गुरुवार, 27 जून 2019

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु (जून माह)

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु (जून माह, २०१९)

ग्रीष्म आतंक 
सूखा नल का कंठ 
व्याकुल प्यास 
      -सुरंगमा यादव 
छाया उल्लास 
भोर का आगमन 
सुमन हास 
      -सुरंगमा यादव
नयन घन
नव पौध  उगाने
आतुर मन
       -पुष्पा सिन्धी
माँ मिल गई
हुई ममतामयी
ज़िंदगी नई
     -निगम 'राज़'
झूठ के पैर
घुटने टिका कर
चलता सच
      -सुरंगमा यादव
धरा वक्ष पे
चितकबरी धूप
चित्र उकेरे
       -राजीव गोयल
एक तितली
हमलावर दौर
सहमे पंख
     -सुशील शर्मा
थका नहीं है
दे अब ही आसरा
बूढा पीपल
       -(पिता) राजीव गोयल
कर दी नई
पुराने कागज़ों ने
यादें तुम्हारी
         -राजीव गोयल
जर्जर घर
नया रंग रोशन
यादें पुरानी
       -पुष्पा  सिन्धी
नन्हीं दुनिया
पिता है आसमान
वसुधा सी माँ
       -सुशील शर्मा
पढ़ा न लिखा
ज्ञानी सी सीख देता
कबीर दिखा
       -शिव डोयले
वक्त घूमता
कल, आज से कल
ज़िंदगी खेल
        -रेश कुमार सोनी
याद ढूँढ़ती
तारों के देश तुझे
कब आओगे
      -रमेश कुमार सोनी
पाखी का घर
चार दिन बसेरा
यादें रहतीं
       -रमेश कुमार सोनी
हार रंगों का
बाँध रही किरणें
 मेघा के द्वार
      -राजिव गोयल
योग दिवस
अखबारी सुर्खियाँ
कल रद्दी में
       -पुष्पा सिन्धी
स्वप्नों में खोई
रजनी अलसाई
प्रिया न सोई
       सुरंगमा यादव
मेघ आ जा रे
आई मिलन ऋतु
धरा पुकारे
     -सुरंगमा यादव 

रविवार, 2 जून 2019

श्रेष्ठ हिंसी हाइकु मई २०२०

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु (मई, २०२०)

मजबूर हूँ
इस धरा पर मैं
मज़दूर हूँ
     -भीम प्रजापति
कड़वे मीठे
शब्द समेटे कोष
चुनाना हमें
     -सुरंगमा यादव
मेघों की डोली
बारिश दुल्हनियां
हवा कहार
      -राजीव गोयल
दौड़ लगाती
ज़िंदगी की रफ़्तार
आगे तो पीछे
       -शिव डोयले
परम्पराएं
जो पाँव उलझाएँ
उन्हें क्यों ढोएँ ?
      -सुरंगमा यादव
जीवन  शेष
हर क्षण विशेष
जिओ जी भर
       -सुरंगमा यादव
मन का सूप
फटके जीवन की
छाँव व धूप
      सूर्य नारायण गुप्त
महकी धरा
आकाश से थोड़ा सा
पानी जो गिरा
        -राजीव गोयल
माँ का आँचल
इतना निर्मल ज्वूँ
गंगा का जल
        -सूर्य नारायण गुप्त
और न छोर
आकाश सा विशाल \
माँ का दुलार
        -राजीव गोयल
ठोकर लगी
माँ ने कहा, उठो भी
दौड़ पडा मैं
       -रमेश कुमार सोनी
जन्मों तक भी
कोई चुका न पाया
दूध का कर्ज़
        -वलजीत  सिंह
पसरी पडी
चितकबरी धूप
अंगना मेरे
        -राजीव गोयल
मन निहार
खुशियों का विस्तार
है आस-पास
      -सुरंगमा यादव
सिखा रहे हैं
सही सबक़ मुझे
ग़लत लोग
      -राजीव गोयल
कहती राहें
सबके लिए खुलीं
हमारी बाहें
      -सुरंगमा यादव
महकी धरा
आकाश से थोड़ा सा
पानी जो गिरा
       -राजीव गोयल
बहता पानी
रोकने की खातिर
टोकती नानी
    -निगम 'राज'
बना ही लेते
पानी और जवानी
अपने रस्ते
      -सुरंगमा यादव
दुष्ट मनई
जहां रही तहवाँ
करी कनई
     (भोजपुरी) -भीम प्रजापति
भीगता बच्चा
छाते तले बचाता
कागज़ी नाव
      -राजीव गोयल
मन भुवन
स्मृति का संकीर्तन
करे जोगन
        -पुष्पा सिन्धी 
गुज़री हवा
जो बासों के वन से
बजी सीटियाँ
       -राजीव गोयल
कुरेदे जख्म
सांत्वना के बहाने
वाह, ज़माने
      -सुरंगमा यादव

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