यह ब्लॉग सत्रह आखर से प्राप्त कुछ श्रेष्ठ हिंदी हाइकु संकलन है
संपादन- डा. सुरेन्द्र वर्मा
ये नववर्ष
इक मिटटी का लोंदा
करो सृजन
-राजीव गोयल (१जन. २०१६ )
रच के गया
गीतकार अतीत
यादों के गीत
-अभिषेक जैन (१.१.१६)
कोहरा ओढे
सर्दी में जनवरी
सांवरी भयी
-डा.सुरेन्द्र वर्मा (१.१,१६)
उसकी जिद
और मेरा अहम
बिछड़े हम
-राजीव गोयल (२.१.१६)
सजाते रहे
मकान हरदम
रह न पाए
-जितेन्द्र वर्मा (२.१.१६)
सिर तो झुका
बुज़ुर्ग उंगलियाँ
आशीष देंगीं
-राजीव निगम राज़ (२.१.१६)
रात की रानी
रात भर सुनाए
गंध के गीत
-संतोष कुमार सिंह (२.१.१६)
ऊंची हवेली
रोक लेती है धूप
मेरे हिस्से की
-राजीव गोयल(२.१.१६)
सोंधी सी गंध
अब नहीं मिट्टी में
मिली मिट्टी में
-आर के भारद्वाज (२.१.१६)
पानी बतासे
घुले मुंह जाकर
गले में तीखे
-दिनेश चन्द्र (४.१.१६ )
वृक्षों का वेश
पतझड़ में लगे
मुड़े ज्यों केश
संजय कुमार सिंह (४.१.१६)
तुरपाइयां
बन गई रिश्तों की
परछाइयां
-राजीव निगम राज़ (४.१.१६)
उजाला हुआ
करे सूर्य नमन
दीपक बुझा
+डा. राजीव गोयल (४.१.१६)
निगल रहा
बाज़ार का ज़हर
सारा शहर
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय (५.१.१६)
ढूँढ़ ही लेती
माखन को दही में
नाचती रई
-संतोष कुमार गिंह (५.१.१६.)
रुसवाइयां
बना के रजाइयां
ओढ़ ली मैंने
-राजीव निगम राज़ (५.१.१६)
दिखा रही हैं
मानचित्र झुर्रियाँ
बेटे को राह
-अभिषेक जैन (५.१.१६)
चली बंदूक
बह गया सिन्दूर
बन के खून
-राजीव गोयल (५.१.१६)
वस्त्र हरण
सड़क पर तमाशा
भीड़ है मूक
-जीतेन्द्र वर्मा (५.१.१६)
गोरी के तन
मुकेश कढी साड़ी
तारे शर्माए
-विभा श्रीवास्तव (५.१.१६)
चिंता में डूबी
दर्पण में देखे थे
चांदी के तार
डा, सुरेन्द्र वर्मा (५.१.१६)
दिगंबर है
आवरण मुक्त है
आत्मा जिसकी
-प्रियंका बाजपेयी (५.१.१६)
श्वेताम्बर है
प्रभु ओज से सजा
सत्व जिसका
-प्रियंका बाजपेयी (५.१.१६)
पीताम्बर है
स्वर्णिम आभा से जो
ओजस्वी है
-प्रियंका बाजपेयी (५.१.(१६)
पारदर्शिता
संबंधों का श्रृंगार
कांच से रिश्ते
-विभा श्रीवास्तव (५.१.१६)
सोना कमाया
पर नादान तूने
सोना गंवाया
-राजीव गोयल (५.१. १६)
ओस के मोती
करे नित्य गायब
चोरनी धूप
-संतोष कुमार सिंह (६.१.१६)
ताप से जूझा
पागया सुर्ख रंग
टीले का टेसू
-डा. जगदीश व्योम (६.१.१६)
रक्तिम आभा
जल रहे पलाश
सिंदूरी शाम
-डा. राजीव गोयल (६.१.१६)
ब्याहे विधवा
तीजे ड्योढी चढती
चिहुँका मौन
-विभा रानी श्रीवास्तव (७.१.१६)
हंसी तुम्हारी
खिली, ताप में बनी
गुलमोहर
-शिव जी श्रीवास्तव (७.१.१६)
शाम आते ही
बाज़ार में सजती
बेला की कली
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय (७.१.१६.)
