शनिवार, 30 नवंबर 2019

श्रेष्ठ हिंदी हाइकू अक्तूबर नवम्बर २०१९

श्रेष्ठ हिंदी हाइकू अक्तूबर नवम्बर  २०१९

बच्चों का घर
दीवारों पर उभरे
ख़्वाब सुन्दर
   -राजीव गोयल

सूर्य से मिली
कई दिनों के बाद
धरती खिली
  -सुरंगमा यादव

गढ़ी है फांस
निकाल देगी शीघ्र
वक्त की सुई
  -सुरंगमा यादव

कन्या का जन्म
मरूस्थल  में जैसे
पानी का सोता
   -सुशील शर्मा

तुम आये तो
व्यथाएं लग रहीं
भूली कहानी
   -सुरंगमा यादव

कच्ची मिटटी है
संवार दो नेह से
बस दो प्यार
  -भावना सक्सेना

सागर तट
घर रेती का टूटा
हंसता बच्चा
   -तुकाराम खिल्लारे

उंची हवेली
उजाला छिटक के
कुटी  में  घुसा
  -सुरंगमा यादव

न तुम न मैं
कौन भूल पाया है
बीता समय
  -अमन चांदपुरी (श्रद्धा सुमन सहित )
पीर पर्वत
लांघ कर मिलेगा
सुख निर्झर
      -सुरंगमा यादव
उषा उतरी
सतरंगी डोली में
गीतिका झरी
      -पुष्पा सिन्धी
भाव प्रवाहल ल 
दूर बहा ले गया
मन तारिणी
        -सुरंगमा यादव
वक्त की मार
मुसीबत में मोम
अग्नि से प्यार
         -बलजीत सिंह
चाँद आया तो
उछल  पडा कैसे
देखो सागर
   -सुरंगमा यादव
नहीं ठिकाना
घर से जो निकले
टूट के पत्ते
   -सुरंगमा यादव
नारी न होती
पीडाओं को आश्रय
मिलता कहाँ
    -सुरंगमा यादव
दर्द या प्रेम
जीवन में समाये
ढाई आखर
    -सुरंगमा यादव
मिटटी के दिए
तमस के राज्य को
मिली चुनौती
   -सुशील शर्मा
नन्हे दिए ने
अँधेरे को भगाया
बिना डर के
   -मुकेश शर्मा
किया कमाल
दीपकों ने ठोंकी है
तमों से ताल
   -संतोष कुमार सिंह
धरा के दिए
जलते देख,जले
नभ के तारे
   -संतोष कुमार सिंह
दीपों का डेरा
पराजित अँधेरा
अमां की रात
   -सुरंगमा यादव
असंख्य दीप
जल में लहराते
तारों के बिम्ब
    -सुशील शर्मा


