सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु अक्टूबर , २०१६

०१  .१० .१६
समुद्र खेत
लहरों की फसलें
उपजे रेत
     -राजीव गोयल
जुगलबंदी
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खर्च करूं मैं
चलाने को ज़िंदगी
साँसों के सिक्के
        राजीव गोयल
तन गुल्लक
गिनी साँसों के सिक्के
बजें बहुत
       -डा. रंजना वर्मा
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मातु चरण
चारों धामों का पुण्य
मिला शरण
      -प्रदीप कुमार दाश
ज़िंदगी भर
रह गया तनहा
मन बावरा
      -प्रियंका वाजपेयी

०२. १०. १६
बहा ले गई
ख्वाहिशों की बारिश
दिल का चैन
     -अभिषेक जैन
जुगल-बंदी
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माँ का आँचल
रखे सदा बेख़ौफ़
है अविचल
      -मुकेश
गर्मी में छाँव
सर्दियों में अलाव
माँ का आँचल
        -राजीव गोयल
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३ १० १६
गिरी डायरी
हौले से झाँक उठी
एक पंखुरी
      -डा. रंजना वर्मा
खुली डायरी
बाहर कूद आईं
यादें पुरानी
      -राजीव गोयल
सरसराए
खेतों में ज्यूँ सरसों
बातें मन में
      -प्रियंका वाजपेयी
छली गई वो
कभी बनीं दामिनी
कभी निर्भया
       -प्रदीप कुमार दाश

४ १० १६
स्वाद बढाती
चुटकी नमक की
अति वर्जित
     -डा. रंजना वर्मा
दब के मरे
फूल से रिश्ते
जुबां के मलवे में
        -अभिषेक जैन
पडा घायल
शब्द तीर शैया पे
रिश्तों का भीम
      -राजीव गोयल

जुगलबंदी

सर्दी की रात
ठिठुरती कोने में
ढूँढे अलाव
     राजीव गोयल
 खूब ठिठुरी
अलाव ढूँढ़ती रात
कहीं न मिला
      -आर के भारद्वाज
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दादी से सुनी
कथा सुनाए बिट्टो
गुडिया सोए
      -जितेन्द्र वर्मा

५ १० १६
घर से मेरे
उड़ गई गौरैया
अंगना सूना
      राजीव गोयल
पाखराविण
झाड उदास झाले
अर्धे वाळले
       (मराठी )-तुकाराम खिल्लारे

६ १० १६
पंकिल जल
नित रहे नहाता
दाग न छूटे
      -रंजना वर्मा
जुगल बंदी

पूछे आइना
किसका मुखौटा है
मुख पे तेरे
      -राजीव गोयल
रहा ढूँढ़ता
सबसे बड़ा मूर्ख
दर्पण मिला
      -वी वी पाठक

७ १० १६
कहाँ से आई
झींगुर की झंकार
निशा ढूँढ़ती
       - वी पी पाठक
दिल न मिले
बीच में आया पैसा
रहे फासले
      -अभिषेक जैन
रहता ज़िंदा
बेंच अपनी साँसें
गुब्बारे वाला
       -राजीव गोयल (हाइगा)
खूब सेंक ली
अब ढलने को है
धूप उम्र की
     -राजीव गोयल (हाइगा)

८ १० १६
जुगलबंदी

कहीं गूँजता
ऊंचा उठ सुनिए
नाद ब्रह्म का
       -प्रियंका वाजपेयी
गूँजा करता
चहुँ ओर व्योम में
ओ३म  का नाद
     -जितेन्द्र वर्मा
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चुरा लिए हैं
तुमने मेरे लम्हे
मैं रीत गया
     -आर के भारद्वाज
ढला सूरज
पहाड़ों से उतरे
रात के साए
       - राजीव गोयल

९ १० १६
आहट  नहीं
छूजाती है खुशबू
तू यहीं कहीं
       -प्रियंका वाजपेयी
जुबां नहीं है
आँखों से बयाँ होती
दास्ताने इश्क
        -प्रियंका वाजपेयी
अमा के घर
रमा की पहुनाई
द्युति दमके
        -विभा श्रीवास्तव
टिकता कहाँ
कलई चढा झूठ
सच के ताप
      -विभा श्रीवास्तव
पीला गुलाब
रजनी गाल पर
मले चन्द्रमा
      -डा. रंजना वर्मा
ले आए अश्क
अतीत के हाट से
यादों के धनी
      -अभिषेक जैन
चाँद से कहा
बापू से जब मिलो
बताना मुझे
       -प्रदीप कुमार दाश
घंटा देखता
मंदिर में केवल
पैसा बजता
       -वी पी पाठक
सूरज ढला
करने को उजाला
दीपक जला
     -राजीव गोयल
सूरज उगा
कर सूर्य नमन \                        
दीपक बुझा
      -राजीव गोयल
बैठी खामोश
शाखाओं की गोद में
नन्हीं कोपलें
     -राजीव गोयल

