श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु -२०१७, दिसंबर माह
तुम्हारा मन
चिड़िया सा चहका
मैं क्यों बहका
-सुशील शर्मा
तुम्हारे लिए
रेत पर उकेरे
मन के भाव
-सुशील शर्मा
दर्द छिपा है
मन में ऐसे, जैसे
रेत में नमी
-सुरंगमा यादव
पाषाण खंड
किनारे से निकली
हरित दूब
विष्णु प्रिय पाठक
जुगल बंदी --
*
थर्मामीटर
टेबल पर गिरा
ओस की बूँदें
-विष्णु प्रिय पाठक
पारा सरीखे
ढलके अश्रु-बिंदु
कपोल भू पे
-डा. रंजना वर्मा
*
शहर बड़ा
हर एक आदमी
अकेला खड़ा
सुशील शर्मा
कशमकश
तुझे मैं याद रखूँ
या भूल जाऊं
-सुशील शर्मा
नई कहानी
खुदा की मुझपर
मेहरबानी
-निगम 'राज़
लफ्जों की लेखी'
रचती इतिहास
पढ़ती सदी
-निगम 'राज़'
जागा संसार
गंध बाँट सो गया
हरसिंगार
डा. शिवजी श्रीवास्तव
लगती भली
धूप अगहन की
माँ की गोद सी
-शिव जी श्रीवास्तव
बनी कहानी
महकी रात भर
रात की रानी
-निगम 'राज़'
लापरवाही
कागज़ न कलम
खरीदी स्याही
-बलजीत सिंह
सत्संग हॉल
लाउडस्पीकर से
शान्ति का पाठ
-अभिशेख जैन
दिव्यांग बाला
मुख से बना रही
हाथ का चित्र
-विष्णु प्रिय पाठक
मन धरती
नव आशा अंकुर
लहक उठा
-सुरंगमा यादव
भौरों का कोप
मुरझा गए फूल
डरी कलियाँ
-अमन चांदपुरी
आंधी तूफ़ान
बादलों की ओट में
छिपा सूरज
-शिव डोयले
मन नाविक
तन नौका लेकर
दौड़ता फिरे
-सुरंगमा यादव
मन है ऐसा
निपुण निदेशक
नाच नचाए
-सुरंगमा यादव
भट्टी की राख
ढूँढ़ते घूमे कुत्ते
ठण्ड में रोते
सुरंगमा यादव
रश्मि के पैर
चल पड़े करने
धरा की सैर
अभिषेक जैन
रवि ने बुना
किरणों के धागे से
धूप दुशाला
-राजीव गोय
लक्ष्य विहीन
इत उत डोलती
जीवन नैया
-सूर्य किरण सोनी
स्वर्ण रश्मियाँ
झिलमिल नदिया
दीपशिखा सी
-सरंगामा यादव
शब्द कांटे भी
गुलाब के जैसे भी
छूकर देखें
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
नारी जीवन
आँगन की तुलसी
काशी मथुरा
-शिव डोयले
आसमां परे
ज़रूर कुछ तो है
खोजे परिंदा
जितेन्द्र वर्मा
पूस की ठण्ड
रात खोजती रही
सूर्य दुशाला
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
ओढ़ रजाई
शाम से सोया सूर्य
उठा देर से
सुरंगमा यादव
भाई है खूब
कतरा भर मिली
जाड़े की धूप
-निगम 'राज़'
निर्मल जल
बहता कल कल
पर्वत पुत्र
-डा. रंजना वर्मा
रहता रोता
बहता हुआ सोता
चुप न होता
-डा. रंजना वर्मा
हम हैं तने
समय के सामने
विद्रोही बने
-निगम 'राज़'
नाजों से पाला
पिजरा जब खुला
तोता जा उड़ा
दिनेश चन्द्र पाण्डेय
तप में लीन
धवल वसन में
खड़ा हिमाला
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
दस्तक भोर
उजालों ने उखाड़ी
रात कनात
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
स्वाति बूंद-सा
प्रेम बना है मोती
मन सीपी में
सुरंगमा यादव
बड़े ज्ञाता हो
मौन का अनुवाद
कर पाओगे ?
