शनिवार, 30 जून 2018

श्रेष्ठ हिंदी हाइकु : जून माह

श्रेष्ठ हिंदी हाइकु - जून माह

रात अंधेरी
अँधेरे में रोशनी
करे तलाश
       शिव डोयले
वश न चला '
विवशता बरसी  .
नैनों की राह
        -सुरंगमा यादव
पडी फुहार
धरा पर बिखरा
नभ का प्यार
        -सुरंगमा यादव
पुष्प कमल
नारी का अंतर्मन
शीश महल
        सूर्य करण 'सरोज'
कैसा दस्तूर
बेगाने नज़दीक
अपने दूर
        -बलजीत सिंह
खुद कमाना
बस दो जून रोटी
रिश्ता पुराना
       -इंद्र कुमार दीक्षित
पानी है खून
जंग का जुनून
भूखी बंदूक
     -सुशील शर्मा
रंक की भूख
आंसू सहेज कर
पी गई दुख
    -सूर्य किरण 'सरोज'
कच्चा मकान
पसर गई नींद
मूंज की खाट
       -पुष्पा सिन्धी
प्रत्येक पौधा
पर्यावरण हेतु
बना है योद्धा
        -बलजीत सिंह
पुरवा आई
चन्दन बन से वो
खुशबू लाई
       -सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
लाचार बूढा
भर के गुब्बारों में
बेचता साँसें
        -राजीव गोयल
मन की पूंजी
प्रसन्नता की कुंजी
प्रेम सर्वस्व
       -सुरंगमा यादव
धूप मार्ग में
तपन का जुलूस
छाँव रक्षक
      नरेन्द्र श्रीवास्तव
वृक्षारोपण
नव वस्त्रों से खुश
पर्यावरण
       सूर्य कारन 'सरोज'
प्रकृति रोती
धूल धुआं कचरा
जलती छाती
       -रमेश कुमार सोनी
धरा विन्यास
हरित आवरण
जग उल्लास
       सुरंगमा यादव
एक जंगल
मुट्ठीभर पादप
असंख्य साँसें
       सुशील शर्मा
पिघली बर्फ
झुकता हिमालय
जल संकट
      -डा. रंजना वर्मा
झील में चाँद
नहाया रातभर
तर-ओ-ताज़ा
      -भीम प्रसाद प्रजापतिं
डाली का फूल
नाजुक सी ज़िंदगी
करे कबूल
      -बलजीत सिंह
बोई जो नींद
अंखियों के गमले
उगे सपने
      -राजीव गोयल
अनाथ बच्ची
लावारिस घूमती
कटी पतंग
       -विष्णु प्रिय पाठक
बांह पसार
मेघों की मनुहार
करते वृक्ष
      -सुरंगमा यादव
बंजारा मन
जाएगा किस ओर
कोई न जाने
       -सुरंगमा यादव
मंद हवा सी
छू लूं चुपचाप
रूप तुम्हारा
       -सुरंगमा यादव
रात ने फोडी
सियाही की मटकी
धरा बेरंग
      -राजीव गोयल
लापरवाही
कागज़ न कलम
खरीदी स्याही
       बलजीत सिंह
झूमते वृक्ष
इठलाती बारिश
नहाता पानी
       सुशील शर्मा
आषाढी आस
कृषक स्वप्न बोता
बेटी का गौना
        पुष्पा सिन्धी
सघन वन
डोल रही पवन
बजे झांझर
      डा. रंजना वर्मा
जुगल बंदी
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हवा का झूला
झूल रही ज़िंदगी
पतली डोर
   डा. रंजना वर्मा
साँसों की लय
चलती रहे यूँ ही
कहे पवन
       सुरंगमा यादव
--------------
सूखी खेतियाँ
बह चला आँखों से
एक दरिया
       -राजीव गोयल
प्राथमिक हो
दायित्व का निर्वाह
वास्तविक हो
        -निगम 'राज़'
तोड़ता बाँध
लहरों का उछाल
पूरा है चाँद
        -राजीव गोयल
पिता का नाम
आता ताउम्र काम
उसे सलाम
      -निगम 'राज़'
नि:शब्द हूँ मैं
पितृ दिवस आज
पापा कहाँ हैं ?
       -पुष्पा सिन्धी
पिता का होना
सूरज का उजाला
चाँदनीं रातें
       नरेन्द्र श्रीवास्तव
लड़ाई में भी
अपनी औलाद से
हारते पिता
      -शिव डोयले
हर सांस पे
पिता का हस्ताक्षर
भूलें तो कैसे ?
       -सुरंगमा यादव
सुमन खिला
उपवन महका
छू गई हवा
       -डा. रंजना वर्मा
आवागमन
श्वास-प्रियतमा का
यही जीवन
      निगम 'राज़'
मन बैसाख
सावन सी बरसी
प्रेम फुहार
      -सुरंगमा यादव
चाँद बुनता
चांदनी की चूनर
ओढ़ती धरा
      -राजीव गोयल
बरसो मेघ
फट रही बिवाई
धरा के पैर
       -राजीव गोयल
निशा विहंसी
गगन पर बिखरे
रजत पुष्प
       सुरंगमा यादव
भागते रहे
अपने परायों से
कभी खुद से
      सुरंगमा यादव
अतिविस्तृत
खगों का कर्म क्षेत्र
नभ असीम
       -डा. रंजना श्रीवास्तव
चन्द्र प्रकाश
देती रही मन को
ठण्ड मिठास
       -बी पी प्रजापति
पहली वर्षा
चीटीं बनाने लगीं
अपना घर
      विष्णु प्रिय पाठक
तुम्हारे बिन
पतझड़ का वृक्ष
मेरा जीवन
      -सुरंगमा यादव
धर दबोचें
भागते सपनों को
जिद के हाथ
       -अभिषेक जैन
ईंगुर गोली
वर्षा की हमजोली
बीरबहूटी
       -डा. रंजना वर्मा
बीमार दादा
मरम्मत न हुआ
जर्जर छाता
        -पुष्पा सिन्धी
बरखा रानी
पात पात बिखरीं
हीरे की कनीं
       -सुरंगमा यादव
कबीर मन
कभी बाहर खड़ा
कभी अंतस
       -सुशील शर्मा
वक्त की गर्द
आँगन में पसरी
बंद मकान
       -डा. राजीव गोयल
ढलता रवि
उफ़क पे बिखेरे
अनूठे रंग
       (हाइगा) -डा. राजीव गोयल
जुगलबंदी
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प्यासी नदिया
समंदर किनारे
भाग्य कोसती
       शिव डोयले
प्यासी नदिया
मेघ बरसने की
बात जोहती
      डा. राजीव गोयल
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यादों का देश
भटकता फिरता
एकाकी मन
      -सुरंगमा यादव
मुग्ध वल्लरी
सावन की डोकरी
जादूगरनी
      -पुष्पा सिंघी
आँखों ने देखे
बारिश के सपने
फिसले पैर
        डा. राजीव गोयल
     