१० .१० .१६
ले आया घर
ग़ुरूर कमाकर
साहब बेटा
       -अभिषेक जैन
पुतला जला
भीतर का रावण
मुस्करा रहा
       -प्रदीप कुमार दाश

११ १० १६
हार ही गया
लंकापति रावण
नारी तेज से
     -डा. रंजना वर्मा
दसों गुणों को
गुना करें मन में
तो दशहरा
      -प्रियंका वाजपेयी

१२ १० १६
गटक गई
बोतल शराब की
अम्मा की दवा
    -अभिषेक जैन
नई दीवाली
गरीबों के घर हो
रोशनी वाली
       -राजीव निगम राज
दादा के किस्से
नानी की कहानियां
स्वप्न सरीखे
      -डा. रंजना वर्मा
वो बासी फेंके
यह बासी पे जीता
भाग्य का खेल
      -राजीव गोयल

१३ १० १६
श्याम सघन
मेघों में डोल रही
चन्द्र किरण
     -डा. रंजना वर्मा
सोचे चकोर
कभी तो पिघलेगा
निर्मोही चाँद
     -राजीव गोयल
झूलती रही
समीर की बाहों में
रात की रानी
         -जितेन्द्र वर्मा
अकेला नहीं
तुम्हारी यादें संग
या खुद तुम
      - आर के भारद्वाज
      (जितेन्द्र वर्मा के एक अंग्रेज़ी हाइकु का अनुवाद )

१४ १० १६
मैं हिम खंड
तुम गर्म हवा सी
छू पिघला दो
        -डा. रंजना वर्मा  
        (जितेन्द्र वर्मा के एक अंग्रेज़ी हाइकु का अनुवाद)
मासूम नदी
वर्षा ने बना डाली
आतंकवादी
      राजीव गोयल

जुगलबंदी

कितनी बार
टहनी तोड़ डाली
फिर से आई
      -तुकाराम खिल्लारे
तोड़ेंगे सब
जुड़ना होगा खुद
यही दस्तूर
       -मुकेश वर्मा
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१६ १० १६
कर्म की शाख
हिलाने से गिरते
फूल झोली में
        - प्रदीप कुमार दाश
किताबें नहीं
वक्त देगा तुझे
जीवन ज्ञान
      -राजीव गोयल
तेरी यादों का
विस्तार ही यह है
रोज़ तड़पूँ
       - आर के भारद्वाज

१७ १० १६
पड़ी दरार
उठ गई दीवार
रिश्तों के बीच
      -राजीव गोयल
डंसता रहा
स्मृतियों का नाग
मन के द्वार
       -डा. रंजना वर्मा
नोट खाए हैं
कुर्सी बीच पड़े हैं
अफसर हैं
        वी पी पाठक
रंग बिरंगी
मानस की क्यारियाँ
स्मृतियाँ फूलें
      -प्रियंका वाजपेयी
प्यार का मोती
निखरता ही जाए
बन के ताज
        -मुकेश

१८ १० १६
जुगल बंदी

रिश्तों में रहे
माधुर रस टिका
गन्ने की गाँठ
       विभा रानी श्रीवास्तव
मिठास भरा
मीठे रिश्तों के जैसा
गन्ने का रस
      - डा. रंजना वर्मा
ऐसा मीठा हो
रिश्तों का ताना बाना
रस छलके
        -आर के भारद्वाज
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स्वयं को देखें
निकट दृष्टि दोषी
नीति नियंता
       -वी पी पाठक
ठिठकी फिजा
पूछे खामोशियों से
तेरा ही पता
        -राजीव गोयल
संग सखी के
फुगड़ी खेलें हम
बेफ़िक्र मन
        -पीयूषा (हाइगा)
झूमें व गाएं
जीवन उत्सव है
आनंदित हों
      - मुकेश (हाइगा)
नाचते गाते
ज़िंदगी जो बिताते
धूम मचाते
       - राजीव निगम राज़ (हाइगा)
आज का चाँद
दिखाता है नखरे
आए देर से
       (करबाचौथ पर -) राजीव गोयल

