श्रेष्ठ हिंदी हाइकु - जून
१ .६.१६
रद्दी में बिकी
मोती सी हर्फों वाली
मासूम कॉपी
-प्रियंका वाजपेयी
मन न शांत
कहाँ मिले एकांत
मैं आतंकित
-'सुवना'
रूखे पहाड़
पांवों में प्यासी नदी
लिपटी रही
-दिनेश चंद पांडे
साँसों की तार
दिखाए करतब
ज़िंदगी नटी
-राजीव गोयल
जद्दोजहद
दो जून ज़रूरत
दीन के जंग
-विभा श्रीवास्तव
४.६.१६
खुशी के वास्ते
विचारें न शगुन-
अपशगुन
-राजीव निगम राज़
५.६.१६
काट डालेगा
दरख्तों के संग तू
साँसों की डोर
-राजीव गोयल
दो सुखन ---
छत न डली
टूट गई पायल
कड़ी नहीं थी
- आर के भारद्वाज
दर्द ज्यादा था
नर्स आज ही आई
कल नहीं थी
-आर के भारद्वाज
६..६.१६
कैसे संभाला
निज अस्तित्व तूने
छोडी क्या छाप
-प्रियंका वाजपेयी
सीमा नहीं है
आत्मा की उन्नति की
कीजे विस्तार
-प्रियंका वाजपेयी
७.६.१६
कागजी नाव
बरसात का पानी
बच्चे मल्लाह
अंकुर उगा
पा धरती का प्यार
दरख़्त बना
-राजीव गोयल
८.६.१६
तुम्हारी स्मृति
है बन गई मेरी
अदभुत शक्ति
-डा. मुडखेरकर
दिलों में डर
भेदियों ने बनाए
बस्ती में घर
-संतोष कुमार सिंह
९.६.१६
वट वृक्ष है
बाहें पसारे खडा
पितृ स्वरूप
जुड़ा रहता
वृद्ध,युवक जटाल
जैसे कुटुम्ब
-प्रियंका वाजपेयी
१०.६.१६
फूल जो दिया
विदा लेते समय
गंध हरसूँ
-तुकाराम खिल्लारे
हाइकु जुगलबंदी ---
जितेन्द्र वर्मा --
मैं मना लूंगा
रूठने से पहले
रूठ के देखो
आर के भारद्वाज --
वह रूठी है
आज तू मना ही ले
बाजी पलट
१२.६.१६
लोहे से यारी
लकड़ी की गद्दारी
बनी कुल्हाड़ी
जन्मी जिस शाख से
वो शाख काट डाली
(ताका रचना)
- राजीव गोयल
स्वयं की दृष्टि
देखें वही तो दिखे
रस्सी या सांप
-कैलाश कल्ला
झुर्री में दबी
पर फींकी न पड़ी
माँ की मुस्कान
-राजीव गोयल
१३.६.१६
जुगलबंदी -
प्रियंका वाजपेयी -
हाथों में रुके
भीगी, नम हो जब
रेत ज़िंदगी
राजीव गोयल -
रिश्तों की रेत
पाके प्यार की नमी
चिपकी रहे
खर्च के उम्र
कमा लिया तजुर्बा
नहीं है गम
-राजीव निगम राज़
१५. ६.१६
जत्न से पढो
ज़िंदगी शब्द नहीं
शब्द-कोश है
-आर के भारद्वाज
गीता कुरान
प्रेस में संग छपीं
कभी न लड़ीं
-आर के भारद्वाज
रोज़ बदलें
हो गए आजकल
लिबास रिश्ते
-राजीव गोयल
१८.६.१६
ढूँढ़ती फिरूं
आकाश का विस्तार
ओर न छोर
-प्रियंका वाजपेयी
यादों की शाखें
लचकाए हवाएं
झरें स्मृतियाँ
-प्रियंका वाजपेयी
छोटे कदम
बड़ी उम्मीद लिए
फासला कम
-जितेन्द्र वर्मा
नवजाताक्षि
(बच्चे की आँखें)
खोलना व् मूँदना
मेघ में तारे
-विभा श्रीवास्तव
१९ .६,१६
पितृ दिवस -
पिता का साया
तपते सहरों में
वट की छाया
-प्रियंका वाजपेयी
घर से दूर
बढ़ा रहे हिम्मत
पिता के ख़त
-अभिषेक जैन
बालक पंख
पिता देते आकाश
उड़ान भर
-प्रीति दक्ष
पिता के जूते
पहने जो सुपुत्र
बड़ा हो गया
-जितेन्द्र वर्मा
२०.६.१६
हाथ उठाए
बेटा जब माँ पर
दूध लजाए
-राजीव गोयल