नवम्बर २०१९

शर्म न शंका
राजनीति में बजे
चोरों का डंका
   -बलजीत सिंह
माँ का आँचल
इतना निर्मल ज्यों
गंगा का जल
      -सूर्य नारायण गुप्त
दूध का क़र्ज़
माँ रोती बेटा भूला
अपना फ़र्ज़
    -सूर्य नारायण गुप्त
मन में -सोयी
जाग उठी स्वप्न  में
याद पुरानी
   -सुरंगमा यादव
प्रेम की लय
अनसुने स्वरों में
मन विलय
   -सुरंगमा यादव
ऊषा उतरी
सतरंगी डोली में
गीतिका झरी
   -पुष्पा सिंघी
भाव प्रवाह
दूर ले गया बहा
मन तरिणी
   -सुरंगमा यादव
पुरानी बस्ती
आज तक जो मेरी
बताती हस्ती
     -निगम राज़
खाता है ताने
पहने उलहाने 
गरीब बच्चा
   -राजीव गोयल
दानी  वे गुप्त
घावों पर नमक
छिडकें मुफ्त
   -संतोष कुमार सिंह
मीठी लोरियां
बाल किलकारियां
हंसा आँगन
  -पुष्पा सिंघी
पर्दे के पीछे
छिपकर लाडला
कहता ढूँढो
   -सुरंगमा यादव
बाल उमंग
हमारे समाज ने
की बदरंग
   -निगम राज
दुःख की पाती
जीवन भर बांची
फिर भी शेष
   -सुरंगमा यादव
आँखों से बहा
पा के सहानभूति
मन का दर्द
   -शिव डोयले
विकल मन
व्यथा की वीथियों में
ढूँढ़ता पथ
  -सुरंगमा यादव
शैशव छंद
मलय मकरंद
मुग्ध चमन
    पुष्पा सिन्धी
जल से भरे
बिन बरसे नैना
धीर ना धरे
   -सुरंगमा  यादव
वर्षा की झरी 
दरख्तों पे लटकी
बूंदों की लड़ी
   -राजीव गोयल
लो उड़ चली
बदली मनचली
हवा के संग
   -सुरंगमा यादव
है दिव्य सेतु 
धरा से नभ तक
इन्द्रधनुष
   -राजीव गोयल
चुरा के भागी
बगिया से सुगंध
चोरनी हवा
   -राजीव गोयल
होंगे फिर से
पतझड़ के बाद
दरख़्त हरे
   -राजीव गोयल
विदाई बेला -
झरा देहरी पार
हरसिंगार
   आभा खरे
मन की झील
रात भर चमका
यादों का चाँद
     -सुरंगमा यादव
माँ है कमाल
 वृद्धाश्रम  से पूछे
बेटे का हाल
  -अभिषेक जैन
बुने हमने
उधेड़े समय ने
कितने ख़्वाब
   -सुरंगमा यादव
लौटी चिड़ी माँ
हर्ष से झूम उठा
भूखा घोंसला
   - राजीव गोयल
बहता रहा
जीवन का दरिया
उमर  भर
   -प्रियंका
गहरे हुए
उदासियों के रंग
सांझ के संग
   -सुरंगमा यादव
चश्में के पार
अनुभव की पोथी
बाबा की आँखें
   -सुरंगमा यादव
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शनिवार, 17 अगस्त 2019

हिन्दी के श्रेष्ठ हाइकु - जुलाई २०१९

हिन्दी के श्रेष्ठ हाइकु -जुलाई २०१९ 
  
प्रेम तपस्या
जीवन तपोवन
मन साधक
        -सुरंगमाँ यादव
ढलती उम्र
यादों की लाठी थाम
चलता वक्त
      -शिव डोयले
मेघों की डोली
आई वर्षा दुल्हन
हवा कहार
     --राजीव गोयल
नन्ही सी बूंद
मेघ की दहलीज़
छोड़ के चली
        -सुरंगमा यादव
छोड़ पीहर
जब बारिश चली
रोई बदली
      -राजीव गोयल
बूढ़े माँ बाप
बासी अखबार
कोने में पड़े
     -राजीव गोयल
आषाढ़ मेघ
जल कलश लिए
पावस पर्व
       -नरेन्द्र श्रीवास्तव
घास पे पड़ी
मोतियों की चादरें
बूंदों की लड़ी
          -प्रियंका
चिड़िया उडी
हज़ार बार देखा
पीछे न मुड़ी
       -निगम राज़
खुश थे बड़े
सपनों में थे खोए
जागे तो रोए
      -सुरंगमा यादव
जा बसे दूर
छोड़  गए आँखों में 
यादें पुरानी
     -शिव डोयले
वंशी की तान
तुमसे मिलकर
छेड़ते प्राण
     -सुरंगमा यादव
सूरज उगा
कर सूर्य नमन
दीपक बुझा
       -राजीव गोयल
नियत सच्ची
मेहनत की रोटी
लगती अच्छी
        -बलजीत सिंह
बारिश आई
ठहरा हुआ पानी
ले अंगडाई
       -बलजीत सिंह
मस्त हवाएं
सागर की लहरें
तुम्हें बुलाएं
      -निगम राज़
गा रहा बांस
मिल हवा के संग     
सुरीला गान
       -राजीव गोयल
प्रत्येक पौधा
पर्यावरण हेतु
बना है योद्धा
      -बलजीत सिंह
बरसे मेघ
तृप्त हो रहीं जड़ें
झूमते पेड़
         -सुरंगमा यादव
अन्धेरा घर
जलता विदेश में
कुल दीपक
         -राजीव गोयल
कभी कभी तो
आईना देखा करो
दिखाने वालो
       -सुरंगमा यादव
अन्धेरा रोकें
बन प्रहरी खड़े
द्वार पर  दिये
        -राजीव गोयल
 दरक गया
यथार्थ के घूंसे से     
भ्रम का कांच
        -अभिशेख जैन
मेरे काव्य में
नाचते मंद मंद
शब्दों के छंद
          -निगम राज़
थका  सूरज
पहार से लुढ़क
नदी में डूबा
        -राजीव गोयल
यादें थीं सोयी
सावनी फुहारों ने
आ के जगाया
        -सुरंगमा यादव
भूखे घरों में
वादों की हांडी चढी
ताकते चूहे
        -रमेश कुमार सोनी
आसमान में
घटाओं का पहरा
सूर्य सहमा
        -सुरंगमा यादव
मेघ गर्जन
चपला की चमक
डरता मन
        -शिव डोयले 
बड़े विचित्र
मन-केनवास पे
यादों के चित्र 
         -सुरंगमा यादव

