शुक्रवार, 30 सितंबर 2016


सितम्बर माह के श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु

१ ९ १६
नाचती गाती
झूमी वो मतवाली
गेहूँ की बाली
     -प्रदीप कुमार दाश
पी रही रात
चन्दा सकोरे से
चांदनी जाम
      -राजीव गोयल
२ ९ १६
छू नहीं सके
सफलता का कद
बौने इरादे
       - अभिषेक जैन
दुर्लभ हुए
रुद्राक्ष व् मानव
एक मुंह के
      -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
गस्से में पापा
आँचल में छुपाया
दादी अम्मा ने
       विष्णु प्रिय पाठक
३ ९ १६
रिश्तों में पडी
जब जब दरार
उठी दीवार
     -राजीव गोयल
मिट्टी के लोंधे
मूर्ति गढ़ता कहीं
एक कुम्हार
      -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
रुक सी गई
यमुना देख ताज
गवाह चाँद
      -कैलाश कल्ला
४ ९ १६
कन्धों पे हल
लिए बैल की डोर
खेत की ओर
        -वी पी पाठक
खा कर खुश
पहन कर खुश
वाह कनक
    (दो-सुखन)- आर के भारद्वाज
कहते रहे
कहाँ आ पाए आप
भेज दी यादें
      -जितेन्द्र वर्मा
५ ९ १६
ज्ञान अंजन
आंजा गुरुवर ने
जागृत चक्षु
      -महिमा वर्मा
भगाए दूर
अज्ञान का तमस
गुरु है सूर्य
     -अभिषेक जैन
विघ्न हरता
है ज्ञानी सिद्धिदाता
तू एक दन्त
      सुवना
६ ९ १६
गुम हो गई
फरेब के मेले में
होठों की हंसी
     -अभिषेक जैन
अस्थिर मन
ठहरता कल में
कल  है कहाँ ?
     -जितेंद्र वर्मा
दीमकों ने
मेरी कताब पड़ी
मैं शब्द  ढूँढूँ
      -आर के भारद्वाज
बच्चों का घर
दीवारों पर उभरे
मासूम ख़्वाब
      राजीव गोयल
७ ९ १६
परतें दर्द
रोज़ उतारता हूँ
जैसे केंचुली
       -जितेंद्र वर्मा
८ ९ १६
बांधे वक्त ने
ग़मों के सांकल से
खुशी के पैर
     अभिषेक जैन
उड़ ही गई
दादी साथ गौरैया
खटिया सूनी
      - वी पी पाठक
10  ९ १६
झरे झरने
गाते वे झर झर
गिरि गौरव
       प्रदीप कुमार दाश
आंधी में उड़े
बाग़ के सारे फल
माली के होश
    आर के भारद्वाज
११ ९ १६
ओढ़ के धूप
देते छाया का साया
संत हैं पेड़
-         आर के भारद्वाज
 बिछाए भोर
रवि के स्वागत में
लाल गलीचा
         राजीव गोयल
धरा ने धरा
मखमली रूप ये
हरा ही हरा
      प्रियंका वाजपेयी
१२ ९ १६
सोने में जडी
ये गेहूँ की बालियाँ
खेतों में खडीं
      -राजीव गोयल
13 9 16
पशु को मारा
पशुता को सहेज
कैसी ये ईद
       -प्रियंका वाजपेयी
१४ ९ १६
विशाल हिन्दी
समाहित कर ली
कई भाषाएँ  
      -महिमा वर्मा
जड़ों से जुडी
गौरवशाली पथ
हिन्दी है शान
      -महिमा वर्मा
हिन्द के वासी
हिन्दी में हस्ताक्षर
रास न आते  !
      -प्रदीप  कुमार दाश
१५  ९ १६
झरते  पत्ते
स्वागत कर चले
आगंतुक का
    -प्रदीप कुमार दाश
तमाम रात
करते रहे पेड़
हवा से बात
      -राजीव गोयल
१६ ९ १६
रहम करो
बरसाओ सरस
बूंदों के धारे
     -प्रियंका वाजपेयी
१७ ९ १६
पैरों से नहीं
हिम्मत से इंसान
जीते पहाड़
       -राजीव गोयल
ज़्यादा  पीड़ा है
आज कार्य न होगा
कल होने दो
       -(दो सुखन) आर के भारद्वाज
मावस रात
ओढ़ काली चादर
सो गया चाँद
          -प्रदीप कुमार दाश
१८ ९ १६
वस्त्र, सुई से -
'ये कैसा चाव, तू दे
घाव ही घाव '
     -आर के भारद्वाज
गंजे पहाड़
सह न सके ताप
टूटे बिखरे
       राजीव गोयल
१९ ९ १६
खोल नभ में
बादलों की खिड़की
झांकता चाँद
       राजिव गोयल (हाइगा)
कौन सुनाए
कहानी परियों की
नहीं है नानी
    वी पी पटक
२०  ९ १६
लड़कपन
उडी पतंग संग
दर्द की डोर
       वी पी पाठक
नन्ही चिड़िया                                                                                                                                                 भूली वो चहकना