सूखा तालाब
कृषक संग धरा
प्यासे तरसें
-प्रीति दक्ष (७.१.१६)
लचक गई
उम्र के वज़न से
साँसों की पीठ
-अभिषेक जैन(७.१.१६)
हाकिम बेटा
पिता का इंटरव्यू
लेकर सोता
-आर के भारद्वाज (७.१.१६)
सोना बिखरा
ड्योढी पर अम्बार
दौनी गेहूँ की
-विभा श्रीवास्तव (७.१,१६)
फिर जिलाए
प्यार की संजीवनी
मरते रिश्ते
-डा, राजीव गोयल (७.१.१६)
शाम के साये
उतर चिनारों से
वादी में छाए
-डा, राजीव गोयल (७.१.१६)
जिद्दी स्मृतियाँ
खडी गुनगुनाती
मन के द्वार
-शान्ति पुरोहित (८.१.१६)
अतुल्य प्यास
भरा पूरा सागर
फिर भी प्यासा
-डा. सुरेन्द्र वर्मा (९.१.१६)
होठ सिले हैं
बोलती सबकुछ
उसकी आँखें
डा. राजीव गोयल (८ १,१६)
दोनों एक सी
गौरैया और बेटी
उड़ जाएंगी
-डा. राजीव गोयल (९.१. १६)
खुशी के संग
काँप उठता दिल
पुत्री विदाई
-कैलाश कल्ला (९.१. १६)
तोड़ा गुल्लक
खनकती खुशियाँ
मिल ही गई
-लता (९.१. १६)
बांधे पायल
सुख दुःख की
नाचे ज़िंदगी
-जितेन्द्र वर्मा (१०.१, १६)
नैनों में तोल
रख के बटखरे
लोगों के झोल
-राजीव निगम राज (१०.१.१६)
गर्मी में छाँव
सर्दियों में अलाव
माँ का आँचल
-राजीव गोयल (१०.१.१६)
अह्म की खाई
खामोशी की सीलन
सड़ते रिश्ते
-राजीव गोयल (१०.१.१६)
फटा है पर्दा
झुग्गी का दरवाज़ा
अन्दर दुःख
-जितेन्द्र वर्मा (११.१.१६)
हेमंती भोर
बहक उठाता सा
अल्हड़ हिया
-प्रीति दक्ष (११.१.१६)
बीने कचरा
स्वप्न साक्षरता का
मन में पले
-शांति पुरोहित (११.१.१६)
इतिहास है
कराहता दर्द से
कैद पन्नों में
-जितेन्द्र वर्मा (१२.१.१६)
पंछी जुलाहा
तिनकों से बुनता
नीड़ की काया
-राजीव गोयल (१२.१.१६)
लजाती शाम
ओढ़े लाल चूनर
छुपी जा रही
-लता (१२.१.१६)
बातें करते
झिलमिलाते तारे
आँखों आँखों में
-आर के भारद्वाज (१३.१.१६)
रहते अब
किताबों में दीमक
शब्द बेघर
-राजीव गोयल (१४.१.१६)
सरल रहे
खिचडी सा जीवन
शुभ संक्रांति
-प्रियंका वाजपेयी (१४.१.१६)
बनाते चित्र
रेल के टीलों पर
आंधी के ब्रश
राजीव गोयल (१५.१.१६)
बीरबहूटी
गाँठ बूटे चुन्नी पे
मुन्नी के काढ़े
-विभा श्रीवास्तव (१६.१.१६)(
हवा का रुख
देख उड़े पतंग
सुखी जीवन
-कैलाश कल्ला (१६.१. १६)
बीनती है माँ
रास्तों के कंटक
तू चल सके
-प्रियंका वाजपेयी (१६.१. १६)
कहती न माँ
कोई दुःख वेदना
तू शांत रहे
-प्रियंका वाजपेयी (१६.१.१६)
हरी टोपियाँ
छिपाए बाल सारे
खेत में भुट्टा
लता (१७.१.१६)
मन तो रहा
मन प्रीत में डूबा
दर्द ही सहा
-राजीव निगम राज (१७.१.१६)
उर में बच्चे