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गुरुवार, 27 जून 2019

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु (जून माह)

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु (जून माह, २०१९)

ग्रीष्म आतंक 
सूखा नल का कंठ 
व्याकुल प्यास 
      -सुरंगमा यादव 
छाया उल्लास 
भोर का आगमन 
सुमन हास 
      -सुरंगमा यादव
नयन घन
नव पौध  उगाने
आतुर मन
       -पुष्पा सिन्धी
माँ मिल गई
हुई ममतामयी
ज़िंदगी नई
     -निगम 'राज़'
झूठ के पैर
घुटने टिका कर
चलता सच
      -सुरंगमा यादव
धरा वक्ष पे
चितकबरी धूप
चित्र उकेरे
       -राजीव गोयल
एक तितली
हमलावर दौर
सहमे पंख
     -सुशील शर्मा
थका नहीं है
दे अब ही आसरा
बूढा पीपल
       -(पिता) राजीव गोयल
कर दी नई
पुराने कागज़ों ने
यादें तुम्हारी
         -राजीव गोयल
जर्जर घर
नया रंग रोशन
यादें पुरानी
       -पुष्पा  सिन्धी
नन्हीं दुनिया
पिता है आसमान
वसुधा सी माँ
       -सुशील शर्मा
पढ़ा न लिखा
ज्ञानी सी सीख देता
कबीर दिखा
       -शिव डोयले
वक्त घूमता
कल, आज से कल
ज़िंदगी खेल
        -रेश कुमार सोनी
याद ढूँढ़ती
तारों के देश तुझे
कब आओगे
      -रमेश कुमार सोनी
पाखी का घर
चार दिन बसेरा
यादें रहतीं
       -रमेश कुमार सोनी
हार रंगों का
बाँध रही किरणें
 मेघा के द्वार
      -राजिव गोयल
योग दिवस
अखबारी सुर्खियाँ
कल रद्दी में
       -पुष्पा सिन्धी
स्वप्नों में खोई
रजनी अलसाई
प्रिया न सोई
       सुरंगमा यादव
मेघ आ जा रे
आई मिलन ऋतु
धरा पुकारे
     -सुरंगमा यादव 

रविवार, 2 जून 2019

श्रेष्ठ हिंसी हाइकु मई २०२०

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु (मई, २०२०)

