बुधवार, 31 मई 2017

मई माह के श्रेष्ठ हाइकु

मई माह के श्रेष्ठ हाइकु

पहली मई 
माथे पर पसीना 
श्रम दिवस 
       -जितेन्द्र वर्मा
श्वेद तरल
श्रम है अविरल
नव निर्माण
       -सुशील शर्मा
विकास रथ
मुझसे गुज़रता
हूँ अग्नि पथ
       -सुशील शर्मा
नींद ले उडी
सपनों की पतंग
भोर ने काटी
       -नरेन्द्र श्रीवास्तव
नींद बागबां
सपनों के फूलों से
प्रीत महके
       -नरेन्द्र श्रीवास्तव
बेचे सपने
सपनों का व्यापारी
ये मेरा मन
       -जितेन्द्र वर्मा
वही कहानी
फिर टूटे सपने
वर्षों पुरानी
      -विष्णु प्रिय पाठक
जीवन तेरा
सिल पर निशान
हाइकु जैसा
      -प्रीती दक्ष
जीता लड़ाई
ज़िंदगी हार कर
वीर सिपाही
      -राजीव गोयल
ज़िंदगी स्वप्न
सच मान कर जी
वाह, ज़िंदगी
        -जितेन्द्र वर्मा
गोधूलि बेला
होने लगा शिथिल
सूरजमुखी
       -राजीव गोयल
रस्म नापाक
भविष्य हुआ ख़ाक
तीन तलाक
      -डा. रंजना वर्मा
झड़ा पलाश
सज गई है सेज
पेड़ों के नीचे
      -राजीव गोयल
व्रती विहग
धूप जाने के बाद
दाना चुगते
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
नींद से जगी
अलसाई सी कली
स्वप्न महका
      -सुशील शर्मा
स्वप्न की नाव
नींद की नदी पर
तैरती रही
       -सुशील शर्मा
माडर्न आर्ट
विभा सुलझा रही
वर्ग पहेली
       -विभा श्रीवास्तव
कहा मौन ने
अहसास ने सुना
दर्द मन का
      -प्रियंका वाजपेयी
रूप यौवना
दर्पण सखी सदा
नहीं परदा
      रमेश कुमार सोनी
पीड़ा किसी की
असह्य थी, मगर
खामोश रही
       -प्रियंका वाजपेयी
दिल दर्पण
दिखलाए हमेशा
बिम्ब अपना
       -कैलाश कल्ला
और से नहीं
अपने से ही लड़ें
पाएं विजय
       -जितेन्द्र वर्मा
माँ मेरी मित्र
गंगा जैसी पवित्र
ईश्वर चित्र
       -सुशील शर्मा
पी रहा हूँ मैं
घोल कर शराब
तनहा रात
      -राजीव गोयल
हिंसा अहिंसा
रास्ते दो लड़ने के
कोई तो चुनें
      -पीयूषा
अहिंसा प्यार
साधे हित सभी का
सत्य की राह
      -पीयूषा
स्थिर हो चित्त
भटकते सिद्धार्थ
बैठे तो बुद्ध
       -सुशील शर्मा
सेल्फी का दौर
हर कोई तनहा
कौन अपना
      -अमन चांदपुरी
जाते ही जान
छाया भी छोड़े साथ
काहे का मान
      -अमन चांदपुरी
भीतर ज्वाला
बाहर हिमगिर
ऐसी है धरा
       -प्रियंका वाजपेयी
नन्हा बालक
थोड़ी सी झरी हंसी
मानो हाइकु
       (संपादित)  -तुकाराम खिल्लारे
संचित अन्न
गोदाम में ही सड़ा
जनता भूखी
       - जितेन्द्र वर्मा
वैसाखी धूप
बरगद की छाँव
बनी बैसाखी
       -नरेन्द्र श्रीवास्तव
श्याम की छवि
यमुना में समाई
सांवरी भई
      डा. रंजना वर्मा
सहे न सर्दी
झेली न जाए गर्मी
इन्सां अझेल
       -प्रियंका वाजपेयी
दहका जब
सूरज का तंदूर
पकी फसलें
       -राजीव गोयल
तुम्हारी यादें
तपी दुपहरी में
स्निग्ध छाया सी
     -सुशील शर्मा
अकेला साया
जाना पहचाना सा
तनहा चला
      -सुशील शर्मा
अक्स उसका