सीख रहे हैं जीना
प्यारा कंगारू
-लता (१७.१.१६)
डाल पे पक्षी
तिनके जोड़कर
ख़्वाब संजोते
शान्ति पुरोहित (१७.१.१६ )
रंग बिखेरे
गगन कैनवास
रश्मि तूलिका
-महिमा वर्मा (१८.१.१६ )
नहीं मिलती
समानांतर रेखाएं
दोनों ही ढीठ
-आर के भारद्वाज (१८.१ .१६)
पिसती रही
लहू बहाती रही
हाथ में हिना
-लता (१८.१.१६ )
आँखें क्यों लाल
हुई पत्नी क्यों खफा
सोना न मिला
* राजीव गोयल (१८ .१.१६ )
कटे कानन
बिलखती वसुधा
चीर हरण
अभिषेक जैन (१९.१.१६)
रस्सी ऐंठी है
जुल्फें नहीं संवरी
बल पड़े हें
*आर के भारद्वाज (१९.१. १६)
खेत न जुता
प्रश्न वहीं का वहीँ
हल नहीं था
*आर के भारद्वाज
माँ की गोद में
पप्पी बैठा शान से
पप्पू परेशान
-जितेन्द्र वर्मा (१९.१.१६ )
हम बनाते
चित्र पानी से मित्र
रिश्ते निभाते
राजीव निगम राज़ (२०.१.१६)
दे गया व
गुब्बारों में भर के
बच्चों को खुशी
संतोष कुमार सिंह
जड़ों से जुदा
जलकुम्भी सरीखे
हम हैं ज़िंदा
राजीव निगम राज
माँ की गोद में
पप्पी बैठा शान से
पप्पू परेशान
जितेन्द्र वर्मा
दिन नन्हा सा
धुंध से डरकर
शीघ्र ही भागा
शान्ति पुरोहित
मीठी छुरी सी
व्यंग्य बाण चलाती
जिह्वा कटारी
मीठी दुआ सी
नए मीत बनाती
जिह्वा रसीली
महिमा वर्मा
२२.१.१६
लगी है प्यास
पनघट पे घट
बैठे निराश
संतोष कुमार सिंह
लगाती आग
लड़ाकर बांसों को
उत्पाती हवा
राजीव गोयल
ढूँढ़ता फिरे
फुटपाथ पे जाड़ा
रोज़ शिकार
राजीव गोयल
छोटी को डौल
खरीद लाया बाप
बड़ी को दूल्हा
संतोष कुमार सिंह
विकल नहीं
सर्वदा आनंदित
जीवंत हूँ मैं
प्रियंका वाजपेयी
२४.१.१६
खिलौना सी माँ
बच्चे माँ के खिलौने
खेल की रेल
आर के भारद्वाज
स्वर्ण हिरण
बेलगाम ख्वाहिश
सीता हरण
अभिषेक जैन
बताता पता
पास के मंदिर का
प्रसिद्ध बार
अभिषेक जैन
इस धरा का
सब धरा रहेगा
इस धरा पे
कैलाश कल्ला
२७.१.१६
तपे आग पे
फूली नहीं समाती
उदार रोटी
राजीव गोयल
कब हो गई
ये नन्हीं परी मेरी
जादू की छडी
प्रियंका वाजपेयी
२८.१.१६
अधूरे ख़्वाब
पूरे हों स्वप्न में ही
नींद न आई
कैलाश कल्ला
२९.१.१६
इंसान नाचे
मदारी सी रोटियाँ
सब जमूरे
प्रीति दक्ष
३०.१.१६
कतर-ए -खूँ
आँख की दहलीज़
ज़लज़ला सा
प्रीती दक्ष
कभी न देखे
अमावस का मुंह
घमंडी चाँद
संतोष कुमार सिंह
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संपादन- डा. सुरेन्द्र वर्मा
ये नववर्ष
इक मिटटी का लोंदा
करो सृजन
-राजीव गोयल (१जन. २०१६ )
रच के गया
गीतकार अतीत
यादों के गीत