मजबूर हूँ
इस धरा पर मैं
मज़दूर हूँ
     -भीम प्रजापति
कड़वे मीठे
शब्द समेटे कोष
चुनाना हमें
     -सुरंगमा यादव
मेघों की डोली
बारिश दुल्हनियां
हवा कहार
      -राजीव गोयल
दौड़ लगाती
ज़िंदगी की रफ़्तार
आगे तो पीछे
       -शिव डोयले
परम्पराएं
जो पाँव उलझाएँ
उन्हें क्यों ढोएँ ?
      -सुरंगमा यादव
जीवन  शेष
हर क्षण विशेष
जिओ जी भर
       -सुरंगमा यादव
मन का सूप
फटके जीवन की
छाँव व धूप
      सूर्य नारायण गुप्त
महकी धरा
आकाश से थोड़ा सा
पानी जो गिरा
        -राजीव गोयल
माँ का आँचल
इतना निर्मल ज्वूँ
गंगा का जल
        -सूर्य नारायण गुप्त
और न छोर
आकाश सा विशाल \
माँ का दुलार
        -राजीव गोयल
ठोकर लगी
माँ ने कहा, उठो भी
दौड़ पडा मैं
       -रमेश कुमार सोनी
जन्मों तक भी
कोई चुका न पाया
दूध का कर्ज़
        -वलजीत  सिंह
पसरी पडी
चितकबरी धूप
अंगना मेरे
        -राजीव गोयल
मन निहार
खुशियों का विस्तार
है आस-पास
      -सुरंगमा यादव
सिखा रहे हैं
सही सबक़ मुझे
ग़लत लोग
      -राजीव गोयल
कहती राहें
सबके लिए खुलीं
हमारी बाहें
      -सुरंगमा यादव
महकी धरा
आकाश से थोड़ा सा
पानी जो गिरा
       -राजीव गोयल
बहता पानी
रोकने की खातिर
टोकती नानी
    -निगम 'राज'
बना ही लेते
पानी और जवानी
अपने रस्ते
      -सुरंगमा यादव
दुष्ट मनई
जहां रही तहवाँ
करी कनई
     (भोजपुरी) -भीम प्रजापति
भीगता बच्चा
छाते तले बचाता
कागज़ी नाव
      -राजीव गोयल
मन भुवन
स्मृति का संकीर्तन
करे जोगन
        -पुष्पा सिन्धी 
गुज़री हवा
जो बासों के वन से
बजी सीटियाँ
       -राजीव गोयल
कुरेदे जख्म
सांत्वना के बहाने
वाह, ज़माने
      -सुरंगमा यादव

---------------------समाप्त
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बुधवार, 1 मई 2019

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु  - अप्रेल माह

मृत्यु अटल
आज नहीं तो कल
व्यर्थ विकल
      -सुरंगमा यादव
मैं या मय  का
होते खतरनाक
दोनों ही नशे
      -राजीव गोयल
अहं पर्वत
बौने लगते सारे
अपने आगे
       -सुरंगमा यादव
प्रत्येक पौधा
पर्यावरण हेतु
बना है योद्धा
        -बलजीत सिंह
हल्की फुहार
सौन्दर्य का दर्पण
देती निखार
       बलजीत सिंह
श्यामा लावण्य
नालफूल का हीरा
मेघ में चाँद
       -विभा श्रीवास्तव
मिटी  दिलासा
जगी दिल में आशा
मिटी  निराशा 
       -सुरंगमा यादव     
चैत  की सांझ
अनमना मौसम
एकाकी चाँद
      पुष्पा सिन्धी
जीवन व्यथा
लिखने जब बैठी
बनी कविता
       -सुरंगमा यादव
गहरी नदी
सूख के रेत हुई
मिट्टी पलीद
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
टालते काम
बीते कितने कल
आया न कल
       -सुरंगमा यादव
अंधी  है दौड़
कैसे कितना पा लूँ
मची है होड़
       सुरंगमा यादव
गर्म जो हुआ
सूरज का तंदूर
पकी फसलें
     -राजीव गोयल
मोती ओस के
दूब के बदन से
गर्मी  ने लूटे
       -राजीव गोयल
बड़े मकान
शो पीस की तरह
सजे हैं रिश्ते
        -सुरंगमा यादव
आएगा बेटा
वृद्ध है आश्रम में
प्रतीक्षारत
       -राजीव गोयल
हवा न आग
उम्मीदों के सहारे
जले चराग
      -बलजीत सिंह
दूर से दिखे
मंदिर का चिराग
आशा का पुंज
      -प्रियंका वाजपेयी
खुश हूँ मैं कि
आधुनिक युग में
ज़मीन से जुडी
        -प्रियंका 'अद्वैता'
प्रेम की कमी
मन की धरा पर
दरारें पडीं
       -सुरंगमा यादव     
समेटती हूँ
नींद के कतरों को
पूरी ही रात
       -प्रियंका वाजपेयी
पाँव में छाले
अपनी ही शर्तों पर
जिया है कोई
       -प्रियंका 'अद्वैता'
मजबूर हैं
इस धरा पे हम
मज़दूर हैं
     भीम प्रजापति
     (एक मई, मज़दूर दिवस )