-पुष्पा सिन्धी
कैसी गरीबी
बदल लें नज़र
लोग करीबी
-बलजीत सिंह
ढूँढे न मिले
गौरैया व आँगन
दोनों ही गुम
-सुरंगमा यादव
छोटा जीवन
किन्तु महत्वपूर्ण
जैसे वसंत
-निगम 'राज़'
सबको भाता
देहरी पे सूरज
जब भी आता
-निगम 'राज़'
पिता का मन
मधुर नारियल
बाहर सख्त
-सुरंगमा यादव
बर्फ सी सर्दी
धुनियाँ की दूकान
हुई सफ़ेद
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
विद्या विहीन
कुर्सी पर पसरे
हम ही चुनें
-विष्णु प्रिय पाठक
भरने न दें
कलेजे के ज़ख्मों को
यादों के तीर
-राजीव गोयल
सूप ज़िंदगी
दुःख नमक बिना
बड़ी ही फीकी
-राजीव गोयल
पूस की रात
कम्पित दीप की लौ
दादी के हाथ
-विष्णु प्रिय पाठक
हर दीवाली
भगाया दरिद्दर
रहे निर्धन
सुरंगमा यादव
तडपे प्यासी
एक स्वाति के लिए
पानी में सीप
-राजीव गोयल
ऋतु हेमन्त
प्रकोष्ठ में कांपती
गुलदावरी
-विष्णु प्रिय पाठक
माँ के हाथ की
घी चुपड़ी पनेथी
यादों में शेष
-सुरंगमा यादव
अम्मा का ख़त
आँख हो गई नम
सीली फिजाएं
-राजीव गोयल
जलते बल्ब
रात पहाड़ पर
तारे जा बसे
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
सूर्य को देख
अकेला चमकता
लाखों में एक
बलजीत सिंह
दौड़ती हुई
न जाने कहाँ चली
व्यस्त ज़िंदगी
-प्रियंका वाजपेयी
मैके की याद
छौंक रही बहू
दाल के साथ
-अभिषेक जैन
जीवन पोथी
श्वेत पृष्ठ है कोई
कोई धूमिल
-सुरंगमा यादव
जो स्मृतियाँ हैं
मन के आँचल में
तितलियाँ हैं
- निगम 'राज़'
पुरवा आई
चन्दन वन से वो
खुश्बू लाई
-सूर्य नारायण गुप्ता 'सूर्य'
गर्दन झुका
जोड़े मोबाइल में
अंजाने रिश्ते
*
गर्दन तान
तोड़ देता अपने
पुराने रिश्ते
- राजीव गोयल
नीरव रात
व्याकुल पुकारता
मन पपीहा
-सुरंगमा यादव
पहाड़ यात्रा
सौन्दर्य की बारातें
नाचती आँखें
दिनेश चन्द्र पाण्डेय
प्यारा सा गाँव
तालाब का किनारा
नीम की छाँव
बलजीत सिंह
जुगल बंदी
ठूँठ पे बैठा
एक अकेला पक्षी
दोनों उदास
सुरंगमा यादव
अकेला पंछी
रहेगा कब तक
ठूँठ के साथ ?
-राजीव गोयल
---------------------
रेत बिखरी
सागर के किनारे
मोती न मिले
डॉ रंजना वर्मा
पूस की धूप
जवानी से पहले
आया बुढ़ापा
-सुरंगमा यादव
सैंटा की राह
मैया देखती रही
वृद्ध आश्रम
- अभिषेक जैन
मर्यादा मान
लक्ष्मण रेखा जैसी
ना जाना लांघ
-सूर्य किरण सोनी
मन पिघला
बह चली आँख से
करुणा धार
-सुरंगमा यादव
कैसे बढाएं
अमन का क़दम
लुटे हैं जूते
-विष्णु प्रिय पाठक
तीन तलाक़
हंसती ज़िंदगी से
किया मज़ाक़
-भीम प्रसाद प्रजापति
छोटा अनार
हज़ार मोतियों का
उठाए भार
-बलजीत सिंह
आंसू देकर
नींद हमारी लेकर
हा ! सोए तुम
-सुरंगमा यादव
जुगलबंदी
-----------
लिख रहा हूँ
ज़िंदगी की किताब
वक्त के पन्ने
शिव डोयले
लिख रही है
ज़िंदगी की किताब
वक्त की स्याही
राजीव गोयल
-------------
भौरों ने गाया
फूल बनती गईं
कलियाँ सभी
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
म्यूजियम में
बनावटी पुतले
शहरी लोग
-सुरंगमा यादव
नव डायरी
लिखूँ तेरा ही नाम
अधूरा ख़्वाब
-विष्णु प्रिय पाठक