-अभिषेक जैन (१.१.१६)
कोहरा ओढे
सर्दी में जनवरी
सांवरी भयी
-डा.सुरेन्द्र वर्मा (१.१,१६)
उसकी जिद
और मेरा अहम
बिछड़े हम
-राजीव गोयल (२.१.१६)
सजाते रहे
मकान हरदम
रह न पाए
-जितेन्द्र वर्मा (२.१.१६)
सिर तो झुका
बुज़ुर्ग उंगलियाँ
आशीष देंगीं
-राजीव निगम राज़ (२.१.१६)
रात की रानी
रात भर सुनाए
गंध के गीत
-संतोष कुमार सिंह (२.१.१६)
ऊंची हवेली
रोक लेती है धूप
मेरे हिस्से की
-राजीव गोयल(२.१.१६)
सोंधी सी गंध
अब नहीं मिट्टी में
मिली मिट्टी में
-आर के भारद्वाज (२.१.१६)
पानी बतासे
घुले मुंह जाकर
गले में तीखे
-दिनेश चन्द्र (४.१.१६ )
वृक्षों का वेश
पतझड़ में लगे
मुड़े ज्यों केश
संजय कुमार सिंह (४.१.१६)
तुरपाइयां
बन गई रिश्तों की
परछाइयां
-राजीव निगम राज़ (४.१.१६)
उजाला हुआ
करे सूर्य नमन
दीपक बुझा
+डा. राजीव गोयल (४.१.१६)
निगल रहा
बाज़ार का ज़हर
सारा शहर
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय (५.१.१६)
ढूँढ़ ही लेती
माखन को दही में
नाचती रई
-संतोष कुमार गिंह (५.१.१६.)
रुसवाइयां
बना के रजाइयां
ओढ़ ली मैंने
-राजीव निगम राज़ (५.१.१६)
दिखा रही हैं
मानचित्र झुर्रियाँ
बेटे को राह
-अभिषेक जैन (५.१.१६)
चली बंदूक
बह गया सिन्दूर
बन के खून
-राजीव गोयल (५.१.१६)
वस्त्र हरण
सड़क पर तमाशा
भीड़ है मूक
-जीतेन्द्र वर्मा (५.१.१६)
गोरी के तन
मुकेश कढी साड़ी
तारे शर्माए
-विभा श्रीवास्तव (५.१.१६)
चिंता में डूबी
दर्पण में देखे थे
चांदी के तार
डा, सुरेन्द्र वर्मा (५.१.१६)
दिगंबर है
आवरण मुक्त है
आत्मा जिसकी
-प्रियंका बाजपेयी (५.१.१६)
श्वेताम्बर है
प्रभु ओज से सजा
सत्व जिसका
-प्रियंका बाजपेयी (५.१.१६)
पीताम्बर है
स्वर्णिम आभा से जो
ओजस्वी है
-प्रियंका बाजपेयी (५.१.(१६)
पारदर्शिता
संबंधों का श्रृंगार
कांच से रिश्ते
-विभा श्रीवास्तव (५.१.१६)
सोना कमाया
पर नादान तूने
सोना गंवाया
-राजीव गोयल (५.१. १६)
ओस के मोती
करे नित्य गायब
चोरनी धूप
-संतोष कुमार सिंह (६.१.१६)
ताप से जूझा
पागया सुर्ख रंग
टीले का टेसू
-डा. जगदीश व्योम (६.१.१६)
रक्तिम आभा
जल रहे पलाश
सिंदूरी शाम
-डा. राजीव गोयल (६.१.१६)
ब्याहे विधवा
तीजे ड्योढी चढती
चिहुँका मौन
-विभा रानी श्रीवास्तव (७.१.१६)
हंसी तुम्हारी
खिली, ताप में बनी
गुलमोहर
-शिव जी श्रीवास्तव (७.१.१६)
शाम आते ही
बाज़ार में सजती
बेला की कली
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय (७.१.१६.)