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---------------------------------------समाप्त


रविवार, 31 मार्च 2019

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - मार्च २०१९

आतंकी भीड़
कैसी हवाएं चलीं
उजड़े नीड़
      -पुष्पा सिन्धी 
शांत है हवा
धीरे से घूँघट को
उठाती हवा
      -बी पी प्रजापति
रंगने लगे
फागुन के संग में
टेसू वन के
     -राजीव  गोयल
महुआ फूले
फागुन राग गूँजे
रंगों का नशा
      राजीव गोयल (?)
निंदिया बोए
अंखियों के खेतों में
ख़्वाब फसल
        राजीव गोयल
पलाश खिले
पूरा का पूरा गर्व
धूप का झरे
        -तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे
मैं न निभाऊँ
झूठ की परिपाटी
दुर्गम घाटी
       -पुष्पा सिन्धी
नारी की च्यथा
द्रोपदी मीरा राधा
सीता की कथा
        सूर्य नारायण गुप्त
बहुत हुआ
बंद करो अब तो
अग्निपरीक्षा
       -सुरंगमा यादव
हिन्द की नारी
कठिन समय में
कभी न हारी
        -सुरंगमा यादव
काबू मे रख
ख्वाहिशों की लगाम
तू ही सारथी
       -राजीव गोयल
कोमल पांव
परम्परा की बेड़ी
पराया गाँव
      पुष्पा सिन्धी
पराया देश
ढूँढे अपनापन
नई  दुल्हन
     -सुरंगमा यादव
ये शैतानियाँ
बच्चों की भर लाईं
किलकारियां
     निगम राज
उमड़ता है
चाहतों का सागर
चाँद निष्ठुर
      -सुरंगमा यादव
उड़ा अबीर
गोरी का मन अब
धरे न धीर
     सुरंगमा यादव
दिन गुलाबी
वासंती बयार में
रात शराबी
       -सूर्य नारायण गुप्त 
दीपक जला
डर कर अन्धेरा
पैरों में गिरा
      राजीव गोयल
झूठ का शोर
सच खामोश हुआ
भीड़ ने ठगा
       रमेश कुमार सोनी
होली के रंग
प्रियतम के संग
उठे उमंग
       -डा. रंजना वर्मा
फागुन मास
करने को स्वागत
खिला पलाश
        राजीव गोयल
हलचल है
मन के भीतर भी
कोलाहल है
        -निगम 'राज़'
होली की भोर
छिपती फिरे गोरी
मिले न ठौर
        सुरंगमा यादव
छाई कंगाली
क्या होली क्या दीवाली
खाली है थाली
        सुरंगमा यादव
होली में हो ली
साजन संग आज
गालों पे रोली
          भीम प्रजापति
चंग की थाप
गोरी का मुख लाल
फींका गुलाल
         पुष्पा सिन्धी
राधा अनंग
रँगी कृष्ण के रंग
गोपियाँ दंग
        निगम 'राज़'
खोखली हँसी
खनक कह रही
बर्तन खाली
       सुर्रंगामा यादव
तिनका गिरा
जो आँखों में मेरी
टूटा गुरूर
      -राजीव गोयल
दूध नहाई
तारों की चूनरी ले
चांदनी आई
      -सूर्य नारायण गुप्त
जब विचार
बनते व्यवहार
स्वप्न साकार
        सुरंगमा यादव
होली तो हो ली
बता मन की गांठें
क्या तूने खोलीं
       -राजीव गोयल
गिने पृष्ठ हैं
गिनती है अज्ञात
जीवन पोथी
      -सुरंगमा यादव
पात्रों का मेला
जीवन रंगमंच
है अलबेला
     पुष्पा सिन्धी
झूठी  कसमें
सत्य का उपहास
न्याय की आस
     -सुरंगमा यादव
--------------------------------
----------------------समाप्त








शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

फरवरी माह के श्रेष्ट हाइकु


मावसी रात
बिखेरते  चांदनी
जूही के फूल
     -राजीव गोयल
विजय पथ
धूमिल कर जाएं
हारी आशाएं
      सुरंगमा यादव
होतेही भोर
चुगें धूप के हंस
ओस के मोती
      -राजीव गोयल
अंतर मन में
कितनी कवितायेँ
लिखते आंसू
        -सुरंगमा यादव
रिश्ता मंहगा
जीवन के बाज़ार
अकेला लौटा
       -रमेश कुमार सोनी
जीवन सत्ता
सुख-दुःख के साथ
गठबंधन
       सुरंगमा यादव
छोड़ा जो साथ
पतंग की डोर का
लूट ली गई
        -राजीव गोयल
लिए सलाई
दिन बुनता रहा
कल के ख़्वाब
       -शिव डोयले
कभी न पटे
प्रीत-नींद सौतन
भूखे ही सोए
      -रमेश कुमार सोनी
शाखों में झूमे
वासंती गुजरिया
मन बहके
       रमेश कुमार सोनी
ऋतु बसंत
देती यह आनंद
हमें अनंत
       -बलजीत सिंह
ऋतु बसंत
खोज रहा मन
अपना कंत
       -भीम प्रसाद प्रजापति
माघ पंचमी
ऋतुराज पधारे
हर्षित सारे
      -सुरंगमा यादव
जीवन-नाद
भोर का आना तय
रात के बाद
      -पुष्पा सिन्धी
प्रेम कस्तूरी
मन मृग भीतर
ढूँढे बाहर
      -सुरंगमा यादव
ले प्रतिशोध
करना आचमन
शत्रु लहू से
      -डा, रंजना वर्मा
उठा उबाल
विछिन्न कर देंगे
शत्रु का भाल
      -सुरंगमा यादव
शब्दों के बीज
कागजके खेतों पे
उगाते गीत
       -राजीव गोयल
अश्रु से भरी
दर्द नदी बहती
बंजर मन
      रमेश कुमार सोनी     
पूरन मास
विराहियों में उठी
मिलन प्यास
      -सूर्य किरण सोनी
हृदय चीर
नयनों से निकली
रिश्तों की पीर
        -सूर्यकिरण सोनी
बहरा हुआ \
चिल्ल पों शहर में
रोज़  तमाशा
    -रमेश कुमार सोनी
जीत के जंग
सरहद से लौटे
सिर्फ बदन
       -राजीव गोयल 
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समाप्त 

