श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - मार्च माह
खेलें वो फाग
बुझ जाए बैर की
दिल से आग
-सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
रोज़ सुबह
अखबार से आए
खूनी बौछार
-राजीव गोयल
होली की आग
करे भस्म विषमता
लाए समता
-डा. रंजना वर्मा
नन्द के लाल
लिए रंग गुलाल
राधा बेहाल
-सुशील शर्मा
पलाश फूल
धरा पर बिखरा
होली का रंग
-विष्णु प्रिय पाठक
नन्हीं गौरैया
हो चली है विलुप्त
फाग के गीत
-विष्णु प्रिय पाठक
मैंने जो रचा
सपनों का घरौंदा
वक्त ने रौंधा
सूर्य नारायण गुप्त
होली तो होली
पर गांठें मन की
क्या तूने खोलीं ?
-राजीव गोयल
नभ के गाल
उषा करे ठिठोली
मले गुलाल
-सुरंगमा यादव
पूर्णिमा रात
चन्द्र घट छलका
बिखरी चांदनी
-सुरंगमा यादव
खिज़ा की मार
दरख्तों ने खो दिया
रूप श्रृंगार
-राजीव गोयल
बड़े चुभते
कांच की किरच से
टूटते रिश्ते
सुशील शर्मा
लाल चूनर
गदराया सेमल
युवा बसंत
-राम कृष्ण त्रिवेदी 'मधुकर'
जुगलबंदी
------------
गहन वन
भूलती पगडंडी
अपना पथ
-शिव डोयले
जीवन रेखा
पगडंडियाँ होतीं -
पहाड़ों पर
-राजीव गोयल
--------------------
फिर उभरा
यादों के दर्पण में
अक्स तुम्हारा
-सुरंगमा यादव
सूरज उगा
फूलों पर ठिठका
मोती टपका
डा. रंजना वर्मा
नन्हीं कोंपल
कंकाल दरख़्त पे
नई ग़ज़ल
विष्णु प्रिय पाठक
मन में भाव
युद्ध अनवरत
कभी न रुके
-डा. रंजना वर्मा
नारी की व्यथा
द्रोपदी,मीरा, राधा
सीता की कथा
-सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
रीत जाता है
जीवन अनकहा
बीत जाता है
-निगम 'राज'
शक्ति स्वरूपा
नारी ही नारायणी
करुणा मूर्ति
-डा. रंजना वर्मा
अपराजिता.
हर पल प्रिय से
हारती रही
-सुशील शर्मा
अतिथि जैसा
है महिला दिवस
आया व गया
-पुष्पा सिन्धी
सबसे न्यारा
जो दूर है सितारा
वही हमारा
-निगम 'राज़'
सूर्य-घट से
छलके स्वर्ण-कण
रचते धूप
-कमल कपूर
मन उमंग
स्वार्थ की भीड़ देख
हो गया दंग
-सूर्य नारायण 'सूर्य'
उठती रही
तेरी याद लहर
मन सागर
-राजीव गोयल
दौड़ा विकास
टूटी सडकों पर
लुढ़क गया
विष्णु प्रिय पाठक
उलझे रहे.
शिकायतों का बुना
मकड़ जाल
सुरंगमा यादव
फूलों की घाटी
हरे-भरे पहाड़
धरा की थाती
-सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
ख़्वाब बांटती
नीद की गलियों में
बावरी रात
-कमल कपूर
बिना विवाद
छोड़ देते आसन
पात पुराने
-सुरंगमा यादव
देह ने किया
साँसों से अनुबंध
सच्चा सम्बन्ध
-पुष्पा सिन्धी
बड़े शहर
छोटा होता जा रहा
'इंसानी' क़द
-राजीव गोयल
चूर चूर हूँ
टुकड़े हुआ अहं
स्व से दूर हूँ
-प्रियंका वाजपेयी
राधा अनंग
रंगी कृष्ण के रंग
गोपियाँ दंग
-निगम 'राज़'
ताली बजाती
जूतों का चित्र बना
बेपैर बच्ची
-पुष्पा सिन्धी
a bird's nest
will never be broken
it's my house
-Tukaram khillare
घर मेरा है
घोंसला चिड़िया का
तोडूंगा नहीं
अनुवाद (सु. व.)