मन उदास
      - प्र्दीप कुमार दाश
वर्षा की झड़ी
सजादे तारों पर
मोटी की लड़ी
      -राजीव गोयल (हाइगा)
हवा गुज़री
बांसों के ह्रदय में
बजी बांसुरी
       -राजीव गोयल
२१ ९ १९
अश्रु पर भी
बातों पर भी लगाते
पहरे लोग
      प्रियंका वाजपेयी
वर्षा में नहा
सतरंगी चुनरी
पहने धूप
      -राजीव गोयल
२२ ९ १६
सैर पे चली
गंध सेना लेकर
रात की रानी
     -वी पी पाठक
२३ ९ १६
हवा ने छुआ
उदास खड़ा पानी
झूमने लगा
       -राजीव गोयल
मेघ शावक
चढ़ हवा के काँधे
घूमे आकाश
       राजीव गोयल
२४ ९ १६
तड़ तड़ाक
पड़े बूंदों की मार
छाता चीत्कारे
     -वी पी पाठक
तरसी धरा
बादल घिरे रहे
बरसे नहीं
    -जितेन्द्र वर्मा
२५ ९ १६
बुझता नहीं
चिराग से चिराग
जलता गया
       -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
खेतों के पन्ने
किसान रचता है
जीवन छंद
      -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
गगन ओर
नीम तले झलुआ
देवे हिलोर
     डा. रंजना वर्मा
लेकर चली
पनघट पे नारी
बातों का घडा
       -अभिषेक जैन
२६ ९ १६
बहती नदी
समुन्दर से मिली
अस्तित्व खोया
     -डा. रंजना वर्मा                                                                                
हुक्के भी अब
तेरे मेरे हो गए
बदला गाँव
        -राजीव गोयल
मेघों के पीछे
सुनहरी लकीर
आशा का दीया
      -प्रियंका वाजपेयी
२७ ९ १६
मैदान खाली
मोबाइल ने छीनी
बच्चों की गेंद
     -दिनेश केन्द्र पाण्डेय
जला पलाश
शाख शाख लटके
लाल अंगार
     -राजीव गोयल
ताज महल
या, वक्त के गालों पे
लुढ़का आंसू
       -प्रियंका वाजपेयी
खेतों में उगी
कंक्रीट की फसलें
बदला गाँव
      -राजीव गोयल
बांटा न कर
कैंची सा बनकर
काटा न कर
       -डा. रंजना वर्मा
२८ ९ १६
the entire temple
covered by the tree
waves of heat
       -Tukaraam  Khillare
सूनी डालियाँ
सूखे पत्ते झड़ते
निशि वासर
       -डा. रंजना वर्मा
उगते रहे
नयन निलय में
स्वप्न अधूरे
      -डा. रंजना वर्मा
जुगलबंदी
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पीपल पेड़
धागे से विश्वास के
लिपटा हुआ
      -जितेन्द्र वर्मा
पीर मज़ार
बांधी धागे में पीर
हुआ निश्चिन्त
       -राजीव गोयल
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आंसू की बूंद
समेटे बड़ी व्यथा
आँख न मूंद
      -मुकेश शर्मा
२९ ९ १६
यशोदा घर
उठ  रही सोहर
जनमा लाल
       -डा. रंजना वर्मा
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जुगल बंदी
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मेरे अंगना
खेलते-खाते आता
भोर का तारा
        -वी पी पाठक
जागी सुबह
देख भोर का तारा
सो गई रात
      - राजीव गोयल
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शिखर पर
चढ़ के मंहगाई
सहम गई
      -वी पी पाठक
चढ़ शिखर
करा मंहगाई ने
इंसा को बौना
     -राजीव गोयल
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पूछें पलाश
इतना प्रदूषण ?
गुस्से से लाल
      -मुकेश शर्मा
लिए सर पे                                            
अंगारे लाल लाल
खिला पलाश
     रालीव गोयल
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३० ९ १६
चाल न चल
ज़िंदगी ताश नहीं
प्रीति का खेल
       -आर के भारद्वाज
शान्ति है आज
सजावट भी न की
लड़ी नहीं थी
       -आर के भारद्वाज (दो सुखन)
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समाप्त 

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