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

जनवरी २०१९ के श्रेष्ठ हाइकु

जनवरी २०१९ के श्रेष्ठ हाइकु

नव वर्ष यूँ
नव निर्मित घर
गृह प्रवेश
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
मन दीवारें
क्रोध घृणा के जाले
चलो निकालें
      सुरंगमा यादव
सूरज हांफे
जाड़े में छुप कर
ठण्ड से काँपे
         -सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य'
धीमा ज़हर
है संवादहीनता
मरते रिश्ते
      सुरंगमा यादव
एक ही छत
कमरों की तरह
बंटे हैं मन
      -सुरंगमा यादव
सूरज डरे
कोहरे के भय से
कैसे उतरे
      सूर्य नारायण गुप्त ;सूर्य'
गुलाबी सर्दी
ओढ़ स्वेटर शाल
हुई गुलाबी
        -शिव डोयले
फुटपाथ पे
ढूँढ़ रही शिकार
सर्दी डायन
      -राजीव गोयल
व्यथित जन
लगते हैं मुझको
यों परिजन
       - रमश कुमार सोनी
विश्वास रहा
ह्रदय में उसका
आवास रहा
      -निगम 'राज़'
सांझ पुकारे
सूर्य शर्म से लाल
चाँद  जो झांके
       रमेश कुमार सोनी
दुःख का वेग
सांत्वना के तटों ने
किया मद्धिम
        -सुरंगमा यादव
कुम्भ का मेला
डुबकी लगा रहे
प्रवासी पक्षी
      -विभा श्रीवास्तव
लालच खोंटी
पूर्ण पाने में खो दी
अधूरी रोटी
     सोनी जी
संक्रांति पर्व
टूटेगा अब शीघ्र
शीत का दर्प
       -सुरंगमा यादव
जीवन क्या है !
उडी, चढी, लो कटी
गिरी पतंग
        -सुरंगमा यादव
निहाँ निशां थे
इश्क भरे दिल में
कई आस्मा थे
      (निहां - छिपे हुए)
    -निगम 'राज़'
हुई क्या भूल?
सींचा प्रेम जल से
उगा बबूल
     -सुरंगमा यादव
सर्दी की रात
क्यों उतरा झील में
सोचता चाँद
     -राजीव गोयल
दूर या आस
हर पल आभास
तुम हो साथ
     -सुरंगमा यादंव
चुरा के भागी
सुगंध बगिया की
चोरनी हवा
      -राजीव गोयल
रोक लेते हैं
धूप मेरे हिस्से की
ऊंचे मकान
      -राजीव गोयल
प्रेम आसव
लिए लिए फिरती
हवा बासंती
       -सुरंगमा यादव
गिरते जाएं
ज़िंदगी शजर से
उम्र के साल
       -राजीव गोयल
हुई सयानी
ओढ़े चूनर धानी
झूमें सरसों
       -सुरंगमा यादव
ख्याति अमर
संग्रहालय बना
पुश्तैनी घर
     -पुष्पा सिन्धी
मीत मिलाप
चहुँ दिश बिखरा
प्रीत पराग
      -सुरंगमा यादव
पत्र ओ बांचे
अम्बर ने वासंती
धरती नाचे
     -निगम 'राज़'
घूँघट हिला
वसंत पद-चाप
ह्रदय खिला
       -पुष्पा सिन्धी
ज़िंदगी जी ली
पता ही नहीं चला
उम्र गुज़री
        -निगम 'राज़'
आया बसंत
फिर से बौरा गए
संत महंत
      -अमन चांदपुरी
जो हैं वंचित
उनकी भी किंचित
सुधि लें हम
        -सुरंगंमा यादव
बिस्तर पर
बदले करबट
रात अकेली
        -अमन चाँदपुरी
नियत सच्ची
मेहनत की रोटी
लगती अच्छी
      बलजीत सिंह
जीत ली जंग
लौटे बेजान तन
हारी ज़िंदगी
     -राजीव गोयल
घना कोहरा
आँगन में पसरा
सूर्य कहाँ हो
      पुष्पा सिन्धी
ताउम्र रोई
माँ की याद दिल में
कभी न सोई
        -निगम 'राज़'
फैलाने लगी
सिमटे पाँव, धूप
गुनगुनाई
        सुरंगमा यादव 
सजाके तारे
रजनी की जुल्फों में
सो गया रवि
      -राजीव गोयल
नश्वर तन
समय आरी, काटे
वृक्ष सघन
       -पुष्पा सिन्धी
प्रेम की पीर
पहाड़ भी रो देता
पवित्र नीर 
      -रमेश कुमार सोनी

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समाप्त

     
  