२१.६.१६
खुशी की बाढ़
बरसाती पानी में
कागजी नाव
-राजीव गोयल
बचपन में
हमारे भी चले थे
पोत जल में
-दिनेश चन्द्र पांडे
२४ . ६ १६
संभाल रखा
सुख दुख का धन
खजांची मन
-अभिषेक जैन
रहस्य रही
जीवन की परिधि
क्या उस पार
-प्रियंका वाजपेयी
२६ ६. १६
दौड़ लगाता
धावक नन्हा क्षेत्र
रक्तिम लिली
-विभाश्रीवास्तव
सूरज डूबा
देह पर ओढ़ ली
रात की शाल
-तुकाराम बिल्लारे
खूँटी टंगे हैं
मेरे प्यारे उसूल
भूला ओढ़ना
-जितेन्द्र वर्मा
२९.६.१६
खिली सांवली
रिमझिम मौसम
तृप्त नयन
पीयूषा
बूंदों ने रचे
धरा के पृष्ठ पर
हर्ष के गीत
-अभिषेक जैन
खो गया कुछ
शायद वो वजूद
जो कभी मैं था
-जितेन्द्र वर्मा
३०.६.१६
ह्रदय के द्वार
स्मृतियों की कोठरी
आशा के दीप
-प्रियंका वाजपेयी
गीत होठों पे
संगीत आसपास
आपका साथ
-तुकाराम खिल्लारे
उजाड़ दुर्ग
मकडी के जालों ने
सम्भाला राज
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
भीगी चिड़िया
स्थगित है उड़ान
कांपती रही
-प्रीति दक्ष
१ .६.१६
रद्दी में बिकी
मोती सी हर्फों वाली
मासूम कॉपी
-प्रियंका वाजपेयी
मन न शांत
कहाँ मिले एकांत
मैं आतंकित
-'सुवना'
रूखे पहाड़
पांवों में प्यासी नदी
लिपटी रही
-दिनेश चंद पांडे
साँसों की तार
दिखाए करतब
ज़िंदगी नटी
-राजीव गोयल
जद्दोजहद
दो जून ज़रूरत
दीन के जंग
-विभा श्रीवास्तव
४.६.१६
खुशी के वास्ते
विचारें न शगुन-
अपशगुन
-राजीव निगम राज़
५.६.१६
काट डालेगा
दरख्तों के संग तू
साँसों की डोर
-राजीव गोयल
दो सुखन ---
छत न डली
टूट गई पायल
कड़ी नहीं थी
- आर के भारद्वाज
दर्द ज्यादा था
नर्स आज ही आई
कल नहीं थी
-आर के भारद्वाज
६..६.१६
कैसे संभाला
निज अस्तित्व तूने
छोडी क्या छाप
-प्रियंका वाजपेयी
सीमा नहीं है
आत्मा की उन्नति की
कीजे विस्तार
-प्रियंका वाजपेयी
७.६.१६
कागजी नाव
बरसात का पानी
बच्चे मल्लाह
अंकुर उगा
पा धरती का प्यार
दरख़्त बना
-राजीव गोयल
८.६.१६
तुम्हारी स्मृति
है बन गई मेरी
अदभुत शक्ति
-डा. मुडखेरकर
दिलों में डर
भेदियों ने बनाए
बस्ती में घर
-संतोष कुमार सिंह
९.६.१६
वट वृक्ष है
बाहें पसारे खडा
पितृ स्वरूप
जुड़ा रहता
वृद्ध,युवक जटाल
जैसे कुटुम्ब
-प्रियंका वाजपेयी
१०.६.१६
फूल जो दिया
विदा लेते समय
गंध हरसूँ
-तुकाराम खिल्लारे
हाइकु जुगलबंदी ---
जितेन्द्र वर्मा --
मैं मना लूंगा
रूठने से पहले
रूठ के देखो
आर के भारद्वाज --
वह रूठी है
आज तू मना ही ले
बाजी पलट
१२.६.१६
लोहे से यारी
लकड़ी की गद्दारी
बनी कुल्हाड़ी
जन्मी जिस शाख से
वो शाख काट डाली
(ताका रचना)
- राजीव गोयल
स्वयं की दृष्टि
देखें वही तो दिखे
रस्सी या सांप
-कैलाश कल्ला
झुर्री में दबी
पर फींकी न पड़ी
माँ की मुस्कान
-राजीव गोयल
१३.६.१६
जुगलबंदी -
प्रियंका वाजपेयी -
हाथों में रुके
भीगी, नम हो जब
रेत ज़िंदगी
राजीव गोयल -