२१ १० १६
तैर पानी में
उतारती है पार
नाव उदार
      -राजीव गोयल

२२  १० १६
निकल पड़ी
ले ख़्वाबों की गागर
राहें अंजान
       -राजीव गोयल (हाइगा)
पूनों की रात
महकती मालती
डोरे डालती
       -(गंध बिम्ब) राजीव गोयल
रात उदास
आएगा कोई नहीं
इस तमस
       -तुकाराम खिल्लारे

२३ १० १६
रूठ गया है
क्यूँ गाँव से त्योहार
पूंछो न यार
        - अमन चाँदपुरी
शरद काल
थरथराने लगे
मौन अधर
       - डा. रंजना वर्मा
तन्हा थे भाव
शब्दों से मुलाक़ात
मैत्री प्रस्ताव
        -अभिषेक जैन
दिए के नीचे
गुमसुम बैठा है
घुप्प अन्धेरा
        - जितेन्द्र वर्मा
तम मिटाने
जलता है दीपक
हवा क्यों खफा
        -राजीव गोयल

२४ १० १६
राह दिखाता
हथेली में सूरज
बन के दिया
       -प्रदीप कुमार दाश
कभी ख़्वाब हो
कभी हकीकत हो
ज़िंदगी तुम
     - प्रियंका वाजपेयी
कहीं गूँजतीं
अनाहद आवाजें
रहस्य नाद
       - प्रियंका वाजपेयी
लौट के आए
अच्छे वक्त के साथी
प्रवासी पंछी
        -दिनेश चन्द्र पांडे

२५ १० १६
दीपक राग
पिघलादे अन्धेरा
बहे प्रकाश
        -राजीव गोयल
लड़ रहे हैं
माँ रहे सलामत
देश के दीपक
       -वी पी पाठक
आहें निकली
हिचकियाँ साथ थीं
रात यों रोई
       -जितेन्द्र वर्मा

२६ १० १६
भीगी जो धूप
रंग इन्द्रधनुषी
बह निकले
       -राजीव गोयल

२७ १० १६
ढूँढ़ता रहा
उम्र भर चैन
तड़प मिली
       -जितेन्द्र वर्मा
नहीं निकला
देख दीप मालाएं
चाँद शर्मीला
     -वी पी पाठक

२८ १० १६
रक्त की बूँदें
बन जाती प्रदीप
गिर सीमा पे
     -डा. रंजना वर्मा
ज़िंदगी बाकी
गिरी नहीं है अभी
आख़िरी पत्ती
       -राजीव गोयल
लाएं दियाली
मिट्टी के दिए वाली
हो खुशहाली
      -राजीव निगम राज़

२९ १० १६
प्रतीक्षारत
नयन प्रदीपों में
उम्मीद की लौ
      डा. रंजना वर्मा
एक दीपक
मन का भी जलाया
किया उजेला
      -दिनेश चन्द्र पांडे
दीपक जला
बन प्रकाशपुंज
तम पिघला
      - राजीव गोयल
सहस्त्र नाव
अमा श्यामली
जुगुनू लादे
     -विभा श्रीवास्तव

३० १० १६
जीर्ण वृक्ष को
आए कोमल पत्ते
जीना फिर से
       -तुकाराम खिल्लारे
हर मन में
प्रेम का दिया जले
यों प्यार पले
      -जीतेन्द्र वर्मा
दीप जलाएं
तम को पी जाने का
हुनर सीखें
     -प्रदीप कुमार दाश
मोमबत्तियां
उजाले की चिंता में
भस्म हो गईं
       - आर के भारद्वाज
३१ १० १६
तम संहार
दीपक छोड़ रहा
प्रकाश बाण
       -राजीव गोयल
पकती भूख
ठंडी अंगीठी पर
गरीब झुग्गी
      -राजीव गोयल
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2 टिप्‍पणियां:

  1. हम आभारी हैं
    बहुत बहुत धन्यवाद आपका आदरणीय

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  2. सभी हाइकू उत्कृष्ठ कोटि के हैं
    सभी रचनाकारों को बधाई
    आदरणीय वर्मा अंकल जी का बहुत बहुत आभार

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