     








रविवार, 3 जून 2018

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - मई माह

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - मई माह

तारा भू टूटा
रहा कोई खड़ा
चोटी पे सदा
      राजीव गोयल
थका बटोही
आम्र कुंजों ने थामीं
स्वेद की बूँदें
        -रमेश कुमार सोनी
चाँद ले आया
सपनों की गठरी
नींद ले उड़ी
     -नरेंद्र श्रीवास्तव
चीख न सुनी
अंधे बहरे गूंगे
गुज़रे लोग
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
जलते रिश्ते
प्यार की छाँव ढूँढे
बेचैन मन
         -सुरंगमा यादव
जीत के जंग
लौटे बस शरीर
ज़िंदगी हारी
         -राजीव गोप्यल
प्रेम में पगी
यादों की सोनपत्ती
सूखी भी हरी
       -रमेश कुमार सोनी
गंध रोटी की
बज रहे कंगन
किताब बंद
       -तुकाराम खिल्लारे
नीयत सच्ची
मेहनत की रोटी
लगती अच्छी
       बलजीत सिंह
सूना पिंजरा
पंछी क्षितिज पर
स्मृति-अम्बार \ 
       -पुष्पा सिन्धी
मेरे मन को
बहका के ले जाती
बहकी हवा
        -अमन चांदपुरी
धान लगाती
ढेर सारी गोपियाँ
कजरी गातीं
        -अमन चाँदपुरी
श्रम से रोज़
करती गिलहरी
दानों की खोज
      -सूर्य करण 'सरोज'
चांदनी छाई
रूप की रानी बन
वह लजाई
      -सूर्य नारायण गुप्त
कैसी लड़ाई
मुस्कुराए  पड़ोसी
झगड़ें भाई
      -बलजीत सिंह
मन की रेत
कुरेदी तनिक सी
नमी ही नमी
        -सुरंगमा यादव
फागुन मास
धरा पर चांदनी
करे विलास
        -बलजीत सिंह
जेठ की धूप
मध्यान्ह में अकेली
क्रोध से जली
     -रमेश कुमार सोनी
मरण-शैया
हंसने लगा बूढा
शैशव फोटो
        -तुकाराम खिल्लारे
कैसा शीतल
कल कल बहता
गंगा का जल
        -इंद्र कुमार दीक्षित
अन्दरखाने
क्या कुछ चलता
राम न जाने
       -इंद्र कुमार दीक्षित
धूप में छाँव
माँ, जाड़ों में अलाव
सुहानी शाम
       राजीव गोयल
माँ का आँचल
राहत का बादल
होता संबल
       -राजीव निगम 'राज'
मन गुबार
धुंध ही धुंध छायी
दृश्यता घटी
      -सुरंगमा यादव
रहे न रहे
सिर्फ माँ याद आती
दुःख की वेला
       -रमेश कुमार सोनी
बहला गया
माँ तेरा स्पर्श मुझे
सहला गया
       सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'