रिश्तों की रेत
पाके प्यार की नमी
चिपकी रहे
खर्च के उम्र
कमा लिया तजुर्बा
नहीं है गम
-राजीव निगम राज़
१५. ६.१६
जत्न से पढो
ज़िंदगी शब्द नहीं
शब्द-कोश है
-आर के भारद्वाज
गीता कुरान
प्रेस में संग छपीं
कभी न लड़ीं
-आर के भारद्वाज
रोज़ बदलें
हो गए आजकल
लिबास रिश्ते
-राजीव गोयल
१८.६.१६
ढूँढ़ती फिरूं
आकाश का विस्तार
ओर न छोर
-प्रियंका वाजपेयी
यादों की शाखें
लचकाए हवाएं
झरें स्मृतियाँ
-प्रियंका वाजपेयी
छोटे कदम
बड़ी उम्मीद लिए
फासला कम
-जितेन्द्र वर्मा
नवजाताक्षि
(बच्चे की आँखें)
खोलना व् मूँदना
मेघ में तारे
-विभा श्रीवास्तव
१९ .६,१६
पितृ दिवस -
पिता का साया
तपते सहरों में
वट की छाया
-प्रियंका वाजपेयी
घर से दूर
बढ़ा रहे हिम्मत
पिता के ख़त
-अभिषेक जैन
बालक पंख
पिता देते आकाश
उड़ान भर
-प्रीति दक्ष
पिता के जूते
पहने जो सुपुत्र
बड़ा हो गया
-जितेन्द्र वर्मा
२०.६.१६
हाथ उठाए
बेटा जब माँ पर
दूध लजाए
-राजीव गोयल
२१.६.१६
खुशी की बाढ़
बरसाती पानी में
कागजी नाव
-राजीव गोयल
बचपन में
हमारे भी चले थे
पोत जल में
-दिनेश चन्द्र पांडे
२४ . ६ १६
संभाल रखा
सुख दुख का धन
खजांची मन
-अभिषेक जैन
रहस्य रही
जीवन की परिधि
क्या उस पार
-प्रियंका वाजपेयी
२६ ६. १६
दौड़ लगाता
धावक नन्हा क्षेत्र
रक्तिम लिली
-विभाश्रीवास्तव
सूरज डूबा
देह पर ओढ़ ली
रात की शाल
-तुकाराम बिल्लारे
खूँटी टंगे हैं
मेरे प्यारे उसूल
भूला ओढ़ना
-जितेन्द्र वर्मा
२९.६.१६
खिली सांवली
रिमझिम मौसम
तृप्त नयन
पीयूषा
बूंदों ने रचे
धरा के पृष्ठ पर
हर्ष के गीत
-अभिषेक जैन
खो गया कुछ
शायद वो वजूद
जो कभी मैं था
-जितेन्द्र वर्मा
३०.६.१६
ह्रदय के द्वार
स्मृतियों की कोठरी
आशा के दीप
-प्रियंका वाजपेयी
गीत होठों पे
संगीत आसपास
आपका साथ
-तुकाराम खिल्लारे
उजाड़ दुर्ग
मकडी के जालों ने
सम्भाला राज
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
भीगी चिड़िया
स्थगित है उड़ान
कांपती रही
-प्रीति दक्ष
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर
जवाब देंहटाएंमाह की श्रेष्ठ हाइकु रचनाओं को एक साथ पढ़कर सुखद अनुभूति हुई। साथ में मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए सादर आभार।
जवाब देंहटाएंमाह की श्रेष्ठ हाइकु रचनाएँ एक साथ पढ़ कर सुखद अनुभूति हुई। साथ में मेरे हाइकु रचनाओं को स्थान देने के लिए आपको सादर आभार।
जवाब देंहटाएंसादर हार्दिक आभार वर्मा साहब !
जवाब देंहटाएंमाह की श्रेष्ठ हाइकु रचनाओं को एक साथ पढ़कर सुखद अनुभूति के साथ मेरी आत्मा तृप्त हुई । साथ में मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए इस नाचीज़ का शुक्रिया स्वीकारें ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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