सूखा तालाब
कृषक संग धरा
प्यासे तरसें
-प्रीति दक्ष (७.१.१६)
लचक गई
उम्र के वज़न से
साँसों की पीठ
-अभिषेक जैन(७.१.१६)
हाकिम बेटा
पिता का इंटरव्यू
लेकर सोता
-आर के भारद्वाज (७.१.१६)
सोना बिखरा
ड्योढी पर अम्बार
दौनी गेहूँ की
-विभा श्रीवास्तव (७.१,१६)
फिर जिलाए
प्यार की संजीवनी
मरते रिश्ते
-डा, राजीव गोयल (७.१.१६)
शाम के साये
उतर चिनारों से
वादी में छाए
-डा, राजीव गोयल (७.१.१६)
जिद्दी स्मृतियाँ
खडी गुनगुनाती
मन के द्वार
-शान्ति पुरोहित (८.१.१६)
अतुल्य प्यास
भरा पूरा सागर
फिर भी प्यासा
-डा. सुरेन्द्र वर्मा (९.१.१६)
होठ सिले हैं
बोलती सबकुछ
उसकी आँखें
डा. राजीव गोयल (८ १,१६)
दोनों एक सी
गौरैया और बेटी
उड़ जाएंगी
-डा. राजीव गोयल (९.१. १६)
खुशी के संग
काँप उठता दिल
पुत्री विदाई
-कैलाश कल्ला (९.१. १६)
तोड़ा गुल्लक
खनकती खुशियाँ
मिल ही गई
-लता (९.१. १६)
बांधे पायल
सुख दुःख की
नाचे ज़िंदगी
-जितेन्द्र वर्मा (१०.१, १६)
नैनों में तोल
रख के बटखरे
लोगों के झोल
-राजीव निगम राज (१०.१.१६)
गर्मी में छाँव
सर्दियों में अलाव
माँ का आँचल
-राजीव गोयल (१०.१.१६)
अह्म की खाई
खामोशी की सीलन
सड़ते रिश्ते
-राजीव गोयल (१०.१.१६)
फटा है पर्दा
झुग्गी का दरवाज़ा
अन्दर दुःख
-जितेन्द्र वर्मा (११.१.१६)
हेमंती भोर
बहक उठाता सा
अल्हड़ हिया
-प्रीति दक्ष (११.१.१६)
बीने कचरा
स्वप्न साक्षरता का
मन में पले
-शांति पुरोहित (११.१.१६)
इतिहास है
कराहता दर्द से
कैद पन्नों में
-जितेन्द्र वर्मा (१२.१.१६)
पंछी जुलाहा
तिनकों से बुनता
नीड़ की काया
-राजीव गोयल (१२.१.१६)
लजाती शाम
ओढ़े लाल चूनर
छुपी जा रही
-लता (१२.१.१६)
बातें करते
झिलमिलाते तारे
आँखों आँखों में
-आर के भारद्वाज (१३.१.१६)
रहते अब
किताबों में दीमक
शब्द बेघर
-राजीव गोयल (१४.१.१६)
सरल रहे
खिचडी सा जीवन
शुभ संक्रांति
-प्रियंका वाजपेयी (१४.१.१६)
बनाते चित्र
रेल के टीलों पर
आंधी के ब्रश
राजीव गोयल (१५.१.१६)
बीरबहूटी
गाँठ बूटे चुन्नी पे
मुन्नी के काढ़े
-विभा श्रीवास्तव (१६.१.१६)(
हवा का रुख
देख उड़े पतंग
सुखी जीवन
-कैलाश कल्ला (१६.१. १६)
बीनती है माँ
रास्तों के कंटक
तू चल सके
-प्रियंका वाजपेयी (१६.१. १६)
कहती न माँ
कोई दुःख वेदना
तू शांत रहे
-प्रियंका वाजपेयी (१६.१.१६)
हरी टोपियाँ
छिपाए बाल सारे
खेत में भुट्टा
लता (१७.१.१६)
मन तो रहा
मन प्रीत में डूबा
दर्द ही सहा
-राजीव निगम राज (१७.१.१६)
उर में बच्चे
सीख रहे हैं जीना
प्यारा कंगारू
-लता (१७.१.१६)
डाल पे पक्षी
तिनके जोड़कर
ख़्वाब संजोते
शान्ति पुरोहित (१७.१.१६ )
रंग बिखेरे
गगन कैनवास
रश्मि तूलिका
-महिमा वर्मा (१८.१.१६ )
नहीं मिलती
समानांतर रेखाएं
दोनों ही ढीठ
-आर के भारद्वाज (१८.१ .१६)
पिसती रही
लहू बहाती रही
हाथ में हिना
-लता (१८.१.१६ )
