डा. सुरेन्द्र वर्मा - हाइकु, वर्षा ऋतु
हम संतप्त
मेघ तुम रक्षक
बरस पड़ो
मातृत्व हेतु
तैयार है धरती
बूँदें तो पड़ें
वर्षा की गंध
सुप्त पडी धरती
महक उठी
मेघा बरसे
फिर से उम्मीद से
हुई धरती
धरा आकाश
हवा पानी रोशनी
रचते काव्य
कदम्ब तले
श्वेत किंजल गेंद
पावस सोंदर्य
वर्षा पवन
अट्टहास बादल
डर भी डरे
दिखा अंगूठा
अल्मस्त चल दिए
मेघ सैलानी
ताल तलैया
बूंद बूंद रचना
नाले नदियाँ
बूंदों की झड़ी
लगी बरसात में
यादों की लड़ी
अमृत जल
सदा रहे बहता
बहाओ मत
हैं इस पार
बेमौसम मल्हार
आर्त पुकार
घन गरजे
चमकी तलवारें
बरस पड़े
वर्षा उदंड
भिगो कर ही माने
उड़ा दे छाता
प्रकृति बूटी
वर्षा के रंग देखे
वीर बहूटी
सारी प्रकृति
स्वर ताल में नाचे
साधे संगीत
वर्षा की झड़ी
रोने पे जो आ जाए
रोके न रुके
पेड़ों ने पाया
वर्षा का उपहार
वस्त्र नए
पानी पीकर
पहली बरसात
जिए पोखर
सूखे हैं पड़े
थोड़ा पानी प्यार दो
पुन: जी उठें
रोके है वर्षा
कहाँ जाओगे बाहर
रुक जाओ ना !
धरा की साड़ी
भीगी व भिगो गई
अन्दर तक
उमस भरी
वर्षा की दोपहरी
घबराहट
धरती गाए
काले मेघा पानी दे
गुड़धानी दे
गाता आकाश
स्वागत में वर्षा के
बादल राग
धरा आकाश
बादलों का विस्तृत
खेल मैदान
वर्षागमन
तप्त देह धरा की
कसमसाई
झूले श्रावाणी
सखियाँ बादरियाँ
पेंग लगातीं
बाद मौसम
शान से तना खड़ा
कुकुरमुत्ता
कुछ कड़वी
निबौली सी ज़िंदगी
कुछ मीठी सी
धूसर पौधे
वर्षा जल में धुले
नए हो गए
बहता पानी
ठौर नहीं ठहरे
गढ़े कहानी
मिट्टी की गंध
वर्षा से मुक्त हुई
फैली स्वच्छंद
हरी घास पे
बारिश बूँदें, आँखें
झिलमिलाईं
कुएं बावडी
इन्हें बचाओ भैया
ताल तलैया
कमल गान
पोखर के बाहर
व भीतर भी !
खिलखिलाती
सद्य-स्नाता प्रकृति
बाद बारिश
थम गई है
वर्षा, टपकती है
छत फिर भी
सुप्त धरा की
जाग उठी है गंध
स्वागत वर्षा
मेघ चिरैयाँ
फैलातीं जब पंख
हंसता ताल
पहने कोट
लाल मखमल का
वीर बहूटी
बरखा झूमें
तूम तनन तूम
गाए तराने
बाद बारिश
पौधों की हरी ताज़ी
हंसी, बच्चों सी
बिखरे मेघ
आकृतियाँ गढ़ते
बुनते स्वप्न
मेघ बरसे
सितार पर झाला
सुने धरती
मेघ रीतते
इसीलिए भरते
वे फिर फिर
रचाते चित्र
कलाकार बादल
बुनते स्वप्न
रात वर्षा की
अंधेरी, घोंसलों में
ज्योति जुगनू
लहरें पानी
नावें व मछलियाँ
खुश है वर्षा
वर्षा का स्पर्श
धरती अंगड़ाई
हरी हो गई
वर्षा में भीगे
धुले उजाले पौधे
हँसे विहँसे
----------------------------
समाप्त
हम संतप्त
मेघ तुम रक्षक
बरस पड़ो
मातृत्व हेतु
