मार्च '१७ के श्रेष्ठ हाइकु
कलश यात्रा
मंदिर स्थापना की
बाज़ार नाचे
-विभा श्रीवास्तव
नीड़ में बीते
चार दिन ज़िंदगी
बसे उजड़े
-रमेश कुमार सोनी
गोधूल वेला
सागर तट पर
विहंग मेला
-विष्णु प्रिय पाठक
चुरा लेती है
धूप मेरे हिस्से की
ऊंची हवेली
-राजीव गोयल
उडाता रवि
बोरा-भर गुलाल
सांझ के द्वार
-राजीव गोयल
फड़फड़ाती
पिजड़े में चिड़िया
बुर्क़े में नारी
-विष्णु प्रिय पाठक
रंग में रंग
मेरे श्याम का रंग
चढे न दूजा
-रमेश कुमार सोनी
सहता रहे
लहरों का आतंक
तपस्वी तट
-राजीव गोयल
जुगलबंदी
------------
अबकी बार
पधारो म्हारे गाँव
होली खेलण
-जितेन्द्र वर्मा
पधारो प्रिय
जब इस आँगन
दे जाना मन
-रंजना वर्मा
---------------
बेला गोधूली
सूरज लेने चला
जल समाधि
-राजीव गोयल
समत्व रंग
लहराए उमंग
होली तरंग
-पीयूषा
बेटी बहन
प्रेयसी पत्नी माँ
रूप अनन्य
-प्रदीप कुमार दाश
सूरज बाल
मल गया गुलाल
उषा के गाल
-डा, रंजना वर्मा
फागुन मास
पलाश ने दिशाएं
रंग दीं लाल
-राजीव गोयल
होली क्या खेलूँ
बलम घर आए
रंगे-रंगाए
-दिनेश चन्द्र पांडेय
निकली भोर
लगाए माथे पर
सूर्य बिंदिया
-राजीव गोयल
प्रभात बेला
सोंधी गंध रोटी की
हवा में उड़ी
-राजीव गोयल
जुगलबंदी
-----------
विदाई वेला
कुंडी में फंस गया
पल्लू का छोर
-सुनीता अग्रवाल
(श्री जगदीश व्योम के सौजन्य से)
विदाई वेला
होंठ तो हंस रहे
आँखें हैं नम
-राजीव गोयल
--------------
प्यारी सी बोली
दिल से निकलती
शुभ हो होली
-पीयूषा
गरीब झुग्गी
ठंडी अंगीठी पर
पकता जुर्म
राजीव गोयल
तितली व्यस्त
बदल नहीं पाई
होली के वस्त्र
-संतोष कुमार सिंह
प्रेम करते
ज़माने में ताउम्र
फूल झरते
-निगम 'राज़'
उसने छुआ
ह्रदय की झील में
स्पंदन हुआ
-राजीव गोयल
ताकती आँखें
शून्य में निहारतीं
कोई आएगा
-रमेश कुमार सोनी
अक्षर सत्य
बनते बिगड़ते
शब्द जीवन
-विष्णु प्रिय पाठक
बरसी धूप
तान लिए धरा ने
पेड़ो के छाते
-राजीव गोयल
भरे घर में
अंत समय देखा
शून्य ही खड़ा
-तुकाराम खिल्लारे
झड़ते पत्ते
सोये सुख की नींद
धरा की गोद
-राजीव गोयल
सत्य हो तुम
रचा जग असत्य
छाला गया मैं
-जितेन्द्र वर्मा
आए न मेघ
किसान ने खेत में
उगाए कर्ज़
-राजीव गोयल
दौड़ता रहा
मरीचिका के पीछे
छाँव भी नहीं
- तुकाराम खिल्लारे
पाखराविण
झाड़ उदास झाले
अर्धे वाळले
(मराठी) तुकाराम खिल्लारे
सूखा है वृक्ष
उदास और खिन्न
पखेरू बिन
-(हिन्दी अनुवाद)
प्रवेश द्वार
पत्थर के पुतले
झुक के खड़े
-विष्णु प्रिय पाठक
पत्थर जाने
टूट जाने का दर्द
रेत ही रेत
-रमेश कुमार सोनी
आकाश मौन
खामोश है धरती
तूफां को सुन
-प्रियंका वाजपेयी
कर्ण मधुर
झरने के गीत
सृष्टि संगीत
डा. रंजना वर्मा
पेड़ों से गिरीं
सूख कर पत्तियाँ
फूटी कोंपलें
-राजीव गोयल
शब्द कविता
लय ओढ़े कामिनी
नाम कविता
(कविता-दिवस पर)
-प्रियंका वाजपेयी
वेद पुराण
अधूरी चाहतों के
ये प्रेम पत्र
-राजीव गोयल
झरता पत्ता
चिताओं के समक्ष
स्तब्ध खडी मैं
-विभा श्रीवास्तव
सफ़र पर
मिलते कई साथी
तुम सा कौन !