सरक रहा
छोड़ याद केंचुली
पुराना साल
-राजीव गोयल
नव वर्ष में
करें नए संकल्प
बीती बिसार
-सुरंगमा यादव
नव वासर
हर पल नवीन
बुनता साल
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
-------------------------------
------------------समाप्त ----
तुम्हारा मन
चिड़िया सा चहका
मैं क्यों बहका
-सुशील शर्मा
तुम्हारे लिए
रेत पर उकेरे
मन के भाव
-सुशील शर्मा
दर्द छिपा है
मन में ऐसे, जैसे
रेत में नमी
-सुरंगमा यादव
पाषाण खंड
किनारे से निकली
हरित दूब
विष्णु प्रिय पाठक
जुगल बंदी --
*
थर्मामीटर
टेबल पर गिरा
ओस की बूँदें
-विष्णु प्रिय पाठक
पारा सरीखे
ढलके अश्रु-बिंदु
कपोल भू पे
-डा. रंजना वर्मा
*
शहर बड़ा
हर एक आदमी
अकेला खड़ा
सुशील शर्मा
कशमकश
तुझे मैं याद रखूँ
या भूल जाऊं
-सुशील शर्मा
नई कहानी
खुदा की मुझपर
मेहरबानी
-निगम 'राज़
लफ्जों की लेखी'
रचती इतिहास
पढ़ती सदी
-निगम 'राज़'
जागा संसार
गंध बाँट सो गया
हरसिंगार
डा. शिवजी श्रीवास्तव
लगती भली
धूप अगहन की
माँ की गोद सी
-शिव जी श्रीवास्तव
बनी कहानी
महकी रात भर
रात की रानी
-निगम 'राज़'
लापरवाही
कागज़ न कलम
खरीदी स्याही
-बलजीत सिंह
सत्संग हॉल
लाउडस्पीकर से
शान्ति का पाठ
-अभिशेख जैन
दिव्यांग बाला
मुख से बना रही
हाथ का चित्र
-विष्णु प्रिय पाठक
मन धरती
नव आशा अंकुर
लहक उठा
-सुरंगमा यादव
भौरों का कोप
मुरझा गए फूल
डरी कलियाँ
-अमन चांदपुरी
आंधी तूफ़ान
बादलों की ओट में
छिपा सूरज
-शिव डोयले
मन नाविक
तन नौका लेकर
दौड़ता फिरे
-सुरंगमा यादव
मन है ऐसा
निपुण निदेशक
नाच नचाए
-सुरंगमा यादव
भट्टी की राख
ढूँढ़ते घूमे कुत्ते
ठण्ड में रोते
सुरंगमा यादव
रश्मि के पैर
चल पड़े करने
धरा की सैर
अभिषेक जैन
रवि ने बुना
किरणों के धागे से
धूप दुशाला
-राजीव गोय
लक्ष्य विहीन
इत उत डोलती
जीवन नैया
-सूर्य किरण सोनी
स्वर्ण रश्मियाँ
झिलमिल नदिया
दीपशिखा सी
-सरंगामा यादव
शब्द कांटे भी
गुलाब के जैसे भी
छूकर देखें
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
नारी जीवन
आँगन की तुलसी
काशी मथुरा
-शिव डोयले
आसमां परे
ज़रूर कुछ तो है
खोजे परिंदा
जितेन्द्र वर्मा
पूस की ठण्ड
रात खोजती रही
सूर्य दुशाला
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
ओढ़ रजाई
शाम से सोया सूर्य
उठा देर से
सुरंगमा यादव
भाई है खूब
कतरा भर मिली
जाड़े की धूप
-निगम 'राज़'
निर्मल जल
बहता कल कल
पर्वत पुत्र
-डा. रंजना वर्मा
रहता रोता
बहता हुआ सोता
चुप न होता
-डा. रंजना वर्मा
हम हैं तने
समय के सामने
विद्रोही बने
-निगम 'राज़'
नाजों से पाला
पिजरा जब खुला
तोता जा उड़ा
दिनेश चन्द्र पाण्डेय
तप में लीन
धवल वसन में
खड़ा हिमाला
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
दस्तक भोर
उजालों ने उखाड़ी
रात कनात
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
स्वाति बूंद-सा
प्रेम बना है मोती
मन सीपी में
सुरंगमा यादव
बड़े ज्ञाता हो
मौन का अनुवाद
कर पाओगे ?
