श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - अप्रेल माह
मृत्यु अटल
आज नहीं तो कल
व्यर्थ विकल
-सुरंगमा यादव
मैं या मय का
होते खतरनाक
दोनों ही नशे
-राजीव गोयल
अहं पर्वत
बौने लगते सारे
अपने आगे
-सुरंगमा यादव
प्रत्येक पौधा
पर्यावरण हेतु
बना है योद्धा
-बलजीत सिंह
हल्की फुहार
सौन्दर्य का दर्पण
देती निखार
बलजीत सिंह
श्यामा लावण्य
नालफूल का हीरा
मेघ में चाँद
-विभा श्रीवास्तव
मिटी दिलासा
जगी दिल में आशा
मिटी निराशा
-सुरंगमा यादव
चैत की सांझ
अनमना मौसम
एकाकी चाँद
पुष्पा सिन्धी
जीवन व्यथा
लिखने जब बैठी
बनी कविता
-सुरंगमा यादव
गहरी नदी
सूख के रेत हुई
मिट्टी पलीद
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
टालते काम
बीते कितने कल
आया न कल
-सुरंगमा यादव
अंधी है दौड़
कैसे कितना पा लूँ
मची है होड़
सुरंगमा यादव
गर्म जो हुआ
सूरज का तंदूर
पकी फसलें
-राजीव गोयल
मोती ओस के
दूब के बदन से
गर्मी ने लूटे
-राजीव गोयल
बड़े मकान
शो पीस की तरह
सजे हैं रिश्ते
-सुरंगमा यादव
आएगा बेटा
वृद्ध है आश्रम में
प्रतीक्षारत
-राजीव गोयल
हवा न आग
उम्मीदों के सहारे
जले चराग
-बलजीत सिंह
दूर से दिखे
मंदिर का चिराग
आशा का पुंज
-प्रियंका वाजपेयी
खुश हूँ मैं कि
आधुनिक युग में
ज़मीन से जुडी
-प्रियंका 'अद्वैता'
प्रेम की कमी
मन की धरा पर
दरारें पडीं
-सुरंगमा यादव
समेटती हूँ
नींद के कतरों को
पूरी ही रात
-प्रियंका वाजपेयी
पाँव में छाले
अपनी ही शर्तों पर
जिया है कोई
-प्रियंका 'अद्वैता'
मजबूर हैं
इस धरा पे हम
मज़दूर हैं
भीम प्रजापति
(एक मई, मज़दूर दिवस )
---------------------------------------------------------
---------------------------------------समाप्त
मृत्यु अटल
आज नहीं तो कल
व्यर्थ विकल
-सुरंगमा यादव
मैं या मय का
होते खतरनाक
दोनों ही नशे
-राजीव गोयल
अहं पर्वत
बौने लगते सारे
अपने आगे
-सुरंगमा यादव
प्रत्येक पौधा
पर्यावरण हेतु
बना है योद्धा
-बलजीत सिंह
हल्की फुहार
सौन्दर्य का दर्पण
देती निखार
बलजीत सिंह
श्यामा लावण्य
नालफूल का हीरा
मेघ में चाँद
-विभा श्रीवास्तव
मिटी दिलासा
जगी दिल में आशा
मिटी निराशा
-सुरंगमा यादव
चैत की सांझ
अनमना मौसम
एकाकी चाँद
पुष्पा सिन्धी
जीवन व्यथा
लिखने जब बैठी
बनी कविता
-सुरंगमा यादव
गहरी नदी
सूख के रेत हुई
मिट्टी पलीद
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
टालते काम
बीते कितने कल
आया न कल
-सुरंगमा यादव
अंधी है दौड़
कैसे कितना पा लूँ
मची है होड़
सुरंगमा यादव
गर्म जो हुआ
सूरज का तंदूर
पकी फसलें
-राजीव गोयल
मोती ओस के
दूब के बदन से
गर्मी ने लूटे
-राजीव गोयल
बड़े मकान
शो पीस की तरह
सजे हैं रिश्ते
-सुरंगमा यादव
आएगा बेटा
वृद्ध है आश्रम में
प्रतीक्षारत
-राजीव गोयल
हवा न आग
उम्मीदों के सहारे
जले चराग
-बलजीत सिंह
दूर से दिखे
मंदिर का चिराग
आशा का पुंज
-प्रियंका वाजपेयी
खुश हूँ मैं कि
आधुनिक युग में
ज़मीन से जुडी
-प्रियंका 'अद्वैता'
प्रेम की कमी
मन की धरा पर
दरारें पडीं
-सुरंगमा यादव
समेटती हूँ
नींद के कतरों को
पूरी ही रात
-प्रियंका वाजपेयी
पाँव में छाले
अपनी ही शर्तों पर
जिया है कोई
-प्रियंका 'अद्वैता'
मजबूर हैं
इस धरा पे हम
मज़दूर हैं
भीम प्रजापति
(एक मई, मज़दूर दिवस )
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---------------------------------------समाप्त