त़ाला टूटा
भरे बाज़ार
      -रमेश कुमार सोनी
हो गए रिश्ते
अब तो गुणा-भाग
 किससे कहूँ ?
       सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
शरद पूनो
मन आँगन फैली
प्रीत चांदनी
       -सुरंगमा यादव
दोनों शर्माते
चाँद ने देखा चाँद
प्यार छलके
    -रमेश कुमार सोनी
पैरों के नीचे
दर्द से कराहती
सूखी पत्तियां
       -राजीव गोयल
चौथ का चाँद
उठी नव तरंग
प्रेम सिन्धु में
       -सुरंगमा यादव
मीटू है आई
जाग गए हैं भूत
ले अंगड़ाई
      भीम प्रजापति
इच्छाएं लादे
थक गए हैं काँधे
निभे न वादे
      -निगम 'राज़' 
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