उसी रोज़ ही चन्दा
झील हो गया
       -विष्णु प्रिय पाठक
मौन ही सही
कहलवा लेती है
खामोशी सब
        -प्रियंका वाजपेयी
खो गई याद
अंतर मन कहीं
ढूँढ़ न पाया
       -जितेन्द्र वर्मा
फिर आओ माँ
बच्चा मुझे बना के
दुलाराओ माँ
       -निगम 'राज़'
बीज झांकते
धरा आँचल खोल
वृक्ष बनने
       -रमेश कुमार सोनी
अम्मा का प्यार
झरता है निर्झर
अनवरत
       -सुशील शर्मा
देखा न खुदा
माँ में ही देख रहा
उसका नूर
      -कैलाश कल्ला
जैसा था बोया
वैसा ही काटा, फिर
काहे का घाटा
       - अमन चाँदपुरी
धूप का कर्फ्यू
चिड़िया भूखी बैठी
दुखी पीपल
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
तीखी किरणें
धूप धरे तेवर
धरा है मौन
      -प्रियंका वाजपेयी
खोखला करे
चाहतों की नींव को
गरीबी घुन
       -राजीव गोयल
हवा का झोंका
आकाश में तैरते
सेमल बीज
       -विष्णु प्रिय पाठक
कुछ न किया
निठल्ले बैठे बैठे
नींद ने घेरा
     -जितेन्द्र वर्मा
ज्येष्ट की धूप
खाली गागर लिए
पानी खोजती
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
छोटा सा बीज
अंजुरी भर पानी
कुनमुनाया
       -सुशील शर्मा
नन्हा सा बीज
मुस्कुराता हंसता
धरा से फूटा
       -सुशील शर्मा
लगा सदमा
मुरझाई तुलसी
चल बसी माँ
      -अभिषेक जैन
धूप दबंग
बाहर निकले
तो पसीना छूटे
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाँव चौपाल
पीपल चौरा देता
पंचों का न्याय
       -रमेश कुमार सोनी
जुगलबंदी
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वट के घर
राहगीरों का रेला
छाँव उत्सव
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
पीपल नीचे
राहगीरों का मेला
ताड़ अकेला
      -राजीव गोयल
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पिरोता रहा
आंसुओं की डोरी में
यादों के मोती
      -राजीव गोयल
सोना बखेरें
सूरज की किरणें
सागर वक्ष
     -जितेन्द्र वर्मा
थिरकी खूब
बनकर बाराती
दारू की घूँट
      -अभिषेक जैन
मुद्दत बाद
फिर जली अंगीठी
खुश रसोई
       -राजीव गोयल
सुबह शाम
सूरज की लालिमा
तुम्हारे नाम
       -निगम 'राज़'
बदला वक्त
तारा आसमान का
ज़मीं पे गिरा
      -राजीव गोयल
घर में बेटी
तुलसी का बिरवा
स्वर्ग का द्वार
       -सुशील शर्मा
चलते रहे
जिह्वा की कमान से
शब्दों के तीर
      -राजीव गोयल
छत में दिखे
चौदहवीं का चाँद
दो पाटों फंसा
       रमेश कुमार सोनी
नम है हवा
क्या रात भर तुम
रोईं थीं कल ?
       -राजीव गोयल
लड़ा के हवा
भागी आवारा हवा
लगा दी आग
        -राजीव गोयल
प्रीत की डोर
जोड़े ही रखिएगा
बात गहन
       -प्रियंका वाजपेयी
जीवन मृत्यु
सुबह और शाम
पूर्ण विराम
      -शिव डोयले
शाम हो गई
थक गया शहर
आस खो गई
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव 

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