-मंजूषा मन
सन्नाटा फैला
चुप का बोलबाला
हमारे बीच
-जितेन्द्र वर्मा
सुलझा चलो
मन की जिद्दी गांठें
चुभें दिल में
-प्रियंका वाजपेयी
बन के खाद
फिर पहुंचे पत्ते
पेड़ के पास
-राजीव गोयल
नन्ही सी जान
फंसाए मायाजाल
दुखी गौरैया
-प्रियंका वाजपेयी
भागती ट्रेन
पकड़ने को चाँद
छूटते पेड़
-राजीव गोयल
सरोवर पे
बगुलों का समूह
मंच पे नेता
-विष्णु प्रिय पाठक
संवारें आज
सुन्दर बने कल
युक्ति अचूक
-जितेन्द्र वर्मा
उठी वादियाँ
ओढ़ रेशमी धुंध
मुंह अँधेरे
(हाइगा)--राजीव गोयल
सूखा तालाब
पीटे जाल पे माथा
रोता मछेरा
-विष्णु प्रिय पाठक
सर्द मौसम
चिता की गर्म राख
सो रहा कुत्ता
-राजीव गोयल
कुँए तालाब
साझा संस्कृति पाले
तेरे न मेरे
रमेश कुमार सोनी
झक मारने
तालाब तट बैठे
लोग, बगुले
-रमेश कुमार सोनी
जुगलबंदी
-----------
नारी जीवन
परती परिकथा
केवल व्यथा
-डा. रंजना वर्मा
नारी जीवन
रचना का संघर्ष
आशा न व्यथा
- पीयूषा
-------------
अदाह्य दीप
फैलाए चिंगारियां -
अमा जुगुनू
-विभा श्रीवास्तव
सूखी पत्तियाँ
कराहतीं दर्द से
कदमों तले
-राजीव गोयल
साँसों की माला
गिनती के मनके
जपें सोच के
-प्रियंका वाजपेयी
बूढा दरख़्त
चबूतरे पे खडा
गिने पीढियां
-प्रियंका वाजपेयी
जो बीत गई
वो बात छूट गई
ना खोज उसे
-प्रियंका वाजपेयी
--------------------------
--------------समाप्त ---
कलश यात्रा
मंदिर स्थापना की
बाज़ार नाचे
-विभा श्रीवास्तव
नीड़ में बीते
चार दिन ज़िंदगी
बसे उजड़े
-रमेश कुमार सोनी
गोधूल वेला
सागर तट पर
विहंग मेला
-विष्णु प्रिय पाठक
चुरा लेती है
धूप मेरे हिस्से की
ऊंची हवेली
-राजीव गोयल
उडाता रवि
बोरा-भर गुलाल
सांझ के द्वार
-राजीव गोयल
फड़फड़ाती
पिजड़े में चिड़िया
बुर्क़े में नारी
-विष्णु प्रिय पाठक
रंग में रंग
मेरे श्याम का रंग
चढे न दूजा
-रमेश कुमार सोनी
सहता रहे
लहरों का आतंक
तपस्वी तट
-राजीव गोयल
जुगलबंदी
------------
अबकी बार
पधारो म्हारे गाँव
होली खेलण
-जितेन्द्र वर्मा
पधारो प्रिय
जब इस आँगन
दे जाना मन
-रंजना वर्मा
---------------
बेला गोधूली
सूरज लेने चला
जल समाधि
-राजीव गोयल
समत्व रंग
लहराए उमंग
होली तरंग
-पीयूषा
बेटी बहन
प्रेयसी पत्नी माँ
रूप अनन्य
-प्रदीप कुमार दाश
सूरज बाल
मल गया गुलाल
उषा के गाल
-डा, रंजना वर्मा
फागुन मास
पलाश ने दिशाएं
रंग दीं लाल
-राजीव गोयल
होली क्या खेलूँ
बलम घर आए
रंगे-रंगाए
-दिनेश चन्द्र पांडेय
निकली भोर
लगाए माथे पर
सूर्य बिंदिया
-राजीव गोयल
प्रभात बेला
सोंधी गंध रोटी की
हवा में उड़ी
-राजीव गोयल
जुगलबंदी
-----------
विदाई वेला
कुंडी में फंस गया
पल्लू का छोर
-सुनीता अग्रवाल
(श्री जगदीश व्योम के सौजन्य से)
विदाई वेला
होंठ तो हंस रहे
आँखें हैं नम
-राजीव गोयल
--------------
प्यारी सी बोली
दिल से निकलती
शुभ हो होली
-पीयूषा
गरीब झुग्गी
ठंडी अंगीठी पर
पकता जुर्म
राजीव गोयल
तितली व्यस्त
बदल नहीं पाई
होली के वस्त्र