-पुष्पा सिन्धी
कैसी गरीबी
बदल लें नज़र
लोग करीबी
-बलजीत सिंह
ढूँढे न मिले
गौरैया व आँगन
दोनों ही गुम
-सुरंगमा यादव
छोटा जीवन
किन्तु महत्वपूर्ण
जैसे वसंत
-निगम 'राज़'
सबको भाता
देहरी पे सूरज
जब भी आता
-निगम 'राज़'
पिता का मन
मधुर नारियल
बाहर सख्त
-सुरंगमा यादव
बर्फ सी सर्दी
धुनियाँ की दूकान
हुई सफ़ेद
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
विद्या विहीन
कुर्सी पर पसरे
हम ही चुनें
-विष्णु प्रिय पाठक
भरने न दें
कलेजे के ज़ख्मों को
यादों के तीर
-राजीव गोयल
सूप ज़िंदगी
दुःख नमक बिना
बड़ी ही फीकी
-राजीव गोयल
पूस की रात
कम्पित दीप की लौ
दादी के हाथ
-विष्णु प्रिय पाठक
हर दीवाली
भगाया दरिद्दर
रहे निर्धन
सुरंगमा यादव
तडपे प्यासी
एक स्वाति के लिए
पानी में सीप
-राजीव गोयल
ऋतु हेमन्त
प्रकोष्ठ में कांपती
गुलदावरी
-विष्णु प्रिय पाठक
माँ के हाथ की
घी चुपड़ी पनेथी
यादों में शेष
-सुरंगमा यादव
अम्मा का ख़त
आँख हो गई नम
सीली फिजाएं
-राजीव गोयल
जलते बल्ब
रात पहाड़ पर
तारे जा बसे
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
सूर्य को देख
अकेला चमकता
लाखों में एक
बलजीत सिंह
दौड़ती हुई
न जाने कहाँ चली
व्यस्त ज़िंदगी
-प्रियंका वाजपेयी
मैके की याद
छौंक रही बहू
दाल के साथ
-अभिषेक जैन
जीवन पोथी
श्वेत पृष्ठ है कोई
कोई धूमिल
-सुरंगमा यादव
जो स्मृतियाँ हैं
मन के आँचल में
तितलियाँ हैं
- निगम 'राज़'
पुरवा आई
चन्दन वन से वो
खुश्बू लाई
-सूर्य नारायण गुप्ता 'सूर्य'
गर्दन झुका
जोड़े मोबाइल में
अंजाने रिश्ते
*
गर्दन तान
तोड़ देता अपने
पुराने रिश्ते
- राजीव गोयल
नीरव रात
व्याकुल पुकारता
मन पपीहा
-सुरंगमा यादव
पहाड़ यात्रा
सौन्दर्य की बारातें
नाचती आँखें
दिनेश चन्द्र पाण्डेय
प्यारा सा गाँव
तालाब का किनारा
नीम की छाँव
बलजीत सिंह
जुगल बंदी
ठूँठ पे बैठा
एक अकेला पक्षी
दोनों उदास
सुरंगमा यादव
अकेला पंछी
रहेगा कब तक
ठूँठ के साथ ?
-राजीव गोयल
---------------------
रेत बिखरी
सागर के किनारे
मोती न मिले
डॉ रंजना वर्मा
पूस की धूप
जवानी से पहले
आया बुढ़ापा
-सुरंगमा यादव
सैंटा की राह
मैया देखती रही
वृद्ध आश्रम
- अभिषेक जैन
मर्यादा मान
लक्ष्मण रेखा जैसी
ना जाना लांघ
-सूर्य किरण सोनी
मन पिघला
बह चली आँख से
करुणा धार
-सुरंगमा यादव
कैसे बढाएं
अमन का क़दम
लुटे हैं जूते
-विष्णु प्रिय पाठक
तीन तलाक़
हंसती ज़िंदगी से
किया मज़ाक़
-भीम प्रसाद प्रजापति
छोटा अनार
हज़ार मोतियों का
उठाए भार
-बलजीत सिंह
आंसू देकर
नींद हमारी लेकर
हा ! सोए तुम
-सुरंगमा यादव
जुगलबंदी
-----------
लिख रहा हूँ
ज़िंदगी की किताब
वक्त के पन्ने
शिव डोयले
लिख रही है
ज़िंदगी की किताब
वक्त की स्याही
राजीव गोयल
-------------
भौरों ने गाया
फूल बनती गईं
कलियाँ सभी
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
म्यूजियम में
बनावटी पुतले
शहरी लोग
-सुरंगमा यादव
नव डायरी
लिखूँ तेरा ही नाम
अधूरा ख़्वाब
-विष्णु प्रिय पाठक
सरक रहा
छोड़ याद केंचुली
पुराना साल
-राजीव गोयल
नव वर्ष में
करें नए संकल्प
बीती बिसार
-सुरंगमा यादव
नव वासर
हर पल नवीन
बुनता साल
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
-------------------------------
------------------समाप्त ----
जवाब देंहटाएंअथक श्रम को नमन
आप और आपके पुरे परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
HAPPY NEW YEAR 2018
बधाई व शुभकामनाएँ....
जवाब देंहटाएंइस दुरूह कार्य हेतु साधुवाद...
फिर हमारी
श्रेष्ठ में हिस्सेदारी
अबकी बारी ।
हमेशा की तरह माह दिसंबर में भी हाइकु का श्रेष्ठ संग्रह मन को मुग्ध कर गया। मेरी रचनाओं को श्रेष्ठ रचनाओं में स्थान देने के लिए सादर आभार।
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