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मंगलवार, 1 जनवरी 2019

दिसंबर माह के श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु

तुम हो मेरे
रेत पे जैसे कोई
चित्र उकेरे
       -सुरंगमा यादव
सर्दी में गर्मी
बुनती सलाई पे
हमारी अम्मा
       -राजीव गोयल
घायल किया
और ज़िंदा भी रखा
उम्मीदों ने ही
        -राजीव गोयल
सत्य का पाँव
भटक गया आ के
झूठ के गाँव
        -सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
ढील पे ढील
फँस गई पेंच में
कहीं पतंग
       -सुरंगमा यादव
सावन मन
शब्द हथेली पर
रचें हाइकु
       -नरेन्द्र श्रीवास्तव
काव्य के वन
महकते हाइकु
चन्दन बन
       -अभिषेक जैन
जागा संसार
गंध बाँट सो गया
हरसिंगार
      - डा. शिव जी श्रीवास्तव
उम्र पोनी से
बुने मृत्यु चादर
काल पुरुष
       - डा. शिव जी श्रीवास्तव
मिले सत्कार
जीवन में भर लो
ऐसे संस्कार
        बलजीत सिंह
पूरब दिशा
सुना रहा सूरज
भोर के गीत
      -राजीव गोयल
ठण्ड की रात
अंधेरी पगडंडी
सूर्य की खोज
     सुशील शर्मा
लंबा शैशव
छोड़ हाइकु हुआ
अब तो युवा
      -सुरंगमा यादव
लव्जों की नदी
रचती इतिहास
पढ़ती सदी
       -निगम 'राज़'
शीत कांटे-सी
मौसम गुलाब -सा
मन तितली
       -नरेन्द्र श्रीवास्तव
शब्द वीरान
खोखले से, खामोश
झरते पत्ते
      -सुशील शर्मा
स्वेद की स्याही
श्रम का महाकाव्य
रचे किसान
        -सुरंगमा यादव
ढूँढे शिकार
गरीबों की बस्ती में
सर्दी की रात
      -राजीव गोयल
अन्धेरा घोर
लाएंगे मिलकर
सुहानी भोर
      -सुरंगमा यादव
चैन से जिया?
या सुकून से मरा ?
बता तो सही ....
      -प्रियंका वाजपेयी
एकाकीपन
उद्वेलित रहता
सागर मन
      -सुरंगमा यादव
सन्नाटा बोला
शोर ने छुपाया जो
वही सच था
       -प्रियंका वाजपेयी
मन भारी था
बरस पड़ा वह
बादल जैसा
       -डा. सुरेन्द्र वर्मा
अकड़े तुम
हम भी रहे तने
बात क्या बने
      -सुरंगमा यादव
गृह कलह
बिखरे ब्लॉक्स को
जोड़े बालक
      -अभिषेक जैन
हंसी उड़ा लो
नहीं रहेंगे जब
तब पूछोगे
     -डा.सुरेन्द्र वर्मा
नोक न तीर
कलेजा देती चीर
चुभती शीत
       -सुरंगमा यादव
हवाएं सर्द
पेड़ों पर टंगे पत्ते
हो गए ज़र्द
      -राजीव गोयल
मिलिट्री स्कूल
छोटे का फ़ार्म भरे
शहीद की माँ
      -अभिषेक जैन
शीत ओढ़ के
फुटपाथ पे सोया
फिर न जागा
       -सुरंगमा यादव
जल से रिक्त
कटि पर गागर
लम्बी कतार
       -तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे
वन ढूँढ़ते
मोर गाँव में आया
बिसरा नाच
       तुकाराम पुंडरिक खिल्लारे 
साल सरका
देता गया स्मृतियाँ
बांचते हम
       प्रियंका वाजपेयी
हुई अलग
जब पेड़ से पत्ती
कुचली गई
      -राजीव गोयल
कोरा कागज़
तनहा जीवन सा
अक्षर जोहे
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
राख में उगे
आशा के दूब हरे
श्रम का भाग्य
       -रमेश कुमार सोनी
देखो हाइकु
हथेली पर बैठा
बटरफ्लाय
      -तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे
मोह की माया
अहसास प्यार का
उभर आया
      -निगम 'राज़'
पत्ता टूटता
आशा और निराशा
भूत भविष्य
       -शिव डोयले
धूल हटेगी
फिर से निखरेंगे
मलिन पात
     -सुंरंगमा यादव
उधड़ गई
सी लूंगा फिर से
नई  ज़िंदगी
      -राजीव गोयल
खिली सेवंती
लगन मंडल पे
आव्या की छाया
      विभारानी शीवास्तव
* 'आव्या' - सुबह की पहली किरण
भाव निश्छल
रख ह्रदय तल
मिलेगा फल
       -सुरंगमा यादव
ओढ़ रजाई
मीठे सपने देखे
निशा बावरी
        -शिव डोयले
है खिली हुई
सुख की भोर नई
जागो तो सही
       -सुरंगमा यादव
जीवन संध्या
एकाकीपन साथ
शिथिल गात
       -सुरंगमा यादव
सर्द आलम
हम हुए मुश्ताक
धूप बेज़ार
      डा. सुरेन्द्र वर्मा
गुज़रा साल
भर गया तिजोरी
यादों से फिर
       -राजीव गोयल
कहीं तो होगी
नैराश्य परिणति
योग या भोग
       -सुरंगमा यादव
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समाप्त