शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

जनवरी २०१९ के श्रेष्ठ हाइकु

जनवरी २०१९ के श्रेष्ठ हाइकु

नव वर्ष यूँ
नव निर्मित घर
गृह प्रवेश
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
मन दीवारें
क्रोध घृणा के जाले
चलो निकालें
      सुरंगमा यादव
सूरज हांफे
जाड़े में छुप कर
ठण्ड से काँपे
         -सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य'
धीमा ज़हर
है संवादहीनता
मरते रिश्ते
      सुरंगमा यादव
एक ही छत
कमरों की तरह
बंटे हैं मन
      -सुरंगमा यादव
सूरज डरे
कोहरे के भय से
कैसे उतरे
      सूर्य नारायण गुप्त ;सूर्य'
गुलाबी सर्दी
ओढ़ स्वेटर शाल
हुई गुलाबी
        -शिव डोयले
फुटपाथ पे
ढूँढ़ रही शिकार
सर्दी डायन
      -राजीव गोयल
व्यथित जन
लगते हैं मुझको
यों परिजन
       - रमश कुमार सोनी
विश्वास रहा
ह्रदय में उसका
आवास रहा
      -निगम 'राज़'
सांझ पुकारे
सूर्य शर्म से लाल
चाँद  जो झांके
       रमेश कुमार सोनी
दुःख का वेग
सांत्वना के तटों ने
किया मद्धिम
        -सुरंगमा यादव
कुम्भ का मेला
डुबकी लगा रहे
प्रवासी पक्षी
      -विभा श्रीवास्तव
लालच खोंटी
पूर्ण पाने में खो दी
अधूरी रोटी
     सोनी जी
संक्रांति पर्व
टूटेगा अब शीघ्र
शीत का दर्प
       -सुरंगमा यादव
जीवन क्या है !
उडी, चढी, लो कटी
गिरी पतंग
        -सुरंगमा यादव
निहाँ निशां थे
इश्क भरे दिल में
कई आस्मा थे
      (निहां - छिपे हुए)
    -निगम 'राज़'
हुई क्या भूल?
सींचा प्रेम जल से
उगा बबूल
     -सुरंगमा यादव
सर्दी की रात
क्यों उतरा झील में
सोचता चाँद
     -राजीव गोयल
दूर या आस
हर पल आभास
तुम हो साथ
     -सुरंगमा यादंव
चुरा के भागी
सुगंध बगिया की
चोरनी हवा
      -राजीव गोयल
रोक लेते हैं
धूप मेरे हिस्से की
ऊंचे मकान
      -राजीव गोयल
प्रेम आसव
लिए लिए फिरती
हवा बासंती
       -सुरंगमा यादव
गिरते जाएं
ज़िंदगी शजर से
उम्र के साल
       -राजीव गोयल
हुई सयानी
ओढ़े चूनर धानी
झूमें सरसों
       -सुरंगमा यादव
ख्याति अमर
संग्रहालय बना
पुश्तैनी घर
     -पुष्पा सिन्धी
मीत मिलाप
चहुँ दिश बिखरा
प्रीत पराग
      -सुरंगमा यादव
पत्र ओ बांचे
अम्बर ने वासंती
धरती नाचे
     -निगम 'राज़'
घूँघट हिला
वसंत पद-चाप
ह्रदय खिला
       -पुष्पा सिन्धी
ज़िंदगी जी ली
पता ही नहीं चला
उम्र गुज़री
        -निगम 'राज़'
आया बसंत
फिर से बौरा गए
संत महंत
      -अमन चांदपुरी
जो हैं वंचित
उनकी भी किंचित
सुधि लें हम
        -सुरंगंमा यादव
बिस्तर पर
बदले करबट
रात अकेली
        -अमन चाँदपुरी
नियत सच्ची
मेहनत की रोटी
लगती अच्छी
      बलजीत सिंह
जीत ली जंग
लौटे बेजान तन
हारी ज़िंदगी
     -राजीव गोयल
घना कोहरा
आँगन में पसरा
सूर्य कहाँ हो
      पुष्पा सिन्धी
ताउम्र रोई
माँ की याद दिल में
कभी न सोई
        -निगम 'राज़'
फैलाने लगी
सिमटे पाँव, धूप
गुनगुनाई
        सुरंगमा यादव 
सजाके तारे
रजनी की जुल्फों में
सो गया रवि
      -राजीव गोयल
नश्वर तन
समय आरी, काटे
वृक्ष सघन
       -पुष्पा सिन्धी
प्रेम की पीर
पहाड़ भी रो देता
पवित्र नीर 
      -रमेश कुमार सोनी

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समाप्त

     
  








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2 टिप्‍पणियां:

  1. हर बार की तरह श्रमसाध्य सार्थक प्रयास हेतु आदरणीय वर्मा साहब को बधाई व साधुवाद ....

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  2. संशोधन की धृष्टता --पत्र ओ की जगह कृपया पढ़ें -/
    पत्र जो बांचे
    अम्बर ने वासंती
    धरती नाचे ।

    ---निगम राज़

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