तैयार है धरती
बूँदें तो पड़ें
वर्षा की गंध
सुप्त पडी धरती
महक उठी
मेघा बरसे
फिर से उम्मीद से
हुई धरती
धरा आकाश
हवा पानी रोशनी
रचते काव्य
कदम्ब तले
श्वेत किंजल गेंद
पावस सोंदर्य
वर्षा पवन
अट्टहास बादल
डर भी डरे
दिखा अंगूठा
अल्मस्त चल दिए
मेघ सैलानी
ताल तलैया
बूंद बूंद रचना
नाले नदियाँ
बूंदों की झड़ी
लगी बरसात में
यादों की लड़ी
अमृत जल
सदा रहे बहता
बहाओ मत
हैं इस पार
बेमौसम मल्हार
आर्त पुकार
घन गरजे
चमकी तलवारें
बरस पड़े
वर्षा उदंड
भिगो कर ही माने
उड़ा दे छाता
प्रकृति बूटी
वर्षा के रंग देखे
वीर बहूटी
सारी प्रकृति
स्वर ताल में नाचे
साधे संगीत
वर्षा की झड़ी
रोने पे जो आ जाए
रोके न रुके
पेड़ों ने पाया
वर्षा का उपहार
वस्त्र नए
पानी पीकर
पहली बरसात
जिए पोखर
सूखे हैं पड़े
थोड़ा पानी प्यार दो
पुन: जी उठें
रोके है वर्षा
कहाँ जाओगे बाहर
रुक जाओ ना !
धरा की साड़ी
भीगी व भिगो गई
अन्दर तक
उमस भरी
वर्षा की दोपहरी
घबराहट
धरती गाए
काले मेघा पानी दे
गुड़धानी दे
गाता आकाश
स्वागत में वर्षा के
बादल राग
धरा आकाश
बादलों का विस्तृत
खेल मैदान
वर्षागमन
तप्त देह धरा की
कसमसाई
झूले श्रावाणी
सखियाँ बादरियाँ
पेंग लगातीं
बाद मौसम
शान से तना खड़ा
कुकुरमुत्ता
कुछ कड़वी
निबौली सी ज़िंदगी
कुछ मीठी सी
धूसर पौधे
वर्षा जल में धुले
नए हो गए
बहता पानी
ठौर नहीं ठहरे
गढ़े कहानी
मिट्टी की गंध
वर्षा से मुक्त हुई
फैली स्वच्छंद
हरी घास पे
बारिश बूँदें, आँखें
झिलमिलाईं
कुएं बावडी
इन्हें बचाओ भैया
ताल तलैया
कमल गान
पोखर के बाहर
व भीतर भी !
खिलखिलाती
सद्य-स्नाता प्रकृति
बाद बारिश
थम गई है
वर्षा, टपकती है
छत फिर भी
सुप्त धरा की
जाग उठी है गंध
स्वागत वर्षा
मेघ चिरैयाँ
फैलातीं जब पंख
हंसता ताल
पहने कोट
लाल मखमल का
वीर बहूटी
बरखा झूमें
तूम तनन तूम
गाए तराने
बाद बारिश
पौधों की हरी ताज़ी
हंसी, बच्चों सी
बिखरे मेघ
आकृतियाँ गढ़ते
बुनते स्वप्न
मेघ बरसे
सितार पर झाला
सुने धरती
मेघ रीतते
इसीलिए भरते
वे फिर फिर
रचाते चित्र
कलाकार बादल
बुनते स्वप्न
रात वर्षा की
अंधेरी, घोंसलों में
ज्योति जुगनू
लहरें पानी
नावें व मछलियाँ
खुश है वर्षा
वर्षा का स्पर्श
धरती अंगड़ाई
हरी हो गई
वर्षा में भीगे
धुले उजाले पौधे
हँसे विहँसे
----------------------------
समाप्त
सभी हाइकु अच्छे लगे ...... बधाई !
जवाब देंहटाएंसभी हाइकु अच्छे लगे ...... बधाई !
जवाब देंहटाएंसभी खूबसूरत है।
जवाब देंहटाएंगुरुवार
प्रणाम