श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु -जुलाई १६
२ ७. १६
बंद किवाड़
शिव ने मंदिर में खोले त्रिनेत्र
-जितेन्द्र वर्मा
३.७.१६
उठ भागता
सुबह से मयूर
मन नाचता
राजीव निगम राज़
४.७.१६
सूर्य ज्यों ढला
चौपड सजा बैठे
चाँद सितारे
दिनेश चन्द्र पांडे
५.७.१६
पूरव दिशा
मिले धरा आकाश
जन्मा सूरज
-राजीव गोयल
६.७.१६
तुम हो गति
तुम नव-जीवन
हे चित्रभानु
-डा. अम्बुजा मलखेडकर
फूलों ने रचा
हवा को सुगंध से
नशे में उडी
-आर के भारद्वाज
दो सुखन
पौधे न लगे
पत्र भी नहीं लिखे
कलम न थी
छाता टूटा था
संगीत भी रूठा था
तान न थी
-आर के भारद्वाज
परिदा उड़ा
मुंह बाए घोंसला \
ठगा सा खडा
-राजीव निगम
७.७.१६
धान के जैसे
रोपी गईं बेटियाँ
नए खेत में
-दिनेश चन्द्र पांडे
आई है ईद
वृद्धाश्रम मे मैया
ढूँढे हामिद
-अभिषेक जैन
पीड़ा में मोर
जीवन संकट में
सौन्दर्य बला !
-प्रियंका वाजपेयी
सोंधी महक
घटाएं रिमझिम
धरा हर्षित
-प्रीति दक्ष
८.७.१६.
गिनती रहीं
दंभ की उंगलियाँ
औरों के ऐब
-अभिषेक जैन
बारिश हुई
सतरंगी फसल
नभ पे उगी
-राजीव गोयल
१० .७.१६
धरा पे मेघ
हुए नतमस्तक
भीगा आँचल
-प्रियंका वाजपेयी
११.७.१६
मिले जो आप
दिल में खिल गए
कई गुलाब
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
१२. ७. १६
उसी ने मारा
पी के जिस हवा को
जिया था दीया
-राजीव गोयल
१३.७ .१६
कल डूबा था
भूल गया सूरज
फिर उगा है
-जितेन्द्र वर्मा
हुई बीमार
वर्षा में डूब कर
कच्ची दीवार
-अभिषेक जैन
१५ ७ १६
बूंद के भाग
सीप में जाके गिरी
मानक बनी
-राजीव गोयल
१६ ७ १६
उग हर्षाते
मशरूम से स्वप्न
ऋतु सौगात
-विभा श्रीवास्तव
टाँके हैं मोती
वृक्ष की पत्तियों पे
सावन दर्जी
-राजीव गोयल
१७ ७ १६
जानता कौन
स्वाति का नसीब
धूल या सीप
-राजीव गोयल
छोड़ पिंजरा
स्त्री गगन में उड़े
तोड़े रूढ़ियाँ
-विभा श्रीवास्तव
१९.७.१६
अंत नहीं है
सीमाओं के भी परे
नवल पंथ
-प्रियंका श्रीवास्तव
धरा संवरी
मेघों की काली साड़ी
बूंदों के बूटे
-विभा श्रीवास्तव
झटके केश
बदली ने जब भी
गिरी फुहार
-राजीव गोयल
गुरु-पूर्णिमा -
करो स्वीकार
कोटि कोटि प्रणाम
तुम आचार्य
-'सुवना'
गुरु कुम्हार
कच्ची मिट्टी को देता
रूप आकार
-राजीव गोयल
२०.७.१६
सृष्टि नाशक
बारूद गंध फैली
श्याम घन से
-विभा श्रीवास्तव
भू मनुहार
प्रवाह तो निर्वाह
घटा छकाए
-विभा श्रीवास्तव
२१ ७ १६
मैं लेम्पपोस्ट
उजाला बिखेरता
नतमस्तक
-जितेन्द्र वर्मा
गाँव दौड़ते
शहरों की तरफ
खाली चौपालें
- जितेन्द्र वर्मा
चाँद चकोर
खोए एक-दूजे में
करें किलोल
(हाइगा ) -राजीव गोयल
२२ ७ १६
बुनती रही
ज़िंदगी झीनी यादें
जुलाहे जैसी
-प्रियंका वाजपेयी
२३ ७ १६
हाथ से छूटा
समय का गुब्बारा
फिर ना लौटा
अभिषेक जैन
२४ ७ १६
मन उदास
दुश्मन से लगे हैं
सगे संबंधी
-तुकाराम खिल्लारे
टूटा जो दिल
खामोशी से चटका
आवाज़ नहीं
प्रियंका वाजपेयी
ये हेरा-फेरी
मेघ घुमड़ें यहाँ
बरसें वहां
- आर के भारद्वाज
ऐक्रोस्टिक
हाइकु विशेष
१, यातना
याद जो आई
तकलीफ दे गई
नाहक मुझे
- राजीव निगम
यादों के कांटे
तमाम रात चुभे
नागफनी से
-राजीव गोयल
याचक द्वार
तकलीफ में सीता
ना करे कैसे
-राजीव गोयल
२, हाइकु
हारी अबला
इंसानी दरिंदों ने
कुचले खाब
-राजीव गोयल
२ ७. १६
बंद किवाड़
शिव ने मंदिर में खोले त्रिनेत्र
-जितेन्द्र वर्मा
३.७.१६
उठ भागता
सुबह से मयूर
मन नाचता
राजीव निगम राज़
४.७.१६
सूर्य ज्यों ढला
चौपड सजा बैठे
चाँद सितारे
दिनेश चन्द्र पांडे
५.७.१६
पूरव दिशा
मिले धरा आकाश
जन्मा सूरज
-राजीव गोयल
६.७.१६
तुम हो गति
तुम नव-जीवन
हे चित्रभानु
-डा. अम्बुजा मलखेडकर
फूलों ने रचा
हवा को सुगंध से
नशे में उडी
-आर के भारद्वाज
दो सुखन
पौधे न लगे
पत्र भी नहीं लिखे
कलम न थी
छाता टूटा था
संगीत भी रूठा था
तान न थी
-आर के भारद्वाज
परिदा उड़ा
मुंह बाए घोंसला \
ठगा सा खडा
-राजीव निगम
७.७.१६
धान के जैसे
रोपी गईं बेटियाँ
नए खेत में
-दिनेश चन्द्र पांडे
आई है ईद
वृद्धाश्रम मे मैया
ढूँढे हामिद
-अभिषेक जैन
पीड़ा में मोर
जीवन संकट में
सौन्दर्य बला !
