फरवरी माह के श्रेष्ट हाइकु
मावसी रात
बिखेरते चांदनी
जूही के फूल
-राजीव गोयल
विजय पथ
धूमिल कर जाएं
हारी आशाएं
सुरंगमा यादव
होतेही भोर
चुगें धूप के हंस
ओस के मोती
-राजीव गोयल
अंतर मन में
कितनी कवितायेँ
लिखते आंसू
-सुरंगमा यादव
रिश्ता मंहगा
जीवन के बाज़ार
अकेला लौटा
-रमेश कुमार सोनी
जीवन सत्ता
सुख-दुःख के साथ
गठबंधन
सुरंगमा यादव
छोड़ा जो साथ
पतंग की डोर का
लूट ली गई
-राजीव गोयल
लिए सलाई
दिन बुनता रहा
कल के ख़्वाब
-शिव डोयले
कभी न पटे
प्रीत-नींद सौतन
भूखे ही सोए
-रमेश कुमार सोनी
शाखों में झूमे
वासंती गुजरिया
मन बहके
रमेश कुमार सोनी
ऋतु बसंत
देती यह आनंद
हमें अनंत
-बलजीत सिंह
ऋतु बसंत
खोज रहा मन
अपना कंत
-भीम प्रसाद प्रजापति
माघ पंचमी
ऋतुराज पधारे
हर्षित सारे
-सुरंगमा यादव
जीवन-नाद
भोर का आना तय
रात के बाद
-पुष्पा सिन्धी
प्रेम कस्तूरी
मन मृग भीतर
ढूँढे बाहर
-सुरंगमा यादव
ले प्रतिशोध
करना आचमन
शत्रु लहू से
-डा, रंजना वर्मा
उठा उबाल
विछिन्न कर देंगे
शत्रु का भाल
-सुरंगमा यादव
शब्दों के बीज
कागजके खेतों पे
उगाते गीत
-राजीव गोयल
अश्रु से भरी
दर्द नदी बहती
बंजर मन
रमेश कुमार सोनी
पूरन मास
विराहियों में उठी
मिलन प्यास
-सूर्य किरण सोनी
हृदय चीर
नयनों से निकली
रिश्तों की पीर
-सूर्यकिरण सोनी
बहरा हुआ \
चिल्ल पों शहर में
रोज़ तमाशा
-रमेश कुमार सोनी
जीत के जंग
सरहद से लौटे
सिर्फ बदन
-राजीव गोयल
-------------------------------------
----------------------------------------
समाप्त
मावसी रात
बिखेरते चांदनी
जूही के फूल
-राजीव गोयल
विजय पथ
धूमिल कर जाएं
हारी आशाएं
सुरंगमा यादव
होतेही भोर
चुगें धूप के हंस
ओस के मोती
-राजीव गोयल
अंतर मन में
कितनी कवितायेँ
लिखते आंसू
-सुरंगमा यादव
रिश्ता मंहगा
जीवन के बाज़ार
अकेला लौटा
-रमेश कुमार सोनी
जीवन सत्ता
सुख-दुःख के साथ
गठबंधन
सुरंगमा यादव
छोड़ा जो साथ
पतंग की डोर का
लूट ली गई
-राजीव गोयल
लिए सलाई
दिन बुनता रहा
कल के ख़्वाब
-शिव डोयले
कभी न पटे
प्रीत-नींद सौतन
भूखे ही सोए
-रमेश कुमार सोनी
शाखों में झूमे
वासंती गुजरिया
मन बहके
रमेश कुमार सोनी
ऋतु बसंत
देती यह आनंद
हमें अनंत
-बलजीत सिंह
ऋतु बसंत
खोज रहा मन
अपना कंत
-भीम प्रसाद प्रजापति
माघ पंचमी
ऋतुराज पधारे
हर्षित सारे
-सुरंगमा यादव
जीवन-नाद
भोर का आना तय
रात के बाद
-पुष्पा सिन्धी
प्रेम कस्तूरी
मन मृग भीतर
ढूँढे बाहर
-सुरंगमा यादव
ले प्रतिशोध
करना आचमन
शत्रु लहू से
-डा, रंजना वर्मा
उठा उबाल
विछिन्न कर देंगे
शत्रु का भाल
-सुरंगमा यादव
शब्दों के बीज
कागजके खेतों पे
उगाते गीत
-राजीव गोयल
अश्रु से भरी
दर्द नदी बहती
बंजर मन
रमेश कुमार सोनी
पूरन मास
विराहियों में उठी
मिलन प्यास
-सूर्य किरण सोनी
हृदय चीर
नयनों से निकली
रिश्तों की पीर
-सूर्यकिरण सोनी
बहरा हुआ \
चिल्ल पों शहर में
रोज़ तमाशा
-रमेश कुमार सोनी
जीत के जंग
सरहद से लौटे
सिर्फ बदन
-राजीव गोयल
-------------------------------------
----------------------------------------
समाप्त