रविवार, 3 जून 2018

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - मई माह

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - मई माह

तारा भू टूटा
रहा कोई खड़ा
चोटी पे सदा
      राजीव गोयल
थका बटोही
आम्र कुंजों ने थामीं
स्वेद की बूँदें
        -रमेश कुमार सोनी
चाँद ले आया
सपनों की गठरी
नींद ले उड़ी
     -नरेंद्र श्रीवास्तव
चीख न सुनी
अंधे बहरे गूंगे
गुज़रे लोग
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
जलते रिश्ते
प्यार की छाँव ढूँढे
बेचैन मन
         -सुरंगमा यादव
जीत के जंग
लौटे बस शरीर
ज़िंदगी हारी
         -राजीव गोप्यल
प्रेम में पगी
यादों की सोनपत्ती
सूखी भी हरी
       -रमेश कुमार सोनी
गंध रोटी की
बज रहे कंगन
किताब बंद
       -तुकाराम खिल्लारे
नीयत सच्ची
मेहनत की रोटी
लगती अच्छी
       बलजीत सिंह
सूना पिंजरा
पंछी क्षितिज पर
स्मृति-अम्बार \ 
       -पुष्पा सिन्धी
मेरे मन को
बहका के ले जाती
बहकी हवा
        -अमन चांदपुरी
धान लगाती
ढेर सारी गोपियाँ
कजरी गातीं
        -अमन चाँदपुरी
श्रम से रोज़
करती गिलहरी
दानों की खोज
      -सूर्य करण 'सरोज'
चांदनी छाई
रूप की रानी बन
वह लजाई
      -सूर्य नारायण गुप्त
कैसी लड़ाई
मुस्कुराए  पड़ोसी
झगड़ें भाई
      -बलजीत सिंह
मन की रेत
कुरेदी तनिक सी
नमी ही नमी
        -सुरंगमा यादव
फागुन मास
धरा पर चांदनी
करे विलास
        -बलजीत सिंह
जेठ की धूप
मध्यान्ह में अकेली
क्रोध से जली
     -रमेश कुमार सोनी
मरण-शैया
हंसने लगा बूढा
शैशव फोटो
        -तुकाराम खिल्लारे
कैसा शीतल
कल कल बहता
गंगा का जल
        -इंद्र कुमार दीक्षित
अन्दरखाने
क्या कुछ चलता
राम न जाने
       -इंद्र कुमार दीक्षित
धूप में छाँव
माँ, जाड़ों में अलाव
सुहानी शाम
       राजीव गोयल
माँ का आँचल
राहत का बादल
होता संबल
       -राजीव निगम 'राज'
मन गुबार
धुंध ही धुंध छायी
दृश्यता घटी
      -सुरंगमा यादव
रहे न रहे
सिर्फ माँ याद आती
दुःख की वेला
       -रमेश कुमार सोनी
बहला गया
माँ तेरा स्पर्श मुझे
सहला गया
       सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'

जुगल बंदी

कैसी हो मम्मी
बड़े बच्चे भटके
पूछना भूले
        -रमेश कुमार सोनी
मैया सिकुड़ी
संसार फैलाकर
कोने में पडी
         -अभिशेख जैन
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जा नहीं सका
खुदा हर घर में
तो माँ भेज दी
       -राजीव गोयल
माँ की ममता
कोई नहीं समता
अतुलनीय
         -रंजना वर्मा
रंग अनंत
रब ने, माँ में उन्हें
किया जीवंत
        सूर्य किरण सोनी 'सरोज'
मातृ दिवस
माँ की तस्वीर पर
फूलों की लड़ी !
        विष्णु प्रिय पाठक
होकर चूर
सपनों का दर्पण
देता चुभन
        -सुरंगमा यादव
हूँ मजबूर
वतन की खातिर
अपने दूर
      सूर्य कारन 'सरोज'
नींद न हंसी
पत्थरों के देश में
प्रीति यूं फंसी
        सूर्य नारायण 'सूर्य'
जग के लिए
संचित करे गुरु
ज्ञान का मधु
       -सुरंगमा यादव
हवा की धुन
थिरकती डालियाँ
पाँव के बिन
        सुरंगमा यादव
लूट ले गया
एक नर पिशाच
कुंवारे ख्वाब
        -राजीव गोयल
नैन प्रपात
भीगे मसि-कागद
लौटी बारात
        पुष्पा सिन्धी
मेघा बरसे
भागी उन्मादी नदी
तोड़ किनारे
       -राजीव गोयल
दुष्ट मनई
जहां रही तहवाँ
करी कनई
        -भीष्म प्रजापति
मेघ चिरौरी
भरो राम तलैया
प्यासी चिरैया
        -सुरंगमा यादव
धुंधला चाँद
क्षितिज छोर पर
निशा का आंसू
        -डा, रंजना वर्मा
मिट्टी का दीया
कुम्हारिन का दर्द
किसने जिया
        सुशील शर्मा
गोधूली शाम
रामधुन के स्वर
ऊंघता गाँव
       -सुशील शर्मा
हो जाती सुखी
निहार रवि मुख
सूरजमुखी
        -कमल कपूर
शाख पे बैठे
शांत और गुमसुम
जवाकुसुम
      -कमल कपूर
गोरे सजीले
सुरभि के टोकरे
श्वेत मोगरे
       -कमल कपूर 
पिरोता रहा
यादों की डोरियों में
आंसू के मोती 
       -राजीव गोयल
चाल में सर्प
श्रृंग से भू पे जल
सद्यस्नाता स्त्री
        -विभा रानी श्रीवास्तव
मेल-मिलाप
जीवन के वृत्त में
खुशी की चाप
         बलजीत सिंह
शुद्ध निश्छल
बहता प्रतिपल
आगत कल
         -सुशील शर्मा
आँखों के घड़े
अंसुअन से भरे
कंठ हैं प्यासे
        -रमेश कुमार सोनी
भोर का रवि
कैसी निराली छवि
तिमिर हवि
         -डा. रंजना वर्मा
प्रेम का सेतु
सहज पूरी हुई
दिलों की दूरी
       -सुरंगमा यादव
रात अंधेरी
गा रही तनहाई
मौन सुनता
      -डा. रंजना वर्मा
मुदित गाँव
पत्तों की पायलिया
वृक्षों के पाँव
        -पुष्पा सिन्धी
समुद्री द्वीप
बलखाती लहरें
मेघ समीप
       -सूर्य करण 'सरोज'










     






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