जुगल बंदी

कैसी हो मम्मी
बड़े बच्चे भटके
पूछना भूले
        -रमेश कुमार सोनी
मैया सिकुड़ी
संसार फैलाकर
कोने में पडी
         -अभिशेख जैन
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जा नहीं सका
खुदा हर घर में
तो माँ भेज दी
       -राजीव गोयल
माँ की ममता
कोई नहीं समता
अतुलनीय
         -रंजना वर्मा
रंग अनंत
रब ने, माँ में उन्हें
किया जीवंत
        सूर्य किरण सोनी 'सरोज'
मातृ दिवस
माँ की तस्वीर पर
फूलों की लड़ी !
        विष्णु प्रिय पाठक
होकर चूर
सपनों का दर्पण
देता चुभन
        -सुरंगमा यादव
हूँ मजबूर
वतन की खातिर
अपने दूर
      सूर्य कारन 'सरोज'
नींद न हंसी
पत्थरों के देश में
प्रीति यूं फंसी
        सूर्य नारायण 'सूर्य'
जग के लिए
संचित करे गुरु
ज्ञान का मधु
       -सुरंगमा यादव
हवा की धुन
थिरकती डालियाँ
पाँव के बिन
        सुरंगमा यादव
लूट ले गया
एक नर पिशाच
कुंवारे ख्वाब
        -राजीव गोयल
नैन प्रपात
भीगे मसि-कागद
लौटी बारात
        पुष्पा सिन्धी
मेघा बरसे
भागी उन्मादी नदी
तोड़ किनारे
       -राजीव गोयल
दुष्ट मनई
जहां रही तहवाँ
करी कनई
        -भीष्म प्रजापति
मेघ चिरौरी
भरो राम तलैया
प्यासी चिरैया
        -सुरंगमा यादव
धुंधला चाँद
क्षितिज छोर पर
निशा का आंसू
        -डा, रंजना वर्मा
मिट्टी का दीया
कुम्हारिन का दर्द
किसने जिया
        सुशील शर्मा
गोधूली शाम
रामधुन के स्वर
ऊंघता गाँव
       -सुशील शर्मा
हो जाती सुखी
निहार रवि मुख
सूरजमुखी
        -कमल कपूर
शाख पे बैठे
शांत और गुमसुम
जवाकुसुम
      -कमल कपूर
गोरे सजीले
सुरभि के टोकरे
श्वेत मोगरे
       -कमल कपूर 
पिरोता रहा
यादों की डोरियों में
आंसू के मोती 
       -राजीव गोयल
चाल में सर्प
श्रृंग से भू पे जल
सद्यस्नाता स्त्री
        -विभा रानी श्रीवास्तव
मेल-मिलाप
जीवन के वृत्त में
खुशी की चाप
         बलजीत सिंह
शुद्ध निश्छल
बहता प्रतिपल
आगत कल
         -सुशील शर्मा
आँखों के घड़े
अंसुअन से भरे
कंठ हैं प्यासे
        -रमेश कुमार सोनी
भोर का रवि
कैसी निराली छवि
तिमिर हवि
         -डा. रंजना वर्मा
प्रेम का सेतु
सहज पूरी हुई
दिलों की दूरी
       -सुरंगमा यादव
रात अंधेरी
गा रही तनहाई
मौन सुनता
      -डा. रंजना वर्मा
मुदित गाँव
पत्तों की पायलिया
वृक्षों के पाँव
        -पुष्पा सिन्धी
समुद्री द्वीप
बलखाती लहरें
मेघ समीप
       -सूर्य करण 'सरोज'