-संतोष कुमार सिंह
प्रेम करते
ज़माने में ताउम्र
फूल झरते
-निगम 'राज़'
उसने छुआ
ह्रदय की झील में
स्पंदन हुआ
-राजीव गोयल
ताकती आँखें
शून्य में निहारतीं
कोई आएगा
-रमेश कुमार सोनी
अक्षर सत्य
बनते बिगड़ते
शब्द जीवन
-विष्णु प्रिय पाठक
बरसी धूप
तान लिए धरा ने
पेड़ो के छाते
-राजीव गोयल
भरे घर में
अंत समय देखा
शून्य ही खड़ा
-तुकाराम खिल्लारे
झड़ते पत्ते
सोये सुख की नींद
धरा की गोद
-राजीव गोयल
सत्य हो तुम
रचा जग असत्य
छाला गया मैं
-जितेन्द्र वर्मा
आए न मेघ
किसान ने खेत में
उगाए कर्ज़
-राजीव गोयल
दौड़ता रहा
मरीचिका के पीछे
छाँव भी नहीं
- तुकाराम खिल्लारे
पाखराविण
झाड़ उदास झाले
अर्धे वाळले
(मराठी) तुकाराम खिल्लारे
सूखा है वृक्ष
उदास और खिन्न
पखेरू बिन
-(हिन्दी अनुवाद)
प्रवेश द्वार
पत्थर के पुतले
झुक के खड़े
-विष्णु प्रिय पाठक
पत्थर जाने
टूट जाने का दर्द
रेत ही रेत
-रमेश कुमार सोनी
आकाश मौन
खामोश है धरती
तूफां को सुन
-प्रियंका वाजपेयी
कर्ण मधुर
झरने के गीत
सृष्टि संगीत
डा. रंजना वर्मा
पेड़ों से गिरीं
सूख कर पत्तियाँ
फूटी कोंपलें
-राजीव गोयल
शब्द कविता
लय ओढ़े कामिनी
नाम कविता
(कविता-दिवस पर)
-प्रियंका वाजपेयी
वेद पुराण
अधूरी चाहतों के
ये प्रेम पत्र
-राजीव गोयल
झरता पत्ता
चिताओं के समक्ष
स्तब्ध खडी मैं
-विभा श्रीवास्तव
सफ़र पर
मिलते कई साथी
तुम सा कौन !
-मंजूषा मन
सन्नाटा फैला
चुप का बोलबाला
हमारे बीच
-जितेन्द्र वर्मा
सुलझा चलो
मन की जिद्दी गांठें
चुभें दिल में
-प्रियंका वाजपेयी
बन के खाद
फिर पहुंचे पत्ते
पेड़ के पास
-राजीव गोयल
नन्ही सी जान
फंसाए मायाजाल
दुखी गौरैया
-प्रियंका वाजपेयी
भागती ट्रेन
पकड़ने को चाँद
छूटते पेड़
-राजीव गोयल
सरोवर पे
बगुलों का समूह
मंच पे नेता
-विष्णु प्रिय पाठक
संवारें आज
सुन्दर बने कल
युक्ति अचूक
-जितेन्द्र वर्मा
उठी वादियाँ
ओढ़ रेशमी धुंध
मुंह अँधेरे
(हाइगा)--राजीव गोयल
सूखा तालाब
पीटे जाल पे माथा
रोता मछेरा
-विष्णु प्रिय पाठक
सर्द मौसम
चिता की गर्म राख
सो रहा कुत्ता
-राजीव गोयल
कुँए तालाब
साझा संस्कृति पाले
तेरे न मेरे
रमेश कुमार सोनी
झक मारने
तालाब तट बैठे
लोग, बगुले
-रमेश कुमार सोनी
जुगलबंदी
-----------
नारी जीवन
परती परिकथा
केवल व्यथा
-डा. रंजना वर्मा
नारी जीवन
रचना का संघर्ष
आशा न व्यथा
- पीयूषा
-------------
अदाह्य दीप
फैलाए चिंगारियां -
अमा जुगुनू
-विभा श्रीवास्तव
सूखी पत्तियाँ
कराहतीं दर्द से
कदमों तले
-राजीव गोयल
साँसों की माला
गिनती के मनके
जपें सोच के
-प्रियंका वाजपेयी
बूढा दरख़्त
चबूतरे पे खडा
गिने पीढियां
-प्रियंका वाजपेयी
जो बीत गई
वो बात छूट गई
ना खोज उसे
-प्रियंका वाजपेयी
--------------------------
--------------समाप्त ---
आपके लगन मेहनत को नमन
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ुशी होती है ब्लॉग पर हाइकु पढ़ कर
बहोत खूब
जवाब देंहटाएंबढ़िया हाइकु
भाए मनकु