जनवरी २०१९ के श्रेष्ठ हाइकु
नव वर्ष यूँ
नव निर्मित घर
गृह प्रवेश
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
मन दीवारें
क्रोध घृणा के जाले
चलो निकालें
सुरंगमा यादव
सूरज हांफे
जाड़े में छुप कर
ठण्ड से काँपे
-सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य'
धीमा ज़हर
है संवादहीनता
मरते रिश्ते
सुरंगमा यादव
एक ही छत
कमरों की तरह
बंटे हैं मन
-सुरंगमा यादव
सूरज डरे
कोहरे के भय से
कैसे उतरे
सूर्य नारायण गुप्त ;सूर्य'
गुलाबी सर्दी
ओढ़ स्वेटर शाल
हुई गुलाबी
-शिव डोयले
फुटपाथ पे
ढूँढ़ रही शिकार
सर्दी डायन
-राजीव गोयल
व्यथित जन
लगते हैं मुझको
यों परिजन
- रमश कुमार सोनी
विश्वास रहा
ह्रदय में उसका
आवास रहा
-निगम 'राज़'
सांझ पुकारे
सूर्य शर्म से लाल
चाँद जो झांके
रमेश कुमार सोनी
दुःख का वेग
सांत्वना के तटों ने
किया मद्धिम
-सुरंगमा यादव
कुम्भ का मेला
डुबकी लगा रहे
प्रवासी पक्षी
-विभा श्रीवास्तव
लालच खोंटी
पूर्ण पाने में खो दी
अधूरी रोटी
सोनी जी
संक्रांति पर्व
टूटेगा अब शीघ्र
शीत का दर्प
-सुरंगमा यादव
जीवन क्या है !
उडी, चढी, लो कटी
गिरी पतंग
-सुरंगमा यादव
निहाँ निशां थे
इश्क भरे दिल में
कई आस्मा थे
(निहां - छिपे हुए)
-निगम 'राज़'
हुई क्या भूल?
सींचा प्रेम जल से
उगा बबूल
-सुरंगमा यादव
सर्दी की रात
क्यों उतरा झील में
सोचता चाँद
-राजीव गोयल
दूर या आस
हर पल आभास
तुम हो साथ
-सुरंगमा यादंव
चुरा के भागी
सुगंध बगिया की
चोरनी हवा
-राजीव गोयल
रोक लेते हैं
धूप मेरे हिस्से की
ऊंचे मकान
-राजीव गोयल
प्रेम आसव
लिए लिए फिरती
हवा बासंती
-सुरंगमा यादव
गिरते जाएं
ज़िंदगी शजर से
उम्र के साल
-राजीव गोयल
हुई सयानी
ओढ़े चूनर धानी
झूमें सरसों
-सुरंगमा यादव
ख्याति अमर
संग्रहालय बना
पुश्तैनी घर
-पुष्पा सिन्धी
मीत मिलाप
चहुँ दिश बिखरा
प्रीत पराग
-सुरंगमा यादव
पत्र ओ बांचे
अम्बर ने वासंती
धरती नाचे
-निगम 'राज़'
घूँघट हिला
वसंत पद-चाप
ह्रदय खिला
-पुष्पा सिन्धी
ज़िंदगी जी ली
पता ही नहीं चला
उम्र गुज़री
-निगम 'राज़'
आया बसंत
फिर से बौरा गए
संत महंत
-अमन चांदपुरी
जो हैं वंचित
उनकी भी किंचित
सुधि लें हम
-सुरंगंमा यादव
बिस्तर पर
बदले करबट
रात अकेली
-अमन चाँदपुरी
नियत सच्ची
मेहनत की रोटी
लगती अच्छी
बलजीत सिंह
जीत ली जंग
लौटे बेजान तन
हारी ज़िंदगी
-राजीव गोयल
घना कोहरा
आँगन में पसरा
सूर्य कहाँ हो
पुष्पा सिन्धी
ताउम्र रोई
माँ की याद दिल में
कभी न सोई
-निगम 'राज़'
फैलाने लगी
सिमटे पाँव, धूप
गुनगुनाई
सुरंगमा यादव
सजाके तारे
रजनी की जुल्फों में
सो गया रवि
-राजीव गोयल
नश्वर तन
समय आरी, काटे
वृक्ष सघन
-पुष्पा सिन्धी
प्रेम की पीर
पहाड़ भी रो देता
पवित्र नीर
-रमेश कुमार सोनी
-----------------------------------
समाप्त
`-+
नव वर्ष यूँ
नव निर्मित घर
गृह प्रवेश
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
मन दीवारें
क्रोध घृणा के जाले
