शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

ऋतु चक्र ४ -सर्दियों के हाइकु : डा सुरेन्द्र वर्मा


शरद-काल
उतारे श्वेत वस्त्र
धारे, चांदनी

हंसता चाँद
शारदीय पूर्णिमा
करे ठिठोली

माह कार्तिक
शीत-उष्ण पवन
सुखद स्पर्श

पुलक उठीं
जूही मधुमालती
स्वागत क्वांर

शरद ऋतु
मल्लिका इतराई
झूमी डगालें

शरद आया
इठलाई शेफाली
मिलनातुर

क्वार-कार्तिक
हंस पडा शरद
चाँद बौराया

नभ निर्मल
झिलमिल चांदनी
शरदोत्सव

शरादोल्लास
हास और परिहास
यौवनाभास

कांसे का गुच्छा
हरसिंगार की माल
शरद दूल्हा

शेफाली वन
पगलाई पवन
मन सुमन

शरद रात
इठलाई चांदनी
करती बात

शरदागम
खिल खिल उठते
वक्ष सुमन

शरदागम
दिन हो गए छोटे
धूप लजाई

हंसता चाँद
शारदीय पूर्णिमा
करे ठिठोली

सर्द रात में
मन में मैदान में
श्वान भूँकते

शिशिरागम
कचनार सुगंध
मंद पवन

हलकी सर्दी
कचनार ने  बाहें
फूलों से ढँकीं

ओस  से भीगा
शिशिर शरारती
भरे बाहों में

गुलदाउदी  
और अमलतास
हेमंत लास्य

टोपी धवल
श्वेत बर्फ की धारे
सजे हेमंत

सर्द रात में
एक अकेली हवा
बजाती सीटी    

शीत नायिका
धूप में खिली खिली
करे श्रृंगार

खामोश रात
झींगुर की आवाज़
मौन तोड़ती

जाड़ों की वर्षा
पूंछ बरसात की
चूहे से बडी

लपेटे रही
कोहरे की चादर
बेचारी धूप

ठंडी हवाएं
वृक्ष के पत्र दल
थरथराए

धता बताता
सर्दी को, रुका नहीं
कुसुमायन

धूप बेचारी
कराहती ही रही
घना कोहरा

कोहरा डरी
धूप अगहन की
लुप्त हो गयी

सर्द आलम
हम हुए मुश्ताक
धूप बेज़ार

सूर्य निस्तेज
सर्द सर्द हवाएं
आतंक राज

आएगी धूप
कबतक टिकेगा
यह कोहरा

कोई बताए
कैसे लाएं सम पे
सर्दी विषम

सर्द हवाएं
फिरें हैं इठलाती
सत्ता बेकाबू

सुर  न सधा
ठण्ड बजती रही
साज बेसुरा

सर्द हवाएं
आसमाँ लगा रोने
आंसू बहाए

सर्दी का रंग
हेमंत अवाक् खड़ा
फींका क्यों पड़ा

डालियाँ काँपीं
असहाय शजर
शीत लहर

धुंध को चीर
जो आर पार देखे
प्रकाश वीर

कोहरा ओढ़े
गले पड़ गई वो
शाल लपेटे

गंगा ने ओढ़ा
कोहरे का कवच
धार रक्षित

धुंध विचित्र
धुंधली कर गई
उजले चित्र

ठण्ड की मारी
धरती ने ओढ़ ली
कमली काली

समर संधि
सर्द,तो कभी गर्म
संक्रांति काल

देख सरदी
नई रजाई ओढ़
मिन्नी दुबकी

कोहरा ओढ़े
सर्दी में जनवरी
सांवरी भई

सरदी मुन्नी
सड़क पे निकली
कोहरा चुन्नी

शरद श्वेत
उरई के पात पे
बूँदें सफ़ेद

कोहरा ढंका
कभी तो बीतेगा ही
उदास दिन

चम्पई भोर
फुनगी पर काग
करता शोर

ओस से भीगा
शिशिर शरारती
भरे बाहों में

सूर्य निस्तेज
सर्द सर्द हवाएं
आतंक राज

आएगी धूप
कबतक टिकेगा
कोहरा रूप ?

सिकुड़ा पडा
मौसम मनहूस
धूप ले डूबा

सर्दी सताए
आसमां लगा रोने
पत्र गवाह

सर्दी न भाई
छिप गई ठण्ड में
बूढी रजाई

डालियाँ कांपी
असहाय शजर
शीत लहर

सर्दी का रंग
हेमंत खडा अवाक   (क हलंत)
फींका क्यों पडा

कैसा मज़ाक
शिशिर तो मुश्ताक
शीत गायब

मक्की के खेत
हरयाली मायावी
कोहरा ढंकी

ऋतु तो वही
मौसम की जुबान
नेता सी पल्टी

सर्द मौसम
ऋतु से छेड़छाड़
मिज़ाज गर्म

हवा बेकाबू
डगमग पतंग
पता न पंथ

शातिर जुबां
तेज़ कातिल हवा
रोके न रुके

है बड़ा दिन
धरती हो कुटुम्भ
बड़ा हो दिल

व्यतीत वर्ष
पुराना, स्वागत हो
नवल वर्ष

वर्ष पुराना
उसी की राख से
नया जनमा

नए वर्ष में
रचें कुछ मौलिक
बड़ा / सार्थक

सर्दी कम हो
तो खुलें हाथ पैर
कुछ काम हो

नया सोच हो
ढर्रा पुराना छूटे
नई दृष्टि हो

खेले सूरज
लुका-छिपी का खेल
असमंजस

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समाप्त 

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