श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु (मई, २०२०)
मजबूर हूँ
इस धरा पर मैं
मज़दूर हूँ
-भीम प्रजापति
कड़वे मीठे
शब्द समेटे कोष
चुनाना हमें
-सुरंगमा यादव
मेघों की डोली
बारिश दुल्हनियां
हवा कहार
-राजीव गोयल
दौड़ लगाती
ज़िंदगी की रफ़्तार
आगे तो पीछे
-शिव डोयले
परम्पराएं
जो पाँव उलझाएँ
उन्हें क्यों ढोएँ ?
-सुरंगमा यादव
जीवन शेष
हर क्षण विशेष
जिओ जी भर
-सुरंगमा यादव
मन का सूप
फटके जीवन की
छाँव व धूप
सूर्य नारायण गुप्त
महकी धरा
आकाश से थोड़ा सा
पानी जो गिरा
-राजीव गोयल
माँ का आँचल
इतना निर्मल ज्वूँ
गंगा का जल
-सूर्य नारायण गुप्त
और न छोर
आकाश सा विशाल \
माँ का दुलार
-राजीव गोयल
ठोकर लगी
माँ ने कहा, उठो भी
दौड़ पडा मैं
-रमेश कुमार सोनी
जन्मों तक भी
कोई चुका न पाया
दूध का कर्ज़
-वलजीत सिंह
पसरी पडी
चितकबरी धूप
अंगना मेरे
-राजीव गोयल
मन निहार
खुशियों का विस्तार
है आस-पास
-सुरंगमा यादव
सिखा रहे हैं
सही सबक़ मुझे
ग़लत लोग
-राजीव गोयल
कहती राहें
सबके लिए खुलीं
हमारी बाहें
-सुरंगमा यादव
महकी धरा
आकाश से थोड़ा सा
पानी जो गिरा
-राजीव गोयल
बहता पानी
रोकने की खातिर
टोकती नानी
-निगम 'राज'
बना ही लेते
पानी और जवानी
अपने रस्ते
-सुरंगमा यादव
दुष्ट मनई
जहां रही तहवाँ
करी कनई
(भोजपुरी) -भीम प्रजापति
भीगता बच्चा
छाते तले बचाता
कागज़ी नाव
-राजीव गोयल
मन भुवन
स्मृति का संकीर्तन
करे जोगन
-पुष्पा सिन्धी
गुज़री हवा
जो बासों के वन से
बजी सीटियाँ
-राजीव गोयल
कुरेदे जख्म
सांत्वना के बहाने
वाह, ज़माने
-सुरंगमा यादव
---------------------समाप्त
---------------------------------
मजबूर हूँ
इस धरा पर मैं
मज़दूर हूँ
-भीम प्रजापति
कड़वे मीठे
शब्द समेटे कोष
चुनाना हमें
-सुरंगमा यादव
मेघों की डोली
बारिश दुल्हनियां
हवा कहार
-राजीव गोयल
दौड़ लगाती
ज़िंदगी की रफ़्तार
आगे तो पीछे
-शिव डोयले
परम्पराएं
जो पाँव उलझाएँ
उन्हें क्यों ढोएँ ?
-सुरंगमा यादव
जीवन शेष
हर क्षण विशेष
जिओ जी भर
-सुरंगमा यादव
मन का सूप
फटके जीवन की
छाँव व धूप
सूर्य नारायण गुप्त
महकी धरा
आकाश से थोड़ा सा
पानी जो गिरा
-राजीव गोयल
माँ का आँचल
इतना निर्मल ज्वूँ
गंगा का जल
-सूर्य नारायण गुप्त
और न छोर
आकाश सा विशाल \
माँ का दुलार
-राजीव गोयल
ठोकर लगी
माँ ने कहा, उठो भी
दौड़ पडा मैं
-रमेश कुमार सोनी
जन्मों तक भी
कोई चुका न पाया
दूध का कर्ज़
-वलजीत सिंह
पसरी पडी
चितकबरी धूप
अंगना मेरे
-राजीव गोयल
मन निहार
खुशियों का विस्तार
है आस-पास
-सुरंगमा यादव
सिखा रहे हैं
सही सबक़ मुझे
ग़लत लोग
-राजीव गोयल
कहती राहें
सबके लिए खुलीं
हमारी बाहें
-सुरंगमा यादव
महकी धरा
आकाश से थोड़ा सा
पानी जो गिरा
-राजीव गोयल
बहता पानी
रोकने की खातिर
टोकती नानी
-निगम 'राज'
बना ही लेते
पानी और जवानी
अपने रस्ते
-सुरंगमा यादव
दुष्ट मनई
जहां रही तहवाँ
करी कनई
(भोजपुरी) -भीम प्रजापति
भीगता बच्चा
छाते तले बचाता
कागज़ी नाव
-राजीव गोयल
मन भुवन
स्मृति का संकीर्तन
करे जोगन
-पुष्पा सिन्धी
गुज़री हवा
जो बासों के वन से
बजी सीटियाँ
-राजीव गोयल
कुरेदे जख्म
सांत्वना के बहाने
वाह, ज़माने
-सुरंगमा यादव
---------------------समाप्त
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