कंक्रीट वन
छाँव बरगद की
ढूँढ़ते खग
- राजीव गोयल
बदली ऋतु
धूप बदहवास
आँगन रोए
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
देखा दर्पण
भूल गए ढूँढ़ना
चाँद का दाग
-सुरंगमा यादव
प्यासी गौरैया
नदी के तट पर
सकोरा ढूँढे
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
नन्ही गौरिया
दर्पण निहारती
चोंच मारती
-सुरेश शर्मा
राग दीपक
गौरैया मार रही
टोंटी पे चोंच
-विष्णु प्रिय पाठक
प्यासे पखेरू
नदी में तलाशते
दो बूंद पानी
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
सजी कविता
पुलकित आखर
श्रृंगार करें
पुष्पा सिन्घी
खिली धूप में
होती जब बारिश
नहाता सूर्य
-सुरंगमा यादव
गरम हवा
अम्बिया को छू कर
करती जवां
-सूर्य किरण सोनी
भूला खिलौने
बच्चा बना श्रमिक
प्लेट धो रहा
-डा, रंजना वर्मा
बारह खड़ी
धूल में उकेरता
श्रमिक पुत्र
-डा. रंजना वर्मा
बड़े सकारे
छुट्टन गओ खेत
भैंस रंभाए
(बुन्देलखंडी) -नरेन्द्र श्रीवास्तव
तप्त तवे पे
जल बिंदु-सी स्वाहा
क्रोध में मति
-सुरंगमा यादव
पकते गीत
भावों की अंगीठी पे
कवि के मन
-राजीव गोयल
बुरा है दौर
लूट के चल दिए
दिन में चोर
-सूर्य किरण सोनी
उठा सवाल
कब तक बवाल
राम बेहाल
-डा. रंजना वर्मा
हल्की फुहार
सौन्दर्य का दर्पण
देती निखार
-वलजीत सिंह
दृगों के गाँव
बसती छबि राम
स्पंदित प्राण
-पुष्पा सिंधी
सचेत सीते
कितने ही मारीच
आज घूमते
-सुरंगमा यादव
आज अचानक
आई कड़वी याद
मन कसैला
-सुरंगमा यादव
अन्धेरा भी है
जीवन तेरे संग
सवेरा भी है
-सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
जुगलबंदी
-----------
जगत रीत
है झूठा अभिनय
सत्य प्रतीत
-पुष्पा सिन्धी
जग की रीत
चलदिए पल में
तोड़ के प्रीत
-सुरंगमा यादव
------------------
घर चौबारे
मेहनत के रंग
सजाते सारे
-बलजीत सिंह
कैसा स्वराज
कैद है कबूतर
मुक्त है बाज़
सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य'
जुगलबंदी
-------------
था निर्जीव वो
मिली हवा से सांस
जी उठा बांस
-राजीव गोयल
मैं बुझा सा था
मिला दोस्तों का साथ
हूँ खिला खिला
-राजीव निगम 'राज़'
-----------------
--------------समाप्त----------------
खेलें वो फाग
बुझ जाए बैर की
दिल से आग
-सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
रोज़ सुबह
अखबार से आए
खूनी बौछार
-राजीव गोयल
होली की आग
करे भस्म विषमता
लाए समता
-डा. रंजना वर्मा
नन्द के लाल
लिए रंग गुलाल
राधा बेहाल
-सुशील शर्मा
पलाश फूल
धरा पर बिखरा
होली का रंग
-विष्णु प्रिय पाठक
नन्हीं गौरैया
हो चली है विलुप्त
फाग के गीत
-विष्णु प्रिय पाठक
मैंने जो रचा
सपनों का घरौंदा
वक्त ने रौंधा
सूर्य नारायण गुप्त
होली तो होली
पर गांठें मन की
क्या तूने खोलीं ?
-राजीव गोयल
नभ के गाल
उषा करे ठिठोली
मले गुलाल
-सुरंगमा यादव
पूर्णिमा रात
चन्द्र घट छलका
बिखरी चांदनी
-सुरंगमा यादव
खिज़ा की मार
दरख्तों ने खो दिया
रूप श्रृंगार
-राजीव गोयल
बड़े चुभते
कांच की किरच से
टूटते रिश्ते
सुशील शर्मा
लाल चूनर
गदराया सेमल
युवा बसंत
-राम कृष्ण त्रिवेदी 'मधुकर'
जुगलबंदी
------------
गहन वन
भूलती पगडंडी
अपना पथ
-शिव डोयले
जीवन रेखा
पगडंडियाँ होतीं -
पहाड़ों पर
-राजीव गोयल
--------------------
फिर उभरा
यादों के दर्पण में
अक्स तुम्हारा
-सुरंगमा यादव
सूरज उगा
फूलों पर ठिठका
मोती टपका
डा. रंजना वर्मा
नन्हीं कोंपल
कंकाल दरख़्त पे
नई ग़ज़ल
विष्णु प्रिय पाठक
मन में भाव
युद्ध अनवरत
कभी न रुके
-डा. रंजना वर्मा
नारी की व्यथा
द्रोपदी,मीरा, राधा
सीता की कथा
-सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
रीत जाता है
जीवन अनकहा
बीत जाता है
-निगम 'राज'
शक्ति स्वरूपा
नारी ही नारायणी
करुणा मूर्ति
-डा. रंजना वर्मा
अपराजिता.