आँखें क्यों लाल
हुई पत्नी क्यों खफा
सोना न मिला
* राजीव गोयल (१८ .१.१६ )
कटे कानन
बिलखती वसुधा
चीर हरण
अभिषेक जैन (१९.१.१६)
रस्सी ऐंठी है
जुल्फें नहीं संवरी
बल पड़े हें
*आर के भारद्वाज (१९.१. १६)
खेत न जुता
प्रश्न वहीं का वहीँ
हल नहीं था
*आर के भारद्वाज
माँ की गोद में
पप्पी बैठा शान से
पप्पू परेशान
-जितेन्द्र वर्मा (१९.१.१६ )
हम बनाते
चित्र पानी से मित्र
रिश्ते निभाते
राजीव निगम राज़ (२०.१.१६)
दे गया व
गुब्बारों में भर के
बच्चों को खुशी
संतोष कुमार सिंह
जड़ों से जुदा
जलकुम्भी सरीखे
हम हैं ज़िंदा
राजीव निगम राज
माँ की गोद में
पप्पी बैठा शान से
पप्पू परेशान
जितेन्द्र वर्मा
दिन नन्हा सा
धुंध से डरकर
शीघ्र ही भागा
शान्ति पुरोहित
मीठी छुरी सी
व्यंग्य बाण चलाती
जिह्वा कटारी
मीठी दुआ सी
नए मीत बनाती
जिह्वा रसीली
महिमा वर्मा
२२.१.१६
लगी है प्यास
पनघट पे घट
बैठे निराश
संतोष कुमार सिंह
लगाती आग
लड़ाकर बांसों को
उत्पाती हवा
राजीव गोयल
ढूँढ़ता फिरे
फुटपाथ पे जाड़ा
रोज़ शिकार
राजीव गोयल
छोटी को डौल
खरीद लाया बाप
बड़ी को दूल्हा
संतोष कुमार सिंह
विकल नहीं
सर्वदा आनंदित
जीवंत हूँ मैं
प्रियंका वाजपेयी
२४.१.१६
खिलौना सी माँ
बच्चे माँ के खिलौने
खेल की रेल
आर के भारद्वाज
स्वर्ण हिरण
बेलगाम ख्वाहिश
सीता हरण
अभिषेक जैन
बताता पता
पास के मंदिर का
प्रसिद्ध बार
अभिषेक जैन
इस धरा का
सब धरा रहेगा
इस धरा पे
कैलाश कल्ला
२७.१.१६
तपे आग पे
फूली नहीं समाती
उदार रोटी
राजीव गोयल
कब हो गई
ये नन्हीं परी मेरी
जादू की छडी
प्रियंका वाजपेयी
२८.१.१६
अधूरे ख़्वाब
पूरे हों स्वप्न में ही
नींद न आई
कैलाश कल्ला
२९.१.१६
इंसान नाचे
मदारी सी रोटियाँ
सब जमूरे
प्रीति दक्ष
३०.१.१६
कतर-ए -खूँ
आँख की दहलीज़
ज़लज़ला सा
प्रीती दक्ष
कभी न देखे
अमावस का मुंह
घमंडी चाँद
संतोष कुमार सिंह
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सभी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंउम्दा सृजन
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जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ हाइकु के लिए सभी को बधाई !!
उत्कृष्ट हाइकु रचनाओं में मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए सादर आभार। समूचा संकलन सुन्दर बन पड़ा है।
जवाब देंहटाएंसभी सुंदर हाइकु , हर माह इसी तरह पढ़ने को मिलेंगे इस लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हाइकु संग्रह। सभी कलमकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाये 😊
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुनीता जी | क्या आप सत्रह आखर ग्रुप से जुड़ना चाहेह्गी ताकि आपके श्रेष्ठ हाइकु भी सम्मिलित किए जा सकें |सुरेन्द्र वर्मा
हटाएंजी हां
हटाएं