चलो निकालें
सुरंगमा यादव
सूरज हांफे
जाड़े में छुप कर
ठण्ड से काँपे
-सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य'
धीमा ज़हर
है संवादहीनता
मरते रिश्ते
सुरंगमा यादव
एक ही छत
कमरों की तरह
बंटे हैं मन
-सुरंगमा यादव
सूरज डरे
कोहरे के भय से
कैसे उतरे
सूर्य नारायण गुप्त ;सूर्य'
गुलाबी सर्दी
ओढ़ स्वेटर शाल
हुई गुलाबी
-शिव डोयले
फुटपाथ पे
ढूँढ़ रही शिकार
सर्दी डायन
-राजीव गोयल
व्यथित जन
लगते हैं मुझको
यों परिजन
- रमश कुमार सोनी
विश्वास रहा
ह्रदय में उसका
आवास रहा
-निगम 'राज़'
सांझ पुकारे
सूर्य शर्म से लाल
चाँद जो झांके
रमेश कुमार सोनी
दुःख का वेग
सांत्वना के तटों ने
किया मद्धिम
-सुरंगमा यादव
कुम्भ का मेला
डुबकी लगा रहे
प्रवासी पक्षी
-विभा श्रीवास्तव
लालच खोंटी
पूर्ण पाने में खो दी
अधूरी रोटी
सोनी जी
संक्रांति पर्व
टूटेगा अब शीघ्र
शीत का दर्प
-सुरंगमा यादव
जीवन क्या है !
उडी, चढी, लो कटी
गिरी पतंग
-सुरंगमा यादव
निहाँ निशां थे
इश्क भरे दिल में
कई आस्मा थे
(निहां - छिपे हुए)
-निगम 'राज़'
हुई क्या भूल?
सींचा प्रेम जल से
उगा बबूल
-सुरंगमा यादव
सर्दी की रात
क्यों उतरा झील में
सोचता चाँद
-राजीव गोयल
दूर या आस
हर पल आभास
तुम हो साथ
-सुरंगमा यादंव
चुरा के भागी
सुगंध बगिया की
चोरनी हवा
-राजीव गोयल
रोक लेते हैं
धूप मेरे हिस्से की
ऊंचे मकान
-राजीव गोयल
प्रेम आसव
लिए लिए फिरती
हवा बासंती
-सुरंगमा यादव
गिरते जाएं
ज़िंदगी शजर से
उम्र के साल
-राजीव गोयल
हुई सयानी
ओढ़े चूनर धानी
झूमें सरसों
-सुरंगमा यादव
ख्याति अमर
संग्रहालय बना
पुश्तैनी घर
-पुष्पा सिन्धी
मीत मिलाप
चहुँ दिश बिखरा
प्रीत पराग
-सुरंगमा यादव
पत्र ओ बांचे
अम्बर ने वासंती
धरती नाचे
-निगम 'राज़'
घूँघट हिला
वसंत पद-चाप
ह्रदय खिला
-पुष्पा सिन्धी
ज़िंदगी जी ली
पता ही नहीं चला
उम्र गुज़री
-निगम 'राज़'
आया बसंत
फिर से बौरा गए
संत महंत
-अमन चांदपुरी
जो हैं वंचित
उनकी भी किंचित
सुधि लें हम
-सुरंगंमा यादव
बिस्तर पर
बदले करबट
रात अकेली
-अमन चाँदपुरी
नियत सच्ची
मेहनत की रोटी
लगती अच्छी
बलजीत सिंह
जीत ली जंग
लौटे बेजान तन
हारी ज़िंदगी
-राजीव गोयल
घना कोहरा
आँगन में पसरा
सूर्य कहाँ हो
पुष्पा सिन्धी
ताउम्र रोई
माँ की याद दिल में
कभी न सोई
-निगम 'राज़'
फैलाने लगी
सिमटे पाँव, धूप
गुनगुनाई
सुरंगमा यादव
सजाके तारे
रजनी की जुल्फों में
सो गया रवि
-राजीव गोयल
नश्वर तन
समय आरी, काटे
वृक्ष सघन
-पुष्पा सिन्धी
प्रेम की पीर
पहाड़ भी रो देता
पवित्र नीर
-रमेश कुमार सोनी
-----------------------------------
समाप्त
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हर बार की तरह श्रमसाध्य सार्थक प्रयास हेतु आदरणीय वर्मा साहब को बधाई व साधुवाद ....
जवाब देंहटाएंसंशोधन की धृष्टता --पत्र ओ की जगह कृपया पढ़ें -/
जवाब देंहटाएंपत्र जो बांचे
अम्बर ने वासंती
धरती नाचे ।
---निगम राज़