हर पल प्रिय से
हारती रही
-सुशील शर्मा
अतिथि जैसा
है महिला दिवस
आया व गया
-पुष्पा सिन्धी
सबसे न्यारा
जो दूर है सितारा
वही हमारा
-निगम 'राज़'
सूर्य-घट से
छलके स्वर्ण-कण
रचते धूप
-कमल कपूर
मन उमंग
स्वार्थ की भीड़ देख
हो गया दंग
-सूर्य नारायण 'सूर्य'
उठती रही
तेरी याद लहर
मन सागर
-राजीव गोयल
दौड़ा विकास
टूटी सडकों पर
लुढ़क गया
विष्णु प्रिय पाठक
उलझे रहे.
शिकायतों का बुना
मकड़ जाल
सुरंगमा यादव
फूलों की घाटी
हरे-भरे पहाड़
धरा की थाती
-सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
ख़्वाब बांटती
नीद की गलियों में
बावरी रात
-कमल कपूर
बिना विवाद
छोड़ देते आसन
पात पुराने
-सुरंगमा यादव
देह ने किया
साँसों से अनुबंध
सच्चा सम्बन्ध
-पुष्पा सिन्धी
बड़े शहर
छोटा होता जा रहा
'इंसानी' क़द
-राजीव गोयल
चूर चूर हूँ
टुकड़े हुआ अहं
स्व से दूर हूँ
-प्रियंका वाजपेयी
राधा अनंग
रंगी कृष्ण के रंग
गोपियाँ दंग
-निगम 'राज़'
ताली बजाती
जूतों का चित्र बना
बेपैर बच्ची
-पुष्पा सिन्धी
a bird's nest
will never be broken
it's my house
-Tukaram khillare
घर मेरा है
घोंसला चिड़िया का
तोडूंगा नहीं
अनुवाद (सु. व.)
कंक्रीट वन
छाँव बरगद की
ढूँढ़ते खग
- राजीव गोयल
बदली ऋतु
धूप बदहवास
आँगन रोए
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
देखा दर्पण
भूल गए ढूँढ़ना
चाँद का दाग
-सुरंगमा यादव
प्यासी गौरैया
नदी के तट पर
सकोरा ढूँढे
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
नन्ही गौरिया
दर्पण निहारती
चोंच मारती
-सुरेश शर्मा
राग दीपक
गौरैया मार रही
टोंटी पे चोंच
-विष्णु प्रिय पाठक
प्यासे पखेरू
नदी में तलाशते
दो बूंद पानी
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
सजी कविता
पुलकित आखर
श्रृंगार करें
पुष्पा सिन्घी
खिली धूप में
होती जब बारिश
नहाता सूर्य
-सुरंगमा यादव
गरम हवा
अम्बिया को छू कर
करती जवां
-सूर्य किरण सोनी
भूला खिलौने
बच्चा बना श्रमिक
प्लेट धो रहा
-डा, रंजना वर्मा
बारह खड़ी
धूल में उकेरता
श्रमिक पुत्र
-डा. रंजना वर्मा
बड़े सकारे
छुट्टन गओ खेत
भैंस रंभाए
(बुन्देलखंडी) -नरेन्द्र श्रीवास्तव
तप्त तवे पे
जल बिंदु-सी स्वाहा
क्रोध में मति
-सुरंगमा यादव
पकते गीत
भावों की अंगीठी पे
कवि के मन
-राजीव गोयल
बुरा है दौर
लूट के चल दिए
दिन में चोर
-सूर्य किरण सोनी
उठा सवाल
कब तक बवाल
राम बेहाल
-डा. रंजना वर्मा
हल्की फुहार
सौन्दर्य का दर्पण
देती निखार
-वलजीत सिंह
दृगों के गाँव
बसती छबि राम
स्पंदित प्राण
-पुष्पा सिंधी
सचेत सीते
कितने ही मारीच
आज घूमते
-सुरंगमा यादव
आज अचानक
आई कड़वी याद
मन कसैला
-सुरंगमा यादव
अन्धेरा भी है
जीवन तेरे संग
सवेरा भी है
-सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
जुगलबंदी
-----------
जगत रीत
है झूठा अभिनय
सत्य प्रतीत
-पुष्पा सिन्धी
जग की रीत
चलदिए पल में
तोड़ के प्रीत
-सुरंगमा यादव
------------------
घर चौबारे
मेहनत के रंग
सजाते सारे
-बलजीत सिंह
कैसा स्वराज
कैद है कबूतर
मुक्त है बाज़
सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य'
जुगलबंदी
-------------
था निर्जीव वो
मिली हवा से सांस
जी उठा बांस
-राजीव गोयल
मैं बुझा सा था
मिला दोस्तों का साथ
हूँ खिला खिला
-राजीव निगम 'राज़'
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--------------समाप्त----------------
वाह वाह
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