-प्रियंका वाजपेयी
सोंधी महक
घटाएं रिमझिम
धरा हर्षित
-प्रीति दक्ष
८.७.१६.
गिनती रहीं
दंभ की उंगलियाँ
औरों के ऐब
-अभिषेक जैन
बारिश हुई
सतरंगी फसल
नभ पे उगी
-राजीव गोयल
१० .७.१६
धरा पे मेघ
हुए नतमस्तक
भीगा आँचल
-प्रियंका वाजपेयी
११.७.१६
मिले जो आप
दिल में खिल गए
कई गुलाब
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
१२. ७. १६
उसी ने मारा
पी के जिस हवा को
जिया था दीया
-राजीव गोयल
१३.७ .१६
कल डूबा था
भूल गया सूरज
फिर उगा है
-जितेन्द्र वर्मा
हुई बीमार
वर्षा में डूब कर
कच्ची दीवार
-अभिषेक जैन
१५ ७ १६
बूंद के भाग
सीप में जाके गिरी
मानक बनी
-राजीव गोयल
१६ ७ १६
उग हर्षाते
मशरूम से स्वप्न
ऋतु सौगात
-विभा श्रीवास्तव
टाँके हैं मोती
वृक्ष की पत्तियों पे
सावन दर्जी
-राजीव गोयल
१७ ७ १६
जानता कौन
स्वाति का नसीब
धूल या सीप
-राजीव गोयल
छोड़ पिंजरा
स्त्री गगन में उड़े
तोड़े रूढ़ियाँ
-विभा श्रीवास्तव
१९.७.१६
अंत नहीं है
सीमाओं के भी परे
नवल पंथ
-प्रियंका श्रीवास्तव
धरा संवरी
मेघों की काली साड़ी
बूंदों के बूटे
-विभा श्रीवास्तव
झटके केश
बदली ने जब भी
गिरी फुहार
-राजीव गोयल
गुरु-पूर्णिमा -
करो स्वीकार
कोटि कोटि प्रणाम
तुम आचार्य
-'सुवना'
गुरु कुम्हार
कच्ची मिट्टी को देता
रूप आकार
-राजीव गोयल
२०.७.१६
सृष्टि नाशक
बारूद गंध फैली
श्याम घन से
-विभा श्रीवास्तव
भू मनुहार
प्रवाह तो निर्वाह
घटा छकाए
-विभा श्रीवास्तव
२१ ७ १६
मैं लेम्पपोस्ट
उजाला बिखेरता
नतमस्तक
-जितेन्द्र वर्मा
गाँव दौड़ते
शहरों की तरफ
खाली चौपालें
- जितेन्द्र वर्मा
चाँद चकोर
खोए एक-दूजे में
करें किलोल
(हाइगा ) -राजीव गोयल
२२ ७ १६
बुनती रही
ज़िंदगी झीनी यादें
जुलाहे जैसी
-प्रियंका वाजपेयी
२३ ७ १६
हाथ से छूटा
समय का गुब्बारा
फिर ना लौटा
अभिषेक जैन
२४ ७ १६
मन उदास
दुश्मन से लगे हैं
सगे संबंधी
-तुकाराम खिल्लारे
टूटा जो दिल
खामोशी से चटका
आवाज़ नहीं
प्रियंका वाजपेयी
ये हेरा-फेरी
मेघ घुमड़ें यहाँ
बरसें वहां
- आर के भारद्वाज
ऐक्रोस्टिक
हाइकु विशेष
१, यातना
याद जो आई
तकलीफ दे गई
नाहक मुझे
- राजीव निगम
यादों के कांटे
तमाम रात चुभे
नागफनी से
-राजीव गोयल
याचक द्वार
तकलीफ में सीता
ना करे कैसे
-राजीव गोयल
२, हाइकु
हारी अबला
इंसानी दरिंदों ने
कुचले खाब
-राजीव गोयल
स्तब्ध हूँ और अच्छा भी लगा
जवाब देंहटाएंआभारी भी हूँ
ब्लॉग में मेरी रचनाएँ प्रकाशित कर मुझे मान देने हेतु सादर आभार
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